निर्धनता का अर्थ (nirdhanta kya hai)
nirdhanta meaning in hindi;निर्धनता का अर्थ उस रासायनिक प्रक्रिया से है जिसमे मनुष्य अपने जीवन की आधारभूत या बुनियादी आवश्यकताओं को भी पूरा करने मे सक्षम नही हो पाता। जब किसी समाज का बहुत बड़ा भाग न्यूनतम जीवन स्तर से भी वंचित रहता है तथा केवल निर्वाह स्तर ही गुजारा करता है तो उस समाज मे व्यापक निर्धनता विद्यमान रहती है।गोडार्ड के अनुसार " निर्धनता एक ऐसी स्थिति है जिसमे कोई व्यक्ति स्वयं अपनी व अपने आश्रितों की समाज स्वीकृति ढंग से पूर्ति नही कर पाता।"
जी. के. अग्रवाल के अनुसार " निर्धनता का तात्पर्य एक ऐसे अभावग्रस्त जीवन से है, जो समाज के सामाजिक, आर्थिक कुसमायोजन से उत्पन्न होता है तथा जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति अपनी तथा अपने आश्रितों की अनिवार्य जरूरतों को पूरा करने मे असमर्थ रहता है।
निर्धनता की विशेषताएं (nirdhanta ki visheshta)
निर्धनता की विशेषताएं इस प्रकार है--
1. निर्धनता जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति से जुड़ी होती है।
2. निर्धनता का देश की जनसंख्या से सीधा संबंध होता है।
3. निर्धनता व्यक्ति की क्रयशक्ति और बाजार भाव से प्रभावित होती है।
4. निर्धनता देश की आर्थिक-सामाजिक नीतियों और योजनाओं से संबंधित होती है।
5. निर्धनता एक सापेक्ष शब्द है।
निर्धनता का कारण (nirdhanta ke karan)
भारत मे निर्धनता के निम्न कारण है--
1. आर्थिक कारणभारत मे विकास की असमान दर, पूँजी की कमी, कुशल मानवीय संसाधन का अभाव, मुद्रा का असंतुलन, मुद्रा स्फीति कि समस्या कुछ ऐसे कारक है जो भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते आए है। कृषि का लभा का धंधा ना होना, किसानों की आत्महत्याएं, खेती की घटती प्रासंगिकता, नई आर्थिक नीतियों के अपनाने के बाद भी स्थितियाँ बड़ी विरोधाभास पूर्ण है।
2. जनांकिकी कारक
निर्धनता के जनांकिकी कारकों मे स्वास्थ्य, परिवार का आकार, कार्यशील आयु से अधिक आयु के व्यक्ति यानी वृद्धों की परिवार पर निर्भरता इत्यादि तथ्यों पर गौर करे तो स्पष्ट होता है कि भारत मे निर्धनता के लिए उत्तरदायी इन कारकों की उपेक्षा नही की जा सकती। स्वास्थ्य की खराब स्थिति कार्यक्षमता को प्रभावित करती है और व्यक्ति आजीविका उपार्जन के लिए आवश्यक कार्य कर पाने मे सक्षम नही रह जाता। अस्वच्छता, गलत खान-पान, मानसिक तनाव, संक्रामक व असंक्रामक रोगों से प्रभावित व्यक्ति अपने इलाज पर किए जाने वाले व्यय के कारण निर्धनता की स्थिति मे आ जाते है।
3. सामाजिक कारण
भारतीय समाज मे जातिभेद लिंग भेद, साम्प्रदायिकता, क्षेत्रवाद जैसी समस्याओं से जकड़ा है। यह समस्याएं निर्धनता की स्थिति को बढ़ावा देने की पृष्ठभूमि तैयार करती है।
निर्धनता के सामाजिक कारण इस प्रकार है--
1. लोग जातिवाद, धर्मवाद और पुरानी रूढ़ियों मे इतने बंधे हुए है कि वे नई परिस्थितियों को नही अपनाना चाहते तथा इनमे गतिशीलता का अभाव है।
2. भारत मे जन परिस्थितियों को नही अपनाना चाहते तथा इनमे गतिशीलता का अभाव है।
3. भारत मे "संतोष परम खुखम्" की भावना की वजह से भी गरीबी बढ़ी है।
4. शीघ्र से शीघ्र पुत्रियों का विवाह करने से जनसंख्या मे अधिक वृद्धि हुई है जो आर्थिक विकास के मार्ग मे बाधा है।
5. लोगों की अशिक्षा एवं अज्ञानता भी भी गरीबी के लिए उत्तरदायी है।
4. राजनीतिक कारण
तीसरी दुनिया के अधिकांश देश बहुत वर्षों तक किसी न किसी साम्राज्यवादी अधीनता मे रहे है। इन साम्राज्यवादी देशों ने अपने अधीनस्थ देशों का बहुत शोषण किया। साम्राज्यवादी शक्तियाँ इन देशों से कच्चा माल ले जाकर, अपना तैयार माल इन देशों पर थोपती रही है। इन देशों से इस प्रकार उनकी सारी दौलत लुटती रही है।
5. वैयक्तिक कारण
सभी सामान्य, शिक्षित और अशिक्षित व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त नही होते है। विदेशी विद्वान जब भारत की व्याख्या करते है तो उसमें निर्धनता के अन्य कारकों के अतिरिक्त वैयक्तिक दुर्बलताओं का वर्णन भी करते है। सभी तथ्य भारत और नगरों मे निर्धनता की वृद्धि करते है।
6. शैक्षिक कारण
निर्धनता का एक बड़ा कारण बड़ा कारण शिक्षा भी है। आज मे दुर्बल वर्ग के बच्चे शिक्षा से कोसों दूर है। अनुसूचित, पिछड़ा और जनजातीय समाज मे शिक्षा का थोड़ा विकास जरूर हुआ है। इन्हें पढ़ने-लिखने की सरकारी सुविधाएं दी जा रही है। सरकारी नौकरियों मे भी आरक्षण की सुविधा प्राप्त है। दूसरी तरफ विश्वविद्यालयों, काॅलेजों और स्वशासी काॅलेजों में तरह-तरह के विषयों की दुकानें लग गई है पर उनके अनुरूप अभी नौकरी की सुविधाएं बहुत ही कम है। प्रत्येक वर्ष कई लाख युवक डिग्री प्राप्त कर रहे है लेकिन इनमें से अधिकांश अभी तक बेरोजगार है। इस प्रकार अनेक कारणों की वजह से नगरों मे निर्धनता बढ़ती जा रही है। इस निर्धनता के मानवीय समाज पर अनेक परिणाम होते है।
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