3/11/2022

सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, आधार

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प्रश्न; सामाजिक स्तरीकरण क्या हैं? सामाजिक स्तरीकरण को परिभाषित कीजिए। 

अथवा", सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ बताते हुए, सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताएं लिखिए। 

उत्तर--

सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ (Samajik starikaran kya hai)

Samajik starikaran arth paribhasha visheshtayen aadhar;समाज मे सभी व्यक्ति एक से नही होते। उनमे अनेक जैविक और सामाजिक भेद होते है। ये भेद कमोबेश सभी समाजों मे देखने को मिलते है। आदिम समाज सरल होते है। उनमे सामाजिक और सांस्कृतिक भेद कम होते है। ऐसे समाजों मे व्यक्ति की सामाजिक स्थिति और उसके कार्यों का निर्धारण प्रधानतया जैविक तत्वों जैसे-- आयु, लिंग, शारिरीक एवं मानसिक क्षमता के द्वारा ही होता है। इसके विपरीत आधुनिक समाज जटिल होता है। उसमे श्रम विभाजन विशेषीकरण पर आधारित होता है। व्यक्ति की समाज मे स्थिति जैविक तत्वों पर कम और सामाजिक भेदों पर अधिक निर्भर करती है। तकनीकी ज्ञान, शिक्षा, व्यवसाय, एवं आर्थिक स्थिति आधुनिक समाजों मे सामाजिक भेद के मुख्य आधार है। समाज मे विभेदीकरण की प्रक्रिया निरन्तर क्रियाशील होती है। समाज मे क्रिमिक एवं सतत भिन्नता का मुखर होना ही विकास हैं।
सामाजिक स्तरीकरण समाज का उच्चता व निम्नता पर आधारित क्षैतिज श्रेणियों मे विभाजन को स्पष्ट करता है।
इस लेख मे हम सामाजिक स्तरीकरण क्या हैं? सामाजिक स्तरीकरण किसे कहते है? सामाजिक स्तरीकरण की परिभाषा, विशेषताएं और सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधार जानेंगे।
दूसरे शब्दों मे, सामाजिक स्तरीकरण समाज का बहुत कुछ स्थायी समूहों एवं श्रेणियों, जो उच्चता व निम्नता के बोध से परस्पर आबध्द होते हैं, मे विभाजन है। वास्तव मे सामाजिक स्तरीकरण का आधार सामाजिक विभेदीकरण है। जब भिन्न सामाजिक विशिष्टताओं के साथ भिन्न सामाजिक प्रतिष्ठा जुड़ जाती है जिससे कतिपय सामाजिक विशिष्टताओं को समाज मे ऊँचा स्थान, अच्छी सुविधाएँ और पुरस्कार प्रदान किया जाता है तो समाज न केवल विभेदीकृत होता है, बल्कि स्तरीकृत भी हो जाता है।

सामाजिक स्तरीकरण की परिभाषा (samajik starikaran ki paribhasha)

पी. गिसबर्ट, " सामाजिक स्तरीकरण समाज का उन स्थायी समूहों अथवा श्रेणियों मे विभाजन है, जो कि उच्चता एवं अधिकता संबंधों मे परस्पर सम्बध्द होते हैं।"
थियोडोर कैपलो, " संस्तरण किसी सामाजिक व्यवस्था के सदस्य को ऊंच-नीच के क्रम मे सजाना है, जिनमें प्रतिष्ठा, सम्पत्ति, प्रभाव तथा सामाजिक स्थिति की अन्य विशेषताओं मे काफी विभिन्नताएं देखने को मिलती है।"
बरट्रेण्ड रसैल, " सामाजिक स्तरीकरण एक प्रकार से किया गया समाज मे व्यक्तियों का विभाजन है--- जैसे कि उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग, निम्न वर्ग।"
मेलविन के अनुसार," स्तरीकरण,  विभेदीकरण एवं मूल्य निर्धारण के संयोग का परिणाम है। वास्तव मे स्तरीकरण का किसी भी व्यवस्था के कार्य मे परिणत होने होने के लिए कम से कम चार मुख्य प्रक्रियायें है-- विभेदीकरण, श्रेणीकरण, मूल्यांकन और पुरस्कार।"
शलफाट पारसन स्तरीकरण की व्याख्या करते हुए लिखते है कि ," मानवीय व्यक्तियों के भेदीय-वर्ग जो एक विशेष सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करते है, एक निश्चित महत्वपूर्ण सामाजिक सम्मान के रूप मे उनका व्यवहार उच्च एवं निम्न की भावना से परस्पर संबंधित होता है।" 
सोरोकिन के अनुसार," सामाजिक स्तरीकरण का तात्पर्य है, एक जनसंख्या विशेष को एक दूसरे के ऊपर, ऊँच-नीच स्तरणात्मक वर्गों मे विभेदीकरण। इसकी अभिव्यक्ति उच्चतर एवं निरंतर स्तरों के विद्यमान होने के माध्यम से होती है।

सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताएं (samajik starikaran ki visheshta)

सामाजिक स्तरीकरण की निम्न विशेषताएं है--
1. सार्वभौमिकता
प्रत्येक समाज मे किसी न किसी रूप मे स्तरीकरण अवश्य ही पाया जाता हैं।
2. सामाजिक मूल्याकंन
सामाजिक स्तरीकरण मे समाज का वर्गीकरण कार्य व पद के आधार पर किया जाता है, किन्तु समाज का प्रत्येक वर्ग किसी व्यक्ति को अपने मे मिलाने से पूर्व यह अच्छी तरह देख लेता है कि वह व्यक्ति उस वर्ग के योग्य है या नही। इस प्रकार की योग्यता परीक्षण को सामाजिक मूल्याकंन कहा जाता हैं।
3. कार्यों की प्रधानता
सामाजिक स्तरीकरण की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें कार्यों को महत्व दिया जाता है।
4. निरन्तरता
सामाजिक स्तरीकरण एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
5. स्थायित्व
समाज का विभाजन स्तरीकरण के आधार पर ही होता है, जिसमे स्थायित्व पाया जाता है।
6. उच्चता एवं निम्नता
सामाजिक स्तरीकरण मे जो भी विभाजन समाज का होता है उसमें उच्चता एवं निम्नता को आधार माना जाता हैं।

सामाजिक स्तरीकरण के आधार (samajik starikaran ke aadhar)

समाज मे समूहों एवं उनके भिन्न स्तरों के अध्ययन मे समाजशास्त्री विभिन्न संरचनात्मक इकाइयों का प्रयोग करते है। इन संरचनात्मक इकाइयों मे जाति, वर्ग, अभिजात, समूह तथा व्यावसायिक एवं पेशेजन्य श्रेणियां प्रमुख है। समाज मे विभिन्न समूहों के बीच श्रेणी अथवा स्तर के निर्धारण मे भूमिका अथवा स्थिति को इकाई के रूप मे लिया जाता हैं। समाज मे स्थितियों एवं भूमिकाओं का श्रेणीकरम मनमाने ढंग से नही होता, बल्कि निश्चित मूल्यों एवं मानदण्डों के आधार पर होता है। ये मूल्य आम समति या वैचारिक सामंजस्य पर आधारित होते है। समाज के स्तरीकरण मे जाती, वर्ग एवं शक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका है। सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है---
1. आयु
कुछ समाजों मे सामाजिक स्थिति प्रदान करने मे आयु को विशेष महत्व प्रदान किया जाता है। हमारे देश मे अधिक आयु के लोगों को अधिक मान-सम्मान किया जाता है।
2. लिंग
लिंग भेद भी सामाजिक स्तरीकरण का एक आधार है। विभिन्न समाजों मे लिंग भेद के आधार पर भी स्तरीकरण पाया जाता है। यह स्तरीकरण सम्भवतः सबसे प्राचीन एवं सरल स्तरीकरण है। लिंग के आधार पर स्थित व कार्यों का विभाजन किया जाता है।
3. प्रजातीयता के आधार पर स्तरीकरण
स्तरीकरण प्रजाति के आधार पर भी किया जाता हैं।
4. आध्यात्मिकता के आधार पर
समाज मे जो व्यक्ति आध्यात्मिक दृष्टि से ऊंचे उठ जाते है, उनका समाज मे विशेष स्थान होता हैं। ऐसे व्यक्तियों की आयु, जाति तथा आर्थिक स्थिति पर विचार नही किया जाता है।
5. सम्पत्ति के आधार पर
सम्पत्ति के आधार पर भी स्तरीकरण किया जाता है। जिस व्यक्ति के पास अधिक धन-सम्पत्ति होती हैं। उसे समाज मे अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त होती हैं।
6. जन्म के आधार पर स्तरीकरण
जन्म के आधार पर भी उच्चता व निम्नता को स्थान प्रदान किया जाता हैं। जाति प्रथा इसका उदाहरण है।
7. रक्त सम्बन्धों के आधार पर स्तरीकरण
रक्त सम्बन्ध के आधार पर भी सामाजिक स्तरीकरण किया जाता है। जो व्यक्ति ऐसे पुरूषो की सन्तान होते है जिन्होंने सद्गुणों द्वारा समाज मे सम्मान एवं प्रतिष्ठा प्राप्त की है, वे रक्त संबंधों के कारण ही समाज मे प्रतिष्ठा प्राप्त करते है तथा उनको उच्च स्थिति प्रदान की जाती है।
8. धार्मिक योग्यता
आदिम समाजों और उन समाजों मे जहाँ पर जातिगत स्तरण पाया जाता है, धार्मिक योग्यता सामाजिक स्थिति का निर्धारण करने मे महत्वपूर्ण है।
9. शारीरिक एवं बौद्धिक योग्यता 
समाज मे व्यक्ति की स्थिति उसकी शारीरिक एवं बौद्धिक योग्यता पर भी निर्भर करती हैं।
शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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