12/12/2019

लौकिकीकरण का अर्थ, परिभाषा, कारण/कारक

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लौकिकीकरण 

भारत मे सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रियाओं को अभिव्यक्त प्रदान करने मे लौकिकीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं। इसका कारण यह कि भारत आदिकाल से ही धर्म प्राण देश रहा है तथा भारत की जनता धर्मभीरु रही हैं। भारत मे यद्यपि धर्मनिरपेक्षीकरण का प्रारंभ पश्चिमीकरण के साथ ही प्रारंभ हो गया था,किन्तु इसे गति प्रदान करने मे भारतीय स्वतंत्रता एवं प्रजातन्त्रीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं। आज हम लौकिकीकरण किसे कहते है?  लौकिकीकरण का अर्थ, लौकिकीकरण की परिभाषा और लौकिकीकरण की विशेषताएं जानेगें।

लौकिकीकरण का अर्थ 

लौकिकीकरण, जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट होता है, वह प्रक्रिया जिसके माध्यम से सर्वधर्म-समभाव की भावना का प्रसार किया जाता है। लौकिकीकरण जीवन का एक दृष्टिकोण है, जिसमे धर्म की परिभाषा समकालीन सामाजिक परिवेश में प्रजातांत्रिक मूल्यों पर आधारित करके की जाती हैं। लौकिकीकरण किसे कहते है इसे समझने के लिए यह आवश्यक है कि हम धर्म की धारणा को समझे।
धर्म की धारणा
धर्म एक आध्यात्मिक शक्ति का नाम है, जिसे आराध्य कर सुख और शांति की अनुभूति करता है।
मौलिक प्रश्न यह है-
1. मानव धर्म क्यों धारण करता है?
2. धर्म की उत्पत्ति और इसका विश्वास क्यों और किन प्रक्रियाओं से हुआ?

इन दोनो प्रश्नों को एक दूसरे से अलग करके नहीं समझा जा सकता है। धर्म की उत्पत्ति मे पर्यावरण का अत्यधिक महत्व होता है। एक स्थान का पर्यावरण दूसरे स्थान से भिन्न होता हैं। इसलिए धर्मों मे भिन्नता पाई जाती हैं। कभी-कभी विचारों मे भिन्नता के कारण भी धर्मों मे विभिन्नता का विकास होता हैं। धर्मों मे भिन्नता हो जाने से व्यक्तियों मे भिन्नता उत्पन्न हो जाती हैं और व्यक्ति समूह में विभाजित हो जाते है। यह विभाजन मानव-समाज में विद्वेष और ईर्ष्या की भावना को जन्म देता हैं। और समाज विघटन के कगार पर खड़ा हो जाता है। समाज को इन विघटनकारी शक्तियों से बचाने के लिए लौकिकीकरण अनिवार्य हैं।

लौकिकीकरण की परिभाषा 

आक्सफोर्ड डिक्सनरी के अनुसार लौकिकीकरण की परिभाषा, " लौकिकीकरण वह सिद्धान्त है, जिसमें ईश्वर मे विश्वास से सम्बंधित सभी विचारों को पृथक करके नैतिकता वर्तमान जीवन मे मनुष्य कल्याण से पूर्णरूपेण सम्बंधित रहती हैं।"
चैम्बर्स ने लौकिकीकरण की परिभाषा कुछ इस प्रकार से दी है, " लौकिकीकरण एक ऐसा विश्वास है, जिसमें राज्य, नैतिकताएं, शिक्षा, इत्यादि धर्म से सम्बंधित होनी चाहिए।" 

भारत में लौकिकीकरण को प्रोत्साहन देने वाले कारक 

भारत में लौकिकीकरण की प्रक्रिया को अनेक कारकों ने प्रोत्साहन दिया है जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-- 
1. पश्चिमीकरण
भारत में लौकिकीकरण को प्रोत्साहन देने वाला प्रमुख कारक पश्चिमीकरण है । वास्तव में लौकिकीकरण की शुरूआत ही अंग्रेजी शासनकाल में हुई। इस सन्दर्भ में श्रीनिवास का कहना है कि अंग्रेजी शासन अपने साथ भारतीय जीवन और संस्कृति के लौकिकीकरण को प्रोत्साहित करने वाले कारक के रूप में पश्चिमीकरण की प्रक्रिया को भी साथ लाया। अंग्रेजी शासनकाल में तकनीकी के विकास, आवागमन एवं संचार के साधनों में विकास तथा शिक्षा सुविधाओं में वृद्धि से लौकिकीकरण को प्रोत्साहन मिला। 
2. नगरीकरण एवं औद्योगीकरण 
भारत में लौकिकीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहन देने में नगरीकरण एवं औद्योगीकरण का भी विशेष स्थान है। नगरों में लौकिकीकरण इसलिए शीघ्रता से हुआ क्योंकि इन केन्द्रों पर धार्मिक विचारों की महत्ता कम थी तथा विजातीयता के कारण समायोजन क्षमता पहले से ही अधिक थी। अधिकांश उद्योग भी नगरों में ही विकसित हुए जिससे कि विभिन्न जातियों, धर्मों और सम्प्रदायों के लोगों को एक साथ काम करने का अवसर मिला औद्योगिक केन्द्रों में ऊंच-नीच की भावनाओं को बनाए रखना सम्भव ही नहीं है साथ ही औद्योगीकरण से वैज्ञानिक एवं तार्किक दृष्टिकोण में भी वृद्धि होती है। 
3. संचार व्यवस्था एवं आवागमन के साधनों का विकास 
संचार साधनों के विकास तथा आवागमन के साधनों के विकास से भी लौकिकीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहन मिला है। इनसे विभिन्न जातियों एवं धर्मों के लोगों में परस्पर सम्पर्क बढ़ता है तथा गतिशीलता में वृद्धि होती है। विजातीय लोगों के साथ रहने से तथा इनके साथ अन्तर्कियाओं से दृष्टिकोण व्यापक हो जाता है और धार्मिक संकीर्णता समाप्त हो जाती है। 
4. आधुनिक शिक्षा 
परम्परागत रूप से धर्म की प्रधानता के कारण भारतीय समाज में शिक्षा केवल द्विज़ जातियों तक ही सीमित थी तथा निम्न जातियों को शिक्षा सुविधाओं से वंचित रखा जाता था म। परन्तु आधुनिक शिक्षा के प्रचलन से भारत में लौकिकीकरण को प्रोत्साहन मिला है। अंग्रेजी शासनकाल में आधुनिक (पश्चिमी) शिक्षा प्रणाली की शुरूआत हुई तथा अंग्रेजी भाषा द्वारा भारतीय लोगों को पश्चिमी देशों की प्रमुख विशेषताओं (जैसे समानता, बुद्धिवाद, विवेकशीलता, मानवतावाद, स्वतन्त्रता, भ्रातृत्व आदि) के बारे में पता चला तथा इनका हमारे रूढ़िवादी विचारों पर काफी प्रभाव पड़ा। साथ ही भिन्न जातियों पर लगे शिक्षा प्रतिबन्ध समाप्त हो गए और शिक्षा संस्थाएँ उच्च एवं निम्न जातियों के बच्चों के लिए एक साथ बैठने और एक-दूसरे से अन्तर्क्रिया करने के स्थल बन गई। इसमें पवित्रता अपवित्रता की धारणाओं में परिवर्तन आया तथा लौकिकीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहन मिला। 
5. धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आन्दोलन
भारतीय समाज में प्रचलित धार्मिक एवं सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने के लिए अनेक आन्दोलनों का प्रारम्भ हुआ जिनमें ब्रह्म समाज, आर्य समाज प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन तथा थियोसोफिकल सोसाइटी आदि प्रमुख हैं। इन आन्दोलनों के परिणामस्वरूप अस्पृश्यता, जाति-पाँति के भेदभाव एवं कट्टरता तथा धार्मिक अन्धविश्वासों की समाप्ति हुई तथा स्वतन्त्रता, समानता एवं प्रातृत्व के विचारों प्रोत्साहन मिला। इससे लौकिकीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहन मिला। 
6. स्वतन्त्रता आन्दोलन
स्वतन्त्रता आन्दोलन ने भी भारतीय जनता में सामाजिक एवं राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि करके लौकिकीकरण को प्रोत्साहन दिया है। स्वतन्त्रता आन्दोलन में सभी धर्मों के लोगों ने मिलकर कार्य किया तथा इसी के परिणामस्वरूप स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया तथा समाजवादी समाज की स्थापना का लक्ष्य निर्धारित कर लौकिकीकरण को आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। 
7. सामाजिक विधान 
अंग्रेजी शासनकाल में तथा स्वतन्त्र भारत में धार्मिक एवं सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए जो प्रयास किए गए, उनसे भी लौकिकीकरण को प्रोत्साहन मिला है इन विधानों से बाल विवाह, सती प्रथा, मानव बलि, विधवा पुनर्विवाह निषेध, अस्पृश्यता आदि ही समाप्त नहीं हुए अपितु स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् सभी धर्मों के व्यक्तियों को समान अधिकार दिए गए। अल्पसंख्यक वर्गों को कुछ विशेषाधिकार भी दिए गए। संविधान की दृष्टि से भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य का दर्जा मिलना लौकिकीकरण को बढ़ाने का एक प्रभावशाली प्रयास है। आज भारत में जाति, धर्म, सम्प्रदाय, लिंग, प्रजाति इत्यादि के आधार पर किसी भी नागरिक से भेदभाव नहीं किया जाता जोकि धर्मनिरपेक्ष नीति का ही सूचक है। 
8. हिन्दू धर्म में संगठन तथा केन्द्रीय सत्ता का अभाव 
हिन्दू धर्म अन्य धर्मों की अपेक्षा संगठित नहीं है तथा कोई ऐसी केन्द्रीय सत्ता भी नहीं है जोकि सभी हिन्दुओं को संगठित रख सके वास्तव में हिन्दू धर्म स्वयं अनेक समूहों, सम्प्रदायों, मठों और उपसंस्कृतियों में विभाजित है। प्रो. श्रीनिवास का कहना है कि लौकिकीकरण की प्रक्रिया हिन्दुओं में केन्द्रीय सत्ता के अभाव के कारण शीघ्रता से विकसित हो गई। पवित्रता-अपवित्रता सम्बन्धी विचारों की महत्ता में कमी तथा धार्मिक सहिष्णुता के कारण लौकिकीकरण को हिन्दुओं को अधिक प्रभावित करने का अवसर मिला है। 
9. राजनीतिक दल
हमारे देश में प्रजातान्त्रिक प्रणाली है तथा बहुदलीय व्यवस्था के कारण विभिन्न राजनीतिक दलों ने लौकिकीकरण लाने में सहायता दी है। कोई भी दल जोकि धार्मिक विचारधारा पर गठित हुआ, अधिक देर तक टिका नहीं रह सका। इसलिए अधिकांश दलों ने धर्मनिरपेक्षता को अपना लक्ष्य स्वीकार किया जिससे अल्पसंख्यक सम्प्रदायों के लोग भी इन दलों का समर्थन कर सकें। अतः भारत में विविध प्रकार के कारकों ने लौकिकीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहन देने में सहायता दी है। यह प्रक्रिया आज भी हमारे समाज में चल रही है।
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