प्रश्न; तुलसीदास की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा", तुलसी का कलापक्ष भी भावपक्ष के समान सबल है। उक्ति की समीक्षा कीजिए।
उत्तर--
तुलसीदास के काव्य की विशेषताएं
tulsidas ki kavyagat visheshta;गोस्वामी तुलसीदास जी पूर्ण भावुक कवि थे। उनका कवि व्यक्तित्व तन्मयकारिणी भावुकता और एकनिष्ठ भगवद्-भक्ति से निर्मित हुआ था। उन्होंने मानव-जीवन की प्रायः प्रत्येक भावना से तादात्म्य स्थापित किया था। यही कारण है कि वे अपने काव्य में मानव के सभी पक्षों का सुन्दर उद्घाटन करने में समर्थ सिद्ध हो सके।
तुलसीदास के भाव-पक्ष की विशेषताएं
तुलसी के काव्य की भाव-पक्ष की विशेषताएं निम्नलिखित हैं--
1. वस्तु विन्यास
तुलसीदास रामचरित् मानस के कथानक 'अध्यात्म रामायण तथा वाल्मीकि रामायण से लिया माना जाता है। जहाँ भी तुलसी ने इसमें परिवर्तन आवश्यक समझा है, वहां कलात्मकता का पूरा ध्यान रखा है। कथावस्तु के विकास और वर्णन विस्तार में भी तुलसी की असाधारण प्रतिभा और कला के दर्शन होते हैं।
2. मार्मिकता
सच्चा कवि वही कहा जा सकता है, जो मर्मस्पर्शी स्थलों को पहचान कर उनका मर्मस्पर्शी चित्रण करना अपना मुख्य लक्ष्य समझे। पं. रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में," यह गुण तुलसी में सबसे अधिक था। उनमें ऐसे दृश्यों को पहचानने की अपूर्व क्षमता थी।"
'रामचरित-मानस' का 'सीता स्वयंवर' प्रसंग का दृश्य बड़ा ही मर्मस्पर्शी बन पड़ा है। कविवर तुलसीदास जी ने इस मर्म को बड़ी सह्रदयता से अभिचित्रित किया--
"अहह तात दारून हठ ठानी।
समुझत नहिं कछु लाभ हानी।।
सचिव समय सिख देइ न कोई।
बुध समाज बड़ अनुचित होई।।"
3. एकनिष्ठ भगवद्-भक्ति
महाकवि तुलसीदास जी श्रीराम के परम और अनन्य भक्त है, आपकी भक्ति का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय श्रीराम के प्रति एकमात्र समर्पण की भावना है। उन्होंने श्रीराम के प्रति अपनी अपार निष्ठा और विश्वास को व्यक्त करते हुये लिखा हैं--
"रघुपति महिमा अगुन अबाधा।
बरनब सोइबर बारि अगाधा।।
राम सीय जस सलिल सुधासम।
उपमा बिचि विलास मनोरम।।"
4. नारी के प्रति दृष्टिकोण
नारी-चित्रण के विषय में तुलसीदास जी कटु आलोचक नहीं है। उन्होंने विलासी, कर्त्तव्यहीन, चरित्रहीन, धर्म-हीन, कुमार्गी आदि अवगुणी नारियों की बार-बार भर्त्सना की है। पतिव्रता और भक्त नारियाँ तो तुलसीदास के लिये हमेशा उपास्य हैं--
"हिये हरषे मुनि बचन सुनि, देखी प्रीति विश्वास।
चले भवानी नाइ सिर, गये हिमाचल पास।।"
5. लोक-धर्म और मर्यादा
गोस्वामी तुलसीदास के काव्य में लोक-धर्म और मर्यादा का सफल चित्रण मिलता है। तुलसी के इष्टदेव श्रीराम लोक-धर्म और मर्यादा के सच्चे पालक है, वे इसके समर्थक और प्रतीक है। इसलिए तुलसी के इष्टदेव "श्रीराम" मर्यादा पुरूषोत्तम के रूप में और स्वयं तुलसी "लोकनायक" के रूप में सर्वमान्य और लोकप्रिय हैं।
6. वस्तु-विन्यास
तुलसी के काव्य का वस्तु-विन्यास अत्यन्त सरल और बोधगम्य है। स्वाभाविकता, सरलता, सजीवता, रोचकता एवं स्पष्टता उनके वस्तु-विन्यास की प्रमुख विशेषतायें हैं।
7. प्रकृति चित्रण
तुलसीदास प्रकृति के चतुर चितेरे चित्रकार है। तुलसीदास जी ने प्रकृति का चित्रण सौंदर्य या आकर्षण की दृष्टि से नहीं, अपितु मानव से उसका तादात्म्य स्थापित करके उसके नाना व्यापारों एवं स्वरूपों का चित्रण उपदेशक के रूप में एवं आत्मीय के रूप में किया है। दृष्टव्य हैं-- राम की वियोग-दशा को चित्रित करने वाला प्रकृति का एक वर्षाकालीन दृश्य--
"घन घमंड नभ गरजत घोरा।
प्रियाहीन हरपत मन मोरा।।"
तुलसी के काव्य की कला-पक्ष विशेषताएं
तुलसी काव्य की कलागत विशेषताएं निम्नलिखित हैं--
1. अलंकार
तुलसी के काव्य में अलंकार प्रियता देखी जा सकती है हालांकि वे अलंकारवादी नहीं है। तुलसी को अलंकार प्रदर्शन पसंद नहीं है, बल्कि अलंकार उनके काव्य में सहज रूप से आये है। उपमा एवं व्यतिरेक का एक उदाहरण देखिये--
"पीपर पात सरिस मन डोला।।" (उपमा)
"सन्त ह्रदय नवनीत समाना, कहा कविन पै कहै जाना।
निज परिपात द्रवै नवनीता, परिदुख सुसंत पुनीता।।" (व्यतिरेक)
2. चित्रात्मकता
तुलसी के शब्द चित्र अनुपम है। वे पाठक के अन्त पटल पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। सीता की असहाय स्थिति का एक चित्र दिखिये--
"रघुकुल तिलक वियोग तिहारे।
मैं देखो जब नाई जानकी,
मनहुं विरह मरति मन मारे।।"
3. शब्द और अर्थ का सामंजस्य
तुलसी के काव्य में शब्दार्थ का सुदंर समन्वय है। लक्षणा शब्द शक्ति का एक सुन्दर प्रयोग दिखिये--
"सत्य सराहि कहेउ बरू देना,
जानेहु लेइहि मांगि चबैना।।"
4. भाषा
तुलसी ने अवधी और ब्रजभाषा में अपने काव्य की रचना की है। रामलला, नेहछु, बरबै रामायण, जानकी मंगल, पार्वती मंगल और रामचरित मानस आदि रचनायें अवधी गई रचनायें है जबकि तुलसी ने भाषा के साधु प्रयोग का पूर्ण ध्यान रखा है। अवधी और ब्रज दोनों के व्याकरण के नियमों का पूर्ण ध्यान रखा हैं।
5. छन्द योजना
तुलसी का छन्दों पर अवाध अधिकार था। इन्होंने प्रधान रूप में दोहा-चौपाई छन्दों का प्रयोग किया है। वैसे तुलसी साहित्य में कवित्त, सवैया, छप्पय आदि अनेक प्रकार के छन्द मिलते है। विनय-पत्रिका में राग-रागनियों पर आधारित पद हैं।
संक्षेप में, हम कह सकते है कि तुलसी काव्य में कला-पक्ष और भाव-पक्ष अपने अत्यन्त प्रौढ़ रूप में है जो उन्हें एक अप्रतिम, प्रतिभाशाली, क्रान्तदर्शी कवि सिद्ध करते हैं।
यह जानकार आपके लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होगी
तुलसी दास की दासया भागती भावना के बारे में बताए
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