4/20/2023

बिहारी के काव्य की विशेषताएं

By:   Last Updated: in: ,

प्रश्न; बिहारी के काव्य की भावगत एवं कलागत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। 

अथवा", बिहारी के भाव-पक्ष एवं कला-पक्ष पर अपने विचार व्यक्त कीजिए। 

अथवा", बिहारी की काव्य कला पर सार गर्भित निबंध लिखिए। 

अथवा", बिहारी के काव्य की विशेषताएं बताइए।

अथवा", बिहारी के काव्य में भाव और काव्य सौंदर्य का अनूठा संगम मिलता हैं! सिद्ध करें।

उत्तर--

bihari ke kavya ki visheshta;कविवर बिहारी रीतिकाल के सर्वलोकप्रिय रचनाकार हैं। आपकी लोकप्रियता का आधार आपकी एकमात्र कृति 'सतसई' है। इसमें रसोत्कर्ष की जो उत्कृष्टता दिखाई देती है, वह अन्य कवियों के कवित्त, सवैयों जैसे बड़े-बड़े छन्दों में भी दृष्टिगोचर नहीं होती हैं।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने 'बिहारी सतसई' की ख्याति और उत्कृष्टता पर अपने विचार प्रकट करते हुये लिखा हैं कि," श्रृंगार रस के ग्रंथों में जितनी ख्याति और जितना मान बिहारी सतसई को प्राप्त हुआ उतना और किसी को नहीं, इसका एक-एक दोहा हिन्दी-साहित्य में रत्न माना जाता है। इनके दोहे क्या हैं? रस की छोटी-छोटी पिचकारियाँ हैं, वे मुँह से छूटते ही श्रोता को सिक्त कर देते हैं।" 

भाव यदि कविता का प्राण है, तो भाषा, अलंकार, छन्द आदि उसका शरीर है। काव्य का सौंदर्य भाव और अभिव्यक्ति के माध्यम से दोनों पर ही निर्भर रहता हैं। काव्य का शारीरिक-सौंदर्य (कला सौंदर्य) उसके भावो को उत्कर्ष पर पहुँचाता है। बिहारी के काव्य में भाव और कला सौंदर्य दोनों का अद्भुत समन्वय हुआ हैं।

बिहारी के काव्य की भाव-पक्ष विशेषताएं 

बिहारी मुख्यतः श्रृंगार के कवि हैं। यद्यपि वीरता, नीति, भक्ति संबंधी दोहे भी उन्होंने लिखे हैं लेकिन नायिका सौंदर्य और उसके अनुभावों का वर्णन उनका प्रिय विषय रहा हैं। श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों पक्षों में उनका मन 'संयोग वर्णन' में अधिक हैं। शिवकुमार शर्मा के शब्दों में-- 

"वे अनुराग के कवि हैं और उनकी वृत्ति अनुराग के मिलन पक्ष में खूब रमी है। संयोग पक्ष की कोई ऐसी स्थिति नहीं, जो बिहारी की दृष्टि से बची हो। रूप दर्शन से आकर्षण होता हैं। रूप के ये वर्णन नायिका के है, इस दृष्टि से नायिका के आकर्षण का वर्णन स्वाभाविक था पर बिहारी ने ऐसा नहीं किया। नायिका ही कवि की दृष्टि-बिन्दु हैं।" 

1. रूप वर्णन 

बिहारी ने नायिका का रूप वर्णन किया है जो नख-शिख वर्णन के अंतर्गत आता है, उसमें उसके अंगांग, वेशभूषा का वर्णन आदि समाविष्ट है। इनका नेत्र वर्णन, मुख सौंदर्य वर्णन, वेशभूषा वर्णन बहुत प्रसिद्ध हैं। नेत्र वर्णन का सुप्रसिद्ध उदाहरण दृष्टव्य हैं-- 

(अ) नेत्र वर्णन 

"रस सिंगार मंजन किए, कंजन भंजन दैन। 

अंजन रंजन हू बिना, खंजन गंजन नैन।।"

श्रृंगार रस में नहाए नेत्र सुन्दरता में कमलों का भी मान-मर्दन करते हैं। वे अंजन के अभाव में सहज कजरारे हैं और इतने चंचल हैं कि अपनी चंचलता के कारण खंजन को भी नीचा दिखाते हैं। 

(ब) वेशभूषा (कंचुकी) वर्णन 

"दुरत न कुच विष कंछुकी चुपरी सादी सेद।

कवि अंकन के अरथ लौं, प्रकट दिखाई देत।।" 

सुगंधित, सादी और श्वेत कंचुकी में नायिका के स्तन छिपाए नहीं छिपते। कविता के अर्थ के समान स्पष्ट दिखाई देते हैं।

2. भक्ति भावना 

कविवर बिहारी जी ने अपनी काव्य कृति 'सतसई' के प्रारंभ में ही अपनी आराध्य देवी 'राधानागरी' के प्रति अपनी भक्ति-भावना को अभिव्यक्त करते हुये लिखा है कि--- 

"मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ।

जा तन की झाँई परै, स्याम हरित दुति होइ।।" 

बिहारी ने प्रधानतया भगवान कृष्ण को अपना उपास्य माना है। यद्यपि कुछ दोहों में अन्य देवी-देवताओं की भी अर्चना की है किन्तु उनका मूल उद्देश्य भगवान श्रीकृष्ण की उपासना ही हैं--

"सीस मुकुट कटि कांछनी, कर मुरली उरमाल। 

यहि बानिक मो मन बसौ, सदा बिहारीलाल।।" 

3. प्रेम वर्णन

नायक-नायिका के प्रेम वर्णन में कवि ने इसकी पूरी सामग्री परोस दी। नायक को देखने झरोखे पर जाती लज्जाशील नायिका का यह चित्र दिखिए-- 

(अ) चेष्टा 

"सटपटाति सी ससि मुखी मुख घूंघट पर ढांकि। 

पवक-झर सी झमकिकै गई झरोखा झाकि।।" 

नायिका की अभिलाषा दशा का चित्रण है। वह लपककर झरोखे से नायक की छवि देख जाती हैं, इसलिए सटपटाती है। लज्जा के कारण झांकने में हिचकिचाती भी है। यहाँ अनुभावों की संपर्क योजना हैं। त्रास, बीड़ा, उत्सुकता आदि संचारी भाव हैं। यह उदाहरण सरल काव्य का उदाहरण हैं-- 

(ब) प्रेम क्रीड़ा 

"बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय। 

सौंह करे भौहनु हँसे, देन कहे नट जाए।।" 

पर स्वर हास-परिहास से भी प्रेम का प्रसार होता है। राधा बात करने के लालच से मोहन की मुरलिया छिपा देती हैं। मांगने पर कसम खाना, भौंहों से हंसना, मांगने पर इंकार करना आदि चेष्टाओं, भंगिमाओं से मोहन को रिझाने की चेष्टाएं करते हुए प्रियतम से बात करने का अवसर बढ़ा देती हैं।

4. वियोग वर्णन 

विरह के अनेक ह्रदयकारी चित्र बिहारी ने उकेरे हैं पर उनकी अधिकांश उक्तियाँ उहात्मक एवं अतिशयोक्तिपूर्ण हो गई हैं परन्तु भाव-प्रवण चित्रों की भी कमी नहीं। इन पदों में विरह वर्णन स्वाभाविक, प्रभावोत्पादक और मनोवैज्ञानिक बन पड़ा हैं। पिया की पाती पाकर प्रसन्न प्रोषित पातिका नायिका की चेष्टाएं देखिए-- 

(अ) पिया की पाती 

"करलै चूमि चढ़ाई सिर उर लगाई भुज भेंटि। 

लहि पाती प्रिय की लखति बांचति धरति समेटि।।" 

कभी वह उस पत्र को चूमकर अपने सिर पर चढ़ाती है, कभी अपने ह्रदय से लगाती हैं, कभी उसे अपने कोमल बाहुपास में बांधती हैं और कभी वह उसे पढ़ने लगती है और कभी उसे संभालकर रख लेती हैं। 

(ब) भाव प्रवणता 

"कागद पर लिखत न बनै कहन संदेश लजात। 

कहि है सब तेरौ हियो मेरे हिय की बात।।" 

'तेरा ह्रदय मेरे ह्रदय की सारी बातों को कह देगा।' इस पंक्ति में कितनी स्वाभाविक एवं भाव प्रवणता हैं। वह क्या-क्या लिखे और क्या-क्या छोड़ दे। अतः विरह व्यथा की अथक अथाह कथा की थाह प्रियतम का ह्रदय स्वयं पा लेगा। 

5. प्रकृति चित्रण 

बिहारी ने प्रकृति के कुछ सुन्दर आलम्बनात्मक एवं उद्दीपक दोनों प्रकार के चित्रों का चित्रांकन किया हैं--

(अ) उद्दीपक रूप 

बिहारी ने चमत्कार प्रियता तथा परम्परा-पालन के लिये प्रकृति का उद्दीपन रूप भी अभिचित्रित किया है। संयोग में जो प्रकृति उल्लास की मणियाँ बिखेरती प्रतीत होती हैं, वही दुःख में आठ-आठ आंसू बहाती दिखाई देती हैं। चैत्र-मास की चाँदनी जो पहले प्रिय-मिलन के आनन्द को द्विगुणित किया करती थी, अब विरहिणी की चेतना को लुप्त किये देती हैं-- 

"हौं ही बौरी विरह-बस, कै बौरी सब गाऊँ।

कहा जानि ये कहत हैं, ससिहि सीतकर नाऊँ।।" 

बादल वर्षा ऋतु में नायिका की विरह-वेदना को उद्दीप्त कर उसे और बढ़ा देते हैं--

"कौन सुनै कासौं कहौं, सुरति बिसारी नाह।

बदाबदी जिय लेत हैं, ये बदरा बदराह।।" 

(ख) आलम्बन रूप 

बिहारी के आलम्बनात्मक-वर्णन पारंपरिक हैं। उनमें प्रकृति सौंदर्य की यथार्थ अनुभूति मिलती है। कवि ने रूपक बाँधकर प्रकृति का मानवीकरण सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया है। कवि ने छाँह द्वारा भी छाँह को ढूंढने के रूप में गर्मी की वास्तविकता का अप्रत्यक्ष रूप से सुन्दर वर्णन किया हैं-- 

"बैठी रही अति सघन बन, पैठि सदन तन माँह। 

देखि दुपहरी जेठ की, छांहौं चाहति छाँह।।"

बिहारी के काव्य की कला-पक्ष या कला सौंदर्य विशेषताएं 

बिहारी का कलापक्ष भाषा, शैली, शब्द-गुण, छन्द व अलंकार योजना आदि सभी दृष्टियों से सम्पन्न हैं। 

1. भाषा 

महाकवि बिहारी की भाषा में वे सभी गुण विद्यमान हैं, जिनकी काव्य भाषा के लिये आवश्यकता होती हैं। शब्दों का प्रयोग बड़े ही अनूठे ढंग से किया गया है। उनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू, फारसी के शब्दों का प्रयोग मिलता हैं। ब्रजभाषा के साथ-साथ बुन्देली के शब्दों को भी इन्होंने अपनाया है। बिहारी के कटु आलोचक मिश्र-बन्धु ने भी उनकी भाषा की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि," कुछ बातों पर ध्यान देने से विदित होता है कि बिहारीलाल की भाषा बहुत मनोहर है। इन्होंने सभी स्थानों पर लहलाप्रात, मलमलात, जगमगात आदि ऐसे बढ़िया और सजीव शब्द रखे हैं कि दोहा चमचमा उठता हैं।

2. शैली 

बिहारी अपनी सामाजिक शैली के लिये प्रसिद्ध हैं। उन्होंने कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक भावाभिव्यक्ति कर दोहों में अद्भूत कसावट और जड़ावट ला दी हैं। उनमें गागर में सागर भर देने की अनुपम कला है। उनकी इस सफलता का कारण उनके द्वारा सामान्य प्रसंगों की स्वीकृति हैं। बिहारी ने प्रेम के दैनिक जीवन से ऐसे आकर्षक चित्र लिये हैं, जिनके दो-तीन शब्दों को पढ़ते ही पाठक विषय-सामग्री के साथ हो लेता है और पर्याप्त अर्थ समझ लेता हैं।

3. माधुर्य गुण 

बिहारी की कविता माधुर्य गुण से पूरित है। उनकी कविता में कोमलकान्त पदावली संजोयी गयी है। फलतः उनके दोहे माधुर्य-गुण से लबालब भरे हुये हैं और ऐसा लगता है कि जैसे वे माधुर्य की पिचकारी-सी चलाते हैं। एक उदाहरण देखिये-- 

"अधर धरत हरि के परत, ओठ दीठ पट जोति।" 

हरित बांस की बांसुरी, इन्द्र-धनुष रंग होति।।" 

4. लाक्षणिकता और मुहावरे 

लाक्षणिकता भाषा का श्रेष्ठ गुण माना जाता हैं। कवि इसमें अपनी बात सीधे रूप में न कहकर कुछ भिन्न रूप में व्यक्त करता हैं। उनकी लाक्षणिक भाषा का प्रयोग देखिए-- 

"तंत्री-नाद, कवित्त-रस, सरसराग, रति-रंग। 

अनबूड़े, बूड़े, तरे, जे बूड़े सब अंग।।" 

5. ध्वन्यात्मकता 

बिहारी के काव्य में ध्वन्यात्मकता का गुण विद्यमान हैं। ध्वन्यात्मक भाषा के प्रयोग में ऐसा प्रतीत होता है कि मानो शब्दों में से कोई ध्वनि उत्पन्न हो रही है। यह शब्द-ध्वनि तीन प्रकार की प्राप्त होती हैं-- 

(अ) रणनात्मक शब्द ध्वनि, 

(ब) अनुकरणात्मक शब्द ध्वनि, 

(स) व्यंजक शब्द ध्वनि। 

रणनात्मक शब्द ध्वनि का एक चित्र दिखिये-- 

"रनित भृंग घंटावली झरति दान मधु नीरू। 

मंद-मंद आवत चल्यौ कुंजरू कुंज समीरू।।" 

6. चित्रोपमता 

बिहारी की भाषा चित्रोपम है। वे अपनी भाषा के द्वारा पाठक के सामने शब्द-चित्र खड़े कर देते हैं। राधा कृष्ण की मुरली छिपाकर रख देती है, क्योंकि वे कृष्ण से बात करना चाहती हैं। इस दोहे में बिहारी का शब्द चित्र दिखिये-- 

"बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ।

सौंह करें, भौंहनि हंसे, दैन कहैं नटि जाइ।।" 

7. छन्द-योजना 

कविवर बिहारी द्वारा प्रयुक्त छन्द-दोहा और सोरठा है। उन्होंने दोहे रूपी स्तवक में सारी भाव-सुषमा को भर दिया है। इनकी भाषा की समास-पद्धति और विचारों की समाहार शक्ति दोनों ही उत्कृष्ट रूप से दोहे छन्द के लिये सहायक सिद्ध हुयी हैं। इस प्रकार से इन्होंने मुक्त काव्यानुकूल छन्दों का प्रयोग किया हैं। 

8. अलंकार योजना 

बिहारी रीतिकालीन कवि थे। उनके अलंकार भावों के उत्कर्ष सहायक होकर ही आये हैं। उन्होंने उनका प्रयोग चमत्कार-प्रदर्शन मात्र के लिये नहीं किया हैं। डाॅ. हजारीप्रसाद द्विवेदी के शब्दों में ", बिहारी ने अर्थ की रमणीयता का ध्यान बराबर रखा इसीलिए उनके अलंकार रसोद्रेक में सहायक होकर आये हैं।"

बिहारी के काव्य में शब्दालंकारों में अनुप्रास, यमक और श्लेष का प्रचुर प्रयोग हुआ हैं। यमक का एक उदाहरण देखिए-- 

"तौ पर वारौं उरबासी, सुनु राधिके सुजान। 

तूं मोहन के उरवसी, है ह्रै उरवसी समान।।" 

बिहारी की उत्प्रेक्षायें बहुत मार्मिक है। उत्प्रेक्षा योजना में वही कवि सफल हो सकता जिसकी निरीक्षण शक्ति तीव्र हो, जिसकी कल्पना उन्मुक्त विचरण करना जानती हो। इस दृष्टि से उत्प्रेक्षा का निम्न उदाहरण दिखिए-- 

"सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात। 

मनुहूं नील मणि सैल पर आतप परयौ प्रभात।।" 

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि बिहारी अलंकार योजना के धनी थे। पंडित विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने बिहारी की अलंकार-योजना की प्रशंसा करते हुये लिखा है कि," बिहारी अलंकार-शास्त्र में प्रवीण थे। कहीं-कहीं अलंकारों का ऐसा चमत्कार है, जो लक्षण-ग्रंथ लिखने वालों को नसीब नहीं है। अलंकारों की सफाई बिहारी को रीतिकाल का प्रतिनिधि सिद्ध करती हैं।" 

उपर्युक्त विवेचन से सुस्पष्ट है कि बिहारी के काव्य में भावपक्ष और कला-पक्ष का सुन्दर समन्वय हुआ है और वे उच्चकोटि के सिद्धहस्त कवि थे।

यह जानकार आपके लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होगी

4 टिप्‍पणियां:
Write comment
  1. बेनामी19/12/23, 11:50 am

    Jayasi rahasyvad ki visheshtayen

    जवाब देंहटाएं
  2. Bahut hi utkrisht lekhni hai aap ki ... Best wishes to you. Form PHD scholar : Allahabad University 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. Bahut hi utkrisht lekhni hai aap ki... Best wishes from PHD scholar Allahabad University 🌼

    जवाब देंहटाएं

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।