राजनीतिक सिद्धांत के पतन के कारण
rajnitik siddhant ke patan ke karan;राजनीतिक सिद्धांत के बिना राजनीति विज्ञान अस्तित्वहीन हैं। यह व्यक्तित्वहीन भी है तथा कथित राजनीति विज्ञान की स्थिति बड़ी शोचनीय हैं। राॅबर्ट हडल ने लिखा हैं कि," आंग्लभाषी जगत् में राजनीतिक सिद्धांत मर चुका हैं। साम्यवादी देशों में वह बन्दी है और अन्यत्र मर रहा हैं।"
मीहान के अनुसार," एक व्याख्यात्मक सिद्धांत के बिना अपने वातावरण को चाहे वह भौतिक अथवा सामाजिक हो, नही समझा जा सकता। उसी के माध्यम से हमें जगत् का यथार्थ, विश्वसनीय, संचरणीय एवं संचय योग्य ज्ञान प्राप्त हो सकता हैं।"
आधुनिक युग मे राजनीतिक विचारकों द्वारा यह विचार व्यक्त किया जाने लगा है कि राजनीतिक सिद्धान्त का पतन हो रहा है अथवा राजनीतिक सिद्धांत मर रहा हैं।
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जो विद्वान राजनीति सिद्धान्त के पतन की बात करते हैं उनका ऐसा मानना है कि मार्क्स तथा जे.एस.मिल के बाद अब तक कोई महत्वपूर्ण राजनीतिक दार्शनिक नही हुआ हैं। उनका विचार हैं कि राजनीतिक सिद्धान्तों का पतन या राजनीतिक सिद्धांतों के विकसित न होने के निम्नलिखित कारण है--
1. इतिहासवाद
आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत का ह्रास ईस्टन के विचार में इतिहासवाद के कारण हो रहा हैं। ईस्टन ने कहा है कि हम लोग राजनीतिक सिद्धांतों को डर्निंग, सेबाइन, मैकलवेन तथा लिण्डसे के चश्मे से देखते रहे हैं और यह चश्मा इतिहासवाद का चश्मा था। इस चश्मे से देखने पर तथ्य गायब रहते थे। हम भूल गये थे कि जिन परिस्थितियों में वे सिद्धांत प्रतिपादित किए गए थे वे परिस्थितियाँ अब बदल गई है। हम तो केवल सिद्धांतों के गुण-दोषों का विवेचन करते रहे। नई परिस्थितियों व नये तथ्यों की उपेक्षा होती रही। इसलिए राजनीतिक सिद्धांत पीछे रह गए। रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धांत का आज क्या मतलब निकलता है अथवा आस्टिन का सम्प्रभुता का सिद्धांत आज के युग में क्या सार्थकता रखता हैं? हम इतिहास की झील में गोते लगाते रहे। पुराने राजनीतिक सिद्धांत का आज और आज की समस्याओं से कोई वास्ता नही रहा। यही कारण है कि वह नष्ट होने लगा।
2. अत्यधिक तथ्यात्मकता
राजनीतिक सिद्धांत के ह्रास का एक कारण उसकी अत्यधिक तथ्यात्मकता भी है। प्रारंभ में तो परम्परावादियों ने तथ्यों पर अत्यधिक महत्व दिया। उदाहरणार्थ, ब्राइस ने अमेरिकी संविधान के संदर्भ मे तथ्यों का पहाड़ खड़ा कर दिया और बाद में व्यवहारवादियों ने तो तथ्य और केवल तथ्य पर इतना आग्रह किया कि उसकी दिशा ही गायब हो गई। सिद्धान्तविहीन तथ्य उस जहाज के समान थे जिसके चालक का ही कहीं अता-पता नहीं था। व्यवहारवाद में अलग-अलग समस्याओं पर शोध तो होने लगे, परन्तु सारे अध्ययन के सैद्धांतिक पक्ष की इस समय अत्यधिक उपेक्षा हुई।
3. राजनीति वैज्ञानिकों की उद्देश्यहीनता
कोबान का मत है कि आज के राजनीतक वैज्ञानिक उद्देश्यहीन हो गए हैं। प्लेटो और अरस्तु ने जिस समय लिखा था उनके मन में एक तड़प थी, उनके दिमाग में उद्देश्य था। वे तत्कालीन व्यवस्था के स्थान पर एक नवीन प्रकार की व्यवस्था की स्थापना करना चाहते थे, परन्तु आज राजनीतिक वैज्ञानिकों में न तो वह तड़प है और न ही वे उद्देश्य। प्रारंभ में तो इतिहासवादियों ने इसे नष्ट किया और जो बचा था उसे विज्ञानवादियों ने समाप्त कर दिया। इन कारणों से भी राजनीतिक सिद्धांत की अत्यधिक क्षति हुई।
4. सामाजिक विज्ञानों की सापेक्षता
राजनीति विज्ञान के सिद्धांतों के पतन का कारण सामाजिक विज्ञानों की सापेक्षता भी रहा हैं। ब्रेख्त का मत हैं," क्या चाहिए और क्या है, इन दोनों के बीच जो द्वंद्व चला, उस द्वंद्व में 'क्या होना चाहिए' को सदा के लिए त्याग दिया गया। सामाजिक विज्ञानों से मूल्य और नैतिकता को पृथक कर देने के कारण कठोर यथार्थ और तथ्य ही शेष बचे।"
डाॅ. श्री वर्मा के शब्दों में," जिस समय मैक्सबेबर, यूरोपीय मूल्य संघर्ष के दौर में, बाथ टब में से विचारधार को निकाल कर बाहर फेंक रहा था और उसके स्थान पर नैतिक तटस्थता को प्रचारित कर रहा था, उस समय वास्तव में वह राजनीतिक सिद्धांत के शिशु को भी बाहार फेंक रहा था।"
5. आधुनिक प्रवृत्तियाँ
वास्तव में देखा जाये तो आधुनिक युग विचारधार की समाप्ति का युग हैं। पश्चिम में अब प्रजातंत्रिक शासन पद्धित को स्वीकार कर लिया गया हैं, इसका कोई विरोध नहीं हैं। लिपसैट के शब्दों मे," यदि शास्त्रीय राजनीतिक सिद्धांत मर गया है, तो शायद उसकी हत्या लोकतंत्र की विजय ने की हैं।"
उपरोक्त सभी कारणों से अनेक राजनीतिक वैज्ञानिकों का यह मानना हैं कि राजनीतिक सिद्धान्त समाप्त हो गए हैं।
Thank you so much hamaare liye sabse achha knowledge hai ye
जवाब देंहटाएंआपकी वेबसाइट पर सामग्री कम है, लेकिन जो सामग्री आपने डाली है वह बहुत गुणवत्तापूर्ण एवं विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है
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