राजनीतिक सिद्धांत का विषय क्षेत्र
rajnitik siddhant ka kshetra;राजनीतिक सिद्धांत राजनीति शास्त्र की सबसे ज्यादा सरल और सर्वाधिक जटिल धारणाओं में से एक है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं तथा दूसरों की सहायता के सिद्धांत का निर्माण करता हैं तथा उसके आधार पर कार्य करता हैं। अतः राजनीतिक सिद्धांत का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक होता जा रहा हैं। इसे हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं--
(अ) परम्परागत दृष्टिकोण
यह शास्त्रीय आधार पर मूल्यों और लक्ष्यों को महत्व देता हैं तथा इसमें राज्यों व सरकार की उत्पत्ति, विकास, संगठन, प्रकार, राजनीतिक दल, राजनीतिक विचारधाराएं, सरकारों और संविधानों का तुलनात्मक अध्ययन, अन्तरराष्ट्रीय संबंध तथा राष्ट्रीय प्रशासन आदि विषयों का अध्ययन किया जाता हैं। इस दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत का क्षेत्र सीमित हैं।
(ब) आधुनिक दृष्टिकोण
आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। पहले इसके अध्ययन के 6 उपक्षेत्र थे जो 1967 में बढ़ाकर 27 कर दिये गये। इसके अनुसार राजनीतिक व्यक्ति और उसका व्यवहार, समूह, सन्तुलन, शक्ति नियंत्रण एवं प्रभाव संस्थायें, प्रशासन, अन्तरराष्ट्रीय राजनीतिक सिद्धांत, विचारवाद, शोध-पद्धतियाँ, सांख्यिकी सर्वेक्षण इत्यादि विविध विषयों को समाविष्ट किया गया हैं।
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सामान्यतः राजनीतिक सिद्धांत के अन्तर्गत निम्नलिखित विषयों को सम्मिलित किया जा सकता हैं--
1. राज्य और सरकार का अध्ययन
राजनीतिक सिद्धांत के विषय क्षेत्र के अंतर्गत सर्वप्रथम राज्य और सरकार का अध्ययन आता है। प्राचीनकाल से ही राजनीतिक सिद्धांत द्वारा राज्य की उत्पत्ति, प्रकृति, विकास तथा कार्यक्षेत्र के बारे में विचार होता रहा है इसके साथ-साथ ही सरकार के विभिन्न रूपों जैसे-- राजवंश, कुलीनतंत्र, लोकतंत्र, संसदीय अध्यक्षीय एकात्मक संघात्मक आदि का भी अध्ययन किया गया है तथा इनसे संबंधित कई समस्याओं जैसे-- विधानमंडल एक सदनीय हो या द्विसदनीय, कुशल कार्यपालिका के क्या लक्षण हैं तथा अधिकारी तंत्र की क्या भूमिका होनी चाहिए आदि समस्याओं को राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत उठाया जाता है और उनसे संबंधित निर्णयों का भी निर्धारण किया जाता है।
2. मानवीय समूहों वर्गों और संस्थाओं का अध्ययन
राजनीतिक सिद्धांत में राज्य और सरकार के अध्ययन के साथ-साथ समाज में निहित मानवीय समूहों विभिन्न वर्गों, संस्थाओं का भी अध्ययन किया जाता है क्योंकि समाज के इन विभिन्न रूपों से अलग रखकर राज्य या सरकार का अध्ययन संभव नहीं है। समाज में कोई भी समुदाय या वर्ग स्वयं अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाता सलिए उनका दूसरे वर्गों से भी संबंध होता है। बहुलवादियों ने राज्य के अन्य समुदायों जैसे मजदूर संघ, व्यावसायिक संघ, छात्र व महिला संघों, परिवार आदि के अध्ययन पर विशेष बल दिया है। मार्क्सवादियों का वर्ग संरचना व संघर्ष का सिद्धांत तो इसका केन्द्रबिन्दु बन गया है।
3. राजनीतिक दल प्रणाली मताधिकार तथा चुनावी राजनीति से जुड़े प्रश्नों का अध्ययन व समीक्षा
राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत राजनीतिक दल, उनकी सरंचना व कार्यों का भी अध्ययन किया जाता है। मुख्य रूप से एकदलीय प्रणाली, द्विदलीय प्रणाली तथा बहुदलीय प्रणाली की विस्तृत चर्चा की जाती है। इसके साथ-साथ लोगों को प्राप्त होने वाले मताधिकार और प्रतिनिधित्व के विषय में भी बहुत से सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष निर्णयन प्रणाली जैसे विषय भी इसके अंतर्गत आते हैं।
4. शक्ति का अध्ययन
वर्तमान में राजनीतिक सिद्धान्त के क्षेत्र में शक्ति के अध्ययन को भी शामिल किया गया है। शक्ति के कई स्वरूप है, जैसे सामाजिक, राजनीतिक और सैनिक शक्ति, आर्थिक व्यक्तिगत शक्ति राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय शक्ति आदि। राजनीतिक सिद्धान्तकार शक्ति के इन विभिन्न स्वरूपों को देखकर यह जानना चाहता है कि मानव समाज में किसको क्या कैसे और क्यों मिलता है। परन्तु राजनीतिक सिद्धान्तकार, राजनीतिक शक्ति को ही अधिक महत्त्व देते हैं।
5. मानव व्यवहार का अध्ययन
राजनीति के आधुनिक विद्वानों ने राजनीतिक व्यवहार को राजनीतिक शास्त्र का मुख्य विषय माना है। उन्होंने इस पर जोर दिया है कि राजनीतिक क्षेत्र में व्यक्ति जो कुछ करता है, या उसके पीछे जो प्ररेणा कार्य करती है, उनका अध्ययन राजनीतिक सिद्धान्त में होना चाहिए। मनुष्य समाज में रहकर जो भी क्रिया-कलाप करता है वे सभी राजनीतिक सिद्धान्त के अर्न्तगत आने चाहिए। इन आधुनिक विद्वानों के अनुसार मनुष्य भावनाओं का समुह है, उसकी अपनी प्रवृत्तियां और इच्छाएं होती है, जिसके आधार पर उसका राजनीतिक व्यवहार को बहुत महत्त्व देते हैं। वैज्ञानिक रीति से अध्ययन कर मनुष्य की कमियों को दूर करने के उपाय बताए जा सकते हैं, ताकि भविष्य में ऐसी गल्तियां न हों।
6. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बंधों का अध्ययन
यातायात की सुविधा के कारण आज कहीं जाना पहले के अपेक्षा सुगम हो गया है जिस कारण भिन्न-भिन्न राज्यों में आपसी सम्बंध होना स्वभाविक है। इसी कारण राजनीतिक सिद्धान्त में अर्न्तराष्ट्रीय कानून, संगठन जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nation Organisation) आदि का भी अध्ययन करना होता है।
7. सत्ता का अध्ययन
राजनीतिक सिद्धांत सत्ता के अध्ययन पर विशेष बल लेता हैं। मैकियावली और हाॅब्स जैसे महान् राजनीतिक दार्शनिकों ने राजनीति को सत्ता व उसके हेतु संघर्ष माना हैं। प्रथम महायुद्ध के बाद की अवधि में इसे सत्ता का विज्ञान कहा जाने लगा। अरस्तु को इसका पता होने का श्रेय प्राप्त हैं। मैकियावली ने धर्म व नैतिकता को पूर्णतया एक तरफ करके राजनीति का 'नाया मार्ग' दिखाया, इसलिए उसे नयी राजनीति का पिता कहा जाता हैं। हाॅब्स ने सत्ता का व्यापक अध्ययन किया। उसने ऐसे ठोस व अकाट्य नियम बनाये जैसे भौतिकी में हैं। इसीलिए उसे वैज्ञानिक राजनीति का पिता कहा जाता हैं।
8. विकास और आधुनिकीकरण की समस्याओं का अध्ययन
समाजशास्त्र के बढ़ते प्रभाव के कारण राजनीतिक सिद्धांत में कुछ नवीन अवधारणाओं को भी अपनाया गया है जिसमें समाजीकरण , विकास, गरीबी, असमानता तथा आधुनिकीकरण शामिल है। विकास और आधुनिकीकरण से उत्पन्न समस्याएँ राजनीतिक सिद्धांतों के प्रमुख संदर्भ-बिन्दु बन गए हैं इसी कारण आज के अधिकांश सिद्धांतशास्त्री पिछड़े हुए देशों के विकास व राष्ट्र निर्माण के लिए निरंतर शोध करने में लगे हैं।
9. सामाजिक मूल्यों का अध्ययन
सामान्यतः राजनीतिक सिद्धांतों में मूल्यों का कोई स्थान नही हैं। पहले मूल्य निरपेक्ष अध्ययन ही श्रेष्ठ माना जाता था परन्तु वर्तमान में सामाजिक मूल्यों को मान्यता देने की बात सोची जाने लगी। व्यवहारवादी विद्वानों ने मूल्यों को अपने अध्ययन में स्थान देकर राजनीतिक सिद्धांत को उपयोगी बनाने की दिशा में काम करना आरंभ कर दिया हैं।
10. समस्याओं और संघर्षों का अध्ययन
सीमित साधनों से असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति संभव नही है अतः समाज में अनेक समस्यायें एवं संघर्ष उत्पन्न होते रहते हैं जिनके निराकरण के लिये शक्ति की आवश्यकता पड़ती हैं अतः राजनीतिक सिद्धान्त में इन सभी को भी स्थान प्रदान किया जाता हैं।
11. नीतियों का अध्ययन
आधुनिक विद्वान राजनीतिक सिद्धांत के विषय-क्षेत्र में नीतियों के अध्ययन को भी शामिल करना चाहते है तथा यह मानते है कि नीतियों के अध्ययन के बिना राजनीतिक सिद्धांत का अध्ययन अपूर्ण ही रहेगा। इस मत के समर्थक विद्वानों में हडल, ईस्टन तथा लासवेल का नाम उल्लेखनीय हैं।
राजनीतिक सिद्धांत की प्रकृति (rajnitik siddhant ki prakriti)
डेविड ईस्टन, राॅबर्ट हडल, कैटलिन, लासवेल आदि विद्वानों ने अमेरिका में राजनीति सिद्धान्त पर नवीन दृष्टिकोण से अध्ययन किया हैं जिसके फलस्वरूप नवीन विचारधाराओं का उदय हुआ। आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत के विकास के आधार पर उसकी प्रकृति का विवेचन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता हैं--
1. राजनीतिक दृष्टिकोण को अपनाना
वर्तमान में राजनीति विज्ञान के अध्ययन के लिये राजनीतिक दृष्टिकोण को अपनाया जाता है जिसमें सभी सामाजिक संस्थाओं, शक्तियों और परम्परागत बंधनों का अध्ययन किया जाता हैं क्योंकि राजनीतिक सुविधाओं का सामाजिक शक्तियों की आन्तरिक क्रियाओं से घनिष्ठ संबंध हैं।
2. अनुभवाश्रित
राजनीतिक सिद्धांत यथार्थवादी और व्यवहारवादी दृष्टिकोण अपनाने पर बल देता है इसके अधिकांश अध्ययन-ग्रंथ वर्णनात्मक एवं अनुभवात्मक हैं जो कि पर्यवेक्षण, माप, तार्किकता आदि तकनीकों पर आधारित हैं। वस्तुपरकता ने आत्मपरकता का स्थान ले लिया हैं।
3. संपूर्ण ज्ञान का भण्डार
राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक घटनाओं तथा संस्थाओं का सम्पूर्ण ज्ञान कराता हैं। इसके अंतर्गत सभी प्रकार की राजनीतिक घटनाओं का संपूर्ण अध्ययन किया जाता है। वर्तमान समय में मनुष्य के समक्ष आने वाली सभी परिस्थितियों का अध्ययन इसमें किया जाता हैं।
4. मानवीय व्यवहार का अध्ययन
आधुनिक काल में राजनीति विज्ञान का क्षेत्र व्यापक हो गया हैं अतः उसमें औपचारिक संगठनों के साथ-साथ मानव के स्वभाव और व्यवहार का भी अध्ययन किया जाता है क्योंकि राजनीतिक सिद्धांतों में मानवीय व्यवहार को शक्ति का चालक माना जाता हैं अतः राजनीति के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिये मानव व्यवहार का अध्ययन नितांत आवश्यक हैं।
5. शक्ति का अध्ययन
शक्ति समाज का आधार हैं अतः राजनीति विज्ञान के अध्ययन में शक्ति के अध्ययन को वरीयता दी जाती है। लासवेल ने लिखा हैं," एक अनुभववादी व्यवस्था के रूप में राजनीतिशास्त्र शक्ति एवं उपभोग का अध्ययन करता हैं।" कैटलिन ने तो राजनीति को शक्ति का विज्ञान कहा हैं।
6. यथार्थवादी विज्ञान
राजनीतिक सिद्धांत का विज्ञान यथार्थवादी हैं क्योंकि राजनीति विज्ञान के अध्ययकर्ता अब परम्परागत सीमायें त्यागकर अध्ययन करते है उनकी यह कोशिश रहती हैं कि वास्तविक परिस्थितियों का अध्ययन किया जाये तथा उन्हीं को वास्तविकता प्रकट करने वाली अवधारणाओं का आधार बनाया जाये।
7. विकासशील अवस्था
राजनीति विज्ञान में राजनीतिक सिद्धांत अभि विकासशील अवस्था में हैं। धीरे-धीरे उसमें यथार्थता का प्रवेश हो रहा हैं और क्रमशः वह परिपक्व होता चला जा रहा हैं।
8. शोधकर्ता का दृष्टिकोण
राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन में शोधकर्ता बिना किसी पूर्वाग्रह तथा पक्षपात के अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करता हैं। वह पक्षपातरहित व्यवहार तथा आचरण करता हैं। वह धारणाओं तथा मूल्यों की ओर ध्यान नहीं देता हैं।
9. निरन्तर परीक्षण
राजनीति विज्ञान के सिद्धांत में परीक्षण का कार्य बार-बार किया जाता हैं। इस दृष्टि से परीक्षा की प्रक्रिया निरन्तर बनी रहती हैं जिसके कारण आधुनिक राजनीतिक सिद्धांतों में विश्वसनीयता बनी रहती हैं। इस प्रकार नवीन खोजों के लिये परीक्षण का काम सतत् चलता रहता हैं।
10. रचनात्मक कल्पना का प्रयोग
आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत के वैज्ञानिक अध्ययन में रचनात्मक कल्पना से काम लिया जाता हैं ताकि अध्ययन को विशुद्ध बनाया जा सके और अधिकाधिक वास्तविकता तक पहुँचा जा सके।
11. उपकल्पना का निर्माण
राजनीतिक सिद्धांत का वैज्ञानिक-पद्धित से अध्ययन करने के लिये शोधकर्ता पूर्व से ही एक उपकल्पना का निर्माण कर लेता है और फिर उसी के आधार पर निरीक्षण, परीक्षण, प्रयोग और वर्गीकरण करता हैं।
12. सिद्धांत निर्माण
राजनीतिक सिद्धांत के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए प्रयोग, शोध, वर्गीकरण विश्लेषण, परिणाम आदि के बीच संबंधों की स्थापना की जाती हैं जिससे व्याख्या करते समय किसी प्रकार की कठिनाई न हो। इसी आधार पर सिद्धांत का निर्माण किया जाता हैं।
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