7/25/2021

सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत, पैरेटो

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सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत, पैरेटो

samajik parivartan ka chakriya siddhant;अभिजात वर्ग/सम्भ्रान्तजन वर्ग के परिभ्रमण के आधार पर सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या पैरेटो ने की है। अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की प्रकृति चक्रीय है अतः उन्होंने समाज मे होने वाले सामाजिक परिवर्तन को चक्रीय परिवर्तन कहा। 

विलफ्रेडो परेटो के अनुसार प्रत्येक सामाजिक संरचना में जो ऊंच-नीच का संस्तरण होता है, वह मोटे तौर पर दो वर्गों द्वारा होता है-- उच्च वर्ग तथा निम्न वर्ग। 

इनमें से कोई भी वर्ग स्थिर नही होता, अपितु इनमें 'चक्रीय गति' पाई जाती है। चक्रीय गति इस अर्थ मे कि समाज के इन दो वर्गों में निरंतर ऊपर से नीचे या अधोगामी और नीचे से ऊपर ऊर्ध्वगामी प्रवाह होता रहता है। ओर भी स्पष्ट रूप से इस चक्रीय गति को इस प्रकार समझाया जा सकता है कि जो वर्ग सामाजिक संरचना मे ऊपरी भाग मे होते है वह कालांतर मे भ्रष्ट हो जाने के कारण अपने पद और प्रतिष्ठा से गिर जाते है, अर्थात् अभिजात-वर्ग अपने गुणों को खोकर या असफल होकर निम्न वर्ग में आ जाते है। दूसरी ओर, उन खाली जगहों को भरने के लिए निम्न वर्ग मे जो बुद्धिमान, कुशल, चरित्रवान तथा योग्य होते है, वे नीचे से ऊपर की ओर जाते रहते है। इस प्रकार उच्च वर्ग का निम्न वर्ग मे आने या उसका विनाश होने और निम्न वर्ग का उच्च वर्ग मे जाने की प्रक्रिया चक्रीय ढंग से चलती रहती है। इसी चक्रीय गति के कारण सामाजिक ढांचा परिवर्तित हो जाता है या सामाजिक परिवर्तन होता है। इसलिए इसे 'चक्रीय गति का सिद्धांत' या 'सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धांत' कहा जाता है। स्मरण रहे कि यह चक्रीय गति या सामाजिक परिवर्तन की गति परिस्थितियों के अनुसार कभी कम और कभी अधिक होती है। भिन्न-भिन्न समाज और भिन्न-भिन्न समय मे सामाजिक परिवर्तन की गति भी भिन्न-भिन्न होती है। 

अपने इस 'सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धांत' को परेटो ने दो श्रेणी के विशिष्ट-चालकों-- (अ) सम्मिलन के विशिष्ट-चालक तथा (ब) समूह के स्थायित्व के विशिष्ट-चालक के आधार पर समझाया है। ऐसे कुछ व्यक्ति तथा समूह होते है जिनमें कि स्थायित्व के विशिष्ट-चालक की अधिकता पाई जाती है, तो कुछ मे सम्मिलन के विशिष्ट-चालक का आधिक्य होता है। सामाजिक परिवर्तन इन्हीं दो श्रेणी के विशिष्ट-चालक वाले वर्गों की क्रियाशीलता का परिणाम होता है। प्रथम वर्ग, जिसमें कि सम्मिलन के विशिष्ट-चालक का प्रभुत्व होता है, तात्कालिक स्वार्थों पर बल देता है, जबकि दूसरा वर्ग, जिसमें कि समूह के स्थायित्व का विशिष्ट-चालक अधिक क्रियाशील होता है, आदर्शवादी लक्ष्यों मे विश्वास करता है, इन दो प्रकार के विशिष्ट-चालकों की क्रियाओं से किस प्रकार सामाजिक परिवर्तन संभव होता है, यह निम्नलिखित विवेचना से स्पष्ट हो जाएगा--

सामाजिक परिवर्तन के चक्र के तीन मुख्य पक्ष है-- राजनीतिक, आर्थिक और आदर्शात्मक। राजनीतिक क्षेत्र में चक्रीय परिवर्तन तब गतिशील होता है जब शासन-सत्ता उस वर्ग के लोगों के हाथों मे आ जाती है जिनमें समूह के स्थायित्व के विशिष्ट-चालक अधिक शक्तिशाली होते है। इन्हें 'शेर' कहा जाता है। समूह के स्थायित्व के विशिष्ट-चालक द्वारा अत्यधिक प्रभावित होने के कारण इन 'शेर' लोगों का कुछ आदर्शावादी लक्ष्यों पर दृढ़ विश्वास होता है और इन आदर्शों की प्राप्ति के लिए ये शक्ति का भी सहारा लेने में नही झिझकते। इस कारण वे कूटनीति का सहारा लेते है, और 'शेर' से अपने को 'लोमड़ियों' में बदल लेते है और लोमड़ी की भांति चालाकी से काम लेते है। लेकिन निम्न वर्ग में भी लोमड़ियां होती है, और वे भी सत्ता को अपने हाथ में लेने की फिराक में रहती है। अंत में, एक समय ऐसा भी आता है जबकि वास्तव में उच्च वर्ग की लोमड़ियों के हाथ से सत्ता निकलकर निम्न वर्ग की लोमड़ियों के हाथ मे आ जाती है, तभी राजनीतिक क्षेत्र में या राजनीतिक संगठन और व्यवस्था लोमड़ियों के हाथ में आ जाती है, तभी राजनीतिक क्षेत्र में या राजनीतिक संगठन और व्यवस्था में परिवर्तन होता है। श्री परेटो का कथन है कि प्रत्येक भूतकालीन तथा वर्तमान समाज तर्क की अपेक्षा शक्ति का प्रयोग अधिक करता है समस्त देश भक्ति प्रयोग करने वाले 'अल्पजनतंत्रों' से शासित है। जब शासक-वर्ग के लोगों मे शक्ति के प्रयोग की क्षमता या इच्छा नष्ट हो जाती है, या जब वे शक्ति के प्रयोग के भयंकर परिणामों को सोचकर शक्ति के स्थान पर कूटनीति या लोमड़ियों की भांति चालाकी और धूर्तता से काम लेने लगते है तो निम्न वर्ग या शासित-वर्ग के कुछ चालाक, धूर्त और कुशल व्यक्ति उस चालाकी और धूर्तता का मुंह-तोड़ जवाब देने के लिए तत्पर होते है देते भी है जिसके फलस्वरूप सरकार की बागडोर उन्हीं के हाथों में चली जाती है। सामाजिक व्यवस्था के राजनीतिक पक्ष में परिवर्तन इसी प्रकार होता है।

जहां तक आर्थिक क्षेत्र या आर्थिक संगठन और व्यवस्था में परिवर्तन का प्रश्न है, श्री परेटो हमारा ध्यान समाज के दो आर्थिक वर्गों की ओर आकर्षित करते है। वे दो वर्ग है-- 1. सट्टेबाज और 2. निश्चित आय वाला वर्ग। 

पहले वर्ग के सदस्यों की आय बिल्कुल अनिश्चित होती है, कभी कम तो कभी ज्यादा, पर जो कुछ भी इस वर्ग के लोग कमाते है वह अपनी बुद्धिमत्ता के बल पर ही कमाते है। 

इसके विपरीत, दूसरे वर्ग की आय निश्चित या लगभग निश्चित होती है क्योंकि वह सट्टेबाजों की तरह अनुमान पर निर्भर नही रहते। सट्टेबाजों में सम्मिलन के विशिष्ट-चालक की प्रधानता तथा निश्चित आय वाले वर्ग में समूह के स्थायित्व के विशिष्ट-चालक की प्रमुखता पाई जाती है। इसी कारण पहले वर्ग के लोग आविष्कर्ता, उद्योग के नेता या कुशल व्यवसायी आदि होते है। यह वर्ग अपने आर्थिक हित या अन्य प्रकार की शक्ति के मोह से चालाकी और भ्रष्टाचार का स्वयं शिकार हो जाता है जिसके कारण उसका पतन होता है और दूसरा वर्ग उसका स्थान ले लेता है। समाज की समृद्धि या विकास इसी बात पर निर्भर है कि सम्मिलन का विशिष्ट-चालक वाला वर्ग नए-नए सम्मिलन और आविष्कार के द्वार राष्ट्र को नवप्रवर्तन की ओर ले जाए और समूह के स्थायित्व के विशिष्ट-चालक वाला वर्ग उन नए सम्मिलनों से मिल सकने वाले समस्त लाभों को प्राप्त करने में सहायता दे। आर्थिक प्रगति या परिवर्तन का रहस्य इसी में छिपा हुआ है। 

उसी प्रकार आदर्शात्मक क्षेत्र में अविश्वास और विश्वास का चक्र चलता है। किसी एक समय-विशेष में समाज में विश्वासवादियों का प्रभुत्व रहता है परन्तु वे अपनी दृढ़ता या रूढ़िवादिता के कारण अपने पतन का साधन अपने-आप ही जुटा लेते है और उनका स्थान दूसरे वर्ग के लोग ले लेते है।

उपर्युक्त ढंग से राजनीतिक, आर्थिक तथा आदर्शात्मक क्षेत्रों में परिवर्तन होता रहता है।

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