kalar marks ka jivan parichay;सामाजिक विचारधारा के क्षेत्र मे ऐसे कम ही विचारक हुए है, जिन्होंने अपने भविष्य के समाज और जीवन को सर्वाधिक प्रभावित किया हो। कार्ल मार्क्स ऐसे ही विचारकों से एक थे, जिन्होंने सामाजिक एवं आर्थिक जीवन को नवीन एवं ठोस आधार प्रदान करने मे सफलता प्राप्त की है। कार्ल मार्क्स आधुनिक एवं वैज्ञानिक साम्यवाद तथा समाजवादी विचारधाराओं के सर्वमान्य जनक है। मार्क्स एक प्रमुख समाजवादी सिद्धान्तकार एवं संगठनकर्ता, सामाजिक, आर्थिक व दार्शनिक विचारों वाले इतिहास के महान विद्वान तथा सामाजिक भविष्यवक्ता थे। समग्र संसार के श्रमिक और क्रांतिकारी उनके प्रभावशाली विचारों से प्रभावित हुए। एक समय मे विश्व की लगभग आधी जनसंख्या उन राष्ट्रों में निवास करती थी, जिनका नेतृत्व वे लोग करते थे जो स्वयं को मार्क्सवादी कहते थे। यद्यपि सन् 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद वह स्थिति अब नही रह गई है। मार्क्सवाद पर आधारित राष्ट्रों की संख्या अब केवल 4 तक सिमट गई है।
कार्ल मार्क्स का जीवन परिचय
कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 को जर्मनी के ट्रीयर नगर मे एक मध्यम वर्गीय परिवार मे हुआ था। कार्ल मार्क्स का पूरा नाम कार्ल हैनरिक मार्क्स था। मार्क्स के पिता यहूदी थे। मार्क्स के पिता का नाम हर्शल मार्क्स था। उनके पिता पेशे एक वकील थे। जब मार्क्स 6 बर्ष की आयु के थे कि उनके पिता ने तत्कालीन जर्मनी की असहिष्णुता से बचने के लिये यहूदी धर्म त्याग कर ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया। इस धर्म परिवर्तन का अल्पवयस्क मार्क्स के मस्तिष्क पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा जो उनकी प्रगति मे काफी सहायक हुआ।
मार्क्स की बचपन की शिक्षा-दीक्षा ट्रीयर के ही एक अच्छे स्कूल 'ट्रीयर जिमनेजियस' मे हुई। कार्ल मार्क्स की उच्च स्तर की शिक्षा पहले बोन विश्व विद्यालय और फिर बर्लिन विश्व विद्यालय मे हुई। पिता की इच्छानुसार कार्ल मार्क्स ने उच्च अध्ययन हेतु कानून विषय को चुना था, लेकिन कार्ल मार्क्स की रूचि कानून के बजाय दर्शनशास्त्र और इतिहास मे अधिक थी। 1841 मे कार्ल मार्क्स ने जेना विश्व विद्यालय मे "डेमोक्रीट्स व एपिक्यूरस के प्राकृतिक दर्शन के भेद" शीर्षक पर थिसिस लिखी और पी. एच. डी. की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने प्रोफेसर का पद प्राप्त करना चाहा, लेकिन उस समय की सरकार कार्ल मार्क्स के विचारों से सहमत नही थी, अतः उन्हें प्रोफेसर के पद से वंचित रहना पड़ा। निराश होकर उन्हें जीविकोपार्जन के लिये अन्य कार्य ढूँढने पड़े। इसी निराशा के कारण उनके जीवन मे क्रांतिकारी परिवर्तन आये
अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण कार्ल मार्क्स लिए अपने ही देश जर्मनी मे विश्व विद्यालय में अध्यापन के सारे रास्ते बंद हो गए थे। इस कारण से उन्होंने पत्रकारिता के कार्य का चयन किया तथा अपने स्वभाव के अनुरूप क्रांतिकारी विचारों को लिखना जारी रखा। उन्होंने जिन पत्रिकाओं अथवा जर्नल्स में अपने लेख लिखे उन्हें एक-एक करके वहा की सरकार ने बंद करवा दिया। अपने क्रांतिकारी विचारों तथा लेखों के प्रकाशन के कारण कार्ल मार्क्स को अपने जीवन में कई बार स्थान को छोड़कर यहां-वहां जाने के लिए विवश होना पड़ा। 1843 में एक धनी परिवार की लड़की जेनीवा वेस्टफालेन के साथ मार्क्स ने विवाह कर लिया। विवाह के बाद मार्क्स समाजवाद के अध्ययन के लिए पेरिस की ओर रवाना हो गये। वहां उनकी मुलाकात 'फ्रेडिक एन्जिल्स' से हुई। एन्जिल्स एक धनी व्यापारी था, जिससे उनको काफी आर्थिक सहायता प्राप्त हुई। एन्जिल्स समाजवाद का प्रबल पोषक था। उसने मार्क्स को क्रांतिकारी विचारक बनाने मे सभी तरह से मदद की। मार्क्स द्वारा लिखित 'दास कैपिटल' का द्वितीय भाग जिसको क्रांति की बाइबिल के नाम से जाना जाता है, उसे एन्जिल्स ने ही मार्क्स की मृत्यु के बाद प्रकाशित कराया। वास्तव मे यदि मार्क्स को एन्जिल्स का सहयोग नही मिलता तो शायद उनकी प्रतिभा का पूर्ण विकास न हो पाता। एन्जिल्स व मार्क्स दोनों जीवन पर्यन्त अन्तरंग मित्र रहे। दोनो के विचार एक दूसरे से बहुत मेल खाते थे। दोनों ने 'होली फेमली' नामक ग्रंथ की रचना की, जो सन् 1845 मे प्रकाशित हुई। इसमे उन्होंने सर्वहार वर्ग की विश्वव्यापी ऐतिहासिक उद्देश्य से संबंधित विचारों की लगभग एक समूची प्रणाली खड़ी कर दी।
मार्क्स 1846 बेल्जियम के ब्रुसेल्स नगर मे बस गये। वहां उन्होंने साम्यवादी संघ की स्थापना की। यहाँ प्रशिया सरकार की नीति के कारण मार्क्स को प्रशिया की नागरिकता छोड़नी पड़ी। फलस्वरूप अंत में अपने परिवार सहित 1849 में लंदन में आकार रहने लगे। 2 दिसम्बर, 1881को उनकी पत्नी का देहान्त हो गया। इससे उन्हे भारी धक्का लगा और उनका स्वास्थ्य गिरता ही चला गया। 14 मार्च, 1883 मार्क्स (की मृत्यु हो गई) को संसार के महान विचारक की चिन्तन क्रिया बंद हो गयी। उनके मित्र ऐगेंल्स ने पत्र लिखकर मार्क्स के मित्रों और अनुयायियों को इस दुःख घटना की सूचना दी।
17 मार्च, 1883 को मार्क्स के शव की लंदन के हाइगेट नामक कब्रिस्तान में दफनाया गया। एन्जिल्स ने उनकी समाधि के बगल मे ही ह्रदय विदारक भाषण दिया। उन्होंने भाषण इस भविष्यवाणी के साथ समाप्त किया 'उनका नाम युगों-युगों तक अमर रहे, और इसी तरह उनकी कीर्ति भी अमर रहेगी।'
कार्ल मार्क्स की मुख्य कृतियां अथवा रचनाएं
1. दि पाॅवर्टी ऑफ फिलाॅसफी 1847
2. दि कम्युनिस्ट मैनीफेस्टो 1848
3. दि कन्ट्रीब्यूशन टू दि क्रिटिक ऑफ पोलिटिकल इकोनोमी 1859
4. दास कैपिटल प्रथम खण्ड 1867
इसके अतिरिक्त मार्क्स ने अनेक लेख, निबन्ध एवं ग्रंथ प्रसिद्ध है, जिनमे मुख्य निम्नलिखित है--
1. गोआ कार्यक्रम की आलोचना।
2. फ्रान्स मे वर्ग-संघर्ष।
3. हीगल के अधिकार दर्शन की आलोचना की भूमिका।
4. फ्रान्स का गृह-युद्ध।
5. मूल्य, कीमत तथा लाभ।
6. दि होली फैमिली।
7. दि जर्मनी आइडियोलोजी।
मार्क्स की रचनाओं में कम्युनिस्ट ' मैनीफेस्टो' तथा दि सिवल वार इन फ्रांस' का सर्वाधिक महत्व रहा है।
"दास कैपिटल" में समाजवाद की वैज्ञानिक व्याख्या की गई है। साम्यवादी सिद्धांतों का यह प्रमुख ग्रंथ है। साम्यवादी इसको बाइबिल के समान सम्मान प्रदान करते है।
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