कार्यशील पूंजी अर्थ एवं परिभाषा (karyasheel punji kya hai)
यह पूंजी व्यवसाय के दैनिक कार्यकलापों को पूरा करने हेतु जरूरी होता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि स्थायी सम्पत्तियों क्रय कर लेने के बाद व्यवसाय की दैनिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए कार्यशील पूंजी की आवश्यकता पड़ती है। यह पूंजी थोड़े समय के स्वभाव की होती है।
कार्यशील पूंजी की परिभाषा के सम्बन्ध में विद्वानों में काफी मतभेद है। एक विचारधारा ने अनुसार,' 'दीर्घकालीन तथा अल्पकालीन दोनों तरह की देनदारियों द्वारा प्रतिनिधित समस्त चल सम्पत्ति के योग को कार्यशील पूंजी माना जाता है।
मीड़ मैल्ट एंव फील्ड के अनुसार,'' कार्यशील पूंजी के आशय चल सम्पत्तियों के योग से है।''
बोनिविल एंव डेवी के अनुसार,'' किसी भी निधि की प्राप्ति जिससे चालू सम्पत्तियों में वृद्धि हो, कार्यशील पूंजी मे वृद्धि कही जायेगी क्योंकि ये दोनो एक ही है।''
दूसरे के अनुसार,'' चालू सम्पत्तियों एंव चालू दायित्वों का अन्तर ही कार्यशील पूंजी है।''
गेस्टनवर्ग के अनुसार,'' कार्यशील पूंजी साधारणत: चालू देनदारियों के ऊपर चालू सम्पत्तियों के आधिक्य के रूप में परिभाषित किया जाता है।''
एल.जे. गिलमेंन के अनुसार,'' कार्यशील पूंजी की सर्वमान्य परिभाषा चालू सम्पत्तियों एंव चालू दायित्वों का अन्तर है।''
कार्यशील पूंजी के प्रकार
कार्यशील कार्यशील पूंजी के वर्गीकरण के दो प्रमुख आधार है--
(अ) आवश्यकताओं के आधार पर
आवश्यकता के आधार पर कार्यशील पूंजी को दो भागों में बांटा जा सकता है--
1. नियमित अथवा स्थायी कार्यशील पूंजी
कुछ कार्यशील पूंजी की ऐसी मात्रा होती है जिसकी उपक्रम में नियमित एंव स्थायी आवश्यकता होती है। अत: ऐसी कार्यशील पूंजी को नियमित अथवा स्थायी कार्यशील पूंजी कहते है। ऐसी पूंजी की व्यवस्था दीर्घकालीन ऋण एंव अर्थवित्तीय साधनेां से की जानी चाहिये। नियमित कार्यशील पूंजी की जरूरत न्यूनतम स्टांक बनाये रखने एंव बैक में न्यूनतम शेष रखने के लिए होती है । पूंजी व्यवसाय के सामान्य संचालन के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है।
2. मौसमी अथवा परिवर्तनशील कार्यशील पूंजी
यह ऐसी पूंजी है जो वर्ष में केवल कुछ निश्चित समय के लिए जबकि कम्पनी का व्यापार अधिकाधिक होता है के समय आवश्यक होती है अर्थात् यह पूंजी जो किसी मौसम विशेष में ही आवश्यक होती है। मौसमी कार्यशील पूंजी कहलाती है। उदाहरण के लिए एक सूती कपड़ा बनाने वाली मिल में कपास की फसल आने पर उसकी अधिकाधिक खरीद के लिए अधिक कार्यशील पूंजी होती है जबकि फसल का समय समाप्त होने पर उसकी उतनी अधिक आवश्यकता नहीं रहती हे। इस अतिरिक्त आवश्यकता को ही मौसमी कार्यशील पूंजी कहते है। मौसमी कार्यशील पूंजी अल्पकालीन प्रकृति की होती है। अत: ऐसी पूंजी की व्यवस्था अल्पकालीन ऋण लेकर अथवा अन्य साधनों से पूरी की जाती है।
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