रोकड़ एवं कोषो का अर्थ
रोकड़ कोष व्यवसाय के संचालन का प्रमुख आधार है। इसकी तुलना मानव शरीर के रक्त से की गई है। रोकड़ कोष ही व्यवसाय जगत की यह धुरी हैं जिसके चारों ओर समस्त आर्थिक क्रियांए घूमती है। अत: व्यवसाय के समस्त संचालन के लिए यह आवश्यक है कि रोकड़ के प्रबन्ध में विशेष सावधानी एंव कुशलता रखी जायें।
साधारणत: शब्दों में," रोकड़ या कोषों में नगद रोकड़, बैंक शेष एंव नगद प्रतिभूतियों को सम्मिलित किया जाता है। नगद प्रतिभूतियों में मूख्य रूप से उन प्रतिभूतियों को विशेष रूप में शामिल किया जाता है जिन्हें किसी भी समय बाजार में बेचकर यथाशीघ्र नगद राशि प्राप्त की जा सकती है। इसके बैंको में निश्चित अवधि के लिए जमा राशि को भी सम्मिलित किया जाता है।
नगद कोषों की आवश्यकता
प्रत्येक उद्योग के लिए नगद कोष एक अनिवार्य आवश्यकता है जिसके बिना व्यापार का सफल संचालन नहीं है। सामान्यत: नगद कोषों की आवश्यकता हेतु निम्नलिखित प्रमुख तर्क कीन्स जैसे प्रमुख अर्थशास्त्री ने किये है--
1. व्यापारिक आवश्यकतायें
व्यापारिक आवश्यकताओ से तात्पर्य उन आवश्यकताओं से है जिनके द्वारा व्यापार का सामान्य संचालन हेतु विभिन्न प्रकार के नगद कोषों की आवश्यकता से है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते है कि व्यापार में माल का क्रय-विक्रय करने, विभिन्न व्ययो का भुगतान करने हेतु नियमित रूप से रोकड़ की आवश्यकता होती है। अत: इन खर्चो को पूरा करने के लिए नगद कोष की एक अनिवार्य आवश्यकता होती है। उद्योग के प्रबन्धक यदि अपनी आय एंव व्ययों का अनुमान सही ढंग से लगा सकते है तो ऐसी स्थिति में कम से कम नगद कोषों से व्यापार का कार्य चल सकता है।
2. पूर्व विचार सम्बन्धी आवश्यकताएं
पूर्व विचार सम्बन्धी आवश्यकता से तात्पर्य ऐसी आवश्यकताओं से है जो आवश्यकताएं अज्ञात है एंव जिनका पूर्व अनुमान करना कठिन है परन्तु ऐसी घटनांए व्यवसाय में निश्चित रूप से घटित होती है। ऐसी आवश्यकताओं में मूख्य रूप से हड़ताल, तालाबन्दी , आगजनी, कठिन प्रतिस्पर्धा,अप्रचलन इत्यादि प्रमुख है। इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जिन फर्मो में पर्याप्त नगद कोष उपलब्ध हेाते है। आसानी से इन आकस्मिक घटनाओं का सामना कर लेते है।
3. परिकल्पना सम्बन्धी आवश्यकतांए
मूल्यों में परिवर्तन के द्वारा लाभ कमाना ऐसी आवश्यकताओं का प्रमुख उद्देश्य है। प्रतिभूतियों के मूल्यों में परिवर्तन का लाभ यदि पर्याप्त नगद कोष उपलब्ध है तो अधिकाधिक रूप से उठाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त यदि फर्म को किसी समय विशेष में सस्ता कच्चा माल प्राप्त है तो नगद कोष के द्वारा इसका लाभ उठाया जा सकता है। इसी प्रकार यदि कम्पनी के उत्पादन के मूल्यों में भविष्य में वृद्धि होने की सम्भावना है तो ऐसी स्थिति में भी नगद कोष से अधिकाधिक लाभ उठाया जा सकता है। दोनों ही परिस्थितियां परिकल्पना से सम्बन्धित है परन्तु दोनों में परिस्थितियों में अधिकाधिक नगद कोष की आवश्यकता होती है।
रोकड़ प्रबन्ध
रोकड़ का प्रबन्ध चल सम्पत्तियों के प्रबन्ध का प्रमुख केन्द्र है। नगद सम्पत्तियों में बैक में जमा राशि एंव शीघ्र बिकने वाली प्रतिभूतियां होती है। अत: ये भी हस्तस्थ रोकड़ के समान तरल होती है। व्यापार में प्रत्येक व्यापारिक लेन-देन मे या तो रोकड़ का अन्तर प्रवाह होता है अथवा रोकड़ का बाह्म प्रवाह होता है। रोकड़ का बाह्म प्रवाह पूंजी की तरलता को कम करता है जबकि इसका अन्तर प्रवाह तरलता वृद्धि करता है। रोकड़ का अन्तर प्रवाह नगद विक्रय, प्राप्त विपत्रों की वसूली ही अंशधारियों से प्राप्त होने वाली राशि समयानुसार लिये जाने वाले विभिन्न ऋण, विनियोगों से लाभ इत्यादि के द्वारा होता है इसके विपरीत रोकड़ का बाह्म प्रवाह दैनिक भुगतान माल के नगद क्रय देय विपत्रों का भुगतान करों एवं लाभांशों की अदायगी भुगतान इत्यादि से होता है। कुछ परिस्थितियां ऐसी होती है जबकि नगद का अन्तर प्रवाह नहीं हो पाता परन्तु उसका बाह्म प्रवाह सतत बना रहता है, जैसे-- आर्थिक मंदी, मांग में कमी अथवा दीर्घकालीन हड़ताल। उक्त परिस्तिथियों मे नगद का केवल बाह्म प्रवाह होता है। अत: फर्म को अपनी भुगतान क्षमता बनाये रखने में काफी कठिनाई होती है। नगद कोषों का प्रबन्ध मुख्य रूप से इस बात को सुनिश्चित करता है कि व्यवसाय की आवश्यकतानुसार उद्योग में नगद कोष उपलब्ध हो सके जिससे यथासंभव समस्त भुगतान हो सके।
रोकड़ प्रबन्ध के लाभ
रोकड़ प्रबंध के लाभ इस प्रकार है--
1. रोकड़ नियोजन
रोकड़ नियोजन का आशय रोकड़ के प्रयोग के लिए योजना बनाना तथा उसका नियन्त्रण करना है। रोकड़ नियोजन में सबसे पहले भविष्य के लियें रोकड़ की मात्रा का अनुमान लगाया जाता है। रोकड़ के अन्तर्गत केवल भविष्य की सामान्य आवश्यकताओं का प्रबन्ध किया जाता है, बल्कि आकस्मिक आवश्यकताओं के लिए भी रोकड़ का प्रबन्ध किया जाता है। रोकड़ नियेाजन के लिये रोकड़ बजट बनाया जाता है।
2. रोकड़ आगमों का नियन्त्रण
रोकड़ कोषों का संग्रहण भी रोकड़ प्रबन्धन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में प्राप्य रकमों की ठीक समय पर वसूली भी एक मुख्य समस्या होती है। रोकड़ का कुशलातापूर्वक ठीक समय पर संग्रहण अत्यन्त आवश्यक होता है। समस्या वास्तव में यह होती है कि किस प्रकार बैंकों की प्राप्तियां कम से कम समय बैकों से उनकी क्लीयरेन्स न्यूनतम समय में हो। लाॅक बाक्स प्रणाली के द्वारा यह कार्य सरलतापूर्वक किया जा सकता है। इस पद्धति के अन्तर्गत प्रमुख व्यापारिक स्थानों पर डाकघर में एक लॅाक बाक्स किराये पर ले लिया जाता है। ग्राहको को यह निर्देश दे दिये जाते है कि वे व्यापारी के अमुक बाक्स नम्बर में अपने चैक जमा कर दे, साथ ही साथ स्थानीय बैक को उस लॉक बाक्स में से चैक निकाल कर खाते में जमा कर लेने के लियें अधिकृत कर दिया जाता है। रोकड़ की वसूली के लियें संग्रहण केन्द्रों की स्थापना की जाती है। इनमे विभिन्न स्त्रोतों से रोकड़ के संग्रहण का कार्य किया जाता है। यह संग्रहण केन्द्र समय-समय पर तार अथवा टेलेक्स द्वारा रेाकड़ की स्थिति की सूचना प्रमुख कार्यालय को भेजते रहते है।
3. रोकड़ निर्गमों का नियन्त्रक
रोकड़ के कुशल प्रबन्ध के लियें एक तरफ जहां उसका कुशलतापूर्वक संग्रहण होना चाहिए, वहीं दूसरी तरफ उसके संवितरण पर भी नियन्त्रण रखना पड़ता है। रोकड़ का निर्गमन उधार खरीद का भुगतान, ब्याज, कर, किराया तथा पूजींगत व्ययों के लिये होता है। इस सम्बन्ध में इन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए--
1. भुगतान हमेशा देय तिथि पर किये जाने चाहिये।
2. ड्राफ्ट की बजाय चैक से भुगतान करना चाहिये।
3. रोकड़ के बडें भुगतान मुख्य कार्यालय द्वारा होने चाहिये।
4. अतिरिक्त रोकड़ विनियोग
यदि किसी व्यावसायिक संस्था के पास शेष रोकड़ आवश्यकता से अधिक हो तो व्यापार में बेकार पडे़ रहने की अपेक्षा विपणन योग्य प्रतिभूतियों में विनियोजित कर देना चाहिए। विनियोगों की मदों का चयन सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिये। इनमें सुरक्षा एंव तरलता का गुण होना चाहिए।
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