10/12/2020

सिकंदर का भारत पर आक्रमण, प्रभाव/परिणाम

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सिकंदर का संक्षिप्त परिचय [सिकंदर कौन था?]

भारत के पश्चिचमोत्तर प्रान्त पर सिकंदर का आक्रमण लगभग 327 ई. पूर्व मे हुआ था। सिकंदर प्राचीन यूनान देश के एक छोटे से राज्य मैसिडोनिया (मकदूनिया) के राजा फिलिप का पुत्र और और महान दार्शनिक अरस्तु का शिष्य था। सिन्दकर जब सिंहासन पर बैठा तो अपने छोटे से राज्य से संतुष्ट नही हो सका। यद्यपि उसके पिता ने सम्पूर्ण यूनान को पहले ही जीत लिया था। उसके ह्रदय मे साम्राज्य विस्तार की महानतम महत्वाकांक्षा उत्पन्न हुई।सिन्दकर पहला ऐसा यूरोपीय शासक था, जिसने भारत मे आक्रमणकारी के रूप मे प्रवेश किया। इसमे कोई संन्देह नही है की सिकन्दर अपने समय (चौथी शताब्दी ईसवीं पूर्व) का एक सेनानायक था, जिसने पूर्व की ओर सफल आक्रमण किए और एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। अफ्रीका और एशिया के अनेक शक्तिशाली राज्य सिकन्दर के आक्रमण के प्रहार से ध्वस्त हो गए। ईसवीं पूर्व 334 मे सिकंदर एक विशाल और शक्तिशाली सेना के साथ अपने देश से रवाना हुआ। इसके बाद सिकंदर ने ईरान के शक्तिशाली साम्राज्य पर आक्रमण किया। ईरान का सम्राट डेरिवस, सिकंदर द्वारा तृतीय अरवेला के निर्णायक युद्ध मे परास्त हुआ। ईसवी पूर्व 330 मे सिकंदर ने सम्पूर्ण ईरानी साम्राज्य पर अपना अधिकार कर लिया था।

329 ईसवी पूर्व के आस-पास सीस्तान पर अधिकार करके वह दक्षिण अफगानिस्तान मे प्रविष्ट हुआ। यहाँ उसने अलेक्जेंड्रिया नगर बसाया इसे अब कान्धार कहा जाता है। इसके बाद वह हिन्दूकूश पर्वत को पार करता हुआ निकाइया पहुँचा। यहीं से उसने सेना के दो भाग किये एक को उसने हेफीस्तियन और परिक्रस नामक सेनानियों से सुपुर्द किया और उन्हें सिंधु नदी पर सेतु बाँधने को भेजा और दूसरी सेना को स्वयं लेकर वह भारतीय सीमा की ओर बढ़ा।

सिकंदर का भारत पर आक्रमण (sikandar ka bharat par akraman)

1.  भारत की दशा

सिकंदर के आक्रमण के समय उत्तर-पशिचमी भारत, पंजाब तथा सिन्ध अनेक छोटे-छोटे राज्यों मे बंटा हुआ था। इनमे आपसी घोर शत्रुता और मतभेद थे। इस समय तक्षशिला का राजा आम्भी और पंजाब के राजा पोरस अधिक शक्तिशाली थे, मगध मे नन्दवंश का शासक था मगध भी शक्तिशाली राज्य था। सिंध मे कई छोटे-छोटे राज्यों को पराजित करने मे सिकन्दर को किसी प्रकार की कठिनाई नही हुई इन्हें उसने आसानी से पराजित कर दिया।

2. विश्वसघाती आम्भी और सिकंदर 

अफगानिस्तान पर विजय प्राप्त करने के पश्चात सिकंदर 326 ई. पूर्व. मे सिन्धु नही को पार किया और तक्षशिला राज्य की सीमा पर जा पहुंचा। वहां के शासक आम्भी ने सिकन्दर के साथ मित्रता कर अपनी मातृ भूमि के साथ विश्वासघात कर लीया। यही नही उसने सिकंदर को प्रेरित किया कि वह पंजाब के शासक पोरस पर आक्रमण करे।

3. वीर पोरस और सिकंदर 

तक्षशिला से आगे बढ़कर सिकंदर झेलम और चिनाव नदी के बीच बसे पूरू राज्य के नजदीक पहुंच गया। उसने देखा कि पोरस एक शक्तिशाली सेना के साथ युद्ध के लिए तैयार है। सिकन्दर के लिए नदी पार करना कठिन हो गया। दोनों सेनाएँ नदी के दोनों पार खड़ी-खड़ी दाँव-पेंच खेलती रही। सिकन्दर को नदी पार करने का रास्ता नही मिल रहा था, परन्तु उसने रास्ता चुनने की कोशिश की। रात के अंधेरे मे जब आँधी और बर्षा बहुत तेज थी तब सिकन्दर ने अपने हजार योद्धाओं के साथ झेलम नदी पार कर ली। पोरस को जैसे ही इसकी खबर मिली तो उसने अपने पुत्र को एक सेना की टुकड़ी के साथ भेजा। सिन्दकर ने इस सेना को परास्त कर दिया। पोरस का पुत्र वीरगति को प्राप्त हो गया। इसके बाद पोरस स्वयं एक विशाल सेना को लेकर सिकन्दर के विरूद्ध युद्ध करने के लिए आगे चल पड़े। 

पोरस की सेना मे 50 हजार पैदल, तीन हजार घोड़े पर सवार सैनिक और 1 हजार रथ और 200 हाथी थे। पोरस और उसके सैनिकों ने बहुत बहादूरी से युद्ध किया, लेकिन अन्त मे पोरस का भाग्य इस तरह खराब निकला, पहला सिकन्दर की सेना नदी पार करके सिकंदर के पास आ गयी थी, दूसरा कारण यह था कि उस दिन बारिश बहुत हुई जिसने पोरस की सेना को थका दिया। पोरस अन्तिम समय तक लड़ते रहे, और अंत वह पराजित हो गये और उन्हे बंदी बना लिया गया। 

जब सिकंदर ने पोरस को बंदी बनाकर पूछा कि " तुम्हारे साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए" तो पोरस ने उत्तर दिया-," जिस प्रकार एक वीर राजा दूसरे वीर राजा के साथ करता है," इस उत्तर को सुनकर सिकंदर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने पोरस मे क्षमा करते हुए उसका राज्य भी उसे लौटा दिया।

पोरस से युद्ध के बाद सिकंदर ने दो नगरों का निर्माण कराया। विजय के उपलक्ष्य मे " निकाय " और अपने प्रिय घोड़े की स्मृति मे " बुकाफेला " का निर्माण किया गया। पोरस के युद्ध के बाद उसने एक अन्य पोरस का भजीजा था, उसे परास्त कर विजय प्राप्त की। 326 ई. पू. के अंत मे रावी नदी पार करके अधृश्ट जाति के मुख्य नगर प्रिम्प्राश को जीता। इसके बाद सिकंदर पूरब की ओर बढ़ा। चेनाव नदी के पश्चिमी तट पर ग्लोगनिकरि जाति का गणराज्य था उसे भी परास्त कर विजय प्राप्त की। 

4. सिकंदर का वापस लौटना 

राजा पोरस और अन्य विजय के बाद सिकंदर की सेना का उत्साह क्षीण पड़ चुका था। इसी समय विजित प्रदेशों मे और अभिसार मे विद्रोह होने लगे। फिर भी सिकंदर ने 326 ई. पूर्व मे प्रिंप्रमा, अद्रष्ट, कठ गणराज्यों पर असफल आक्रमण किये तब पोरस की सहायता प्राप्त करके इन राज्यों पर आधिपत्य स्थापित किया। सौभूति भी पराजित हुये। परन्तु इन संघर्षों से सिकंदर और उसकी सेनाओं को भली-भाँती पता चला गया कि भारत मे और अधिक आगे जाने से जीवन और साम्राज्य दोनों ही हाथ से जाने का खतरा है। जब वह सेना लेकर व्यास नदी के तट पर पहुंचा तो सिपाहियों ने आगे बढ़ने से साफ इन्कार कर दिया। यद्यपि सिकन्दर ने विजयों के लिये उन्हें प्रोत्साहित किया, लोभ दिखाया परन्तु सभी व्यर्थ सिद्ध हुआ। विवश होकर सिकन्दर को वापस लौटना पड़ा। वासप लौटते हुए उसने विजित प्रदेशों की शासन व्यवस्था भी की। झेलम और व्यास के बीच का प्रदेश पोरस को सौंपा दिया और सिन्धु झेलम के दोआब को तक्षशिला के राजा आम्भी कुमार को दे दिया। सिन्धु नदी के पश्चिम का क्षेत्र फिलिप नामक क्षत्रप के अधीन कर दिया। उसने अपने विजित प्रदेशों मे बहुत अधिक संख्या मे यवन सैनिक नियुक्त कर दिये। इसके बाद वह वापस जाने के लिए आगे बढ़ा। उसने अपनी सेना को दो भागों मे विभाजित किया-," एक भाग जल मार्ग से पश्चिम की ओर चला और दूसरा भाग सिकन्दर के साथ स्थल मार्ग से बिलोचिस्तान होता हुआ फारस पहुंचा।

5. सिकंदर की मृत्यु 

सिकंदर एक ऐसे देश से होकर चल रहा था जहां पर उसकी सेना और अन्य साथियों को गर्मी और प्यास से अनेक कष्ट उठाने पड़े और उनमे से कई मर गये। जब सिकंदर अपनी सेना के साथ 323 ई. पूर्व मे बेबीलोन नामक एक जगह पर पहुंचा तो यहां उसे ज्वर ने आ घेरा और 323 ई. पूर्व मे उसका निधन हो गया।

सिकंदर के आक्रमण के प्रभाव और परिणाम 

1. राजनीतिक परिणाम या प्रभाव 

अनेकों छोटे-छोटे गणराज्यों, राजतंत्र और विशाल भारतीय साम्राज्य तथा जनता पर प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रभाव पड़ा।

(अ) विशाल साम्राज्य और राजनैतिक एकता 

छोटे-छोटे गणराज्यों को यह भली-भाँति समझ आ गया कि वे कितने कमजोर, विभक्त और परस्पर संघर्षशील थे। डाॅ. राधाकुमुद मुखर्जी ने लिखा है कि सभी विदेशी आक्रमणों की भांति सिकंदर के आक्रमणों ने भी राजनीतिक एकता के भाव को उभारा। छोटे राज्य, जो एकता के मार्ग मे रोड़े थे, अब बड़े राज्यों मे मिल गए, जैसे पौरव अभिसार और तक्षशिला के राज्य। इस प्रकार सारी परिस्थितियाँ एक भारतीय साम्राज्य के उदय के अनुकूल बन रही थी जिस राज्य की कुछ ही समय बाद चंद्रगुप्त ने नींव डाली। 

डाॅ. राय चौधरी ने भी लिखा है कि सिकंदर के आक्रमण से उत्तरी-पश्चिमी भारत की छोटी-छोटी रियासतें समाप्त हो गई, जिससे भारतीय एकता को काफी बल मिला।

(ब) प्रेदश या व्यक्ति भक्ति के स्थान पर राष्ट्रभक्ति

चाणक्य-चन्द्रगुप्त के प्रयत्नों से प्रदेश या केवल अपने राजा के प्रति निष्ठा रखने वाले राज्यों मे देश या राष्ट्र भक्ति उत्पन्न की गई और राजनैतिक रूप मे उनमे एकता का प्रसार किया गया तथा विशाल मौर्य साम्राज्य की स्थापना की गई।

(स) स्वार्थी राजा और सम्राटों का पतन 

यह स्पष्ट है कि सिकंदर के आक्रमणों के समय देश के साथ विश्वासघात करने वाले राजतंत्र और गणतंत्र जैसे आम्भी, पर्वतक और विलासी, प्रजापीड़क धनन्द को समाप्त कर एक सुदृढ़ विशाल शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य की स्थापना की जिसने विदेशी सेल्यूकस (सेल्यूकस सिकंदर का मित्र था) आक्रमण का सामना सफलता से किया।

(द) सीमान्तों से विदेशी राज्यों की समाप्ति की आकांक्षा 

ईरानी और यूनानी विदेशी क्षत्रप भारतीयों के साथ अच्छा व्यवहार नही करते थे। अतः उन्हे भी सिकंदर के आक्रमण के बाद समाप्त करने की प्रक्रिया आरंभ हो गई।

2. सामाजिक प्रभाव या परिणाम 

अनेक छोटे राज्यों ने अपने मतभेद भूलाकर सामाजिक समन्वय किया, जैसे-," मालव और क्षुद्रकों ने अपने पुत्र और पुत्रियों का विवाह एक-दूसरे के यहाँ कर एकता स्थापित की थी। यूनानियों ने अनेक व्यापारिक मार्ग खोले जिससे दोनों के सम्पर्क तथा वस्तुओं का व्यापार सम्भव हुआ। सिन्दकर अपने साथ अनेकों शिल्पियों को ले गया जिन्होंने यूनान की स्थापत्य और चित्रकला पर अपना प्रभाव डाला। भारतीयों ने भी उनकी कला को ग्रहण किया। शिक्षा, दर्शन, विज्ञान का परस्पर एक-दूसरे को पता चला और कालान्तर मे यूनान से मधुर सम्बन्ध भी स्थापित हुये। भारतीयों के ज्योतिष, मुद्रा ढलाई और धर्म की अनेक बातों की शिक्षा यूनानियों को मिली और भारतीयों ने भी ग्रहण की।

3. आर्थिक प्रभाव 

इसके आक्रमण से भारत के पश्चिम से व्यापार बढ़ गया। सबसे महत्वपूर्ण अर्थिक परिणाम की ओर संकेत किया है डाॅ. राधाकुमुद मुखर्जी ने-", इन विदेशी हमलों से भारत मे विदेशी सिक्के चल गए। सोने का ईरानी डेरिक सिक्के, जिसकी तौल लगभग 130 ग्रेन थी और जिसे पहले-पहले सम्राट दारा ने ढलवाया था।

4. ऐतिहासिक प्रभाव 

सिकंदर अपने साथ अनेक लेखकों को भी भारत लाया था। जिनके वर्णनों मे भारत का काफी विस्तृत वर्णन और युद्ध, युद्धकला, शस्त्र, रणभूमि मे पहने जाने वाले सूती वस्त्रों तथा राजनीतिक घटनाओं और दशाओं का चित्रण किया है जो तत्कालीन इतिहास की पर्याप्त प्रामाणिक जानकारी देने मे समर्थ है। सिन्दकर के आक्रमण ने भारत के कृमिक इतिहास लिखने मे बहुत सहायता की।

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