प्रागैतिहासिक काल का क्या अर्थ है?
प्रागैतिहासिक काल का अर्थ है इतिहास के पूर्व का अर्थात् जिसका कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नही हो उसे प्रागैतिहासिक काल के नाम से जाना है। आदिमानव की परम्परा हिम-युग से चल पड़ी थी। धीरे-धीरे आदिमानव विकास करके बर्बर जीवन से सभ्य जीवन की ओर अग्रसर हुआ। उसके विकास की लम्बी अवधि को ही प्रागैतिहासिक काल कहते है।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि अतीत काल मे कभी ईश्वर ने मनुष्य जाति की रचना की थी तथा उसको ज्ञान प्रदान किया जिससे वह अपना जीवन उचित ढंग से बिता सके। मनुष्य की उस प्रगति को जिसके इतिहास का ज्ञान हमे नही है तथा जिसका ज्ञान हम पुरातत्व सम्बन्धी स्त्रोतों के आधार पर कर सके हम उसे प्रागैतिहासिक काल मे शामिल करते है। चूंकि इस काल की समस्त सामग्री पाषण निर्मित है इसी कारण इस काल को पाषण काल कहते है। पाषाण कालीन मनुष्य के क्रमिक विकास को परिलक्षित करने के लिए 1863 ई. मे ल्यूबक ने पाषण काल को दो भागों मे बाँटा है--
1. पूर्व पाषण काल
2. उत्तर पाषाण काल।
इसके अतिरिक्त अनेक खोजों ने प्रागैतिहासिक काल को कई भागों मे बाँटा है।
लेखक डाॅ. संजीव कुमार जैन, कैलाश पुस्तक सदन, की पुस्तक मे सम्पूर्ण प्रागैतिहासिक काल को तीन मुख्य भागों मे विभाजित बताया गया है--
1. पूर्व पाषण काल (पेलिऑलिथिक युग) 5,00,000 ईसा पूर्व से 9000 ई. पूर्व तक। इस युग को आखेटक और खाद्य संग्राहक मानव के रूप मे जाना जाता है। इस युग को पुनः तीन कालों मे बाँटा गया है--
(अ) निम्न पुरापाषाण युग - 5,00,000 ई. पू. से 50,000 ई. पू. तक।
(ब) मध्य पुरापाषाण युग- 50,000 ई. पूर्व से 40,000 ई. पूर्व तक।
(स) उत्तरपुरापाषाण युग- 40,000 ई. पूर्व से 9000 ई. पूर्व तक।
2. मध्य पाषाण काल (मिसोलिथिक युग) - 9000 ईसा पूर्व से 4000 ई. पूर्व तक। इसे आखेटक एवं पशुपालक संस्कृति के नाम से जानते है।
3. नवपाषाण काल (नियोलिथिक युग) - 4000 ई. पूर्व से 2500 ई. पूर्व तक। इसे खाद्य उत्पाद संस्कृति कहा जाता है।
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