चन्द्रगुप्त मौर्य का परिचय/चन्द्रगुप्त कौन था? (chandragupta maurya ka parichay)
जिस समय भारत के पश्चिचमोत्तर भाग पर सिकंदर अपनी शक्ति का परिचय दे रहा था, उसी समय मगध साम्राज्य के शासक धनान्द के अत्याचारी, शोषक शासन के खिलाफ चाणक्य के नेतृत्व मे चन्द्रगुप्त मौर्य, मौर्य साम्राज्य की स्थापना के प्रयास मे शक्ति संचय कर रहा था।
अज्ञात पिता से विख्यात पुत्र चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म लगभग 345 ई. पूर्व मे हुआ था। वह अपनी विधवा माँ के यहाँ पालित हुआ था। भारत वर्ष के इतिहास मे चन्द्रगुप्त की जाति के सम्बन्ध मे अनेक मतभेद है। कुछ मत मानते है कि चन्द्रगुप्त का जन्म निम्म कुल मे हुआ था और कुछ उसे क्षत्रिय भी मानते है। शुद्र मानने वालों मे जस्टिन साहब, विष्णुपुराण की टीकायें, बृहत्कथा एवं मुद्राराक्षस है।
जैने अनुश्रुति के अनुसार भी उसका जन्म उच्चकुल मे नही हुआ था। चन्द्रगुप्त मौर्य को क्षत्रिय मानने वालों मे बौद्ध साहित्य, एलियन, सर जान मार्शल एवं डाॅ. हेमचंद्र रायचौधरी है। दिव्यावदान मे चन्द्रगुप्त के पुत्र और उत्तराधिकारी बिन्दुसार को मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय कहा गया है। बौद्धों के ग्रंथ-महावंश और महापरिनिब्वान सुत्त चन्द्रगुप्त मौर्य को क्षत्रिय कुल मानते है।
चन्द्रगुप्त मौर्य की जाति चाहे जो भी हो लेकिन चन्द्रगुप्त मौर्य एक महान सम्राट थे, जिन्होंने सम्पूर्ण भारत मे राजनीतिक एकता स्थापित की और भारत की विदेशी आक्रमणों से रक्षा की।
चन्द्रगुप्त के पिता मगध की सेना मे एक अधिकारी थे। वह किसी कारण नन्दों द्वारा मारे गये। चन्द्रगुप्त का पालन-पोषण ग्वाले, फिर एक शिकारी ने किया। चन्द्रगुप्त शिकारी के यहाँ गुलाम था। खेलते समय चाणक्य की दृष्टि उस पर पड़ी। वह उससे प्रभावित हुआ तथा उसे शिकारी के यहाँ ये छोड़ाकर उसे तक्षशिला ले आये। उसे 8 वर्ष तक शिक्षा दी। चाणक्य ने ग्रीक आक्रमण से देश की सुरक्षा करने का निश्चय किया था। चाणक्य अपनी मातृभूमि से बहुत प्रेम करते थे। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को चुना।
मगध का राजा धनानंद था सिन्दकर के आक्रमण से देश के लिए संकट पैदा हो गया था। धननंद का सौभाग्य अच्छा था कि वह इस आक्रमण से बच गया। यह कहना कठिन है कि देश की रक्षा का मौका पड़ने पर नंद सम्राट यूनानियों को पीछे हटाने मे समर्थ होता या नही। मगध के शासक के पास विशाल सेना अवश्य थी किन्तु जनता का सहयोग उसे प्राप्त नही था। प्रजा उसके अत्याचारों से पीड़ित थी, असहाय कर-भार के कारण राज्य के लोग उससे असंतुष्ट थे। देश को ऐसे समय मे एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो मगध साम्राज्य की रक्षा तथा वृद्धि करे, विदेशी आक्रमण से उत्पन्न संकट को दूर करे और देश के विभिन्न भागों को एक शासन सूत्र मे बँधकर चक्रवर्ती सम्राट के आर्दश को चरितार्थ करे।
चन्द्रगुप्त और चाणक्य ने अपने प्रयासों से धन और शक्ति अर्जित करके नन्द साम्राज्य के केन्द्र मगध पर आक्रमण किया परन्तु वह असफल रहे और उन्हें जान बचा कर भागना पड़ा। जब वह दोनों जंगलों मे इधर-उधर भटक रहे थे और एक बूढ़ी औरत के यहाँ आज्ञय लेकर खिचड़ी खा रहे थे तो चन्द्रगुप्त बीच से खाने लगा तब उसका हाथ जल गया। इस घटना पर उस बूढ़ी औरत ने कहा कि बेटा खिचड़ी को अगर बीच से खाओंगे तो हाथ तो चलेगा ही खिचड़ी को किनारे से खाना चाहिए। इस पर चाणक्य और चन्द्रगुप्त को अपनी गलती का अहसास हुआ। वे समझ गये की एकदम केन्द्र पर हमला करना उनकी भूल थी। उन्होंने फिर अपनी कूटनीति बदली। उन्होंने विचार किया कि आसपास के राज्यों को जीतकर केन्द्र पर हमला करना चाहिये।
चन्द्रगुप्त ने चाणक्य की सहायता से पंजाब के गणतंत्रीय राज्यों की युद्धप्रिय जातियों मे से सैनिक की भर्ती की। उसने यूनानियों को बहार निकालने का मुख्य मकसद बनाया जिसमे अन्त मे वह सफल भी रहे। इस कार्य मे उन्हे पहाड़ी शासक से काफी मदद मिली थी। उनके इस कार्य मे भारतीय क्षत्रियों के विद्रोह, यूनानियों के विरूद्ध 325 ई. पूर्व यूनानी उ. सिन्ध के प्रान्तपति केलिप की हत्या तथा 323 ई. पूर्व मे सिकंदर की मृत्यु ने काफी सहायता की। अन्तिम यूनानी प्रान्तपति भी भारत छोड़कर चला गया।
इस प्रकार सम्पूर्ण सिन्ध तथा पंजाब पर चन्द्रगुप्त ने अधिकार कर लिया। इसके बाद उसने फिर से मगध को जीतने की योजना बनाई।
चन्द्रगुप्त और उसके गुरू चाणक्य ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति के साथ मगध पर आक्रमण किया। चन्द्रगुप्त और चाणक्य के षडयंत्रो से धनन्द परास्त हुआ। नन्द सम्राट धननन्द अपने अन्य वंशजों सहित मारा गया। चंद्रगुप्त ने मगध को जीतकर पाटलिपुत्र को अपनी राजधीनी बनाया। धनानन्द की अयोग्यता, नागरिकों की अप्रियता, चाणक्य की कूटनीति तथा चन्द्रगुप्त का रणकौशल नन्द वंश के पतन का कारण बना।
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