3/10/2022

जाति व्यवस्था मे परिवर्तन के कारण

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जाति व्यवस्था मे परिवर्तन के कारण 

जाति व्यवस्था मे परिवर्तन हो रहे है, यह कमजोर और विघटित हो रही है यह एक सामाजिक तथ्य है, कोई आकस्मिक घटना नही है। जाति व्यवस्था मे हो रहे परिवर्तनों के पीछे अनेक कारकों का हाथ है। जाति व्यवस्था मे परिवर्तन के कारण या कारक निम्न प्रकार है--

1. ओधोगिकरण और नगरीयकरण 

उद्योगीकरण के फलस्वरूप लघु एवं कुटीर उद्योगों का तेजी से ह्रास हुआ है जिससे उनमे लगी व्यावसायिक जातियों को अन्य व्यवसायों को अपनाने के लिए बाध्य होना पड़ा है। इसके अलावा मशीनों पर काम करने के लिये विशेष प्रशिक्षण आवश्यक है, न कि जातीय गुणों का होना। अतः विभिन्न जातियों के लोग साथ-साथ काम करने लगे। इससे विभिन्न जातियों के बीच दूरी कम होने मे मदद मिली। सामाजिक सहवास तथा भोजन प्रतिबन्ध खत्म हो गये। औद्योगिकरण के साथ-साथ नगरीकरण मे भी वृद्धि हुई। नगरों मे विभिन्न जातियों के लोग साथ-साथ रहने लगे। द्वैतीयक सम्बन्धों की बहुलता के कारण नगरों मे अपनी जाति छुपाना भी आसान हो गया। 

2. राजनीतिक आन्दोलन 

भारत मे राष्ट्रीय और राजनीतिक आन्दोलनों ने भी जाति व्यवस्था मे परिवर्तन लाने या जाति व्यवस्था को कमजोर करने मे महत्वपूर्ण योगदान दिया है। विदेशी शक्ति की भारत मे सत्ता सदैव भारतीय को राष्ट्रीय आधार पर संगठित होकर  स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती रही। यह राष्ट्रीय आन्दोलन जितना उग्र होता गया स्थानीय और जाति भेदों की चेतना उतनी ही कम हुई। इन आन्दोलन का उद्देश्य भारत मे लोकतन्त्रात्मक स्वराज्य स्थापित करना था, अतः इससे विषमता पर आधारित जातिवाद दुर्बल हुआ।

3. पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव 

जाति व्यवस्था मे परिवर्तन के लिए पश्चिमी शिक्षा भी उत्तरदायी है। अंग्रेजो से पहले भारत मे जाति के आधार पर शिक्षा प्राप्त की जाति थी। अंग्रेजो ने शिक्षा का सार्वभौमीकरण कर दिया। इससे सभी व्यक्तियों को शिक्षा प्राप्त करने का समान अधिकार मिल गया इस नयी शिक्षा ने लोगों मे वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विकसित किया। वहीं स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व की भावना को भी विकसित किया। 

4. धन का महत्व 

जाति मे जन्म के आधार पर व्यक्ति की सामाजिक स्थिति का निर्धारण होता है। लेकिन आज के समय मे आर्थिक स्थिति सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार होती जा रही है,  जिससे लोग अपनी जाति का व्यवसाय छोड़कर धनोपार्जन के तरीके अपनाकर जाति की मान्यताओं की सीमाओं को लांघ रहे है। एक निर्धन ब्राह्मण से एक धनी शूद्र का सम्मान कही अधिक है। अर्थात् जन्म के आधार पर सामाजिक पद एवं प्रतिष्ठा प्राप्त न होकर धन या व्यक्तिगत गुणों पर निर्भर होती जा रही है। 

5. यातायात एवं संचार साधनों मे वृद्धि 

यातायात एवं संचार साधनों मे वर्तमान मे अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। ये साधन केवल शारीरिक गतिशीलता को ही नही बढ़ाते है, वरन् इनमे सामाजिक गतिशीलता भी बढ़ती है। इनके कारण नये उद्योगों, कारखानों, व्यवसायों एवं नगरों का विकास तेजी से होता है। विभिन्न जाति, धर्म, देश और प्रदेश के लोगों के बीच सम्पर्क स्थापित होता है। विचारों का आदान-प्रदान सरलतापूर्वक होता है। इससे संकुचित दृष्टिकोण समाप्त होकर व्यापक दृष्टिकोण विकसित होता है तथा समानता की भावना बढ़ती है। इससे जाति-प्रथा कमजोर हुई है। साथ-साथ काम करने, रहने और यात्रा करने से छुआछूत और भोजन-सम्बन्धी प्रतिबंध समाप्त हो गये है।

6. प्रजातंत्र 

प्रजातंत्र, समानता, स्वतंत्रता और बन्धुत्व पर आधारित होता है। भारतीय स्वतंत्रता के बाद भारत ने स्वयं को प्रजातंत्रात्मक राज्य घोषित किया। प्रजातंत्र और जाति व्यवस्था एक दूसरे के विरोधी है, क्योंकि जाति मे भेदभिव और ऊँच-नीच जैसे असमानतायें पाई जाती है। प्रजातंत्र मे व्यक्ति का मूल्य उसकी योग्यता और कार्य क्षमता के आधार पर तय होता है, जबकि जाति मे व्यक्ति की समाज मे स्थिति इस बात पर निर्भर करती है कि वह किस जाति मे पैदा हुआ है।

7. धार्मिक आन्दोलन 

जति व्यवस्था मे परिवर्तन लाने मे धार्मिक आन्दोलनों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जाति-प्रथा के शोषण के विरुद्ध ब्रह्रा समाज, आर्य समाज, प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन के साथ-साथ नामदेव, तुकाराम, कबीर, गुरूनानक आदि संतों ने जाति प्रथा के दोषों की कटू आलोचनि की और समता एवं बन्धुत्व भाव के लिये भारतीय जनता को प्रेरित किया।

8. देशी राज्यों का समाप्त होना 

देशी राज्यों के राजा महाराजा रूढ़िवादी होते थे। राजा-महाराजा जाति व्यवस्था को महत्व देते थे और जाति पंचायतों के नियमों को स्वीकार करते थे। देशी राज्यों के समाप्त होने के कारण भी जाति व्यवस्था कमजोर पड़ गई है।

9. विज्ञान का प्रभाव 

इस वैज्ञानिक युग मे विज्ञान के चमत्कारिक अविष्कारों से प्रभावित होकर भारतीय समाज की रूढ़िवादिता एवं अन्धविश्वास समाप्त होता जा रहा है और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होता जा रहा है। जाति प्रथा जिन सिद्धांतों पर आधारित है, वे विज्ञान द्वारा सिद्ध होते जा रहे है।

10. संयुक्त परिवारों का विघटन 

संयुक्त परिवार जाति व्यवस्था का प्रमुख पोषण केन्द्र था। परन्तु औद्योगिकरणर, नगरीकरण, भौतिकवाद, व्यक्तिवाद, पाश्चात्य सभ्यता आदि के प्रभाव के कारण संयुक्त परिवार विघटित होने लगे और एकाकी परिवार बढ़ने लगे। एकाकी परिवारों के कारण जातीय विचारों का पोषण करने वाली एक प्रमुख संस्था समाप्त हो गई। 

11. नयी कानून व्यवस्था 

अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारत मे अनेक प्रकार की कानूनी व्यवस्थाएं प्रचलित थी। वे जाति भेद के सिद्धांत को स्वीकार करती थी। ब्रिटिश शासन ने जो नई कानून व्यवस्था भारत मे स्थापित की, उसका मूल सिद्धांत समानता का था, नया कानून ब्राह्मण और शूद्र को समदृष्टि से देखता था और एक अपराध के लिए समान दण्ड की व्यवस्था करता था। इसका परिणाम यह हुआ कि जातीय पंचायतों को अब अपने सदस्यों को जातीय नियम भंग करने पर कानूनी दण्ड देने का अधिकार नही रहा, इससे जाति प्रथा मे विघटन हुआ।

इसके अतिरिक्त स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने भी जाति प्रथा से होने वाली हानियों से भारत की जनता को बचाने हेतु अनेक प्रयास किये। जिनम--

1. हिन्दू विवाह वैधकरण अधिनियम 1949

2. विशेष विवाह अधिनियम 1954

3. अस्पृश्यता अपराध अधिनियम 1955 

4. नागरिक संरक्षण अधिनियम 1976।

12. शिक्षा 

नवीन शिक्षा ने अनेक प्रकार से जाति व्यवस्था का विघटन करने में योगदान किया हैं। इस शिक्षा को कोई भी प्राप्त कर सकता हैं। विद्यालयों में ब्राह्मण और शूद्र के भेदभाव को समाप्त कर दिया गया हैं और शिक्षा ग्रहण करके निम्न जाति का व्यक्ति भी समाज के उच्चतम पद को प्राप्त कर सकता हैं। साथ ही आधुनिक शिक्षा प्रणाली जाति व्यवस्था की हानियों का प्रचार करती है। इस कारण नवयुवकों के मस्तिष्क में प्रारंभ से ही जाति के प्रति उपेक्षा की भावना विकसित करने का प्रयास किया जाता हैं। 

13. विचारकों एवं धार्मिक सुधारकों का प्रभाव 

स्वामी दयानंद, रामकृष्ण परमहंस तथा राजा राममोहन राय इत्यादि समाज सुधारकों एवं धर्म प्रचारकों ने भी जाति प्रथा पर कुठारघात किया। स्वामी विवेकानंद ने तो यह घोषणा कर दी थी कि जाति का हिन्दु धर्म से कोई संबंध नहीं हैं।

शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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