2/12/2022

शक्ति का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, प्रकार, स्त्रोत

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प्रश्न; शक्ति क्या हैं? शक्ति के प्रकारों का वर्णन कीजिए।

अथवा" शक्ति से आप क्या समझते हैं? शक्ति की प्रकृति बताइए। 
अथवा" शक्ति का अर्थ बताइए। 
अथवा" शक्ति का वर्गीकरण कीजिए।
अथवा" शक्ति की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। 
अथवा" शक्ति से क्या अभिप्राय है? 
अथवा" शक्ति से क्या आशय है?
अथवा" शक्ति के स्त्रोत क्या हैं?
उत्तर--

शक्ति का अर्थ (shakti kya hai)

shakti arth paribhasha visheshta prakar;शक्ति क्या है? अत्यंत ही साधारण अर्थों में शक्ति का तात्पर्य ताकत अथवा बल से लगाया जाता है। शक्ति का तात्पर्य सत्ता अथवा प्रभाव से भी लगाया जाता है। राबर्ट डाहल तथा लासवेल ने शक्ति का प्रयोग प्रभाव के कार्यों से किया है।

मर्गेनथाऊ ने शक्ति का प्रयोग नियंत्रण के रूप में किया है। हाब्स ने शक्ति का को सामान्य प्रवृत्ति के रूप में अभिव्यक्त किया है तथा लिखा है कि," शक्ति मानव की अविच्छिन तथा अनवतर इच्छा है, जिसका अंत मृत्यु से संभव है।" 

कौटिल्य ने शक्ति शब्द का प्रयोग बल के प्रयोग के रूप में किया है। सामान्य बोलचाल में शक्ति व्यक्ति का वह प्रभाव है जिससे समाज में या राजनीति में उसकी सर्वोच्चता तथा संप्रभुता को स्वीकार किया जा सके जाता है।

आज विश्व भर में राजनीति वास्तव में शक्ति की ही राजनीति है। मानव एक विचारशील प्राणी है लेकिन सभी मानव एक ही प्रकार के विचार नहीं रखते। विचार विभिनता मानव समाज की एक विशेषता है। प्रत्येक मानव दूसरे मानव को अपने विचार पक्ष में लाने का प्रयास करता है और इसी प्रयास को सफल बनाने के लिए वह शक्ति का प्रयोग करता है। इसी संबंध में बीरस्ट्रीट ने कहा है कि," शक्ति समाज की आधारभूत सुव्यवस्था का सहारा है। जहां कहीं सुव्यवस्था है वहाँ शक्ति का अस्तित्व अवश्य पाया जाता है। शक्ति प्रत्येक संगठन के पीछे और प्रत्येक संरचना को बनाए रखती हैं। बिना शक्ति के कोई संगठन स्थाई नहीं हो सकता तथा बिना शक्ति के कोई सुव्यवस्था नहीं हो सकती।

शक्ति की परिभाषा (shakti ki paribhasha)

राबर्ट बीरस्टीड के अनुसार," शक्ति बल की योग्यता है, न कि उसका वास्तविक प्रयोग।" 

मैकाइवर के अनुसार," शक्ति व्यक्तियों तथा व्यवहार को नियंत्रित करने, विनियमित करने तथा निर्देशित करने की योग्यता है।" 

काप्लान के अनुसार," शक्ति संगठित क्रिया द्वारा किसी आयोजन को पूरा करने की एक योग्यता है।" 

माॅरगेन्थाऊ के अनुसार," राजनैतिक शक्ति से राजकीय सत्ता धारण करने वाले व्यक्तियों के पारस्परिक संबंध तथा जनता के साथ उनके संबंधों का बोध होता है।" 

हाॅब्स के अनुसार," शक्ति भविष्य मे कुछ निश्चित लक्ष्यों को प्राप्त करने का एक वर्तमान साधन है।" 

राबर्ट डाहल के अनुसार," शक्ति की परिभाषा प्रभाव के एक विशेष रूप मे की जाती है। इस रूप मे शक्ति प्राप्त करने वाले व्यक्ति की आज्ञा का पालन न करने के कारणवश बहुत हानि उठानि पड़ती है।" 

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि " एक व्यक्ति की शक्ति वास्तव मे उसका दूसरे व्यक्तियों के संबंध मे वह प्रभाव है जो कि दूसरों पर डालने मे समर्थ होता है। अतः अपने इरादों के अनुसार एक व्यक्ति जिस सीमा तक दूसरों को प्रभावित करता है, वही उसकी शक्ति है।"

शक्ति की विशेषताएं (shakti ki visheshta)

शक्ति की विशेषताएं इस प्रकार है--

1. शक्ति संबंध सूचक अवधारणा है। इसमे शासक और शासितों के बीच संबंध पाया जाता है। अर्थात शासक के लिए यह आवश्यक है कि कुछ ऐसे व्यक्ति हों जिस पर वह शासन करें।

2. शक्ति द्विपक्षीय अवधारणा है। अर्थात जब शासित होंगे तभी शासक भी होंगे। किसी एक के अभाव मे शक्ति का प्रयोग संभव नही है।

3. व्यक्तिगत स्थिति व प्रतिष्ठा शक्ति को प्रभावित करती है। अर्थात शक्ति परिस्थतिजन्य होती है। उदाहरण के लिए, एक उच्च पद में बैठा व्यक्ति यदि ढुलमोल चाल से प्रशासन करता है तो वह प्रशासन अस्त-व्यस्त रहता है और उसी पद पर यदि कोई दूसरा तेजस्वी व्यक्तितव वाला आसीन होता है तो वह अच्छा शासन करता है। दोनों व्यक्ति एक ही पद पर एक ही प्रकार के अधिकारों का प्रयोग करते है फिर भी दोनों की शक्तियों के परिणामों में अंतर होता है।

4. शक्ति मे पुरस्कार और दंड देने की शक्ति पाई जाती है। अर्थात जो व्यक्ति शक्तिधारी होते है वे जनता के आदशों का पालन करा सकते है, क्योंकि वे दंड और पुरस्कार देने की स्थिति मे होते है।

5. अनेक शक्तिधारी पर्दें के पीछे रहकर शक्ति का प्रयोग करते है। पूँजीपति और बड़े-बड़े धार्मिक नेता राजनीति से दूर रहते हुए भी राजनीति मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

यहाँ प्रश्न यह उठता है कि शक्ति किसके पास है इस संबंध मे मार्क्सवादियों का विचार है कि उत्पादन के साधन जिन व्यक्तियों के पास होते है, उन्ही के पास शक्ति रहती है। यद्यपि यह शक्ति आर्थिक शक्ति कही जाती है। जबकि विशिष्ट वर्ग या राजनैतिक अभिजनों का मत है कि शक्ति कुछ विशिष्ट लोगों के हाथों मे केन्द्रित रहती है। ये विशिष्ट लोग प्रभावशाली नेता, पूँजीपति, उच्च प्रशासनिक अधिकारी और कुलीन परिवारों के सदस्य आदि होते है। राजनैतिक अभिजनों का कहना है कि," शासन का बाहरी रूप कुछ भी हो सकता है। उसे आप राजतन्त्र कहें या लोकतन्त्र, फासिस्ट सरकार मानें या कम्युनिस्ट शासन, परन्तु राजनैतिक शक्ति सदैव अल्पसंख्यकों के हाथों मे रही है।" 

बहुलतावादियों का विचार है कि राजनीति शक्ति किसी एक स्थान या समुदाय में केन्द्रित नही की जा सकती। प्रजातंत्र में शक्ति धारक कोई भी हो सकता है।

शक्ति के प्रकार (shakti ke prakar)

शक्ति के निम्नलिखित प्रकार है--

1. शारिरिक शक्ति 

यहां शारीरिक शक्ति का दो संदर्भों में प्रयोग किया जाता है। जब व्यक्ति के संदर्भ में शारीरिक शक्ति का प्रयोग किया जाता है तो इसका तात्पर्य शारीरिक बल से होता है। जब सामाजिक या राष्ट्रीय संदर्भ में शारीरिक शक्ति का प्रयोग किया जाता है तो इसका तात्पर्य सैनिक शक्ति से होता है। आज सैनिक शक्ति अनेक भागों तथा श्रेणियों में विभाजित है।

2. मनोवैज्ञानिक शक्ति 

चार्ल्स शिल्चर ने लिखा है," मनोवैज्ञानिक शक्ति एसी प्रतीकात्मक सुचकों से मिलकर बनती है जो व्यक्तियों के मस्तिष्क और भावनाओं को प्रभावित करती है। यह प्रचार माध्यमों से लोगों को नियंत्रित करने का एक तरीका है। इस शक्ति का प्रयोग अत्यंत चतुराई से किया जाता है इस शक्ति के द्वारा दूसरों को प्रभावित करना होता है।

3. आर्थिक शक्ति 

शक्ति का व्यवहारिक स्वरूप आर्थिक है। आर्थिक साधनों के द्वारा शक्ति अपने आप प्रभावित होने लगती है। आज अनेक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों पर आर्थिक रूप से निर्भर जो देश किसी भी अन्य देशों को आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं इनका उद्देश्य होता है कि वे देश उनके प्रभाव क्षेत्र में रहे। अनेक देश दूसरे देशों के आर्थिक दबाव के कारण अपने रुपयों का अवमूल्यन करते हैं व्यापार की निर्भरता भी आर्थिक दबाव का कारण है।

शक्ति के अन्य प्रकार

शक्ति के प्रकारों के संबंध में विभिन्न विचारकों केअलग-अलग मत भी है। शक्ति के संबंध में कुछ प्रमुख विद्वानों के वर्गीकरण को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है--

हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार शक्ति के प्रकार 

(अ) पाश्विक शक्ति

(ब) दैवी शक्ति।

बीअर का शक्ति का वर्गीकरण 

बीअर ने शक्ति के सात प्रकार बतलाए है--

(अ) सम्पत्ति 

(ब) भौतिक बल 

(स) सामाजिक स्तर

(द) शिक्षा 

(ई) नैतिक चरित्र 

(फ) व्यक्तित्व का आकर्षण 

(झ) प्रबंध कला।

डाहल का द्वारा शक्ति का वर्गीकरण 

डाहल ने शक्ति के दो स्वरूप बताए है--

(अ) उत्पीड़न 

जो शक्ति औचित्यपूर्ण न हो उसे दमन कहा जाता है।

(ब) सत्ता 

जो शक्ति औचित्यपूर्ण हो उसे सत्ता कहते है।

एडवर्ड मिल्स का शक्ति का वर्गीकरण

(अ) व्यवहार परिवर्तन के आधार पर शक्ति के तीन रूप है--

1. बल, 2. प्रभुत्व और 3. छल-योजना।

(ब) औचित्यपूर्ण के आधार।

मैक्स वेबर का शक्ति वर्गीकरण 

वेबर के अनुसार शक्ति के तीन प्रकार है--

(अ) कानूनी व वैधानिक 

(ब) परम्परागत

(स) करिश्माई शक्ति

बीरस्टीड का शक्ति का वर्गीकरण 

बीरस्टीड ने शक्ति का वर्गीकरण अनेक आधारों पर किया है--

1. दृश्य शक्ति

शक्ति का प्रयोग जब प्रकट रूप मे किया जाता है तो उसका रूप दृश्य शक्ति का होता है।

2. अदृश्य शक्ति 

शक्ति का प्रयोग जब अप्रगट रूप से किया जाता है तो उसका रूप अदृश्य अथवा प्रच्छन्न शक्ति का होता है।

3. दमनात्मक शक्ति

जब शक्ति का प्रयोग अत्याचारपूर्ण ढंग से किया जाता है तो उसका रूप दमनात्मक होता। 

4. अदमनात्मक शक्ति

शक्ति का धारक अपनी शक्ति का प्रयोग दूसरे पक्ष को औचित्य के आधार पर अपनी ओर करने के लिए करता है तो अदमनात्मक शक्ति का रूप होता है।

5. औपचारिक शक्ति

जब शक्ति का प्रयोग किसी आदेश, निर्देश अथवा अनुदेश जारी करके किया जाता है तो उसका रूप औपचारिक शक्ति होता है।

6. अनौपचारिक शक्ति

शक्ति का प्रयोग जब किसी आदेश, निर्देश व अनुदेश को जारी किए बिना किया जाता है तो उसे शक्ति का अनौपचारिक रूप कहा जाता है।

7. प्रत्यक्ष शक्ति

शक्ति के धारक द्वारा जब शक्ति का प्रयोग स्वयं किया जाता है तो उसका रूप प्रत्यक्ष शक्ति का होता है।

8. अप्रत्यक्ष शक्ति 

शक्ति का प्रयोग धारक द्वारा यदि अपने-अपने अधीनस्थों या अन्य किसी के माध्यम से किया जाता है तो शक्ति का रूप अप्रत्यक्ष शक्ति का होता है।

9. एक पक्षीय, द्विपक्षीय व बहुपक्षीय शक्ति 

शक्ति प्रवास की दिशा की दृष्टि से शक्ति एकपक्षीय व बहुपक्षीय हो सकती है।

10. केन्द्रित, विकेन्द्रित व व्याप्त शक्ति 

शक्ति के अधिवास के अनुसार उसके रूप केन्द्रीत, विकेन्द्रित व व्याप्त शक्ति के होते है। एक स्थान पर स्थित शक्ति केन्द्रित, अनेक स्थानों पर वितरित शक्ति विकेन्द्रित तथा अस्पष्ट रूप से बिखरी हुई शक्ति को व्याप्त शक्ति कहते है।

11. क्षेत्रीय, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय शक्ति 

क्षेत्रीयता के आधार पर शक्ति का स्वरूप क्षेत्रीय, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय होता है।

शक्ति की प्रकृति 

राजनीति विज्ञान में शक्ति की प्रकृति पर भी विवेचन किया गया है। शक्ति की प्रकृति को निम्नलिखित बिन्दुओं में स्पष्ट कर सकते हैं--

1. शक्ति सम्बन्धात्मक 

शक्ति सम्बन्धात्मक होती है अर्थात् शक्ति विभिन्न समूहों अथवा लोगों के बीच पाये जाने वाले सम्बन्धों को बताती है। शक्ति के अस्तित्व के लिये एक से अधिक शक्ति इकाइयों की आवश्यकता होती है। अर्थात् अन्य लोगों की अनुपस्थिति में किसी एक व्यक्ति की शक्ति का कोई अस्तित्व नहीं होता है। व्यावहारिक रूप में शक्ति, एक व्यक्ति या अन्य व्यक्तियों को अपने अनुसार कार्य कराने की क्षमता कहा जाता है। अन्ततः संस्था की शक्ति के व्यक्ति की शक्ति के लिये तथा समूह की शक्ति के लिये क्रमश : दूसरी संस्था, व्यक्ति और समूह होना जरूरी है।" 

2. शक्ति के कई रूप 

शक्ति राजनीतिक, सैनिक, आर्थिक , धार्मिक, विचार, जनमत आदि भी शक्ति के रूप में देखी जा सकती है। शक्ति के ये सिद्धान्त परस्पर एक दूसरे से स्वतन्त्र होते हैं इनमें से कोई भी किसी दूसरे के अधीन नहीं माना जाता है। यद्यपि ये शक्ति के रूप प्रतिद्वन्द्वी हो सकते हैं अथवा सहयोगी भी हो सकते हैं। 

3. शक्ति वास्तिक और सम्भावित  

शक्ति वास्तविक तथा सम्भावित शक्ति के रूप में देखी जा सकती है। शक्ति धारण स्वयं शक्ति का प्रयोग करता है तो उसे वास्तविक शक्ति कहते हैं तथा राजनीतिक उद्देश्य की प्राप्ति के लिये जब शक्ति का प्रयोग किया जाता है तो उसे सम्भावित शक्ति कहते हैं। 

4. शक्ति औचित्यपूर्ण 

शक्ति औचित्यपूर्ण होती है। इसके अभाव में इसे बल कहा जाता है बल दमनात्मक तथा अत्याचारपूर्ण भी हो सकता है। शक्ति की औचित्यता उसके जनहित में तथा जन रक्षा में प्रयोग करने के रूप में स्पष्ट होती है इसी स्थिति में उसे जनसहमति प्राप्त होती है परिणामस्वरूप स्थायित्व की स्थिति आती है। 

5. शोक की प्रकृति संचयी 

शक्ति की प्रकृति संचयी होती है। यह किन्हीं निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये प्रयासरत रहती है। शक्ति की यह भी प्रकृति है कि वह न केवल अपने वर्तमान रूप एवं स्थिति की रक्षा करना चाहती है बल्कि शक्ति लगातार अपनी वृद्धि एवं संचय भी चाहती है। यदि शक्ति द्वारा अपनी रक्षा, वृद्धि एवं संचय का प्रयत्न रोक दिया जाता है तो शीघ्र ही उसका अन्त भी हो जाता है। किन्तु जब शक्ति अपनी रक्षा, वृद्धि एवं संचय का प्रयत्न करती है तो शक्ति स्वयं अपना साध्य भी बन जाती है।

शक्ति के स्त्रोत 

शक्ति के निम्नलिखित स्त्रोत हैं--

1. ज्ञान

मानवीय क्षेत्र में ज्ञान शक्ति का पहला स्त्रोत हैं। साधारण अर्थ में ज्ञान व्यक्ति को अपने लक्ष्यों को समन्वित करने तथा प्राप्त करने की योग्यता प्रदान करता हैं। ज्ञान के द्वारा व्यक्ति अपने गुणों को इस तरह से केन्द्रित करता है कि वे अमुक कार्य के सम्पादन में शक्ति का साधन बन सकें। व्यक्ति का नेतृत्व प्रबन्ध शक्ति, इच्छा शक्ति, सहन शक्ति और अपने आपको अभिव्यक्त करने की शक्ति, तर्क शक्ति आदि तत्व शक्ति के महत्वपूर्ण पहलू हैं। इनके अभाव में व्यक्ति को हानि हो सकती है।

2. संगठन 

एक पुरानी कहावत प्रसिद्ध है कि " संगठन ही शक्ति है।" जब एक व्यवसाय के सदस्य एक संगठन बना लेते हैं तो वह बहुत शक्तिशाली बन जाते हैं, जैसे अखिल भारतीय मजदूर संघ, ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस, मिल ओनर्स एसोसियेशन, अखिल भारतीय उद्योग तथा व्यापार संघ इत्यादि। जब अनेक छोटे-बड़े राज्य एक संघ बना लेते हैं, तो वह राज्य अत्यन्त शक्तिशाली हो जाता है, जैसे संयुक्त राज्य अमेरीका, दक्षिणी अफ्रीका तथा भारत है। 

3. सत्ता

जब किसी व्यक्ति के हाथ में सत्ता आ जाती है, यानि की वह प्रधानमन्त्री, केन्द्रीय मन्त्री, मुख्यमन्त्री अथवा राज्य में मन्त्री इत्यादि बन जाता है, तो वह शक्तिशाली हो जाता है क्योंकि सरकारी तन्त्र (मशीनरी) उसके हाथ में आ जाता है। ये सब राज्य की शक्ति का उपभोग करने की स्थिति में आ जाते हैं। 

4. बल प्रयोग 

जिस देश के पास जितने अधिक आधुनिकतम शस्त्रास्त्र तथा प्रशिक्षित सेनाएं होंगी, वह उतना ही अधिक शक्तिशाली होगा। आवश्यकता पढ़ने पर वह राष्ट्र अपने शत्रु के विरुद्ध बल प्रयोग करके किसी भी उद्देश्य को प्राप्त कर सकता है। उदाहरणस्वरूप, अर्जेन्टीना ने फाकलैण्ड द्वीप समूह पर कब्जा कर लिया था। ग्रेट ब्रिटेन ने शक्ति का प्रयोग करके उस पर पुनः कब्जा कर लिया और अर्जेन्टीना को वहाँ से निकाल दिया। कारगिल में भारत ने बल प्रयोग करके पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ दिया था। 

5. आर्थिक साधन

जिस व्यक्ति के पास बहुत अधिक आर्थिक साधन होते हैं वह चुनाव जीत लेता है और शक्ति प्राप्त कर लेता है। इसी प्रकार जिस राष्ट्र के पास अधिक आर्थिक साधन होते हैं, तो वह राष्ट्र दूसरों को आर्थिक सहायता देकर प्रभावित करने का प्रयत्न करता है अर्थात वह उसकी विदेश नीति और आर्थिक नीति को प्रभावित करता है। उदाहरणस्वरूप अमरीका के पास बहुत अधिक आर्थिक साधन है, इसलिए उसने अनेक राष्ट्रों पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है। 

6. शस्त्रास्त्रों पर नियन्त्रण

जिस व्यक्ति के पास शस्त्रास्त्र होते हैं, वह दूसरे निहत्थे लोगों पर बहुत शीघ्र अपना प्रभाव स्थापित कर लेता है। यही हाल राष्ट्रों का हैं। अमरीका और रूस के पास शस्त्रास्त्रों का असीमित भण्डार है। अतः वे अरबों रुपयों के शस्त्रास्त्र प्रतिवर्ष बेचते हैं और दूसरे देशों की नीतियों को प्रभावित करते हैं। युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए ही सेना को आधुनिकतम शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित करना परम आवश्यक माना जाता है।

7. प्रेम और प्रभाव

प्रेम और प्रभाव भी शक्ति का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। महात्मा गांधी का सत्याग्रह प्रेम पर आधारित था। उन्होंने अपने प्रेम और प्रभाव से देशवासियों को संगठित कर उनमें एक अद्भुत शक्ति उत्पन्न की, जिसके द्वारा उन्होंने ब्रिटिश शासकों को झुका दिया तथा भारत को स्वतंत्रता दिलाई। 

8. व्यक्तिगत आकर्षण

कई नेताओं का इतना जबर्दस्त त्याग और व्यक्तिगत आकर्षण होता है कि उनके सामने लाखों लोग झुक का जाते है उनकी आज्ञा का पालन करते हैं। इस प्रकार का महान आकर्षण लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, सुभाषचन्द्र बोस, पण्डित जवाहर लाल नेहरु और जयप्रकाश नारायण में था। श्री जय प्रकाश नारायण ने विभिन्न दलों को इकट्ठा करके मार्च, 1977 के चुनाव में एक और कांग्रेस को पराजित करके जनता पार्टी के शासन की स्थापना की। इसे व्यक्तित्व में करिश्मा की संज्ञा दी जाती है।

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