10/19/2020

हर्षवर्धन की उपलब्धियां

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हर्षवर्धन का परिचय/हर्षवर्धन कौन था?

प्राचीन भारतीय सम्राटों की परम्परा मे हर्षवर्धन अन्तिम सम्राट था। उसने भी दिग्विजय की और प्राचीन आदर्शो पर शासन प्रणाली का संचालन किया। यद्यपि साम्राज्य विस्तार की दृष्टि से भारतीय इतिहास मे उसका स्थान महान् नही माना जाता। परन्तु एक योग्य तथा उदार शासक की दृष्टि से उसका स्थान महत्वपूर्ण है। 

प्रभाकरवर्धन इस वंश का प्रथम स्वतंत्रत शासक था। इसने परम् भट्टारक तथा महाराधिराज की उपाधियाँ धारण की थी। प्रभाकरवर्धन के दो पुत्र थे -- राज्यवर्धन और हर्षवर्धन तथा एक पुत्री थी जिसका नाम राज्यश्री था। राज्यश्री का विवाह कन्नौज के राजा गृहवर्मन के साथ कर दिया गया। 605 ई. मे प्रभाकरवर्धन की मृत्यु हो गई और उसका ज्येष्ठ पुत्र राज्यवर्धन थानेश्वर के सिंहासन पर बैठा। सिंहासन पर बैठते ही उसे सूचना मिली की मालवा नरेश देवगुप्त ने उसके बहनोई गृहवर्मन की हत्या करके उसकी बहन को कारगार मे डाल दिया है। यह समाचार सुनते है राज्यवर्धन ने शत्रु पर चढ़ाई कर दी। युद्ध मे राज्यवर्धन की विजय हुई परन्तु गौड़ राजा शशांक ने उसके साथ षड्यंत्र करके उसकी हत्या कर दी। उसने कन्नौज पर आधिपत्य कर लिया, परन्तु राज्यश्री जंगलो मे भाग गई। 

राज्यवर्धन की हत्या के बाद हर्षवर्धन एक मात्र थानेश्वर का उत्तराधिकारी था। उस समय उसकी आयु 16 बर्ष की थी। वह अस्त्र शस्त्र विद्या मे निपुण था। हर्षवर्धन ने गद्दी पर बैठते ही दो महत्वपूर्ण कार्य करने का निश्चय किया। पहला अपनी बहिन को ढूँढना, और दूसरा अपने भाई के हत्यारे शशांक को दण्ड देना। हर्ष ने अपनी बहन को चितारोहण के समय ढूंढ़ लिया। हर्षवर्धन के भय से शशांक ने कन्नौज छोड़ दिया। चूँकि गृहवर्धन की कोई सन्तान नही थी इसलिए मन्त्रियों ने हर्ष को कन्नौज का सिंहासन सम्हालने का निवेदन किया। हर्ष ने कन्नौज का राज्य सम्हाल लिया इस तरह वह थानेश्वर तथा कन्नौज का शासक बन गया। 

हर्षवर्धन की उपाधियां या विजय 

1. हर्ष के सैनिक अभियान 

हर्ष ने अपना प्रथम सैनिक अभियान शशांक के विरूद्ध किया। उसने कामरूप के शासक " भास्कर वर्मा से संधि " कर ली और शशांक पर आक्रमण कर दिया। लेकिन हर्षवर्धन को सफलता नही मिली और शशांक की शक्ति पूर्ववत बनी रही। शशांक की मृत्यु के बाद हर्षवर्धन ने बंगाल पर पुनः आक्रमण किया और मगध तथा उड़ी पर अपना अधिकार स्थापित किया। 

2. वल्लभी विजय 

हर्ष मालवा को पार करता हुआ वल्लभी (गुजरात) तक पहुँचा। मैत्रिक वंश काठियावाड़ मे शासन कर रहा था। वल्लभी इसकी राजधानी थी। सैनिक दृष्टि से इसका बहुत महत्व था। वल्लभी का राजा धुव्रसेन था। हर्षवर्धन ने वल्लभी पर आक्रमण कर धुव्रसेन को पराजित किया। परन्तु हर्ष से उसकी मैत्री हो गई। हर्षवर्धन ने ध्रुवसेन से प्रभावित होकर अपनी कन्या का विवाह उसके साथ कर दिया।

3. चालुक्य साम्राज्य पर आक्रमण 

वल्लभी युद्ध के बाद हर्ष दक्षिण की ओर बढ़ा। चालुक्य वंश महाराष्ट्र मे राज्य कर रहा था। पुलेकेशिन इस राज्य का प्रतापी शासक था। चीनी यात्री के अनुसार हर्षवर्धन ने दक्षिणापथ पर अनेक बार आक्रमण किया परन्तु वह सफल ना हो सका। इस बार हर्षवर्धन ने पुलकेशी पर आक्रमण करने के लिए पंच प्रदेशों से सेनाएँ एकत्र की और सर्वश्रेष्ठ सेनापतियों को साथ लेकर स्वयं दक्षिणाथ पर आक्रमण किया, परन्तु वह असफल रहा। यह युद्ध 620 ई. के आसपास हुआ था। पुलकेशी इस युद्ध मे विजयी हुआ और उसने " परमेश्वर " की उपाधि धारण की। इस तरह हर्षवर्धन को निराश होकर वापिस लौटना पड़ा।

4.पूर्वी विजय 

हर्षवर्धन को पूर्वी विजय यात्रा मे सफलता मिली। 641 ई. मे उसने मगध के राजा की उपाधि धारण की। कामरूप राजा से मैत्री की। नालंदा के निकट उसने 100 फूट ऊंचा विहार बनवाया। नालन्दा मे हर्ष की मूहरे मिलती है। 

5. उड़ीसा विजय 

हर्षवर्धन ने अन्तिम आक्रमण उड़ीसा के गंजाम पर किया। वहां के राजा ने अधीनता स्वीकार कर ली।

हर्षवर्धन का साम्राज्य विस्तार 

अपने अनेक युद्धों तथा विजयो से हर्ष ने एक बड़े साम्राज्य की स्थापना की थी। डाॅ. राजबली पाण्डेय के अनुसार, " हर्षवर्धन का विशाल साम्राज्य का विस्तार, राजस्थान, वर्तमान उत्तरप्रदेश, पूर्वी पंजाब, बिहार, बंगाल और उड़ीसा तक था। दिग्विजय के समय हर्षवर्धन की शक्ति और प्रभाव से समीप के अनेक राजाओं ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी। साम्राज्य मे पैतृक राज्य, अधीन राज्य एवं अधीन मित्र भी सम्मिलित थे। मोटे तौर पर हर्षवर्धन के साम्राज्य का विस्तार उत्तरप्रदेश मे कश्मीर और नेपाल से लेकर दक्षिण मे नर्मदा और महेन्द्र पर्वत (उड़ीसा) तक था।

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