समुद्रगुप्त के दो पुत्र रामगुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय थे। समुद्रगुप्त ने यद्यपि चन्द्रगुप्त की नियुक्ति उसकी योग्यता को देखकर की थी परन्तु रामगुप्त सम्भवतः ज्येष्ठता के आधार पर सम्राट बना और चन्द्रगुप्त ने भी रामगुप्त के प्रति सद्भावना के कारण स्वीकार किया परन्तु शक राजा से पराजय और अपमानजनक संधि के बाद चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) सम्राट बना।
डाॅ. वी. एस. भार्गव ने लिखा है " जिस समय चन्द्रगुप्त द्वितीय सिंहासन पर बैठा उस समय भारत के विभिन्न राज्यों की शक्ति क्षीण हो चुकी थी। समुद्रगुप्त ने उसका दमन कर दिया था। समुद्रगुप्त की मृत्यु के बाद रामगुप्त जैसा कायर शासक सिंहासन पर बैठा। ऐसी परिस्थिति मे चारो ओर विद्रोह हो सकता था, लेकिन समुद्रगुप्त की विजयो का आतंक ताजा होने से ऐसा नही हुआ। केवल शकों ने ही विद्रोह किया। ऐसी परिस्थिति मे चन्द्रगुप्त ने युद्ध तथा वैवाहिक सम्बन्ध दोनो तरह से अपनी स्थिति को सुदृढ़ किया।
विक्रमादित्य (चन्द्रगुप्त द्वितीय) की उपलब्धियां या विजय
भारतीय इतिहास मे चद्रंगुप्त विक्रमादित्य का स्थान और महत्व सर्वाधिक है। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य एक कुशल राजनीतातिज्ञ, विजेता, पराक्रमी तथा मानव का पारखी था। वह अपने पिता की तरह ही वीर और चतुर्थ था। मजूमदार, फाह्रान के अनुसार गुप्तकाल के सभी राजाओं की तुलना मे चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का काल सबसे अधिक सुख, शांति, समृध्द व्यापार, उन्नत कृषि, साहित्य, कला विज्ञान का बहुत अधिक विकास हुआ। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य या चन्द्रगुप्त द्वितीय की उपलब्धियां या विजय इस प्रकार है--
1. शकों का दमन
चन्द्रगुप्त के काल की सार्वनिक महत्वपूर्ण घटना शको की पराजय थी। सर्वप्रथम तो चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) ने ध्रुवदेवी और साम्राज्य की रक्षा के लिये स्त्री वेश मे जाकर शक राजा का वध किया। इसके पश्चात जब वह सम्राट बना तो उसने भारत के अन्य भागो को जीता परन्तु मालवा मे, गुजरात और सौराष्ट्र के शक अभी भी सम्राज्य और भारत विरोधी गतिविधियों मे लिप्त थे। अतः वाकाटक राज्य की मदद से 389 से 412 ई. तक शकों को पराजित किया तथा इन प्रदेशो को साम्राज्य मे शामिल कर लिया। सम्भवतः अन्तिम शक राजा रूद्रसिंह तृतीय युद्ध मे मारा गया। इसके बाद चन्द्रगुप्त द्वितीय ने "शकारि" " विक्रमांक" और विक्रमादित्य की उपाधियाँ धारण की।
शको पर विजय इतनी महत्व कि थी की भारत से विदेशी शक्ति और गुलामीम को समूल उखाड़ फेंका गया। शको के आक्रमण का भय समाप्त होने से चन्द्रगुप्त द्वितीय या विक्रमादित्य की शक्ति, प्रतिष्ठा, प्रतिभा, सेनापतित्व मे जन विश्वास बढ़ा तथा यह लोकप्रियता विभिन्न राज्यों मे इतनी अधिक थी कि विद्रोही प्रकृति के राजओं को विद्रोह करने मे जनता की शक्ति का भय लगने लगा तथा वे शांत हो गये। एक बार पुनः भारत की राजनीतिक सीमाये हिन्दुकुश पर्वत तक पहुँच गई।
2. गणराज्यों पर विजय
भारत के पश्चिमोत्तर भाग के कुषाण और अवन्ति के राज्यो तथा गुप्त साम्राज्य के बीच मे कुछ छोटे-छोटे गणराज्यों की एक श्रृंखला थी। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के काल मे इमने से कुछ गणतंत्र अराजकता के शिकार और परस्पर वैमनस्य के कारण संघर्षरत भी थे। ये गणराज्य स्वतंत्रता तो चाहते थे, लेकिन किसी विदेशी आक्रमण का सामना करने मे असमर्थ थे। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने अपने साम्राज्य की सीमाओं को मजबूत बनाने के लिए इन्हें अपने साम्राज्य मे मिला लिया और शेष पूर्ववत् मित्र स्थिति मे बने रहे।
3. अवन्ति के क्षत्रपों का विनाश
मध्यभारत के गणराज्यों को उन्मूलित करने के बाद वह आगे बढ़ा और अवन्ति के क्षत्रपों का नाश किया। रूद्रसिंह तृतीय अन्तिम क्षत्रप था, जिसका वध चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने किया। यह घटना सम्भवतः 395 और 400 ई. के बीच की है।
4. पूर्वी प्रदेश
मेहरौली लेख मे पूर्वी प्रदेशों के संघ का संकेत मिलता है। इसका नेता बंगाल का राजा था। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने इस संघ को तोड़कर इनके प्रदेशों पर अधिकार करने मे सफलता प्राप्त की। इससे चन्द्रगुप्त को " ताम्ब्रलिप्ति " बन्दरगाह मिल गया।
5. दक्षिण पथ
दक्षिण पथ के राज्यों के सम्बन्ध मे मेहरौली लेख इतना ही कहता है कि " चन्द्र " के प्रताप से दक्षिणी सागर सुगन्धित हो उठा। इतिहासकार इसका अर्थ दक्षिणा पथ की विजय नही मानते है तथा अन्य प्रमाण और साहित्य भी इनका उल्लेख नही करते। अतः दक्षिणा पथ समुद्रगुप्त के काल की स्थिति (प्रभाव क्षेत्र) मे था।
6. अश्वमेघ यज्ञ
समुद्रगुप्त के समान चन्द्रगुप्त द्वितीय ने भी अश्वमेघ यज्ञ किया था। नगवा और काशी के निकट अश्वमूर्ति तथा उसके नीचे " चन्द्रगुप्त " अंकित होने से इसका संकेत मिलता है। कुछ लोग इसमे सन्देश व्यक्त करते है।
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का साम्राज्य विस्तार
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने अपनी विजयों के द्वारा गुप्त साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया था। उसके द्वारा गुप्त साम्राज्य की सीमाये एक तरफ हिमालय से दक्षिण मे नर्मदा नदी को स्पर्श करती थी, दूसरी पूर्व मे बंगाल से लेकर पश्चिम मे गुजरात और कठियावाड़ को स्पर्श करती थी। इस तरह उसके साम्राज्य मे सम्पूर्ण बंगाल, बिहार उत्तरप्रदेश, पंजाब, मध्यप्रदेश के कुछ भाग, मध्यभारत, गुजरात और काठियावाड़ सम्मिलित थे।
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चंद्रगुप्त द्वितीय की उपलब्धियां का वर्णन
जवाब देंहटाएंHarveer
जवाब देंहटाएंHarveer
जवाब देंहटाएंChandragupt ki Jay Vikramaditya ki uplabdhiyon ka varnan Karen
हटाएं473331
जवाब देंहटाएंBukramadit dutiy ki uplabdhiya
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