7/29/2022

अन्तर्राष्ट्रीय संगठन क्या हैं? प्रकृति एवं विकास

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अन्तर्राष्ट्रीय संगठन क्या हैं? (antarrashtriya sangathan kya hai)

अन्तर्राष्ट्रीय संगठन शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग करने का श्रेय स्काटलैंड के प्रमुख विधि वेत्ता जेम्स लोरिमर को हैं। उन्होंने इस शब्द का प्रयोग 18 मई, 1857 को अपने एक भाषण में किया था। वस्तुतः अन्तर्राष्ट्रीय संगठन स्वतंत्र राज्यों का संगठन हैं जिसकी स्थापना अन्तर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा एवं सहयोग के उद्देश्‍य से की जाती हैं। यह एक ढीला-ढाला संगठन होता हैं क्योंकि राज्य इसमें सम्मिलित होने पर भी अपनी प्रभुसत्ता को खोना पसंद नहीं करता। 

अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की कतिपय परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-- 

चार्ल्स लर्च के अनुसार," कुछ सामान्य उद्देश्यों के लिए संगठित किये गये राष्ट्रों के औपचारिक समूह अन्तर्राष्ट्रीय संगठन कहे जा सकते हैं। स्वरूप की भिन्नता के बावजूद उनका उद्देश्य समान प्रेरक तत्वों से होता है और उनके दर्शन तथा संगठन में महत्वपूर्ण समानता होती हैं।" 

आर्गेन्सकी के शब्दों में," अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना तब होती है जब कुछ राष्ट्र एकत्र होते हैं उनमें से प्रत्येक यह अनुभव करता है कि एक औपचारिक संगठन के क्रियाशील होने से उनको लाभ होगा।" 

उपरोक्त अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि अन्तर्राष्ट्रीय संगठन सम्प्रभुता प्राप्‍त राज्यों का एक ऐसा संगठन है जो राष्ट्रों की स्वेच्छा से निर्मित होता हैं। इस संगठन का उद्देश्य विश्व-शांति स्थापित करना होता हैं। 

अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की प्रकृति (antarrashtriya sangathan ki prakriti)

अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग, विश्वशान्ति एक-दूसरे राष्ट्र के आन्तरिक मामलों में अहस्तक्षेप, मैत्रीपूर्ण संबंध, स्वतंत्रता, समानता, न्याय और सुरक्षा ये कुछ ऐसे तत्व हैं जिनका अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के विधानों में खुलकर प्रयोग होता हैं, जिससे संगठन को विश्व के अधिकतम राष्ट्रों का समर्थन और सहयोग प्राप्‍त हो सके। अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के निर्माण के कारण ही आज यह संभव हो सका हैं कि एक राज्य द्वारा शक्ति के बल पर दूसरे राज्य पर अधिकार करना कठिन हैं। यह आवश्यक नहीं हैं कि विश्व के सभी राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के सदस्य हों, लेकिन महाशक्तियों की सदस्यता से विहीन अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की कल्पना कोरी कागजी कार्यवाही ही होगी, क्योंकि महाशक्तियों में, एक दूसरे के मौलिक उद्देश्यों, हितों तथा उत्तरदायित्वों में एक स्थायी पारस्परिक समझौते के अभाव में, शांति की रक्षा के लिए सभी संगठन कागज की ही सृष्टि माने जा सकते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का विकास (antarrashtriya sangathan ka vikash)

अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का विचार केवल आधुनिक युग की ही उपज नहीं हैं। 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना आज से पाँच हजार वर्ष पुरानी भावना हैं। तेरहवीं शताब्दी में इटली के महान् विद्वान एवं दार्शनिक दांते ने न्याय पर आधारित अन्तर्राष्ट्रीय संगठन का विचार प्रस्तुत किया था। सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना के साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय राज्य व्यवस्था की कल्पना को आधुनिक स्वरूप मिला। फ्रांस की राज्य क्रान्ति ने निरंकुश राज्य तत्व के विरूद्ध व्यक्तिवाद और प्रजातंत्र तथा स्वतंत्रता, समानता का संदेश दिया। प्रसिद्ध दार्शनिक रूसो, बेन्थम और कांट आदि ने अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के विचार को अपना समर्थन प्रदान किया। 

फ्रांसीसी क्रांति के बाद विश्व राज्य या कम से कम योरोपियन राज्य की स्थापना को बल मिला। 1815 में वियना में सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें यूरोप के सभी प्रमुख राष्ट्रों ने भाग लिया। यूरोप में इतना विशाल अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन प्रथम बार आयोजित किया गया था। कांग्रेस के रूप में एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था का निर्माण किया गया। अनेक क्षेत्रीय व्यवस्थायें की गयीं तथा संधियाँ और समझौते किये गए। 

कन्सर्ट ऑफ यूरोप 

यह राजनीतिक शक्ति के रूप में एक महत्‍वपूर्ण कदम था। झागड़ों को शांत करने के लिये अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन भी हुए। जेनेवा में शांति प्रासाद भी स्थापित किया गया। ब्रायन कन्वेंशन के निर्णय प्रचारित किये गये। इस निर्णय के अनुसार युद्ध करने से पहले प्रत्‍येक देश को छः मास की शान्ति धारण करने का समय दिया जाता था। इसी प्रकार पूर्वी प्रश्न हेग सम्मेलन हुए जिनमें अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटाने का प्रबल समर्थन किया गया। हेग सम्मेलन अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर ठोस पग था। अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के विकास की दिशा में इन सम्मेलनों का महत्वपूर्ण स्थान हैं।

अराजनैतिक संगठन 

इसी युग में ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की स्थापना की भी आरम्भना हुई जो राजनीतिक नही थे। 

1856 में 'इन्टरनेशनल टेलीग्राफ यूनियन' तथा 1874 में 'यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन' की स्थापना हुई। 1863 में विश्व की पीड़ित तथा दुःखी मानवता की सेवा के लिए स्थापित अन्तर्राष्ट्रीय रेडक्रास की स्थापना इस दिशा में मील का एक पत्थर था। इसका हेडक् र्वाटर जिनेवा में बनाया गया। इस संगठन का इतिहास स्वर्णाक्षरों में अंकित किया जाने वाला इतिहास हैं, गैर-सरकारी संगठन होते हुए भी इस संगठन ने अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय की अन्यतम सेवायें की। इसी प्रकार कापीराइट, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, ट्रेडमार्क, कृषि और खाद्य तथा स्वास्थ्य पर अराजनीतिक, संगठन बनाये गये जो द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के बाद उसके तत्वावधान और नेतृत्‍व में कार्य करने लगे। न्याय के क्षेत्र में 'इन्स्टीट्यूट ऑफ इन्टरनेशनल लाॅ' व 'इन्टरनेशनल लाॅ एसोसियेशन' की स्थापना से अन्तर्राष्ट्रीय कानून को वर्तमान स्वरूप मिला।

राष्ट्र संघ 

प्रथम युद्ध से पूर्व सन् 1907 में हेग नगर में शान्ति सम्मेलन सम्पन्न हुआ था। इस सम्मेलन को 'मानव जाति की संसद' की संज्ञा दी गई थी। इस सम्मेलन में युद्ध के कारणों का विश्लेषण किया गया और शांति स्थापना के उपायों पर विचार किया गया किन्तु सम्मेलन का व्यवहारिक दृष्टि से सफल परिणाम न निकल सका। सन् 1914 ई. में प्रथम महायुद्ध प्रारंभ हो गया तथा संपूर्ण विश्व उसकी लपेट में आ गया। 8 जनवरी 1918 ई. को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति विल्सन ने जिन 14 शर्तों को प्रचारित किया उनमें एक शर्त यह भी थी कि महायुद्ध समाप्त हो जाने पर एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना की जाये। इस अन्तर्राष्ट्रीय संगठन में, जिसके निर्माता स्वयं राष्ट्रपति विल्सन थे, प्रत्येक राज्य की स्वतंत्रता व क्षेत्रीय अधिकार की गारंटी की बात थी। लीग के विधान पर उस समय 62 में से 31 देशों ने हस्ताक्षर किये। कुछ समय पश्चात चीन ने भी इस पर हस्ताक्षर कर दिए। 20 जनवरी 1920 ई. को राष्ट्र संघ का औपचारिक उद्घाटन किया गया। राष्ट्र संघ द्वितीय महायुद्ध की भीषण लपटों में जल कर खाक हो गया, किन्तु इसकी नींव पर एक नवीन आशा और उमंग लिये 'संयुक्त राष्ट्र संघ' के नाम से एक नवीन विश्व संगठन का विशाल भवन निर्मित हुआ, आज विश्व मंच पर जिसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता।

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