साम्राज्यवाद के उद्देश्य (samrajyavad ke uddeshya)
साम्राज्यवाद के निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं--
1. राजनीतिक उद्देश्य
साम्राज्यवादी देश अपने प्रभाव विस्तार के लिये शक्ति-संघर्ष में लिप्त रहते हैं। शीत-युद्ध इसी का परिणाम हैं।
2. आर्थिक उद्देश्य
इसका उद्देश्य दूसरे देशों का आर्थिक शोषण कर अपने देश को समृद्ध बनाना हैं। इसका उद्देश्य औद्योगीकरण के फलस्वरूप बढ़े अपने अतिरिक्त उत्पादन को खपाना भी हैं।
3. नैतिक व धार्मिक उद्देश्य
यूरोपीय गोरी साम्राज्यवादी ताकतों ने अपने साम्राज्यवाद के समर्थन में यह तर्क दिया कि काली और भूरी जतियाँ कम विकसित या अविकसित हैं अतः मानवता की दृष्टि से उन पर बोझ है इनका विकास, भरण-पोषण और इनको सभ्य बनाना हमारा कर्तव्य हैं। धर्म विस्तार या प्रसार के लिये साम्राज्यवादी उद्देश्य बहुत पुराना हैं।
4. मनोवैज्ञानिक कारण
साम्राज्यवाद का परोक्ष लाभ साम्राज्यवादी देश की पूरी जनता को कुछ न कुछ दिया जाता है इसलिए साम्राज्यवादी देश के गरीब व मजदूर भी मनोवैज्ञानिक कारणों से इसका समर्थन करते हैं।
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साम्राज्यवाद के विकास के कारण/सहायक तत्व
साम्राज्यवाद के विकास के निम्नलिखित कारण हैं--
1. आर्थिक कारण
आर्थिक आवश्यकताओं ने साम्राज्यवाद के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। यदि औद्योगिक देशों का अन्य देशों पर अधिकार रहे तो उन्हें वहाँ से कच्चा माल खरीदने तथा तैयार माल बेचने की सुविधा रहती है। उपनिवेशों में पूँजी लगाकर आर्थिक लाभ कमाया जा सकता हैं।
2. राष्ट्रवाद
साम्राज्यवाद के विकास में राष्ट्रवाद का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं। राष्ट्रवादियों का यह तर्क हैं कि एक राष्ट्र का कर्तव्य सभ्यता का प्रसार करना हैं। श्रेष्ठ जाति का यह कर्तव्य है कि वह बर्बर जातियों की रक्षा करे और उन पर नियंत्रण रखें।
3. धार्मिक कारण
17वीं शताब्दी में धर्म प्रचार साम्राज्यवाद का महत्वपूर्ण कारण था। भूतपूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति कूलिज ने कहा था," जो सेनाएं अमेरिका बाहर भेजता हैं, वे तलवार की बजाय क्रास से लैस होकर जाती हैं।"
4. शक्ति तथा प्रतिष्ठा
एक साम्राज्यवादी राज्य के लिए उपनिवेशों का स्वामित्व हमेशा अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों में शक्ति और प्रतिष्ठा का स्त्रोत रहा है। मूसोलिनी ने कहा था कि," फासीवादी राज्य, शक्ति तथा साम्राज्य की इच्छा हैं। रोम निवासियों की परम्परा, बल पर विश्वास हैं। फासीवादी सिद्धांत में साम्राज्यशाही के विचार में केवल क्षेत्र, सेना तथा वाणिज्य विस्तार ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक तथा नैतिक विस्तार भी शामिल हैं।"
मुसोलिनी ने पुनः कहा कि फासीवाद के लिए," साम्राज्यशाही विचार की प्रवृत्ति का अर्थ राष्ट्र का विस्तार तथा पराक्रम की अभिव्यक्ति हैं।"
इसी प्रकार अंग्रेजों के लिए यह प्रतिष्ठा की बात थी कि," ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता।"
5. मानवीय कारण
श्वेत जातियों की यह मान्यता थी कि भगवान ने उन्हें यह पवित्र तथा नैतिक कर्तव्य सौंपा हैं कि वे अपने धर्म तथा सभ्यता के वरदानों को पिछड़ी हुई जातियों तक पहुँचाएँ। श्वेत जातियों का यह भी कर्तव्य था कि वे अन्धकार में डूबी हुई एशिया, अफ्रीका की काली-पीली जातियों का उद्धार करें। इसे "श्वेत मनुष्य का कर्तव्य भार" कहा जाता हैं।
6. राष्ट्रीय सुरक्षा एवं प्रतिरक्षा के लिए सामरिक महत्व के स्थान प्राप्त करना
अनेक बार सुरक्षा की दृष्टि से सामरिक महत्व रखने वाले स्थानों को प्राप्त करना, अपने साम्राज्य में मिलाना साम्राज्यवादी देश आवश्यक मानते हैं।
7. अतिरिक्त जनसंख्या
अनेक बार साम्राज्यवादी देश अपनी बढ़ी हुई जनसंख्या के लिए निवास योग्य भूमि प्राप्त करने के लिए अन्य देशों पर अपना आधिपत्य स्थापित करते हैं। जापान और इटली ने इस तर्क का सर्वाधिक प्रयोग किया था। मुसोलिनी ने घोषणा की थी कि," इटली की अतिरिक्त जनसंख्या को बाहर बसने का अधिकार होना चाहिए।"
8. अपनी विचारधारा तथा सिद्धांतों के प्रसार की आकांक्षा
साम्राज्यवाद के प्रसार का एक प्रमुख कारण यह भी है कि साम्यवादी विचारधारा संपूर्ण विश्व में साम्यवादी विचारों का प्रसार करना चाहती हैं, जबकि अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देश लोकतंत्रीय विचारधारा का प्रसार करना चाहते हैं। अपनी विचारधारा के प्रसार के लिए वे साम्राज्यवाद का सहारा लेने में भी संकोच नहीं करते।
9. व्यक्तिगत आर्थिक लाभ
साम्राज्यवादी देशों की जनता को उससे बड़ा लाभ प्राप्त होता है। इसलिए वे उसका प्रबल समर्थन करते हैं। हाब्सन के अनुसार," पूँजीवाद देशों में नौकरशाही तथा शिक्षित वर्ग ने आक्रामक तथा प्रसारवादी नीति को अच्छा समझा क्योंकि इस नीति के परिणामस्वरूप प्राप्त किए गए उपनिवेशों में उनको तथा उनकी संतानों को पद, धन तथा प्रभुत्व का आश्वासन मिलता था।"
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