प्रश्न; अन्तरराष्ट्रीय राजनीति की परिभाषा दीजिए एवं उसके स्वरूप की विवेचना कीजिए।
अथवा" अन्तरराष्ट्रीय राजनीति का अर्थ समझाइए। इसकी प्रकृति की विवेचना कीजिए।
अथवा" अन्तरराष्ट्रीय राजनीति की विभिन्न परिभाषाएं दीजिए एवं अन्तरराष्ट्रीय राजनीति की प्रकृति की व्याख्या कीजिए।
अथवा" अन्तरराष्ट्रीय राजनीति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर--
antarrashtriya rajniti arth paribhasha prakriti;आधुनिक युग भूमण्डलीकरण या वैश्वीकरण का युग है। विश्व-ग्राम (Global Village) की संकल्पना आकार लेती नजर आ रही हैं। अतः इस युग को अन्तरराष्ट्रीयता का युग भी कहा जा सकता हैं। यातायात एवं संचार के साधनों में द्रुतगति से विकास हुआ हैं। सारा संसार सिमट गया हैं। राज्यों के बीच अन्तःक्रियाओं में वृद्धि हुई हैं। इसलिए वर्तमान युग के राजनीतिक पक्ष को अन्तरराष्ट्रीय राजनीति का युग कह सकते हैं। वस्तुतः द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त अन्तरराष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन एवं अन्वेषण में व्यापक प्रगति हुई हैं। अन्तरराष्ट्रीय राजनीति का ज्ञान अन्य शाखाओं में बिखरी हुई विषय-सामग्री के स्तर से एक स्वायत्त अथवा स्वतंत्र ज्ञान शाखा के रूप में व्यवस्थित होकर थोड़े समय में ही वैज्ञानिक अध्ययन की ओर अग्रसर होना उसकी महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं।
अन्तरराष्ट्रीय राजनीति का अर्थ (antarrashtriya kya hai)
अंतरराष्ट्रीय राजनीति उन सतत् प्रक्रियाओं का अध्ययन करती है, जिसके अंतर्गत विभिन्न राष्ट्र शक्ति के आधार पर अपने राष्ट्रीय हितों की प्राप्ति हेतु संघर्षरत रहते हैं। इस प्रकार इसे राष्ट्र राज्यों के बीच के ऐसे व्यवहार के रूप में समझा जा सकता है, जहां विभिन्न राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा तथा अपने शक्ति संवर्धन के लिए एक-दूसरे से अंतर्क्रिया करते हैं, जिससे वह अपने सभी संभावित लाभों की अधिकतम प्राप्ति कर सकें। इस संदर्भ में राष्ट्रीय हित, अंतरराष्ट्रीय राजनीति का प्रमुख लक्ष्य है; संघर्ष इसकी दिशा तय करता और शक्ति इसके लक्ष्य प्राप्ति का प्रमुख साधन है।
हॉफमैन के अनुसार," अंतरराष्ट्रीय राजनीति उन कारकों और गतिविधियों से संबंधित है, जो उन मूलभूत इकाइयों की बाह्य नीतियों और शक्तियों को प्रभावित करती है, जिनमें विश्व विभाजित है।
हार्टमैन अंतरराष्ट्रीय राजनीति को परिभाषित करते हुए कहते हैं की, " अंतरराष्ट्रीय राजनीति अध्ययन के एक विषय के रूप में उन प्रक्रियाओं पर आधारित है जिनसे एक राष्ट्र अन्य राष्ट्रों के सापेक्ष अपने राष्ट्रीय हित का निर्माण करते हैं।"
इस प्रकार अंतरराष्ट्रीय राजनीति राज्यों के बीच संबंधों अन्तक्रियाओं, शक्ति संघर्ष एवं राज्य की विदेश नीतियों से संबंधित है।
प्रायः अंतरराष्ट्रीय संबंध और अंतरराष्ट्रीय राजनीति को एक दूसरे के पूरक या पर्याय के रूप में उपयोग किया जाता है। कुछ विद्वानों ने तो यह माना है कि, अंतरराष्ट्रीय संबंध केवल अंतरराष्ट्रीय राजनीति का ही अध्ययन है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति के प्रसिद्ध विद्वान मार्गेथाऊ भी अंतरराष्ट्रीय राजनीति को अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मूल के रूप में परिभाषित करते हैं और उनके अनुसार," अंतरराष्ट्रीय राजनीति की मुख्य विषय-वस्तु संप्रभु देशों के बीच शक्ति के लिए संघर्ष है क्योंकि शक्ति ही वह साधन है जिसके माध्यम से राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देते हैं।"
किंतु वास्तव में अंतरराष्ट्रीय संबंध और अंतरराष्ट्रीय राजनीति दोनों में कुछ अंतर विद्यमान हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंध एक विस्तृत अवधारणा है जिसमें संप्रभु राज्यों के बीच के संबंधों के सभी आयामों-- आर्थिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक , राजनीतिक, कानूनी, सामाजिक एवं सांस्कृतिक को शामिल किया जाता है जबकि अंतरराष्ट्रीय राजनीति, अंतरराष्ट्रीय संबंध के केवल राजनीतिक पहलू का अध्ययन है, जो संप्रभु राज्यों की सरकारों के बीच संबंधों और संघर्ष पर ही अपना ध्यान केंद्रित करती है।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विद्वान पामर एवं पर्किन्स के अनुसार," अंतरराष्ट्रीय संबंध का क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय राजनीति की तुलना में अधिक विस्तृत है। अंतरराष्ट्रीय संबंध सिर्फ राज्यों और अन्य राजनीतिक इकाइयों के बीच संबंधों पर आधारित राजनीति से संबंधित नहीं बल्कि विश्व समुदाय के लोगों और समूहों के बीच संबंधों की समग्रता से है।"
इस प्रकार अंतरराष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय संबंधों की तुलना में थोड़ा संकीर्ण है।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति का अंतरराष्ट्रीय संबंधों के साथ एक महत्वपूर्ण अंतर ये भी है की अंतरराष्ट्रीय संबंध मुख्य रूप से राष्ट्रों के बीच के व्यवहार के शांतिपूर्ण पहलुओं और सहकारी क्षेत्रों पर अपना ध्यान केंद्रित करता है, जबकि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में शांतिपूर्ण तरीकों के कुछ पहलुओं को ही छोड़ दिया जाए तो इसका मूल शक्ति राजनीति संघर्षो और राष्ट्रीय हितों में ही निहित है। इसके अतिरिक्त दोनों की अध्ययन पद्धति में भी कुछ अंतर देखने को मिलता है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन के लिए प्रायः व्याख्यात्मक पद्धति का प्रयोग किया जाता है और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन में विश्लेषणात्मक पद्धति का उपयोग अधिक होता है।
हालांकि यह सच है की अंतरराष्ट्रीय राजनीति ने पारंपरिक रूप से युद्ध और शांति तथा अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है किन्तु हाल के वर्षों में कुछ अन्य मुद्दों जैसे अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था, गैर-राज्य अभिकर्ता और पर्यावरण इत्यादि ने अपना ध्यान आकर्षित किया है हालांकि यह सच है कि इस क्षेत्र ने पारंपरिक रूप से युद्ध और शांति के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे क्षेत्र, जैसे कि अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक अर्थव्यवस्था ने हाल के वर्षों में ध्यान आकर्षित किया है। इन पहलुओं में विशेषकर आर्थिक पहलु ने वैश्विक राजनीति को प्रभावित किया है। इस प्रभाव को अंतरराष्ट्रीय व्यवहार के विभिन्न पक्षों में देखा जा सकता है उदाहरण के लिए वैश्वीकरण, उदारीकरण की नीति, विभिन्न क्षेत्रीय आर्थिक। समूहों का गठन व शक्तिशाली राष्ट्रों के मध्य व्यापार युद्ध आदि।
अतः वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीय राजनीति ये दोनों ही पक्ष राजनीतिक और आर्थिक का अध्ययन महत्वपूर्ण है। इन्हें समझने के लिए न केवल अंतरराष्ट्रीय राजनीति की पृष्ठभूमि को समझा जाना जरूरी है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों और राजनीति के वास्तविक स्वरूप के बारे में भी विचार करने की आवश्यकता है।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की परिभाषा (antarrashtriya rajniti ki paribhasha)
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को परिभाषित करना आसान कार्य नही हैं। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की परिभाषा के संबंध में गंभीर मतभेद हैं। स्टेनले का मत हैं कि," विद्वान एक इस प्रकार के विषय (अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति) की परिभाषा पर किस प्रकार एकमत हो सकते हैं जिसका स्वरूप निरन्तर परिवर्तित होता रहता हो तथा परिवर्तन ही जिसकी प्रमुख विशेषता हैं। विभिन्न विद्वानों द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की कुछ परिभाषाएं निम्नलिखित हैं--
हैन्स मार्गेन्थो के अनुसार," राष्ट्रों के मध्य शक्ति के लिये संघर्ष, तथा उसका प्रयोग अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति कहलाता है।"
फेलिक्स ग्रास के अनुसार," अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति वास्तव में राष्ट्रों की विदेश नीति का अध्ययन ही है।
स्प्राउट के अनुसार, " स्वतंत्र राजनीति समुदायों, अर्थात राज्यों के अपने-अपने उद्देश्यों, अथवा हितों के आपसी विरोध प्रतिरोध या संघर्ष से उत्पन्न उनकी क्रिया प्रतिक्रियाओं और संबंधों का अध्ययन ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति है।
चार्ल्स श्लाइसर के अनुसार," अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में विभिन्न राज्यों, अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान तथा अधीन जनता के संपूर्ण संघर्ष संबंध समाविष्ट होते हैं।"
के. डबलू थामसन के अनुसार," राष्ट्रों के बीच छिड़ी प्रतिस्पर्द्धा के साथ साथ उनके पारस्परिक संबंधों को सुधारने या बिगाड़ने वाली परिस्थितियों और संस्थाओं के अध्ययन को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति कहते हैं।"
क्विन्सी राइट के अनुसार," अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति एक ऐसी कला है जिसके द्वारा कोई वर्ग-गुट अन्य बड़े गुटों को प्रभावित, छलयोजित अथवा नियंत्रित करके, विरोध के बावजूद अपने स्वार्थों की सिद्धि करता हैं।"
हार्टमैन के अनुसार," अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों से अभिप्राय उन प्रक्रियाओं के अध्ययन से है जिनके द्वारा राज्य अपने राष्ट्रीय हितों का सामंजस्य अन्य राज्यों के राष्ट्रीय हितों के साथ बैठाते हैं।"
बर्टन के अनुसार," अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में सामान्य बातों के अतिरिक्त सभी घटनायें और परिस्थितियां भी सम्मिलित हैं जिनका प्रभाव एक से अधिक राज्यों पर पड़ता है।"
थाम्पसन के शब्दों में," राष्टों के मध्य छिड़ी स्पर्धा के साथ-साथ उनके पास्परिक संबंधों को सुधारने अथवा बिगाड़ने वाली परिस्थितियों एवं संस्थाओं का अध्ययन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति कहलाता हैं।"
पैडलफोर्ड तथा लिंकन के अनुसार," अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति राजसत्ताओं के बदलते संबंधों के संदर्भ में राज्यों की नीतियों की अन्तःक्रिया हैं।"
पामर एवं पर्किस के शब्दों में," अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का संबंध मुख्य रूप से राज्य प्रणाली से हैं।"
इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि विद्वानों ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की परिभाषा अलग-अलग दृष्टिकोण से दी हैं। किसी ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को शक्ति संघर्ष के रूप में देखा हैं, किसी ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों के रूप में देखा, किसी ने विदेश नीति के रूप में। इन सभी दृष्टिकोण के समन्वित रूप में यह कहा जा सकता हैं," अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति विभिन्न राज्यों के बीच अपनी-अपनी नीति के आधार पर संचालित राजनीतिक अन्तःक्रियाओं का नाम हैं। यह वह प्रक्रिया हैं, जिसके द्वारा विभिन्न राज्य परस्पर संघर्ष मित्रता द्वारा अपने हितों की वृद्धि करते रहते हैं।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति की प्रकृति (antarrashtriya rajniti ki prakriti)
विभिन्न परिभाषाओं के आधार यह कहा जा सकता हैं कि विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के पारस्परिक सम्बन्धों की राजनीति ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति है। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में विभिन्न राष्ट्र अपने हित साधन के लिये आपसी संबंधों में संघर्ष की जिस स्थिति में रहते हैं उसी का अध्ययन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में तीन आवश्यक तत्व होते हैं--
1. राष्ट्रीय हित
2. संघर्ष और
3. शक्ति।
राष्ट्रीय हित उद्देश्य हैं, संघर्ष स्थिति विशेष है, और शक्ति उद्देश्य प्राप्ति का साधन हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में संघर्ष का विशेष महत्व है। अन्तर्राष्ट्रीय समाज में संघर्ष की स्थिति बनी ही रहती हैं, अतः शक्ति के माध्यम से सामन्जस्य की प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है। संघर्ष की निरंतर उपस्थिति का मतलब यह नहीं है कि संसार के देश हमेशा एक दूसरे से टकराव रखते हैं । जिन देशों के हित समान होते हैं उनमें सहयोग भी होता है। दूसरे शब्दों में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में संघर्ष और सहयोग दोनों ही शामिल हैं। सहयोग भी देखा जाय तो अंतिम रूप से संघर्ष का ही परिणाम है क्योंकि--
1. जिन देशों के हित परस्पर समान होते हैं वे आपस में सहयोग इसलिये करते हैं कि दूसरे राष्ट्रों के संघर्ष पर विजय पा सके, और
2. सहयोग की आशंका इसलिये की जाती है क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध स्वभावतः संघर्षपूर्ण होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति अन्य किसी भी राजनीति की तरह एक निरंतर क्रिया है ऐसी क्रिया जिसमें संघर्ष के केन्द्रीय स्थान प्राप्त हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति एक स्वतंत्र विषय के रूप में
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध को एक स्वतंत्र शास्त्र माना जा सकता है अथवा नहीं इस सम्बन्ध में काफी मतभेद रहे हैं। कुछ विद्वान इसे इतिहास का एक विशिष्ट विषय मानते हैं क्योंकि इस विषय का जन्म इतिहास के भिक्षु के रूप में हुआ है। वेल्स युनिवर्सिटी के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध के पहले प्रोफेसर अल्फ्रेड जिमेर्न एक प्रसिद्ध इतिहासज्ञ थे। इसी प्रकार अनेक विद्वान इसे राजनीति शास्त्र के व्यापक विज्ञान का एक स्वायत्त क्षेत्र मानते हैं।
जो विद्वान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को एक स्वतंत्र विषय मानते हैं उनमें से प्रमुख हैं-- ए. डबलू मैनिंग, क्विन्सी राइट, हाफसन। ए. डबलू . मैनिंग का प्रमुख तर्क यह है कि," अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति एक वृहत विषय तथा विशाल सामाजिक विश्व का अंग है।" इस सम्बन्ध में वो तीन बातें कहते हैं--
1. सामाजिक विश्व के अन्तर्गत सम्पूर्ण संसार में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का एक जाल है, अतः अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का स्वतंत्र अध्ययन जरूरी है।
2. इसके लिये एक सर्वव्यापी दृष्टिकोण जरूरी है और यह दृष्टिकोण तब तक सफल नहीं होगा जब तक कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को हम एक स्वतंत्र विषय न मान लें। अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंच पर बहुत सारी घटनायें घटित होती हैं उन्हें समझने तथा सही संदर्भ में परखने तथा उनकी दिशाओं को जानने का यही सबसे अच्छा तरीका है।
3. यदि हम अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की घटनाओं के सही स्वरूप को न समझ सकें, तथा समस्याओं के समाधान की दिशा में समुचित रूप से विचार न कर सकें, तो इसके अध्ययन का कोई लाभ नहीं होगा।
क्विन्सी राइट के अनुसार," अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का विषय आज दूसरे विभिन्न विषयों से लाभ उठाकर समन्वय का ढंग अपनाते हुए लगातार विकास की ओर बढ़ रहा है।"
हाफसन यह प्रतिस्थापित करना चाहते हैं कि हम राज्यों के आन्तरिक मामलों का विवेकपूर्ण अध्ययन तभी कर सकते हैं जब उनकी बाह्य क्रियाओं का विशद, गहन और समुचित अध्ययन करें। स्पष्ट है कि इस अर्थ में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति एक स्वतंत्र विषय के रूप में उतना ही मान्य है जितना कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति शास्त्र में।
कैपर जानसन ने लिखा है कि," अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को हम इतिहास अथवा राजनीति शास्त्र का अंग नहीं मान सकते क्योंकि इसका क्षेत्र उनसे कहीं अधिक व्यापक है अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति शास्त्र जो सामग्री इकट्ठी करता है वह दूसरे शास्त्रों की सामग्री से भिन्न है। अतः सामाजिक विज्ञान में उसे एक स्वतंत्र शास्त्र मानना न्याय संगत है।
पी डी मर्चेन्ट, राबर्ट लारिंग, कैप्लान, जार्ज केनन आदि विद्वान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को एक स्वतंत्र विषय के रूप में मान्यता देने को तैयार नहीं हैं। विरोध में निम्नलिखित तर्क दिया गया है--
1. पहला तर्क यह दिया जाता है कि किसी भी शास्त्र के लिये तीन बातों का होना आवश्यक है निश्चित अध्ययन सामग्री, स्पष्ट गवेषणा पद्धति और सर्वमान्य सिद्धान्त का विकास परंतु अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का विषय इस कसौटी पर खरा नहीं उतरता।
2. दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का मुख्य कार्य राज्यों के पारस्परिक व्यवहारों और उनके प्रेरक तथ्यों का पूरा अध्ययन करना है, और यह अध्ययन वह स्वतंत्र रूप से नहीं कर सकता, अपितु उसे राजनीति शास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र , अर्थशास्त्र , इतिहास , भूगोल आदि पर निर्भर रहना पड़ता है। इस स्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को एक स्वतंत्र दर्जा देना ठीक नहीं है। कैप्लान इसे राजनीति शास्त्र अथवा राजनीति शास्त्र के विकास के रूप में मानना चाहता है।
दोनो पक्षों के तर्कों की व्याख्या के उपरान्त निष्कर्ष में हम यह कह सकते हैं--
1. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की अध्ययन सामग्री लगातार बढ़ रही है और इसका स्वरूप इतना जटिल तथा विशिष्ट बनता जा रहा है कि यह विषय किसी अन्य शास्त्र जैसे राजनीति शास्त्र, इतिहास, अन्तर्राष्ट्रीय कानून या अर्थशास्त्र के अन्तर्गत नहीं रह सकता।
2. आज भले ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के स्वतंत्र रूप पर संदेह किया जाये, लेकिन कल ऐसा नहीं रहेगा। अब अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन के लिये सिद्धान्तों का विवेचन होने लगा है। 1947 में प्रकाशित Politics Among Nations में मार्गेन्थो ने पहली बार एक व्यवस्थित सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जो यथार्थवादी कहलाता है। विभिन्न राज्यों में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन के लिए पृथक विभागों की स्थापना की गई है। विकासशील देश तक इस दिशा में आगे बढ़ चुके हैं। उदाहरण के लिये भारत Indian School of International Studies इसको एक स्वतंत्र विषय के रूप में मान्यता दिलाने की ओर एक साहसिक कदम है।
नामकरण की समस्या
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के विषय को व्यक्त करने के लिये अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध अन्तर्राष्ट्रीय मामले तथा विश्व राजनीति आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है। बहुधा इन शब्दों का प्रयोग यर्थाथवादीरूप में किया जाता है जो कि गलत है।
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध में काफी व्यापकता पाई जाती है। उसके अन्तर्गत राष्ट्रों के आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, कानूनी राजनीतिक खोज एवं अन्वेषण सम्बन्धी, और इसी प्रकार के सभी सम्बन्ध आ जाते हैं। इन शब्दों से वास्तव में विविध राष्ट्रों के सम्पर्क सहयोग, क्रिया-प्रतिक्रिया का बोध होता है। यह शब्द अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सरकारी और निजी दोनों ही अन्तर्राष्ट्रीय क्रियाओं की विस्तृत विविधताओं की ओर संकेत करते हैं। इसके विपरीत अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति शब्दावली मुख्यतः राज्यों के राजनीतिक संबंधों तक सीमित है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध से इस प्रकार से हम देखते हैं व्यापक सम्बन्धों को बोध होता है जबकि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति से एक विशेष प्रकार का।
जान बर्टन का कहना है कि विश्व राजनीति के संबंध में हम जिन-जिन बातों का अध्ययन करते हैं उनके लिये अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध सही शब्दावली नहीं है। बर्टन के अनुसार यह शब्दावली केवल राज्यों के राजनीतिक सम्बन्धों को बताती है। इस लेखक का यह विश्वास है कि ऐसे अनेक गैर सरकारी सम्बन्ध और ऐसी बहुत सी गैर सरकारी संस्थायें होती हैं जिनके विश्वव्यापी महत्व को नकारा नहीं जा सकता। बर्टन का यह कहना ठीक ही है कि संसार के लोगों की विभिन्न समस्याओं की गहन जानकारी के लिये विभिन्न देशों के लोगों के सरकारी तथा गैर सरकारी दोनों प्रकार के संबंधों का अध्ययन आवश्यक है। पर बर्टन के इस मत को स्वीकार नहीं किया जा सकता कि अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध और विश्व समाज के सूचक हैं।
इस सम्बन्ध में दो प्रमुख कठिनाइयां हैं--
1. विश्व समाज को अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध के पर्याय के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। कारण यह है कि विश्व समाज शब्दावली से किसी विषय के अध्ययन के क्षेत्र का पता लग सकता है पर उसे स्वयं कोई अध्ययन का विषय नहीं माना जा सकता। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध की शब्दावली स्वयं में एक अध्ययन विषय की द्योतक है।
2. आज की बदलती हुई परिस्थितियों में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन क्षेत्र अत्यधिक व्यापक बनाने की जरूरत अन्तर्राष्ट्रीय नैतिकता का अर्थ, परिभाषा, नियमहै। तथा आवश्यकता इस बात की है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में उन तमाम बातों को शामिल करने का है जो हमारे परम्परागत अध्ययन में अब तक छूटी रही है।
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जवाब देंहटाएंAntrashtiye rajnitik ka shetr ka varynan chahiye
जवाब देंहटाएंMujhe es work bhi chahiye
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