5/15/2022

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाले तत्‍व

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प्रश्न; आधुनिक युग में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाले तत्‍वों का वर्णन कीजिए। 

अथवा" अंतरराष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाले तत्‍वों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर--

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाले तत्‍व 

antarrashtriya rajniti ko prabhavit karne wale tatva;अंतरराष्ट्रीय राजनीति एक गतिशील विषय हैं, जिसका स्वरूप निरन्तर बदलता जा रहा हैं। इस क्षेत्र के सिद्धांत प्रस्तुत करने हेतु जो प्रयास हुए हैं उनसे ऐसा लगता है कि नये सामान्य सिद्धांत मिल जायेंगे, जिससे इसको भली-भांति समझा जा सकेगा।

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डाॅ. महेन्द्रकुमार के विचार में," द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अन्तर्राष्ट्रीय अध्ययन का क्षेत्र अत्यधिक व्यापक हो गया है और इस अध्ययन की पद्धित में अब अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हो गये हैं। ये परिवर्तन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जीवन में कई तरह के नये तत्वों के अभियान के परिणाम से हुए हैं। इन सभी तत्वों में तकनीक का विकास प्रमुख स्थान रखते हैं।" 

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्‍व निम्नलिखित हैं-- 

1. अन्तर्राष्ट्रीय जगत में राष्ट्रों की संख्या में वृद्धि 

अंतरराष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाले तत्‍वों में से एक महत्वपूर्ण तत्‍व राज्यों की बढ़ती हुई संख्या हैं। द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद के शिकंजे से अनेकानेक राष्ट्र मुक्त हुए। स्वतंत्रताओं का एक सिलसिला सा प्रारंभ हो गया था। सन् 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ के केवल 51 सदस्य थे, जो सन् 2006 तक 192 सदस्य हो गये। इन नवोदित स्वतंत्र राष्ट्रों का उदय मात्र घटनाक्रम नहीं, बल्कि इनकी अनेक समस्याएं व राष्ट्रीय हित भी होते हैं। इन राज्यों को समझे बिना अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति नहीं समझी जा सकती। अतः यह कहा जा सकता हैं कि इन राज्यों के उदय से सचमुच ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का स्वरूपी अन्तर्राष्ट्रीय हो गया हैं।

2. विदेश नीति पर लोकतंत्र का प्रभाव 

पूर्व में राजतंत्रात्मक व्यवस्था में विदेश नीति निर्धारण का कार्य राजा के इर्द-गिर्द ही था, किन्तु बदलती परिस्थतियों के अनुसार लोकतंत्रात्मक व्यवस्थाओं में सत्ता जनता के हाथ में आ जाने से विदेश नीति पर चिंता करने वाला व प्रभावित करने वाला बड़ा वर्ग तैयार हो गया है।लोकमत का प्रभाव इस पर पड़ने लगा। लोकमत अपने विदेश विचार विभिन्न प्रचार-प्रसार साधनों से रखने लगा। कोई भी सरकार अपनी विदेश नीति के निर्धारण में जनमत की उपेक्षा नहीं कर सकती। ऐसे कई उदाहरण हैं कि जनमत के कारण कई निर्णय बदलने पड़े। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन का केंद्र बिन्दु विदेश नीत हैं और वह आज अधिक लोकतांत्रिक हो गई हैं। 

3. तकनीकी विकास का प्रभाव 

आधुनिक युग में तकनीक के तेजी से बढ़ते हुए प्रभाव के कारण आज के युग को तकनीकी युग कहा जा सकता हैं। तकनीकी विकास विज्ञान की उपज हैं। जब वैज्ञानिक आविष्कारों का प्रयोग व्यावहारिक प्रयोग में किया जाये तो तकनीक का जन्म होता हैं। इस तकनीक ने मानव को असीम शक्ति प्रदान कर दी हैं। हथियारों के बदलते हुए स्वरूप ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के स्वरूप को भी बदल डाला है। औद्योगिक क्रांति तकनीकी विकास के कारण हुई। इस क्रांति ने अर्थव्यवस्था व राजनीतिक व्यवस्था की शक्ल को ही बदल डाला हैं। इसने युद्ध व सैनिक संरचना को बदल दिया हैं। राष्ट्रों के सामर्थ्य में वृद्धि हुई हैं और अपने हितों की सिद्धि ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का सारा तत्‍व हैं। तकनीकी विकास को देखने से स्पष्ट है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को इसने गति प्रदान की हैं। इतनी गति जितनी कि पहले कभी नहीं थी तथा तकनीकी परिवर्तन की इस नयी प्रक्रिया का प्रभाव बहुत अधिक बुनियादी तौर पर हुआ हैं।

4. आधुनिक परमाणु हथियारों के निर्माण के प्रभाव 

आधुनिक प्रौद्योगिक तकनीकी आविष्कारों ने कई घातक व असीम शक्ति वाले परमाणु हथियारों का निर्माण कर लिया हैं जिससे दुनिया के सर्वनाश तक का खतरा पैदा हो गया है। आधुनिक यान, मिसाइलें, पनडुब्बियाँ दुनिया के किसी भी हिस्से में पहुंचकर उसे तबाह कर सकते हैं। इन सब बातों ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अनेक समस्याएं खड़ी कर दी हैं। मैक्स लर्नर आज के युग को अतिमारकता का युग कहते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के सही अध्ययन व विश्लेषण के लिए इन तथ्यों को ध्यान में रखना ही होगा। शक्ति प्रयोग व सैनिक शक्ति की महत्ता में और अधिक वृद्धि की गई। 

5. शांति के लिए बढ़ती चिंता का प्रभाव

ई.एच.कार का कहना है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की पृष्ठभूमि में युद्ध की छाया हमेशा घूमती रहती है। अमेरिका व रूस के पास इतनी परमाणु शक्ति है कि पूरी दुनिया को कई बार नष्ट किया जा सकता हैं। सर्वत्र भय छाया हुआ है। कोई भी आग की चिंगारी बारूद के ढ़ेर में आग लगा सकती हैं। इसलिए शांति के लिए चिंतित रहना स्वाभाविक है। तृतीय विश्व-युद्ध सृष्टि के सर्वविनाश को लेकर ही आयेगा, जिसमें न कोई विजित रहेगा न कोई पराजित। जान हर्स ने इस युग को परमाणु युग की अनिश्चितता का नाम दिया हैं, जिसके कारम अन्तर्राष्ट्रीय जगत की सारी तस्वीर और भी जटिल हो गयी हैं। द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद शांति के प्रयासों में तेजी आई हैं। विदेशी नीतियों में शांति पर ध्यान देना जरूरी है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का आज उदय 'युद्ध से कैसे बचा जाये व शांति कैसे कायम की जाये' हो गया हैं।

6. अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर यूरोपीय राजनीति के स्थान पर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का बढ़ता प्रभाव 

प्रथम विश्व युद्ध तक विश्व राजनीति पर यूरोपीय राजनीति छाई हुई थी। एशिया व अफ्रीका के इतिहास को यूरोपीय शक्तियों के मामले की शाखा मात्र समझ लिया जाता था। विश्व के अधिकांश देश यूरोपीय देशों के साम्राज्यवाद के हिस्से थे, किन्तु अब स्थिति बदली हैं। एशिया व अफ्रीका के अनेक देश स्वतंत्र हो गये तथा विश्व राजनीति में हिस्सा लेने लगे हैं। इस स्वतंत्र सक्रियता ने वास्तव में सक्रिय बनाकर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को सही रूप में अन्तर्राष्ट्रीय बना दिया हैं।

7. अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की बढ़ती महत्ता का प्रभाव 

अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की स्थापना का मूल आधार शांति की रक्षा हैं। यही संगठन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की चिंता के हल के संस्थात्मक साधन हैं। इन संगठनों के कारण राष्ट्रों की आचरण उच्छृंखलता पर बंदिश लगी हैं। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का बदला हुआ रूप अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति और अन्तर्राष्ट्रीय संगठन में परस्पर क्रिया कर रहा हैं। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का स्वरूप इन संगठनों से ही निर्धारित होता हैं। अन्तर्राष्ट्रीय संगठन स्वयं अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का केन्द्र बन गये हैं। युद्ध व शांति के मामलों में संयुक्त राष्ट्रसंघ व अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्देशों का पालन होने लगा हैं। 

8. युद्ध बदलतें स्वरूप का प्रभाव 

आधुनिक तकनीक, विज्ञान व परिस्थितियों ने आज युद्ध स्वरूप को ही बदल दिया है। अब युद्ध सर्वविनाशक साबित हो सकता हैं। अनेक समस्याएं सामने हैं, जो परमाणु युद्ध के भड़कने का खतरा पैदा करती हैं। ये समस्याएं युद्ध कार्यवाही से हल हो जाती, किन्तु आज युद्ध की पूर्व कल्पना ही उनके हल में बाधक बन गई हैं। इसलिए अब युद्ध के विकल्प को ढूंढने के प्रयास हो रहे हैं। 

9. व्यापरिक हितों का प्रभाव 

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर व्यापार व वाणिज्य का प्रभाव विशेष होने से व्यापारिक हित वाला तत्व अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के स्वरूप पर प्रभाव डालने वाला महत्वपूर्ण तत्‍व बन गया हैं। अधिकांश देश अपनी विदेश-नीति के निर्णय व्यापारिक हितों के अनुसार ही लेते हैं। मध्य पूर्व के तेल भंडारों के कारण ही अधिकांश देश अरब-इजराइल संघर्ष में अरबों का साथ देते हैं।

10. जनसंख्या का प्रभाव 

विश्व की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। यह पांच हजार करोड़ से भी अधिक हो गयी है। इसके कारण कई देश भूख और अकाल के साये में जी रहे हैं। इससे विश्व में तनाव बढ़ा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के साधन भी सीमित हो गये हैं। इसका भी प्रभाव पड़ा हैं।

इस प्रकार उपरोक्त अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रभावक तत्वों को देखने से स्पष्ट होता हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का स्वरूप कैसे निर्धारित होता हैं और इन स्वरूप निर्धारक तत्वों में राज्यों की संख्या वृद्धि, विदेश नीति पर लोकतंत्रिक मूल्‍यों का प्रभाव, तकनीकी विकास, आधुनिक शस्त्र निर्माण, शांति की चिंता, युद्ध का बदलता स्वरूप, अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की महत्ता, व्यापारिक हित तत्व आते हैं। वास्तव में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रभावक तत्व अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के स्वरूप को स्पष्ट करने में काफी सफल हुए है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति जैसे गतिशील विषय का निरन्तर स्वरूप बदलता जा रहा हैं, इसे समझने के लिए सिद्धांतों की खोज के लिए जो प्रयास हो रहे हैं, वे सराहनीय हैं।

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