5/25/2022

आतंकवाद के उदय के कारण, निवारण हेतु उपाय/सुझाव

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प्रश्न; आतंकवाद की उत्पत्ति के कारण बताइए। 

अथवा" आतंकवाद के उदय के क्या कारण हैं? आतंकवाद को दूर करने के सुझाव दिजिए। 

अथवा" आतंकवाद के निवारण के लिए उपाय बताइए। 

उत्तर--

आतंकवाद के उदय/उत्पत्ति के कारण (aatankwad ke karan)

आतंकवाद की उत्पत्ति धार्मिक कट्टरतावाद, जातीय उन्माद, रंगभेद, जातीय सर्वोच्चता और बाहारी राष्ट्रों द्वारा पोषण के आधार पर तेजी से विकसित हुई हैं। 

आतंक एक आतंकवादी गतिविधियों के उत्पन्न होने के विभिन्न देशों में अलग-अलग कारण होते हैं। आज पूरी दुनिया आतंकवाद से ग्रस्त हैं, आतंकवाद के अनेक कारण हो सकते हैं, किन्तु आतंकवाद के उत्पन्न होने के मूल कारणों में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक परिवर्तन, मनोवैज्ञानिक, राजनीतिक, प्रशासनिक विवाद व अन्य कारण प्रमुख हैं। 

आतंकवाद के मुख्य कारणों का निम्नानुसार विवेचन किया जा रहा हैं-- 

1. आर्थिक कारण 

आतंकवाद की जड़ मूलतः आर्थिक असमानता हैं। गरीबी, भुखमरी तथा बेरोजगार हैं, जो आर्थिक कारण का आधार होती हैं। बेरोजगार गरीब आसानी से आतंकवादी संगठनों के बहकावे में आ जाते हैं। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति उसकी मानसिक स्थिति को प्रभावित करती हैं। सम्पत्ति, सुविधा व संसाधनों के असमान वितरण से व्यक्ति में क्षोभ, विद्वेष व असन्तोष का फायदा आंतकी उठाते हैं एवं अपने लक्ष्य से इसे मुद्दा बनकार प्रस्तुत करते हैं। अशिक्षा, शोषण, बेरोजगारी एवं भुखमरी से ग्रस्त अज्ञानी लोग (व्यक्ति) आतंक का सहारा ले लेते हैं। हालांकि सभी गरीब लोग आतंकवादी नहीं होते हैं। मगर जिस तरह के माहौल में हताशा का जीवन वे जीते हैं, उससे अपराधियों को उन्हें अपने जाल में फँसाने का अवसर मिल जाता है। 

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संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार," सभी देशों की सरकारों ने समय रहते गरीबी की समस्या का हल नहीं किया तो इससे उग्रवाद की समस्या गंभीर रूप से उभर सकती हैं।" 

2. मनोवैज्ञानिक कारण 

आतंकवाद एक मानसिक बीमारी या मनोदशा हैं। समाज में कम योग्य तथा अकुशल व्यक्ति अपनी सामाजिक स्थिति एवं भूमिका से असन्तुष्ट होकर आतंकी गतिविधियों में संलिप्त होकर समाज में अपनी भूमिका एवं स्थान को प्राप्त करने हेतु समाज का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिये आतंक का सहारा लेते हैं। 

समाज में प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर अपनी खीझ और चिन्ता को विध्वंसकारी गतिविधियों के माध्यम से प्रकट करते हैं। कभी-कभी ऐसे शिक्षित मध्यमवर्गीय व्यक्ति भी समाज में प्रतिष्ठा प्राप्ति हेतु सुगम व सरल मार्ग के रूप में आतंकवादी गतिविधियों का सहारा लेते हैं, इसके लिए चित्रपट अधिक जिम्मेदार हैं, जिसमें व्यक्ति के जीवन में रातों-रात परिवर्तन दिखाया जाता हैं। 

अल्पसंख्यक एवं उपेक्षित वर्ग में शासन के प्रति अपनी उपेक्षा की भावना भी इसके लिए कुछ सीमा तक अपने दायित्व से बच नहीं सकती। उपेक्षित व अल्पसंख्यक धर्म का सहारा लेते हैं एवं शासनकर्ता को अपना पूर्वाग्रही एवं अन्यायी मानते हैं। 

युवा वर्ग की उम्र इसे फैलाने में अपनी भूमिका का निर्वाह कर रही हैं। बहुसंख्यक आतंकियों की उम्र युवा वर्ग की उम्र होती हैं, युवावस्था में व्यक्ति जोश में ज्यादा होता हैं और होश में कम। आमूलचूल परिवर्तन की मनोदशा वाला यह वर्ग क्रांतिकारी विचारों वाला होता हैं जो अपना आत्मनियंत्रण जल्दी खो देता हैं। आतंकवादी संगठन इनका फायदा उठाकर अपनी गतिविधियों में संलग्न कर लेते हैं एवं उन्हें मानसिक दृष्टि से अमानवीय, विध्वंसक बनाकर असामाजिक, अनैतिक व्यवहार करने के लिए मजबूर कर सदा के लिए आतंकवाद में लीन कर देते हैं। 

3. सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन 

समाज और संस्कृति में आज द्रुतगति से परिवर्तन हो रहा हैं। समाज में परिवर्तन न होने पर बड़े से बड़ा समाज टूट जाता हैं। संस्कृतियों में भी बदलाव हो रहा हैं। इससे सामाजिक परिवर्तन हो रहे हैं। सामाजिक जीवन में परिवर्तन का लाभ कुछ व्यक्तियों या एक ही वर्ग के लोगों को यदि प्राप्त होता है तो समाज का दूसरा वर्ग जो उपेक्षित हैं, उसमें क्षोभ व कुण्ठा की भावना का जन्म होता हैं। समाज में यह असन्तुलनकारी परिवर्तन समाज के विभिन्न वर्गों में संघर्ष को जन्म देता हैं। समाज में एकता अखण्डता व भाईचारा बढ़ाने में भाषा, प्रथाएँ, परम्पराएँ, साहित्य एवं कला के साथ-साथ इन तत्वों में बदलाव होता हैं तो इसके परिणाम भी पूर्व की स्थिति के अनुकूल नहीं होते हैं। इससे अराजकता व हिंसा का बढ़ावा मिलता हैं। 

समाज में नवनिर्माण व परिवर्तन की आशा यदि धूमिल होती हैं, तो व्यक्तियों में ईर्ष्या, द्वेष, परिवर्तन या क्रांति का जन्म होता हैं। जब-जब नैतिक मूल्यों का पतन होता हैं, क्रांति या परिवर्तन अवश्यंभावी हो जाता हैं। 

सामाजिक परिवर्तन के कारण व्यवस्था, संगठन व संस्थाओं में परिवर्तन होना स्वाभाविक हैं। यदि व्यवस्था व संस्थाएँ परिवर्तन नहीं होती हैं तो बदलती परिस्थितियों में वे अपने दायित्वों के निर्वहन में सफल नहीं हो सकती। समाज में व्याप्त असामाजिक स्थितियाँ (जैसे-- भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, रिश्वत, ,बेईमानी) असन्तुष्ट तथा उपेक्षित व्यक्तियों को आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न होने के लिए बढ़ावा देती हैं। असन्तुष्ट व्यक्ति या समूह बदले के जुनून में हिंसा, प्रतिहिंसा का मार्ग अपनाता हैं। शासन के किसी अंग की शक्तियों में अत्यधिक वृद्धि भी शोषित वर्ग में विद्रोह को जन्म देती हैं। सांस्कृतिक मतभेदों के कारण हताशा में आकर लोग आतंकवाद और चरमपंथ के जाल मे फँस जाते हैं। 

4. राजनीतिक विवाद 

राजनीतिक विवादों से भी आतंकवाद को प्रोत्साहन मिला हैं। राजनीतिक दृष्टि से उपेक्षित समुदाय या समूह अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए आतंकवादी गतिविधियों को प्रश्रय देता हैं। भारत में हुर्रियत और पूर्वोत्तर राज्यों में उल्फा, एन.डी.एफ.बी., एन. एस. सी. एन., फिलिस्तीन में अलफतह, चेचेन्या में चेचेन विद्रोही, श्रीलंका में लिट्टे जैसे संगठनों ने राजनीतिक विवाद के नाम पर आतंकवाद को प्रोत्साहन दिया हैं। राजनीतिक विवादों के कारण दुःखी, गरीब, अशिक्षित तथा मजबूर लोग आतंकवादी संगठनों के बहकावे में आसानी से आ जाते हैं। 

5. शासक व शासितों में संपर्क का अभाव 

शासक व शासित अर्थात् सरकार व जनता में संवादहीनता भी आतंकवाद का मार्ग प्रशस्त करती हैं। लोकतंत्रीय शासन व्यवस्था में शांतिपूर्ण तरीकों से माँगी गई जायज माँगों की अनदेखी होती हैं, जबकि नाजायज माँगों को आतंकी भाषा में माँगने पर मंजूर कर लिया जाता है। इससे वैधानिक मार्ग के जो शांति का मार्ग होता हैं, स्थान पर अवैधानिक मार्ग अपनाने के लिए जन-समूह का झुकाव बढ़ता जाता हैं। 

6. कानून व न्याय व्यवस्था के दोष 

कानूनों की जटिलता के कारण जनता में विक्षोभ उत्पन्न होता हैं। न्याय की विलम्बकारी भूमिका से भी लोगों में अन्य मागों से बदले की भावना बढ़ने लगती हैं। सुविधा सम्पन्न एवं अमीर लोगों को कानून व न्याय दोनों आसान लगते हैं जबकि गरीबों व असुविधा वाले वर्ग के लिए यह दोनों बाधक लगती हैं। कानून की जटिलता एवं अधिकता एवं न्याय में देरी के कारण उग्र स्वाभाव के नवयुवकों के द्वारा आतंकवाद का मार्ग चुन लिया जाता हैं।

7. नवयुवकों में असन्तोष 

आतंकवादी सामान्यतः मध्यमवर्गीय परिवार के शिक्षित नवयुवक होते हैं, जो शिक्षित होने के साथ-साथ बेरोजगार भी होते हैं, रोजगार की अनुपलब्धता के कारण ये नवयुवक आतंकवाद की ओर सजह आकर्षित हो जाते हैं। योग्य होने के बाद भी नौकरी प्राप्त करने के लिए जब ये युवा भटकते हैं एवं तस्करों, अवैध धंधों में लिप्त लोगों को विलासितापूर्ण जीवन जीते देखते हैं तो सहज ही आतंकवादियों के हाथ में आकर उनकी गतिविधियों को अपना लेते हैं। 

8. शस्त्रों की प्राप्ति में सुगमता

आतंकवादियों को अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र की प्राप्ति विघ्नसंतोषियों द्वारा सुगमता से उपलब्ध करा दी जाती हैं। अवैध हथियारों ने, जो आधुनिक होते हैं, आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ाने में मुख्य भूमिका का निर्वाह किया हैं। 

आतंकवाद के उदय के कारणों का विवेचन करने पर स्पष्ट होता हैं कि आतंकवाद ऐसी मानसिकता की उपज हैं जो सभ्य समाज में भय का वातावरण निर्मित कर अपने निहित उद्देश्य को प्राप्त करना चाहते हैं। भुखमरी और बेरोजगारी इसका मुख्य कारण हैं।

आतंकवाद को दूर करने के उपाय अथवा सुझाव 

aatankwad ka nivaran hetu sujhav;आतंकवाद से लड़ने का कोई भी नापाक तरीका अहिंसा का पुजारी हमारा देश अभी तक ईजाद नहीं कर पाया हैं। दशकों से कश्मीर, पंजाब, असम, उत्तरी-पूर्वी राज्यों, गोरखालैण्ड और झारखंड आदि क्षेत्र आतंकवाद की चपेट में हैं लेकिन यह आतंकवाद किसी भी तरीके से संभल नहीं रहा हैं। हिंसा समाप्त करने का हर संभव तरीका सरकार अपना चुकी हैं। लेकिन आतंकवादियों के लिए मानवता नाम की कोई चीज है ही नहीं। अगर आतंकवादियों में मानवता नाम की कोई चीज होती तो वह इस नरभक्षी राह पर चलते ही क्यों? आतंकवाद को दूर करने के लिए सरकार पुलिस, अर्धसैनिक बल और सेना सभी का उपयोग कर चुकी हैं। ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसी बड़ी कार्यवाही भी कर चुकी हैं। इन सबके उपरान्त भी आतंकवाद में कमी आने के स्थान पर यह बढ़ता ही जा रहा हैं। आतंकवाद को दूर करने के हर संभव प्रयास हो चुके हैं लेकिन वह असफल रहे। फिर भी हम आतंकवाद की समस्या को समाप्त करने के लिए कुछ उपायों को निम्न रूप में समझा सकते हैं-- 

1. उचित नैतिक शिक्षा 

आतंकवाद को दूर करने के लिए युवाओं व बालकों को उचित नैतिक शिक्षा देने की आवश्यकता हैं जिससे वह पथ-भ्रष्ट न हों और किसी विदेशी शक्ति के हाथ का खिलौना नहीं बनें साथ ही वहाँ की चमक-दमक व उनकी तरफ से दिये गये प्रलोभनों को भी नहीं स्वीकारें। 

2. बाहरी शक्तियों का कठोरता से दमन 

भारत में आतंकवाद फैलाने वाली जो बाहरी शक्तियाँ हैं उनका कठोरता से दमन किया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार को चाहिए कि वह 'खून का बदला खून' से ले। कहने का तात्पर्य यह हैं कि आतंकवादी अगर पकड़ में आ जाये तो उसे सीधे फाँसी पर चढ़ा देना चाहिए, न कि मुकदमे की सुनवाई तक प्रतीक्षा की जाये जिससे अन्य आतंकी सरकार को फिर कोई भय दिखाकर उन आतंकवादियों को छुड़वा न सकें जो सरकार की गिरफ्त में हैं। 

3. जनता में जागरूकता की भावना पैदा करना 

आतंकवाद को दूर करने के लिए जनता में जागरूकता की भावना का होना अति आवश्यक हैं। वह भीरू न बनकर, आतंकवाद के खिलाफ उठ खड़ी हो। वह उन आतंकवादियों का दमन करने को तत्पर हो जाये जो देश में आतंकवाद व अलगाववाद फैला रहे हैं। 

4. सीमाओं पर कठोर नियन्त्रण

सीमाओं पर नियंत्रण को कठोर कर दिया जाना चाहिए, जिससे कोई आतंकवादी सीमा के अंदर प्रवेश न कर सके, और जो प्रवेश करना भी चाहे उसको कठोरतापूर्वक समाप्त कर देना चाहिए। इस स्थिति से निपटने के लिए सीमाओं पर तैनात बल को हमेशा ईमानदारीपूर्वक जागरूक रहना आवश्यक हैं। 

5. राजनैतिक एकता 

आतंकवाद आज की ज्वलन्त राष्ट्रीय समस्या हैं। अतः इस समय आवश्यकता इस बात की हैं कि सभक राजनैतिक नेता पक्ष और विपक्ष के द्वन्द्व से उभकर एक ऐसी सफल राष्ट्रीय योजना बनायें जिससे आतंकवाद का अन्त हो सके। 

उपरोक्‍त उपायों को आतंकवाद को दूर करने के लिए कुछ सीमा तक प्रयोग में लाया जा सकता हैं। लेकिन आज दुःख इस बात का है कि पक्ष-विपक्ष की सरकारें आपसी प्रतिद्वन्द्वों में ही इतनी व्यस्त हैं कि वह इस गंभीर समस्या की ओर ध्यान न देकर एक शक्तिशाली राष्ट्रीय विचार नहीं बना पा रही हैं। इसलिए इस आतंकवाद की हिंसा से न देश लड़ रहा हैं, न सरकार। इससे केवल पुलिस लड़ रही हैं। लेकिन आज इस आतंकवाद को दूर करने के लिए आवश्यकता इस बात की हैं कि सभी देशवासी एक होकर इस स्थिति का मुकाबला करें और इस आतंकवाद को अपने समाज से जड़ सहित उखाड़कर फेंक दें।

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