3/07/2022

समाजशास्त्र की विषय-वस्तु/सामग्री

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प्रश्न; समाजशास्त्र की विषय-वस्तु की विवेचना कीजिए। 

अथवा" समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों का वैज्ञानिक अध्ययन हैं। उदाहरण सहित समझाइये। 

अथवा" समाजशास्त्र की विषय वस्तु सामाजिक संबंध हैं। विभिन्न समाज शास्त्रियों के विचारों के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए। 

अथवा" समाजशास्त्र की विषय-सामग्री को स्पष्ट कीजिए। 

अथवा" समाजशास्त्र की विषय-वस्तु के संबंध में विभिन्न विचारकों के मत प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर-- 

समाजशास्त्र की विषय-वस्तु या सामग्री

samajshastra ki vishay vastu;पिछले लेख में हम समाजशास्त्र के विषय-क्षेत्र के अंतर्गत स्वरूपात्मक और समन्वयात्मक सम्प्रदाय के विचारों को समझ चुके हैं। अब प्रश्न यह खड़ा होता हैं कि फिर समाजशास्त्र की वास्तविक विषय-वस्तु क्या हैं? यानि की समाजशास्त्र के अन्तर्गत वास्तव में किन-किन विषयों का अध्ययन किया जाता हैं। इस दृष्टिकोण से विभिन्न विद्वानों ने समाजशास्त्र में अध्ययन किये जाने वाले सभी प्रमुख विषयों को कुछ मुख्य भागों में विभाजित करके स्पष्ट किया हैं। कुछ मुख्य विद्वानों के अनुसार समाजशास्त्र की विषय-वस्तु का विवरण निम्नलिखित हैं--

(अ) दुर्खीम के अनुसार समाजशास्त्र की विषय-वस्तु 

दुर्खीम ने समाजशास्त्र की विषय-वस्तु का विवेचन इस प्रकार किया हैं-- 

1. सामान्य समाजशास्त्र 

इस विभाग में उन नियमों का सामान्य अध्ययन किया जाता है जो कि समाज एवं सामाजिक जीवन को निरन्तरता एवं स्थिरता प्रदान करते हैं। इस पक्ष को समाजशास्त्र का दार्शनिक पक्ष कहा जा सकता हैं। 

2. सामाजिक रूपशास्त्र 

समाजशास्त्र के इस भाग में, मुख्य रूप से भौगोलिक आधार पर समाज के संगठन का अध्ययन किया जाता हैं।  

3. सामाजिक शरीरशास्त्र

इस विभाग के अन्तर्गत धर्म, अर्थ, भाषा तथा नीति आदि का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता हैं। इन सब विषयों का अध्ययन अलग-अलग रूप से समाजशास्त्र की विभिन्न शाखाओं के अन्तर्गत किया जाता हैं, जैसे कि धर्म का अध्ययन धर्म के समाजशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता हैं। 

(ब) जिन्सबर्ग का वर्गीकरण 

जिन्सबर्ग ने समाजशास्त्र की विषय-वस्तु को निम्नलिखित चार भागों में विभक्त किया हैं-- 

1. सामाजिक नियंत्रण 

समाज में सामाजिक नियंत्रण का भी विशेष महत्व हैं। जिन्सबर्ग के अनुसार समाजशास्त्र का एक अध्ययन विषय सामाजिक नियंत्रण भी हैं। इसमें कुछ कारणों का अध्ययन किया जाता है जो समाज को व्यवस्थित एवं नियंत्रित करते हैं।

2. सामाजिक व्याधिकी 

जहाँ एक और समाज में संगठनकारी तत्व हैं वहीं दूसरी और विघटनकारी तत्व भी निरन्तर सक्रिय रहते हैं। इन कारकों अथवा तत्वों को सामाजिक व्याधियां भी कहा जाता हैं। समाजशास्त्र का जो विभाग इन व्याधियों का अध्ययन करता हैं, उसे सामाजिक व्याधिकी अथवा सामाजिक व्याधिशास्त्र कहा जाता हैं। 

3. सामाजिक रूपशास्त्र 

जिन्सबर्ग के अनुसार सामाजिक रूपशास्त्र के अन्तर्गत दो प्रकार के समाजशास्त्रीय अध्ययन किये जाते हैं। प्रथम सरकार के अध्ययन के अन्तर्गत सामाजिक ढांचे का अध्ययन किया जाता हैं, इसमें सामाजिक संस्थाओं एवं समूहों का संरचनात्मक अध्ययन किया जाता हैं। इसके अतिरिक्त सामाजिक रूपशास्त्र में जनसंख्या के स्वरूप, मात्रा एवं गुणों का भी अध्ययन किया जाता हैं। 

4. सामाजिक प्रक्रियायें 

मनुष्यों एवं समूहों के मध्य स्थापित होने वाले अतः संबंधों को सामाजिक प्रक्रिया कहा जाता हैं। मुख्य सामाजिक प्रक्रियायें सहयोग, संघर्ष, अनुकूलतम तथा प्रतिस्पर्द्धा आदि हैं। इनका अध्ययन समाजशास्त्र के एक विभाग के अन्तर्गत होता हैं। 

इन्केल्स के अनुसार समाजशास्त्र की विषय वस्तु या सामग्री 

इन्केल्स ने समाजशास्त्र की विषय-सामग्री की एक सामान्य रूपरेखा अपनी पुस्तक 'व्हाट इज सोशियोलाजी' में प्रस्तुत की हैं। इनके अनुसार संपूर्ण सामग्री को निम्नलिखित चार भागों में बाँटा जा सकता हैं-- 

1. समाजशास्त्रीय विश्लेषण 

इसमें मानव संस्कृति और समाज, समाजशास्त्रीय पृष्ठरचना (अथवा परिप्रेक्ष्य) तथा समाज विज्ञान में वैज्ञानिक पद्धित का अध्ययन सम्मिलित हैं। 

2. सामाजिक जीवन की प्राथमिक इकाइयाँ 

इसके अंतर्गत सामाजिक क्रिया तथा सामाजिक संबंध, व्यक्तित्व, समूह (प्रजाति एवं वर्ग को सम्मिलित करते हुए) समुदाय (ग्रामीण एवं नगरीय) समिति व संगठन तथा जनसंख्या और समाज का अध्ययन किया जाता हैं। 

3. मौलिक सामाजिक संस्थाएँ 

इसमें परिवार, नातेदारी, आर्थिक, वैधानिक, राजनैतिक, धार्मिक, शैक्षणिक, वैधानिक, मनोरंजनात्मक, कल्याणकारी, कलात्मक तथा स्पष्टात्मक (एक्सप्रेसिव) संस्थाओं के अध्ययन को सम्मिलित किया गया हैं।

4. मौलिक सामाजिक प्रक्रियाएँ

इस वर्ग में सामाजिक विभेदीकरण एवं संस्तरीकरण, सहयोग, व्यवस्थापन एवं सात्मीकरण, सामाजिक संघर्ष (क्रांति एवं युद्ध को सम्मिलित करते हुए) सामाजिक नियंत्रण, सामाजिक विचलन (अपराध, आत्महत्या आदि), सामाजिक एकीकरण तथा सामाजिक परिवर्तन आदि को शामिल किया जाता हैं। 

(द) सोरोकिन के अनुसार समाजशास्त्र की विषय-वस्तु 

सोरोकिन समाजशास्त्र को एक सामान्य विज्ञान स्वीकार करता हैं। उसने समाजशास्त्र की विषय वस्तु के विषय में इस प्रकार कहा हैं," समाजशास्त्र समस्त प्रकार की सामाजिक घटनाओं की सामान्य विशेषताओं और उनके पारस्परिक संबंधों और सह-संबंधों का विज्ञान रहा हैं और या तो वैसा ही रहेगा या फिर समाजशास्त्र का अस्तित्व ही मिट जायेगा।" सोरोकिन के अनुसार समाजशास्त्र की विषय-वस्तु में सर्वप्रथम विभिन्न प्रकार की सामाजिक घटनाओं के आपसी संबंधों एवं सह-संबंधों का अध्ययन सम्मिलित किया जाता हैं। इस क्षेत्र में मुख्य सामाजिक घटनायें, धार्मिक, पारिवारिक तथा आचार एवं कानून संबंधी घटनायें हैं। 

(ई) मोटवानी के अनुसार समाजशास्त्र की विषय-वस्तु 

मोटवानी ने समाजशास्त्र की विषय-वस्तु की विवेचना इस प्रकार की हैं-- समाजशास्त्र को उन तत्वों एवं सामाजिक कारकों का समन्वय करना चाहिए जो व्यक्ति और समूह की प्रगति करते हैं। समाजशास्त्र विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के विकास, प्रकृति और कार्यों तथा उनके अन्त:संबंधों को परिभाषित करने का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त, सामाजिक जीवन के कुछ मौलिक तत्व होते हैं, इन तत्वों में आन्तरिक सामंजस्य स्थापित करने वाले तत्वों की खोज करना भी समाजशास्त्र की विषय-वस्तु में सम्मिलित होता हैं। 

(फ) रयूटर तथा हार्ट का वर्गीकरण 

रयूटर तथा हार्ट ने समाजशास्त्र की विषय-वस्तु को निम्नलिखित ढंग से वर्गीकृत किया हैं-- 

1. सामाजिक प्रक्रियायें 

2. सामाजिक विरासत 

3. व्यक्तित्व 

उपरोक्त विवेचन द्वारा समाजशास्त्र की विषय वस्तु का संक्षिप्त परिचय प्राप्त हो जाता हैं। परन्तु वास्तव में यदि ध्यान से देखा जाये तो सभी सामाजिक संबंध ही समाजशास्त्र की विषय-वस्तु के अन्तर्गत सम्मिलित किये जा सकते हैं।

शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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