प्रश्न; भारत में समाजशास्त्र के विकास पर एक निबंध लिखिए।
अथवा" भारत मे समाजशास्त्र के उद्वविकास को समझाइए।
अथवा" भारतीय समाज की परम्परागत पृष्ठभूमि की विवेचना कीजिए।
अथवा" भारत में समाजशास्त्र के विकास को समझाइयें।
अथवा" भारत में समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
अथवा" भारत के विशेष संदर्भ में समाजशास्त्र के इतिहास की विवेचना कीजिए।
उत्तर--
भारत में समाजशास्त्र का उद्भव तथा विकास
भारतीय सामाजिक विचार ही मुख्य रूप से भारतीय समाजशास्त्र हैं। सामाजिक विचारों पर धर्म एवं दर्शन की गहरी छाप हैं। धार्मिक ग्रंथों, परिवार, विवाह, सामाजिक व्यवस्था, सामाजिक संरचना, संगठन आदि के संबंध में व्यवस्थित एवं विस्तृत वर्णन मिलता हैं। भारत में समाजशास्त्र के विकास को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर समझा जा सकता हैं--
1. संस्थापन युग
संस्थापन युग समाजशास्त्र के औपचारिक प्रतिस्थापन (1917) से पूर्व का काल हैं। इस युग मे भारत के प्राचीन ग्रंथों जैसे-- वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, स्मृतियों आदि में निहित सामाजिक चिंतन का व्यवस्थित पुरावलोकन समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में किया गया हैं। वैदिक, उत्तरवैदिक, उपनिषद, स्मृति, रामायण, महाभारत काल के ऐसे अगणित ग्रंथ हैं जिनमें तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के निर्माण में आवश्यक मूल्यों की स्थापना के गंभीर विचार उपलब्ध हैं। इसी तरह कौटिल्य के अर्थशास्त्री शुक्राचार्य द्वारा प्रणीत नीतिशास्त्र, मुगलकाल में रचित आईने अकबरी आदि अनेक ग्रंथ हैं जिनमें उस समय की सामाजिक प्रथाओं चलनों, रीति-रिवाजों से संबंधित विचार उपलब्ध हैं। प्राचीन ग्रंथों में विद्यमान सामाजिक चिंतन का व्यवस्थित एवं समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में जिन लोगों ने अध्ययन किया उनमें प्रो. विनय कुमार सरकार, प्रो. बृजेन्द्रनाथ शील, डाॅ. भगवानदास तथा प्रो. केवल मोतवानी प्रमुख थे।
2. औपचारिक प्रतिस्थापन का युग
यह सन् 1917 से 1947 तक का अर्थात् स्वतंत्रता से पहले का युग हैं जिसमें आधुनिक समाजशास्त्र का औपचारिक रूप से बीजारोपण किया गया। वस्तुतः समाजशास्त्र का औपचारिक प्रतिस्थापन 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध से माना जा सकता हैं जबकि प्रो. बृजेन्द्रनाथ शील की प्रेरणा से कलकत्ता विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग से संलग्न समाजशास्त्र विभाग की सर्वप्रथम स्थापना 1917 में हुई। तत्पश्चात बंबई विश्वविद्यालय द्वारा सन् 1919 में समाजशास्त्र विभाग की एक पृथक स्थापना करके पेट्रिक गिड्स को इसका अध्यक्ष बनाया गया। सन् 1921 में लखनऊ विश्वविद्यालय ने समाजशास्त्र विषय को मान्यता दी एवं प्रथम भारतीय विद्वान डाॅ. राधाकमल मुखर्जी को प्रोफेसर नियुक्त किया गया।
सन् 1923 में मैसूर और आंध्र विश्वविद्यालयों में भी समाजशास्त्र को एक पृथक विषय न मानकर इसे अर्थशास्त्र की एक शाखा के रूप में मान्यता दी गई। भारत में जो विद्वान समाजशास्त्रीय विचारधारा को लेकर आगे चले एवं जिन्होंने इसे समृद्ध बनाने के व्यापक प्रयत्न किए, वे बंबई अथवा लखनऊ विश्वविद्यालय में ही प्रशिक्षित हुए थे।
सन् 1947 के बाद समाजशास्त्र की लोकप्रियता तेजी से बढ़ने लगी क्योंकि इस समय से समाज का नए सिरे से पुनर्गठन करना भी आवश्यक समझा जाने लगा। इसके फलस्वरूप उत्तर प्रदेश में लखनऊ के अतिरिक्त आगरा, वाराणसी, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर, अलीगढ़, काशी विद्यापीठ, कुमाऊं, गढ़वाल, रूहेलखंड, बुंदेलखण्ड और अवध विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र को पृथक विषय के रूप में मान्यता दी गई।
3. व्यापक प्रसार युग
यह युग स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से अब तक का समय माना जा सकता हैं। कहने की जरूरत नही हैं कि स्वतंत्रता के बाद इस विषय का बीजारोपण भारत के विविध विश्वविद्यालयों में हुआ तथा हो रहा हैं। इस समय लगभग 50 भारतीय विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र अध्ययन अध्यापन हो रहा हैं। इस समय मध्यप्रदेश में विक्रम, जीवाजी, इंदौर, सागर, रविशंकर, अवधेश प्रतापसिंह, जबलपुर और बरकतउल्ला विश्वविद्यालयों तथा राजस्थान में उदयपुर, जोधपुर एवं जयपूर विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र विभागों की स्थापना की गई। साथ ही बिहार (मुजफ्फरपुर, राँची, पटना), दिल्ली, बड़ौदा, नागपुर, पूना, मद्रास, कर्नाटक, पंजाब, गुजरात, उत्कल, कुरूक्षेत्र तथा अन्य विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र का अध्ययन-अध्यापन हो रहा हैं।
4. अन्य शिक्षण संस्थाओं में समाजशास्त्र का विकास
भारत में समाजशास्त्र के विकास के लिए अनेक शोध संस्थानों की स्थापना की गई जो कि निम्नलिखित हैं--
1. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, बंबई (महाराष्ट्र)।
2. जे. के. इंस्टीट्यूट ऑफ सोशियोलाॅजी एंड सोशल वर्क्स, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
3. इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, आगरा (उत्तर प्रदेश) आदि।
इस सभी संस्थानों द्वारा शोध कार्य चल रहा हैं जिससे समाजशास्त्र का सर्वाधिक विकास होने की आशा की जा सकती हैं।
भारत के प्रमुख समाजशास्त्रियों जिन्होंने समाजशास्त्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया हैं, निम्नलिखित हैं-- डाॅ. राधाकमल मुखर्जी, प्रो. डी. एन. मजूमदार, डाॅ. के. एम. कापड़िया, डाॅ. आर. एन. सक्सेना, डाॅ. एम. एन. श्रीनिवास, डाॅ. श्यामाचरण दुबे एवं डाॅ. एम. एस. घूरिए आदि।
भारत में समाज शास्त्र के विकास का इतिहास
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