3/06/2022

समाजशास्त्र का अभ्युदय/उद्भव और विकास

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 प्रश्न; समाजशास्त्र के विकास पर एक निबंध लिखिए।

अथवा" समाजशास्त्र के अभ्युदय को समझाइए। 

अथवा" समाजशास्त्र का उद्भव समझाइए।

अथवा" समाजशास्त्र की उत्पत्ति की व्याख्या कीजिए।

अथवा" समाजशास्त्र का अभ्युदय कैसे हुआ? 

अथवा" समाजशास्त्र के विकास को समझाइये। 

उत्तर-- 

समाजशास्त्र का अभ्युदय एवं विकास 

समाजशास्त्र के अभ्युदय तथा प्रगति के विकास को तीन कालखण्डों में विभाजित किया गया हैं। पहला, समाजशास्त्र का प्रगतितिहाल काल जिसका समय लगभग 100 वर्ष 1750 से 1850 तक रहा। इसका प्रारंभ मानटेस्कू के सामाजिक चिंतन से काॅम्ट, स्पेन्सर तथा मार्क्स के सामाजिक चिंतन तक विस्तारित हैं। दूसरा, समाजशास्त्र का रचनात्मक-निर्माणात्मक काल। यह 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से प्रारंभ होता हैं तथा 20 वीं शताब्दी के पुवार्ध्द तक विस्तारित रहा। इस समयावधि के सामाजिक चिंतक में हाबहाउस, दुर्खीम एवं मैक्स वेबर प्रमुख रहे हैं जिनकी कृतियाँ समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र तथा पद्धित पर प्रकाश डालती है। तीसरा, समाजशास्त्र का उच्च व्यावसायिक एवं वैज्ञानिक स्तर। इसका प्रारंभ 1940-50 के दशक तथा उसके बाद का माना गया हैं। इसमें टालकट पारसंस, सी राइट मिल्स, बेरिंगटन मूरे प्रमुख है तथा जिनकी कृतियाँ समाजशास्त्र के विशिष्ट उपागमों पर प्रकाश डालती हैं। इस समयावधि में समाजशास्त्र का अध्ययन एवं अनुसंधान तीव्रतर गति से आगे बढ़ता हुआ देखा जाता हैं। 

समाजशास्त्र का प्रागितिहास काल 

हजारों वर्षों से मानव अपने समाज एवं समूह को देखता रहा हैं तथा उस पर अपना विचार प्रस्तुत करता रहा हैं परन्तु वह विचार समाजशास्त्री नहीं कहा जाता। समाजशास्त्र का अभ्युदय लगभग 175 वर्ष पहले हुआ। यह सत्य है कि सभी सभ्यताओं के दार्शनिकों, धर्म-प्रचारकों, कानूनविदों ने अपने सामाजिक विचारों को प्रस्तुत किया हैं। आधुनिक समाजशास्त्र के लिये ऐसे विचार महत्वपूर्ण भी रहे हैं। कौटिल्य का अर्थशास्त्र तथा एरिसटाॅटल का राजनीतिशास्त्र ऐसी कृतियाँ हैं जो तत्कालीन राजनीतिक-व्यवस्था का विश्लेषण प्रस्तुत करती हैं। ऐसे सामाजिक विचार समाजशास्त्रियों के रूचि के रहे हैं तथा जो सामाजिक विज्ञान के मार्ग को प्रशस्त भी करते है। 

अतः वह कौन-सी विशेषताएं है जो समाजशास्त्र को प्रागैतिहासिक सामाजिक विचारों से भिन्न स्थापित करती हैं? इसे समझना जरूरी हैं। वस्तुतः समाज की दो दशाएँ यथा-- बौद्धिक तथा सामाजिक दशाएँ-- ऐसी रही हैं जो समाजशास्त्र के अभ्युदय में सहायक हुई हैं। बौद्धिक एवं सामाजिक दशाएँ एक दूसरे से संयुक्त होती हैं। यहाँ सर्वप्रथम समाजशास्त्र के पूर्ववर्ती बौद्धिक दशाओं पर विचार करना प्रासंगिक होगा। समाजशास्त्र के अभ्युदय के चार प्रमुख स्त्रोत रहे हैं यथा-- राजनीतिक दर्शन, इतिहास का दर्शन, जीवविज्ञान के उद्वविकास का सिद्धांत तथा सामाजिक एवं राजनीतिक सुधार। इनके सर्वेक्षण द्वारा तत्कालीन सामाजिक दशाओं को समझा जा सकता हैं। मानव के बौद्धिक इतिहास में सामाजिक सर्वेक्षण तथा इतिहास का दर्शन विशिष्ट हैं। अतः इन दोनों पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी हैं।  

इतिहास का दर्शन अट्ठारहवीं शताब्दी की देन हैं। इसके प्रवर्तक अबे डी सेन्ट-पियरे तथा जिआम्बरिस्टा विको थे। इन्होंने प्रगति का विचार जो मानव के इतिहास की संकल्पना को प्रतिपादित किया, उसके संदर्भ में देखा हैं। इसका प्रभाव फ्रांस के मांटेक्यू और बाल्टियर, जर्मनी के हरडर, स्काटलैंड के इतिहासकारों तथा दार्शनिकों और अन्यों जैसे-- फरग्यूसन, मिलर, राॅबर्टसन की कृतियों पर पड़ा। इन विद्वानों ने सैद्धांतिक रूप से बताने का प्रयास किया और अनुमान लगाया है कि समाज की प्रगति विभिन्न स्तरों से होकर गुजरी हैं। 19वीं शताब्दी के इतिहास के दर्शन ने हीगल एवं सेनट साइमन के कृतित्व को प्रभावित किया। इसका बौद्धिक प्रभाव बना जिसने क्रमशः मार्क्स तथा काॅम्ट जैसे आधुनिक समाजवेत्ताओं के विकास तथा प्रगति की अवधारणा संबंधी दार्शनिक विचारों को प्रभावित किया। साथ ही दूहरी तरफ इसने ऐतिहासिक -कालखण्डों में विभक्त सामाजिक जीवन के प्रकारों को वैज्ञानिक आधार दिया। दार्शनिक इतिहासकारों ने यह स्थापित किया हैं कि समाज की अवधारणा राजनीतिक समाज या राज्य से कहीं अधिक बड़ी हैं। राज्य एवं नागरिक समाज में अंतर होता हैं। यह स्थापित करने के लिए उन्होंने अनेक सामाजिक संस्थाओं का अध्ययन किया। समाज को समझने में दार्शनिक इतिहासकार जैसे हीगल की शब्दावली (विचार, प्रतिविचार तथा समन्वित विचार) तथा उपागम महत्वपूर्ण हैं। फर्रग्यूसन की अवधारणा कि समाज अंतःसंबंधित संस्थाओं की एक व्यवस्था हैं। इस संदर्भ में उन्होंने समाज की प्रकृति, जनसंख्या, परिवार एवं नातेदारी, सामाजिक स्तरीकरण श्रेणीगत विभाजन धन-संपत्ति, सरकार, प्रथा, नैतिकता तथा कानून की व्यख्या किया हैं। साथ ही उन्होंने समाजों के विभिन्न श्रेणियों तथा विकास के स्तरों को समझाया हैं। दार्शनिक इतिहासकारों के मानव-समाज संबंधी अध्ययनों की प्रक्रिया में काॅम्ट, मार्क्स तथा स्पेंसर जैसे समाजशास्त्रियों की कृतियों को प्रभावित किया हैं।

इसी क्रम में आधुनिक समाजशास्त्र में दूसरा महत्वपूर्ण तत्त्व सामाजिक सर्वेक्षण का रहा हैं। इसके दो स्त्रोत रहे। प्रथम, प्राकृतिक विज्ञानों की विधियों का विस्तार मानव क्रिया-कलापों के अध्ययन तक विस्तारित किया जा सकता हैं, जिससे मानव संबंधी घटनाओं का विभाजन तथा मापन किया जा सकता हैं। दूसरा, सामाजिक समस्या मुख्यतः गरीबी जो औद्योगिक समाजों की मानवीय घटना है तथा यह प्रकृति में हस्तक्षेप तथा मानव अज्ञानता या शोषण का परिणाम हैं। समाज के नए विज्ञान में प्राकृतिक विज्ञान की प्रतिष्ठा तथा आन्दोलन से सामाजिक सुधार के विचारों के कारण सामाजिक सर्वेक्षण ने अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया। पश्चिमी-यूरोप के औद्योगिक समाजों के सामाजिक जीवन का समाजशास्त्रीय अध्ययन करने वालों में जान-सिनक्लेयर (1791-99) एफ. एम. इडेन (1797), कोन्डोरसेट (1835), ली-प्ले (1885) और बूथ (1891-1903) जैसे विद्वानों ने सामाजिक सर्वेक्षण को एक उपयोगी विधा के रूप में अपनाया। पश्चिमी यूरोप में फ्रांस की क्रांति तथा औद्योगिक क्रांति के कारण सामाजिक परिवर्तन तेजी से हो रहा था, जिससे सामाजिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई थी। इसके कारण सामाजिक समस्याएँ बढ़ गई। सामाजिक सुधार की अपेक्षाओं ने सामाजिक सर्वेक्षण के प्रति बौद्धिक जनों का ध्यान आकृष्ट किया। पुनर्जागरण तथा फ्रांस की क्रांति ने सोच की दो धाराओं को जन्म दिया। प्रथम, काॅम्ट का प्रत्यक्षवाद, जो सावयवी एकता पर केन्द्रित था। दूसरा, सेन्ट साइमन का समालोचनात्मक विचार, जो समाजवादी रहा तथा जिसने हीगल और मार्क्स के विचारों तथा कृतियों को प्रभावित किया।

समाजशास्त्र का रचनात्मक-निर्माणात्मक काल 

समाजशास्त्र के अभ्युदय संबंधी विचारों के सर्वेक्षण से स्पष्ट होता है कि समाजशास्त्र प्रथमतः अतिव्यापी, उद्विकासवादी, प्रत्यक्षवादी, सामान्य विज्ञानी तथा विचारवादी एवं वैज्ञानिक विशेषताओं वाला रहा। इससे यह धारणा पनपती हैं कि समाजशास्त्र दूसरें विषयों के क्षेत्र को स्वयं में समाहित करने वाला विज्ञान है। ऐसे विचारों का खण्डन हाॅबहाउस, स्पेंसर तथा दुर्खीम ने अपनी कृतियों द्वारा किया। उन्होंने समाज को समझने के लिए समाजशास्त्रिय परिप्रेक्ष्यों को प्रस्तुत किया। मैक्स वेबर दुर्खीम के विचारों से सहमत थे कि समाजशास्त्री को सामाजिक विज्ञानों तथा, इतिहास, कानून, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, तुलनात्मक धर्म, सामाजिक सांख्यकीय के क्षेत्रों में होने वाले अनुसंधानों के बारें में ज्ञान होना चाहिए। 

समाजशास्त्र के क्षेत्र तथा पद्धतियों को स्थापित करने में शास्त्रीय समाजशास्त्रियों का विशेष योगदान रहा। बाद में टालकट पारसंस ने 1940 के बाद के दशकों में समाजशास्त्र के अवधारणात्मक रूपरेखाओं का निर्माण किया तथा सामाजिक अनुसंधानों के छोटे एवं नगण्य स्तर के समस्याओं पर लागू किया। साथ ही ऐसे अवशेष विषयों पर ध्यान केंद्रित किया जो किसी अन्य विषयों के क्षेत्र में जैसे-- नगरीय एवं सामुदायिक तथा विवाह एवं परिवार नही आते थे। समाजशास्त्र को शैक्षणिक विषय संबंधी स्वायत्तता, व्यावसायिक स्थिति और वैज्ञानिक विशेषताओं के रूप में स्थापित करने के लिए उक्त विषयगत तथ्यों पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक समझा गया। सामाजिक गतिशीलता पर आधारित सामाजिक विचार या यथार्थ सामाजिक समस्याओं के हल द्वारा समाजशास्त्र का योगदान प्रस्तुत करना संदेहास्पद रहा। लिण्ड ने 1939 में (Knowledge for what) प्रकाशित किया जिसमें पश्चिमी औद्योगिक देशों में वर्तमान आर्थिक तथा राजनीतिक संकट की समस्याओं तथा अनुसंधान की रूपरेखा कार्यक्रम को प्रस्तुत किया परन्तु बीसों वर्ष तक इस पर ध्यान नहीं दिया गया। सी राइट मिल्स की कृतियों द्वारा कुछ दशक पहले समाजशास्त्र ने एक नई दिशा ग्रहण की। मिल्स ने जटिल औद्योगिक समाज में सामाजिक वर्ग तथा अभिजन शक्ति के मूल संरचनात्मक तत्वों को अपने अध्ययनों यथा-- (White collar 1951) तथा (The Power Elites 1956) द्वारा स्पष्ट किया तथा समाजशास्त्र को पुनः इतिहास की तरफ उन्मुख किया। 

समाजशास्त्र का वैज्ञानिक स्तर एवं स्वरूप 

टालकट पारसंस तथा मिल्स के इन अध्ययनों एवं विचारों के बाद समाजशास्त्रियों ने पुनः सामाजिक संरचना के बड़े पहलुओं एवं उसमें होने वाले परिवर्तनों पर ध्यान केंद्रित करना प्रारंभ किया। इन्होंने तकनीकि तथा वैज्ञानिक उन्नति का सामाजिक प्रभाव, क्रांति तथा सामाजिक आन्दोलन के उद्भव एवं परिणामों, औद्योगिक एवं आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया जैसी विषय वस्तुओं को अध्ययन के लिए चुना। इस प्रकार वर्तमानकाल के समाजशास्त्री अपने पूर्ववर्ती समाजशास्त्रियों से भी अधिक प्रश्नों को सामाजिक घटना के संदर्भ में उठाने लगे हैं और सामाजिक घटना का विभाजन तथा व्याख्या करने मात्र से संतुष्ट नही हैं। यह प्रवृत्ति समाजों के ऐतिहासिक विकास को पुनः जीवंतता प्रदान कर दिया हैं और मार्क्सवाद के परिशुद्ध स्वरूप में समाज के सामान्य सिद्धान्त पर बल दिया हैं। इस प्रकार समाजशास्त्री उपागमों द्वारा राजनीति के क्षेत्र में मैक्स वेबर, मिसेल्स एवं पैरोटों तथा मार्क्स विस्तार मुख्यतः राजनीतिक दल, अभिजन, दबाव समूह, जनमत व्यवहार, प्रशासन तंत्र तथा सामाजिक आन्दोलन, आर्थिक क्षेत्र में (मैक्स वेबर तथा वेब्लेन) औद्योगिक समाज की संरचना, विलासिता एवं कार्य, औद्योगिक संबंध, औद्योगिक संगठनों का प्रशासनिक तंत्र व्यवसाय एवं शिक्षा, आर्थिक नियोजनों का विस्तार और आर्थिक वृद्धि, तकनीकी विकास एवं सम्पन्नता जैसे क्षेत्रों के सामाजिक पहलुओं के आर्थिक क्रिया और परिणामों पर सामाजिक अनुसंधान की आवश्यकता पर विचार होने लगा हैं।

समीक्षा 

समाजशास्त्र मानवशास्त्र की तरह सामाजिक जीवन को सम्पूर्णता में देखता हैं। समाजशास्त्र समाज को सामाजिक संस्थाओं तथा समूहों के तानेबाने से निर्मित इकाई मानता हैं। इस प्रकार समाजशास्त्र की अवधारणा सामाजिक संरचना हैं जो स्वयं व्यक्ति के व्यवहारों तथा सामाजिक क्रिया कलापों के अंतःसंबंधों द्वारा निर्मित हुआ हैं। समाजशास्त्र, सामाजिक जीवन संबंधी संस्थाओं और सामाजिक संरचना के तत्वों में संबंध देखता हैं, उदाहरणार्थ धर्म एवं आर्थिक जीवन, सम्पत्ति, वर्ग एवं राजनीति। वर्तमान समाज के घटनात्मक परिवेश ने मानवशास्त्र तथा समाजशास्त्र को एक-दूसरे के निकट ला खड़ा किया हैं। औद्योगिकरण की प्रक्रिया ने जो ऐतिहासिक संदर्भों में पश्चिमी देशों में प्रारंभ हुई, आज विकासशील देशों को अपनी सीमा में ले लिया हैं। इसने तुलनात्मक ढंग से समाजों के अध्ययन का मार्ग प्रशस्त किया हैं। वर्तमान में समाजशास्त्री अध्ययन राष्ट्रीय सामाजिक समूहों बहुधा नृजातीय अध्ययनों तक सिमटता जा रहा हैं परन्तु Barrington Moorr ने अपनी कृति (Social Origin of Dictatorship and Democracy) द्वारा यह दर्शाया है कि आज भी दुर्खीम तथा मैक्स वेबर जैसे बृहद् अध्ययनों का सफलतापूर्वक कार्य सम्पादन संभव है। यद्यपि ऐतिहासिक तथा तुलनात्मक अध्ययन का महत्व आज तीसरी दुनिया के नव-स्वतंत्र राज्यों (राष्ट्रों) के कारण महत्वपूर्ण हो गया है और समाजशास्त्रीय अध्ययन नए राजनीतिक समुदाय, आर्थिक विकास, नगरीकरण, वर्ग संरचना का रूपांतरण, पूर्वक-पश्चिमी देशों में परिवर्तन की प्रक्रिया जैसा दिखाई देने लगा हैं। अतः सामाजिक घटना का यह व्यापक स्वरूप समाजशास्त्र की मूल समस्याओं से जुड़ा हैं। इस प्रकार समाजशास्त्र में ऐतिहासिक, सामाजिक तथा आर्थिक अध्ययन क्षेत्रों की व्यापक तथा निश्चित क्षेत्र अध्ययन का अंतर आज भी विद्यमान हैं।

शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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