3/07/2022

समाजशास्त्र का अन्य सामाजिक विज्ञानों के साथ संबंध

By:   Last Updated: in: ,

प्रश्न; समाजशास्त्र का विभिन्न सामाजिक विज्ञान से संबंध स्पष्ट कीजिए। 

अथवा" समाजशास्त्र का अन्य विज्ञानों के साथ क्या संबंध हैं? विवेचन कीजिए। 

अथवा" समाजशास्त्र का अन्य सामाजिक विज्ञानों के साथ संबंध की व्याख्या कीजिए। 

अथवा" समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र के बीच संबंध स्पष्ट कीजिए। 

अथवा" समाजशास्त्र का इतिहास के साथ क्या संबंध हैं? विवेचन कीजिए।

अथवा" समाजशास्त्र एवं राजनीतिशास्त्र के बीच संबंध स्पष्ट कीजिए। 

अथवा" समाजशास्त्र और मानवशास्त्र के बीच संबंध स्पष्ट कीजिए। 

अथवा" समाजशास्त्र तथा सामाजिक मनोविज्ञान में क्या संबंध हैं? 

अथवा" समाजशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र के बीच संबंध स्पष्ट कीजिए। 

अथवा" समाजशास्त्र और नीतिशास्त्र में क्या संबंध हैं? 

अथवा" समाजशास्त्र और प्राणीशास्त्र में संबंध स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-- 

समाजशास्त्र का अन्य सामाजिक विज्ञानों के साथ संबंध 

Samajshastra ka anya vigyan se sambandh;सामाजिक विज्ञान एक-दुसरे से घनिष्ठ  रूप से संबंधित हैं। वास्तव मे सभी सामाजिक विज्ञान समाज की ही विवेचना करते हैं। उनमें अंतर हैं केवल सामग्री और सामग्री की पकड़ अर्थात् परिप्रेक्ष्य का। समाज या सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्ष (आर्थिक, राजनैतिक आदि) एक-दूसरे से पृथक नहीं हैं, इसलिए उनके अध्ययन भी एक दूसरे से अलग नहीं हो सकते। समाज, व्यक्ति और संस्कृति परस्पर संबंधित तथ्य हैं। इनमें से किसी एक का अस्तित्व और विकास बिना दूसरे के साथ आदान-प्रदान के संभव नहीं हैं। ऐसे में व्यक्ति, समाज और संस्कृति से संबंधित अध्ययन भी एक दूसरे के सहयोग एवं संबंधों के आधार पर ही अधिक यथार्थ व सार्थक हो सकते है। 

समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में संबंध  

अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र का घनिष्ठ संबंध हैं। अर्थशास्त्र जीवन की सामान्य दशाओं से संबंधित उन आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन है जिनका उद्देश्य भौतिक सुख न होकर आर्थिक और सामाजिक कल्याण के लक्ष्य को प्राप्त करना हैं। सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियाँ हमेशा ही एक-दूसरे से जुड़ी रही हैं। समाजशास्त्र के विकास के आरम्भिक काल में तो इसका अध्ययन तक अर्थशास्त्र के अन्तर्गत ही होता था। बाद में समाजशास्त्र का अधिक विकास होने पर ही इसे स्वतंत्र विज्ञान के रूप में स्वीकार किया गया। इसीलिए सम्भवतः अनेक महान अर्थशास्त्री प्रमुख समाजशास्त्री भी हुए हैं। इन्होंने केवल आर्थिक और सामाजिक सिद्धांतों का ही प्रतिपादान नही किया, बल्कि यह भी प्रमाणित कर दिया कि इन दोनों विज्ञानों में से किसी एक का भी पृथक रूप से अध्ययन नहीं किया जा सकता। ऐसे विद्वानों में काॅम्ट, सिसमोंडी, राॅबर्ट ओवन, जे. एस. मिल. परेटो, वेबलिन, मार्क्स, मैक्स वेबर, रानाडे और महात्मा गाँधी के नाम प्रमुख हैं। 

इन दोनों विज्ञानों के बीच घनिष्ठता का एक कारण यह भी है कि यह दोनों ही विज्ञान कुछ ऐसी समस्याओं का अध्ययन करते है जो एक-दूसरे के क्षेत्र के अन्तर्गत आती हैं। जैसे-- औद्योगीकरण, नगरीकरण, निर्धनता, बेरोजगारी, ग्रामीण समस्यायें, ग्रामीण पुनर्निर्माण आदि। साथ ही कुछ ऐसी समस्याओं का अध्ययन भी करते है जिनमें आर्थिक और सामाजिक कारच समान रूप से उत्तरदायी रहते हैं। जैसे-- अपराध, बाल-अपराध, वेश्यावृत्ति, बेरोजगारी, भिक्षावृत्ति आदि। 

थाॅमस ने लिखा हैं," वास्तव में अर्थशास्त्र समाजशास्त्र के विस्तृत विज्ञान की एक शाखा हैं।" 

समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र के बीच अंतर 

अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र में घनिष्ठ संबंध का यह अर्थ नही हैं कि अर्थशास्त्र कोई स्वतंत्र विज्ञान नहीं हैं। समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में निम्नलिखित अंतर हैं-- 

1. समाजशास्त्र मनुष्य के सामाजिक जीवन से संबंधित मनुष्य की सामान्य घटनाओं का अध्ययन करता हैं। अर्थशास्त्र मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता हैं। 

2. समाजशास्त्र का क्षेत्र विस्तृत है और अर्थशास्त्र का क्षेत्र संकुचित हैं। 

3. समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धतियाँ भी अर्थशास्त्र से भिन्न हैं। समाजशास्त्र में वैयक्तिक जीवन पद्धित, समाजमिति, सामाजिक अनुसंधान पद्धित आदि का प्रयोग किया जाता हैं। अर्थशास्त्र में आगमन और निगमन पद्धित का प्रयोग किया जाता हैं। 

4. समाजशास्त्र के सभी नियम पूर्णतः स्वतंत्र हैं। अर्थशास्त्र के सभी नियम पूर्णतः स्वतंत्र नहीं हैं। वे अन्य बातों के समान रहने पर ही सत्य सिद्ध होते हैं।

समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में संबंध 

समाजशास्त्र व राजनीतिशास्त्र परस्पर संबंधित हैं। राजनीतिशास्त्र राज्य और सरकार के सिद्धांतों का अध्ययन करता है। राजनीतिक समस्याओं और घटनाओं के कुछ नियमों का सामाजिक व्यवहार पर प्रभाव पड़ता हैं तथा समाजशास्त्र इनका मूल्यांकन करता है। इस प्रकार राज्य पर भी सामाजिक संबंधों, व्यवहारों, प्रकृतियों आदि का प्रभाव पड़ता है जिसे राजनीतिज्ञ समाजशास्त्र की सहायता से जानते हैं तथा उस ज्ञान को अपने प्रयोग में लाते हैं। 

इस प्रकार स्पष्ट है कि समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र एक-दूसरे से संबंधित हैं। राजनीतिशास्त्र को समाजशास्त्र की सहायता लेनी पड़ती है और समाजशास्त्र को राजनीतिशास्त्र की सहायता लेनी पड़ती हैं। 

समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में अंतर 

इतनी समानता होते हुए भी दोनों शास्त्रों में कुछ विशेष अंतर हैं, यह अंतर निम्नलिखित हैं-- 

1. समाजशास्त्र समाज का विज्ञान हैं जबकि राजनीति विज्ञान राज्य का विज्ञान हैं। 

2. समाजशास्त्र का दृष्टिकोण बहुत व्यापक एवं उदार होता हैं। राजनीतिशास्त्र का दृष्टिकोण अपेक्षाकृत संकीर्ण एवं स्वार्थी हैं। 

3. समाजशास्त्र मानव समस्या के चेतन एवं अचेतन दोनों प्रकार की स्थितियों में व्यवहारों पर प्रकाश डालता हैं। राजनीतिशास्त्र केवल चेतन के विश्लेषण में सजग रहता हैं। 

4. समाजशास्त्र समस्त सामाजिक नियंत्रणों का अध्ययन करता हैं। राजनीतिशास्त्र राज्य द्वारा प्रयोग में लाए गए नियंत्रणों का ही विश्लेषण करता हैं।

समाजशास्त्र और इतिहास में संबंध 

इतिहास भूतकालीन समाज के बारे में बहुत कुछ महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। भूतकालीन सामाजिक जीवन, समाज व्यवस्था तथा महत्वपूर्ण सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक घटनाक्रमों और उनमें होने वाले परिवर्तनों आदि से संबंधित जानकारियाँ समकालीन सामाजिक घटनाक्रमों को समझने में सहायक होती हैं। भूतकालीन ऐतिहासिक सामग्री के आधार पर समाजशास्त्री सामाजिक समूहों एवं संस्थाओं के विकास क्रम को समझने का प्रयास करते है। इस संबंध में सत्यापनीय सामग्री के अभाव में वे अपने विचारों की पुष्टि इतिहास पदत्त सामग्री से ही करते हैं। इतना ही नही विगत घटनाक्रमों के संदर्भ में वर्तमान समाज की जटिलताओं को समझने में भी पर्याप्त सहायता मिलती हैं। वैसे समकालीन सरल समाजों के अध्ययन के आधार पर समूहों व संस्थाओं के विकास क्रम को समझाया अवश्य जाता है फिर भी निश्चित रूप से विभिन्न संस्थाओं, समूहों, जातियों तथा प्रजातियों के विकास एवं संगठन को नही समझाया जा सकता हैं। इतिहास का ज्ञान समाज की व्याख्या में कितना ही उपयोगी क्यों न हो किन्तु ऐतिहासिक सामग्री कभी भी संदेह से परे नहीं हो सकती हैं। चूँकि ऐतिहासिक पद्धितियों में सत्यापन का अभाव होता है इसलिए स्पष्टतः वैज्ञानिक समाजशास्त्र की प्रवृत्ति ऐसे प्रश्नों से शनैःशनै: दूर हटने की रहेगी।

दूसरे शब्दों में, ऐतिहासिक सामग्री का सामाजिक ज्ञान के विकास में उल्लेखनीय योगदान अवश्य है किन्तु कहना न होगा कि आधुनिक समाजशास्त्र का झुकाव प्रयोगसिद्ध व सत्यापनशील घटनाओं के अध्ययन व विश्लेषण की ओर अधिक हैं। आज समाजशास्त्र में अध्ययन की प्रवृत्ति ऐसी घटनाओं के अध्ययन की ओर अधिक हैं जिनका निरीक्षण व सत्यापन संभव हो। कुछ भी हो खासतौर पर सामाजिक इतिहास जो मुख्यतः अपना ध्यान मानवीय संबंधों, सामाजिक व्यवस्था, परम्परा, सैन्य एवं राज्य के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण संगठन व संस्थाओं की ओर केन्द्रित करता हैं, समाजशास्त्र और अधिक स्पष्ट रूप से समाजशास्त्र की एक शाखा ऐतिहासिक समाजशास्त्र के अत्यधिक निकट हैं। 

निकटता व घनिष्ठता के बावजूद समाजशास्त्र और इतिहास एक दूसरे से अलग है और दोनों मे कई मौलिक भेद हैं। इतिहास समयक्रम के अनुसार घटनाओं व सामाजिक व्यवहारों को व्यवस्थित करता हैं, जबकि समाजशास्त्र एक ही समय पर घटित होने वाली विभिन्न घटनाओं के बीच पाई जाने वाली संबंध व्यवस्था को ढ़ँढ़ने का प्रयास करता है। इतिहास मुख्यतः भूतकालीन व प्राचीन घटनाओं के अध्ययन से संबंधित हैं, जबकि समाजशास्त्र साधारणतः अपने को वर्तमान अथवा निकट भूत की घटनाओं के अध्ययन तक सीमित रखता हैं। इतिहास कुछ विशिष्ट घटनाओं, व्यक्तियों एवं समूहों के अध्ययन तक ही सीमित रहता हैं, जबकि समाजशास्त्र सभी समाजों में पाई जाने वाली सामान्य प्रक्रियाओं एवं घटनाओं का अध्ययन करता हैं। यह अपने को किसी विशिष्ट समाज के अध्ययन तक सीमित नहीं रखता। इतिहास अधिकतर घटनाओं के वर्णन तक ही अपने को सीमित रखता हैं, किन्तु समाजशास्त्र घटनाओं के वर्णन के साथ उनकी व्याख्या करने का प्रयास भी करता है तथा उनमें कार्यकारण संबंधों को स्थापित करता हैं। समाजशास्त्र और इतिहास में एक अन्य महत्वपूर्ण अंतर पद्धित संबंधी हैं। समाजशास्त्रीय निष्कर्ष निरीक्षण, परीक्षण पर आधारित व सत्यापित होने की वजह से अधिक निश्चित व प्रामाणिक होते हैं। ऐतिहासिक निष्कर्षों का परीक्षण व पुनर्परीक्षण संभव नहीं होता। इसलिए ये कम विश्वसनीय व कम प्रामाणिक होते हैं।

समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान

समाजशास्त्र और मनोविज्ञान एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं। सामाजिक मनोविज्ञान ने तो समाजशास्त्र और मनोविज्ञान को और भी निकट ला दिया है। मनोविज्ञान को मस्तिष्क या मानसिक प्रक्रियाओं का विज्ञान माना गया है। जिस प्रकार समाजशास्त्र का केन्द्रीय विषय समाज और सामाजिक व्यवस्था (Society and Social System) है, उसी प्रकार मनोविज्ञान का केन्द्रीय विषय व्यक्तित्व (Personality) है। मनोविज्ञान की रुचि व्यक्ति में है, न कि उसकी सामाजिक परिस्थितियों में यह शास्त्र मानसिक तत्वों जैसे, ध्यान, कल्पना, स्नायु प्रणाली, बुद्धि, भावना, स्मृति, मस्तिष्क की स्वाभाविकता एवं विकृति आदि का अध्ययन करता है। इस शास्त्र के द्वारा मनुष्य के मानसिक विचारों एवं अनुभवों का अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाता है। मनोविज्ञान प्रमुखतः व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है; इसमें उन मानसिक प्रक्रियाओं जैसे संवेगों  (Emotions), प्रेरकों (Motives), चालकों (Drives), प्रत्यक्ष बोध (Perception), बोधीकरण (Congnition), सीखना (Learning) आदि का अध्ययन किया जाता है जो व्यक्ति को एक निश्चित प्रकार से व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। व्यक्ति में ये मानसिक प्रक्रियाएँ संगठित रूप में एक निश्चित प्रतिमान का निर्माण करती हैं जिसे व्यक्तित्व कहते हैं व्यक्तित्व व्यवस्था (Personality System) का अध्ययन करना मनोविज्ञान का प्रमुख कार्य है म। समाजशास्त्र सामाजिक व्यवस्था (Social System) का अध्ययन है। इनमें सामाजिक संबंधों, सामाजिक प्रक्रियाओं, समूहों संस्थाओं, प्रथाओं, परम्पराओं, सामाजिक मूल्यों सामाजिक संरचना, सामाजिक परिवर्तन आदि का अध्ययन किया जाता है। इन्हीं से मिलकर सामाजिक परिस्थिति बनती है। समाजशास्त्र व्यक्ति के बजाय प्रमुखत : इसी सामाजिक परिस्थिति का अध्ययन करता है।

समाजशास्त्र और नीतिशास्त्र (आचारशास्त्र) में संबंध 

मैकाइवर के अनुसार समाज को समझने के लिए मूल्यों की अवधारणा को समझना आवश्यक हैं। हम किसी भी समाज के मूल्य अथवा आदर्श प्रतिमानों को समझे बिना उस समाज की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन नही कर सकते। इस आधार पर समाजशास्त्र और आचारशास्त्र का घनिष्ठ संबंध है क्योंकि समाजशास्त्र उस समाज का अध्ययन करता है जिसके मूल्यों का अध्ययन आचारशास्त्र करता है। मूल्य ही वे आधार है जो सामाजिक संबंधों के स्वरूपों का निर्धारण करता हैं। इस दृष्टि से दोनों ही विषय एक-दूसरे के सहायक हैं। 

मूल्यों का निर्धारण समाज करता हैं और समाज की संपूर्ण संरचना इन्हीं मूल्यों के आधार पर क्रियान्वित होती हैं। गलत, सही अच्छा, बुरा, पाप, पुण्य, नैतिक, अनैतिक की मान्यताएं आचारशास्त्र ही मानव समाज को प्रदान करता हैं। दूसरी ओर इन मान्यताओं को व्यावहारिक रूप से तब तक क्रियान्वित नहीं किया जा सकता जब तक समूह संस्था, समिति अथवा समुदाय के माध्यम से मानव समाज उनका सात्मीकरण करने को तत्पर न हो। दोनों में निम्नलिखित अंतर हैं-- 

1. समाजशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक है व आचारशास्त्र एक व्यवस्थित दर्शन हैं।

2. समाजशास्त्र एक तथ्यपरक विज्ञान हैं, व आचारशास्त्र का स्वरूप आदर्शात्मक है। 

3. समाजशास्त्र 'सामाजिक संबंधों' से संबंधित हैं, जबकि आचारशास्त्र का संबंध संबंधों के नियमन से हैं। 

4. समाजशास्त्र 'क्या है' का अध्ययन करता है व आचारशास्त्र 'क्या होना चाहिए' का। 

5. समाजशास्त्र साधारण विज्ञान हैं, आचारशास्त्र की भूमिका विशिष्ट होती हैं। 

समाजशास्त्र और प्राणीशास्त्र 

प्राणीशास्त्र प्राणियों की उत्पत्ति, विकास एवं संगठन का अध्ययन करता है। यह अध्ययन समाजशास्त्र को सामाजिक विषयों को समझने, सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में सहायक होता हैं। प्राणीशास्त्र के अनेक सिद्धांत जैसे प्राकृतिक, प्रवरण का सिद्धांत, अस्तित्व के लिए संघर्ष का सिद्धांत इत्यादि सामाजिक जीवन पर प्रभाव डालते है। इसी प्रकार सामाजिक घटनाओं की अवस्थाओं का भी प्राणीशास्त्रीय तत्वों पर प्रभाव पड़ता हैं। उदाहरण के लिए भारतवर्ष में अंतर्विवाह के कठोर नियमों का जो प्रजनन पर प्रभाव पड़ता है उसमें प्राणीशास्त्र बहुत रूचि रखता हैं। इन दोनों में निम्नलिखित अंतर हैं-- 

1. प्राणीशास्त्र प्राणियों के शरीर के संबंध में अध्ययन करता है, जबकि समाजशास्त्र मानव के सामाजिक संबंधों, प्रक्रियाओं, घटनाओं का अध्ययन करता हैं। 

2. प्राणीशास्त्र का दृष्टिकोण प्राणीशास्त्रीय हैं, जबकि समाजशास्त्र का दृष्टिकोण समाजशास्त्रीय।

शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

3 टिप्‍पणियां:
Write comment

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।