3/07/2022

समाजशास्त्र के अध्ययन का महत्व/उपयोगिता

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प्रश्न; समाजशास्त्र के अध्ययन की क्या उपयोगिता हैं? व्याख्या कीजिए। 

अथवा" समाजशास्त्र के सामान्य महत्व की विवेचना कीजिए। 

अथवा" भारत में समाजशास्त्र के महत्व की विवेचना कीजिए। 

अथवा" समाजशास्त्र की उपयोगिता लिखिए।

उत्तर-- 

समाजशास्त्र के अध्ययन का महत्व तथा उपयोगिता 

आज मानव समाज ने तकनीकी व आर्थिक क्षेत्रों में बहुत प्रगति की हैं। लोगों के जीवन स्तर, जीवन की गुणवत्ता में सुधार हुआ हैं और जीवन आयु में वृद्धि हुई हैं। रहन-सहन की दशाएँ पहले से बहुत बेहतर हुई हैं, किन्तु सभ्यता के इस दौर में जहाँ हमारी अनेक समस्याएँ हल हुई है वहीं अनेक नई समस्याएँ पैदा भी हुई हैं। आधुनिक समाज जटिल से जटिलतर होता जा रहा है। संबंधों की प्रकृति बदल रही है। तकनीकी प्रगति के साथ समाज में जो नई समस्याएँ पैदा हुई हैं उनसे समाज दिन व दिन असुरक्षित होता जा रहा हैं। इस बात में कोई शक नहीं है कि उच्च तकनीकी समाज जिसकी ओर हम तेजी से बढ़ रहे हैं, के सम्मुख कठिन चुनौतियाँ और समस्याएँ उपस्थित होगी और तकनीकी समाज अधिक अस्थिर और अधिक असुरक्षित होगा।  समाजशास्त्र के अध्ययन के द्वारा ही हम इन समस्याओं को ठीक से समझ सकते है और उन्हें सुलझा सकते हैं। समाजशास्त्र एक उपयोगी एवं महत्वपूर्ण सामाजिक विज्ञान हैं। विशेषतः विकासशील देशों में पुनर्निर्माण संबंधी विभिन्न योजनाओं को सफल बनाने में समाजशास्त्रीय ज्ञान विशेष उपयोगी हैं। 

समाजशास्त्र के अध्ययन का महत्व अथवा उपयोगिता निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता हैं--

1. समाज का वैज्ञानिक ज्ञान 

समाजशास्त्र का सबसे महत्वपूर्ण कार्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा वैज्ञानिक पद्धितयों की सहायता से मानव समाज का व्यवस्थित ज्ञान प्रदान करना है। विभिन्न समाजशास्त्रीय अध्ययन सामाजिक घटनाओं के कार्य-करण संबंधों को स्पष्ट करके सामाजिक संस्थाओं तथा सामाजिक संबंधों में होने वाले परिवर्तनों की विवेचन करते हैं। इसके अतिरिक्त व्यवस्थित रूप से उन सामाजिक इकाइयों को स्पष्ट करते हैं जिनका किसी सामाजिक संरचना के निर्माण में विशेष योगदान होता हैं। इसके फलस्वरूप व्यक्ति को अपने समाज से संबंधित सामाजिक मूल्यों, व्यवहार के नियमों, धर्म, परम्परा और संस्कृति जैसे भावनात्मक पक्षों को भी तार्किक आधार पर समझने में सहायता मिलती हैं। 

2. अन्तर्राष्ट्रीय जीवन को शांतिपूर्ण बनाने में सहायता 

समाजशास्त्र के अध्ययन की उपयोगिता केवल इसलिए ही नही हैं कि यह हमारे समाज के संबंध में वैज्ञानिक ज्ञान उपलब्ध कराता हैं, परन्तु यह विश्व के विभिन्न समाजों से भी हमें परिचित कराता हैं। 

3. व्यवसाय में सहायता 

आधुनिक युग में समाजशास्त्र का अध्ययन व्यवसाय की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हो सकता हैं। इसका कारण यह है कि आज के समाज का निर्माण करने के लिए प्रशिक्षित सामाजिक अनुसंधानकत्ताओं की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। आज के समाज के लिए श्रम अधिकारी, श्रम कल्याण अधिकारी, मानव संबंध अधिकारी, आदि की माँग में निरन्तर वृद्धि होती जा रही हैं। 

4. श्रम समस्याओं के निराकरण में सहायक 

विश्व के विभिन्न राष्ट्रों में औद्योगीकरण तेजी के साथ बढ़ता जा रहा है। आज भारत जैसा कृषि प्रधान समाज भी औद्योगीकरण की दिशा में आगे बढ़ रहा है। औद्योगिक समाजों में पूंजीपति और श्रमिक वर्ग के बीच तनाव और संघर्ष की स्थिति पायी जाती है। पूंजीपति और श्रमिक वर्ग के हित एक-दूसरे से टकराते हैं। आज औद्योगिक क्षेत्रों में अनेक समस्याएं पायी जाती हैं, जैसे हड़ताल घेराव, तालाबन्दी, श्रमिक तनाव, काम की अस्वास्थ्यकर दशाएँ, मालिक और मजदूर के झगड़े, उचित मजदूरी की समस्या कार्यशील महिलाओं की समस्याएँ आदि। जब तक इन समस्याओं को हल नहीं किया जाता तब तक औद्योगिक क्षेत्र में न तो उत्पादन ही बढ़ाया जा सकता और न ही राष्ट्र को समृद्धिशाली बनाया जा सकता है। इन समस्याओं को समझने और इनके निराकरण में समाजशास्त्र महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यही कारण है कि आज समाजशास्त्र का विकास हुआ है । आज भारत में अनेक श्रम कल्याण सम्बन्धी योजनाएँ चल रही हैं। इन योजनाओं का सफल क्रियान्वयन बहुत कुछ समाजशास्त्रीय ज्ञान पर निर्भर करता है। औद्योगिक क्षेत्र में समाजशास्त्र का महत्त्व इसी से स्पष्ट है कि आज श्रम कल्याण अधि कारी के रूप में औद्योगिक समाजशास्त्र के विद्यार्थियों को प्राथमिकता दी जाती है।

5. पारिवारिक संगठन में सहायता 

प्रत्येक व्यक्ति जन्म से ही परिवार का सदस्य होता हैं। प्रत्येक व्यक्ति की उसके परिवार में एक निश्चित स्थिति होती हैं और उसी के अनुसार उसके कार्य भी निश्चित होते हैं। पारिवारिक संगठन तभी तक बना रह सकता हैं जब तक उसके सदस्य अपनी स्थिति एवं कार्य के संबंध में ज्ञान प्राप्त करते हैं। 

6. संस्कृति के संरक्षण तथा विकास में सहायक 

समाजशास्त्र एक ऐसा विषय हैं जो हमें संस्कृति के विभिन्न तत्वों जैसे धर्म, परम्परा, प्रथाओं, सांस्कृतिक मूल्यों, संस्थाओं तथा शिष्टाचार के तरिकों को अधिक तार्किक और वस्तुपरक ढंग से समझने में सहायता करता हैं। योगेन्द्र सिंह ने इस तथ्य को भारत में परम्परा तथा आधुनिकता की निरन्तरता के द्वारा स्पष्ट किया। वास्तविकता यह है कि संसार की किसी भी संस्कृति को एक-दूसरे से अच्छा बुरा नहीं कहा जा सकता। सभी समाज अपनी परम्पराओं का सम्मान करते हैं। इसके बाद भी यह सच है कि सभी समाजों में आधुनिकता के लक्षण बढ़ने के साथ एक ऐसे विश्वव्यापी दृष्टिकोण का भी विकास हुआ है जिसके कारण परम्पराओं में परिवर्तन की प्रवृत्ति स्पष्ट होने लगी हैं। समाजशास्त्र का ज्ञान हमें परम्परा तथा आधुनिकता की निरन्तरता को बनाये रखने वाले तत्वों को समझने में सहायता देता हैं। 

7. सामाजिक अनुकूलन में सहायता 

आधुनिक युग में परिवर्तन अत्यंत द्रुत गति से हो रहे हैं। सफल जीवन व्यतीत करने के लिए इन परिवर्तनों से अनुकूलन करना मनुष्य के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। समाजशास्त्र इन परिस्थितियों में अनुकूलन करना सिखाता हैं, इसलिए इसका अध्ययन आवश्यक और महत्वपूर्ण हैं।

8. सामाजिक समस्याओं को हल करने में सहायक 

आधुनिक समाज अत्यधिक जटिल हैं। जटिल समाजों में समस्यायें भी अत्यधिक होती हैं। समाजशास्त्र सामाजिक समस्याओं का वैज्ञानिक अध्ययन कर उनके निराकरण हेतु उपाय सुझाता हैं। इस प्रकार सामाजिक समस्याओं को हल करने में समाजशास्त्र सहायक हैं। 

9. भावात्मक तथा राष्ट्रीय एकीकरण 

भावात्मक तथा राष्ट्रीय एकीकरण वर्तमान समय में उन समाजों के सबसे जरूरी हैं जिनमें एक-दूसरे से भिन्न धर्मों, संस्कृतियों, प्रजातियों, विश्वासों और मनोवृत्तियों वाले लोग साथ-साथ रहते हैं। समाजशास्त्रीय अध्ययन विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों तथा प्रजातियों की एकता संबंधी विशेषताओं को स्पष्ट करते हैं। इससे सभी समुदायों को एक-दूसरे के निकट आने का अवसर तथा संजातीयता की समस्या का प्रभावपूर्ण समाधान करने में व्यापक सफलता प्राप्त हो सकी। 

समाजशास्त्र एक तार्किक और निष्पक्ष दृष्टिकोण के द्वारा भी समाज में भावात्मक एकीकरण बढ़ाने का प्रमुख आधार हैं। 

10. ग्रामीण पुनर्निमाण में सहायक 

भारत की अधिकांश जनसंख्या आज भी ग्रामों में निवास करती है और ग्राम पिछले करीब 55 वर्षों के नियोजित प्रयत्नों के बावजूद आज भी अनेक समस्याओं से ग्रस्त हैं। ग्रामों में निर्धनता, बेकारी, कृषि का पिछड़ापन, परम्परागत पेशों पर निर्भरता, ऋणग्रस्तता, जातिवाद, ऊँच-नीच अस्पृश्यता, अन्धविश्वास बाल विवाह पर्दा प्रथा आदि आर्थिक , सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याएँ पायी जाती हैं। इन सब ग्रामीण समस्याओं को उस समय तक नहीं सुलझाया जा सकता जब तक कि ग्रामीण सामाजिक संरचना का समाजशास्त्रीय ढंग से अध्ययन नहीं किया जाता। ग्रामीण समाज के सम्बन्ध में वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त करके ही इन समस्याओं की प्रकृति को समझा और इनका निराकरण किया जा सकता है यही कारण है कि समाजशास्त्र की एक शाखा के रूप में ग्रामीण समाजशास्त्र का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है समाजशास्त्रीय ज्ञान के आधार पर ग्रामीणों की सामाजिक सांस्कृतिक परम्पराओं को जानकर ही ग्रामीण पुनर्निर्माण की विभिन्न योजनाओं को सफल बनाया जा सकता है स्पष्ट है कि ग्रामीण पुनर्निर्माण की दृष्टि से समाजशास्त्र की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण है। 

11. नगरीय विकास में सहायक 

वर्तमान समय में औद्योगीकरण की तेज गति के कारण नगरीकरण की प्रक्रिया भी काफी तेजी से चल रही है। शिक्षा, मनोरंजन, चिकित्सा सुविधा, कचहरी, उद्योग-धन्धे और विभिन्न सुविधाएँ ग्रामीणों को नगरों की ओर आकर्षित करती जा रही हैं परिण मस्वरूप नगरों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। जिस गति से औद्योगीकरण और नगरीकरण होता जा रहा है, उसके साथ-साथ विशेषतः नगरों के स्वस्थ और सन्तुलित विकास की समस्या उठ खड़ी हुई है। आज नगरों में अनेक समस्याएं पायी जाती हैं जैसे घनी बस्तियाँ, भीड़-भाड्युक्त वातावरण, मद्यपान, जुआ अपराध, बाल अपराध भिक्षावृत्ति, वेश्यावृत्ति आदि। वर्तमान में नगरों का भौतिक विकास तो तेजी से साथ होता जा रहा है, परन्तु सांस्कृतिक दृष्टि से नगर पिछड़ते जा रहे हैं, नैतिकता का ह्रास होता जा रहा है। परिणामस्वरूप नगरों में सांस्कृतिक पिछड़ की स्थिति पायी जाती है जो विभिन्न प्रकार के असन्तुलनों एवं संघर्षों के लिए उत्तरदायी है। इन सब समस्याओं के निराकरण एवं स्वस्थ आधार पर नगरीय विकास के लिए समाजशास्त्रीय ज्ञान का लाभ उठाना अत्यन्त आवश्यक है। यही कारण है कि आज समाजशास्त्र की एक शाखा के रूप में नगरीय समाजशास्त्र का महत्त्व बढ़ता ही जा रहा है।

शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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