9/24/2021

वर्साय की संधि, प्रावधान/धाराएं

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वर्साय की सन्धि (28 जून, 1919) 

varsay ki sandhi;6 मई, 1919 ई. को वर्साय की सन्धि का अन्तिम प्रारूप तय किया गया। यह 230 पृष्‍ठों का लम्‍बा सन्धि पत्र था, जिसमें 440 मुख्‍य धाराएं, 15 भाग तथा 80 हजार शब्‍द थे। 28 जून को जर्मन प्रतिनिधियों ने इस पर हस्‍ताक्षर किए। जर्मनी ने इस व्‍यवस्‍था के विरोध में दस्‍तावेज प्रस्‍तुत किया था, किन्‍तु उस पर कोई विचार नहीं किया गया और जर्मनी को सन्धि के लिए बाध्‍य किया गया। 

 वर्साय की सन्धि की विविध धाराएं में--

1. सैनिक व्‍यवस्‍थाएं।

2. प्रादेशिक व्‍यवस्‍थाएं ।

3. आर्थिक व्‍यवस्‍थाएं और नवीन व्‍यवस्‍थाएं निहित थीं। 

इस सन्धि का स्‍वरूप अन्‍य सन्धियों से अलग था। वर्साय के लुई 14वें के राजमहल-शीशमहल में जर्मन प्रतिनिधियों को इस शर्मनाक सन्धि पर हस्‍ताक्षर करने हेतु बाध्‍य कर मित्र राष्‍ट्रों ने ‘‘भावी संघर्ष के बीज बो दिए थे।‘‘ 

वर्साय की संधि के मुख्य प्रावधान, धाराएं

वर्साय की संधि द्वारा किए गये प्रावधान या संधि की धाराएं निम्नलिखित हैं--

1. सन्धि के द्वारा प्रदेशिक व्‍यवस्‍थाएं

इस संधि के द्वारा निम्‍नलिखित प्रादेशिक व्‍यवस्‍थाएं की गई थी--

1. जर्मनी को अल्‍सास लॉरेन का क्षेत्र फ्रांस को देना पड़ा। यह क्षेत्र कोयलें की खानों के लिए जाना जाता है। यह 723 वर्गमील का क्षेत्र था जो आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्‍वपूर्ण था। 

2. जर्मनी का सार प्रदेश राष्‍ट्रसंघ के अधीन कर दिया गया और 15 वर्ष बाद जनमत संग्रह द्वारा उसके भाग्‍य का निर्णय करने की घोषणा की गई। इस अवधि में सार की कोयले की खदानों को चलाने का अधिकार फ्रांस को दे दिया गया।

3. राइनलैंड उन्‍नीसवीं सदी में दो बार फ्रांस को जर्मनी द्वारा नीचा देखना पड़ा था। फ्रांस के भविष्‍य की सुरक्षा को ध्‍यान में रखकर क्लिमेंशों ने यह मांग की कि राइन नदी के पश्चिम के प्रदेश को जर्मनी से पृथक करके एक ऐसे राज्‍य में परिवर्तित कर दिया जाए, जो अन्‍तर्राष्‍ट्रीय दृष्टि से फ्रांस के प्रभाव में रहे। लायड जॉर्ज का कहना था कि ऐसा करने से एक दूसरे एल्‍सस. लोरेन की समस्‍या उठ खड़ी हो जायेगी और विल्‍सन का कहना था कि इस तरह की व्‍यवस्‍था से आत्‍मनिर्णय के सिद्धांत का उल्‍लंघन होगा। काफी विचार और बहस के बाद क्लिमेंशों राइन के सम्‍बंध में इस समझौते को स्‍वीकार करने के लिए तैयार हो गया कि कुछ निश्चित समय के लिए इस प्रदेश में मित्रराष्‍ट्र की सेना रखी जाये ताकि जर्मनी इसका उपयोग अपनी सैनिक शक्ति को बढ़ाने के लिये नहीं कर सके। 

4. राइनलैंड को तीन भागों में विभक्‍त कर दिया गया उत्तरी, मध्‍यवर्ती और दक्षिणी। यह तय हुआ कि मित्रराष्‍ट्रों की सेनाएं उत्तरी भाग पर पन्‍द्रह साल तक कब्‍जा किये रहें। इसके अतिरिक्‍त यह भी तय हुआ कि राइन नदी के दाहिने भाग के 31 मील चैड़े प्रदेश पर जर्मनी किसी भी प्रकार की किलाबन्‍दी नहीं करें और यदि जर्मनी संधि की किसी शर्त का पालन नहीं करे तो मित्रराष्‍ट्रों की सैनिक कब्‍जे की अवधि और अधिक बढ़ाई जा सकें। 

5. इसके क्षेत्रफल लगभग 732 वर्गमील है, यह बहुत ही महत्‍वपूर्ण इलाका था क्‍योंकि यह कोयले की खानों से भरा था। फ्रांस ने इस क्षेत्र पर अपना दावा प्रस्‍तुत किया। उसका कहना था कि जर्मनी ने युद्ध के समय उसकी सम्‍पूर्ण कोयले की खानों को बर्बाद कर दिया था। अतः इस महत्‍वपूर्ण प्रदेश पर उसका आधिपत्‍य होना चाहिए। यद्यपि विल्‍सन और लॉयड जॉर्ज सार के खानों से सम्‍बन्धित फ्रांसीसी मांग की पूर्ति करना चाहते थे तथापि फ्रांस ने साथ उनके राजनीतिक अनुबन्‍ध का उन्‍होंने विरोध किया क्‍योंकि सार की प्रायः सम्‍पूर्ण जनता जर्मन थी। अन्‍त में सार के प्रदेश पर भी एक समझौता हुआ जिसके अनुसार सार प्रदेश की शासन व्‍यवस्‍था की जिम्‍मेवारी राष्‍ट्रसंघ को सौंप दी गयी और उसकी खानों को फ्रांस के अधीन कर दिया गया। इस क्षेत्र के प्रशासन का काम एक आयोग को सौंपा गया जिसमें फ्रांसीसियों की प्रधानता रही। यह व्‍यवस्‍था की गयी कि पन्‍द्रह साल के बाद लोकमत द्वारा यह निश्‍चय किया जाये कि सार पर किसका कब्‍जा रहे यदि सार की जनता जर्मनी के साथ रहने का निर्णय करे तो जर्मनी को वहां की खाने फ्रांस से खरीदनी पड़ेंगी। इसके मूल्‍य का निर्धारण एक फ्रेंच, एक जर्मनी के तथा राष्‍ट्रसंघ के एक विशेषज्ञ द्वारा होगा। इस प्रकार वर्साय संधि के द्वारा जर्मनी का एक बहुत बड़ा भू-भाग फ्रांस को दिया गया। 

6. यूपेन, मार्सनेट तथा मलमेड़ी के प्रदेश में जो जर्मनी के अधीन थे, वहां जनमत लिया गया और इसके बाद इन प्रदेशों को बेल्जियम में सुपुर्द कर दिया गया। 

7. श्‍लेसविंग का प्रश्‍न भी जनमत के द्वारा ही त‍य किया गया। 1864 में बिस्‍मार्क ने इस प्रदेश को डेनमार्क से जीत लिया था, परन्‍तु वहां के अधिकांश निवासी डेनमार्क के साथ मिलना चाहते थे। यह क्षेत्र वर्साय की संधि के द्वारा डेनमार्क को दे दिया गया। 

2. प्रादेशिक व्‍यवस्‍थाएं 

इस संधि द्वारा निम्‍नलिखित प्रादेशिक व्यवस्थाएं की गई--

1. जर्मनी को अल्‍सास लॉरेन के प्रदेश फ्रांस को देना पड़े। 

2. जर्मनी के सार प्रदेश की शासन व्‍यवस्‍था 15 वर्षो के लिए राष्‍ट्रसंघ को सौंप दी गई। पन्‍द्रह वर्ष बाद जनमत संग्रह द्वारा उस क्षेत्र का भाग्‍य निर्धारण होना था। इस अवधि में सार की कोयला खदानें फ्रांस के अधिकार में दे दी गई। 

3. श्‍लेसविंग में जनमत संग्रह किया गया। उस आधार पर उत्तरी श्‍लेसविग डेनमार्क को दिया गया। दक्षिणी श्‍लेसविग जर्मनी के पास रहा। 

4. मित्र राज्‍यों ने युद्ध समाप्ति के बाद एक स्‍वतंत्र पोलैण्‍ड राज्‍य का निर्माण करने का निश्‍चय किया जिसका उल्‍लेख विल्‍सन के चैदह सूत्रों में किया गया था। जर्मनी, आस्ट्रिया और रूस के पोलिश क्षेत्रों को लेकर स्‍वतंत्र पोलैण्‍ड़ का निर्माण किया गया। इसमें जर्मनी की पूर्वी सीमा का एक बड़ा हिस्‍सा पोलैण्‍ड़ को देना पड़ा। 

5. पोलैण्‍ड़ के नवनिर्मित राज्‍य का समुद्रतट से संबंध स्‍थापित करने के लिए जर्मनी को डेन्जिग का बंदरगाह राष्‍ट्रसंघ को देना पड़ा। डेन्जिंग के चारों ओर का 700 वर्गमील का क्षेत्र मिलाकर स्‍वतंत्र नगर घोषित किया गया। उसका शासन राष्‍ट्रसंघ के अधीन रखा गया। 

6. जर्मनी को बाल्टिक सागर तट पर स्थित मेमेल का बंदरगाह भी राष्‍ट्रसंघ को हस्‍तान्तरित करना पड़ा। 1923 ई. में यह बंदरगाह लिथुआनिया को दे दिया गया। जर्मनी ने चेकोस्‍लोवाकिया के नवनिर्मित राज्‍य को भी मान्‍यता दी। ऊपरी साइलोशिया का एक छोटा-सा क्षेत्र भी उसको हस्‍तान्‍तरित किया गया। 

इस प्रादेशिक व्‍यवस्‍था के अनुसार जर्मनी के यूरोप में अपने राज्‍य का लगभग साढ़े तेरह प्रतिशत भाग और 70 लाख जनसंख्‍या का त्‍याग करना पड़ा। 

3. आर्थिक व्‍यवस्‍थाएं

भू-भागीय लूटपाट तथा सैनिक प्रतिबन्‍धों के साथ मित्र राष्‍ट्रों ने जर्मनी पर आर्थिक प्रतिबन्‍ध लगाकर जर्मनी की कमर ही तोड़ दी थी। कठोर आर्थिक प्रतिबन्‍ध इस दृष्टि से लगाए गए कि युद्ध से क्षतिग्रस्‍त जर्मनी आने वाली शताब्‍दी तक यूरोप में‍ सिर ऊंचा नहही कर सके। 

1. युद्ध में पराजित जर्मनी की आर्थिक स्थिति जर्जरित हो गई थी। उसके उपरान्‍त भी ‘‘क्षतिपूर्ति आयोग‘‘ गठित कर यह पता लगाया गया कि किस देश की कितनी आर्थिक क्षति हुई है। डावेस योजना से जर्मनी पर आर्थिक प्रतिबन्‍ध आरोपित किए गए। 

2. क्षतिपूर्ति के लिए जर्मनी से मुफ्त में फ्रांस, बेल्जियम, इटली और लक्‍जमबर्ग को कोयला देने के लिए बाध्‍य किया गया। तारकोल और नौसादर भी जर्मनी द्वारा फ्रांस को दिया जाना तय हुआ। इसके अतिरिक्‍त जर्मनी को बिना मूल्‍य चुकाए लोहा, चूना पत्‍थर, सीमेंट, ईंट, लकडीं, जस्‍ता, लीड तथा एल्‍युमिनियम मित्र राष्‍ट्रों को देने के लिए विवश किया गया।  

3. जर्मनी के 1600 से अधिक टन के जहाज छीन लिए गए और यह निर्धारित किया गया कि अगले पांच वर्षो में वह बीस लाख डॉलर के जहाज मित्र राष्‍ट्रों को देगा। 

4. यह भी निर्धारित किया गया कि जर्मनी अपनी रेलों में यातायात् के लिए मित्र राष्‍ट्रों से बहुत कम किराया लेगा। 

5.जर्मनी की मुख्‍य नदिंयो - ऐल्‍ब, डेन्‍यूब, नीमन तथा ओडर को अन्‍तर्राष्‍ट्रीकरण कर दिया गया। राइन नदी को अन्‍तर्राष्‍ट्रीय आयोग के सुपूर्द किया गया तथा कील नहर सभी देशों के लिए खोल दी गई। 

6. जर्मन उपनिवेशों की सम्पत्ति मित्र राष्‍ट्रों ने बांट ली। 

ऊपर वर्णित शर्तो का पालन कराने के लिए राइन नदी का पश्चिम का क्षेत्र जमानत के रूप में अगले 15 वर्षो के लिए मित्र राष्‍ट्रों के अधिकार में चला गया। आयोग के निर्णयानुसार लगभग 6 अरब 10 करोड़ पौण्‍ड़ जर्मनी पर क्षतिपूर्ति लादी गई जो उसको मित्र राष्‍ट्रों को भुगतान करना था। 

‘‘जर्मनी के उदास मुख पर कालिख लगाकर उसे दरिद्रता के गधे पर बिठा दिया गया।‘‘

जर्मनी की जनता तथा शासकों को इस शर्मनाक सन्धि पर हस्‍ताक्षर करने के लिए बाध्‍य करते हुए इंग्‍लैण्‍ड़ के प्रधानमंत्री लायड़ जार्ज ने कहा, ‘‘भद्र पुरूषों! आपकों सन्धि पत्र पर हस्‍ताक्षर करने ही पड़ेंगे। यदि वर्साय में सन्धि पर हस्‍ताक्षर नहीं करोगे तो बर्लिन में निश्चित रूप से हस्‍ताक्षर करने होंगे।"

वर्साय की सन्धि की आलोचना 

कई इतिहासकारों ने वर्साय की संधि की आलोचना की है, क्‍योकि इस में पराजित राष्‍ट्रों को पेरिस शान्ति सम्‍मेलन में नहीं बुलाकर सन्धि की शर्ते तय गई थीं। सन्धि पर हस्‍ताक्षर के लिए जर्मन प्रतिनिधियों विदेश मंत्री डॉ. हरमैन मूलर तथा डाॅ. जोहन्‍स‍बेल को अपराधियों की भांति संधि पर हस्‍ताक्षर करने हेतु विशाल हॉल में लाया गया। उनके साथ सन्धि पर हस्‍ताक्षर करते समय तक असभ्‍य व्‍यवहार कर वर्साय में सन्धि नहीं करने पर बर्लिन में सन्धि कराने की धौंस दी गई थी। स्‍पष्‍टतः लायड जार्ज के इस कथन से झलकता है कि मित्र राष्‍ट्रों की सेनाएं संधि नहीं करने पर बर्लिन को रौंदने के लिए तैयार थीं। संधि आरोपित करने के पश्‍चात् जर्मनी को मात्र सुझाव प्रस्‍तुत करने का अवसर दिया गया। 

1. पक्षपात पूर्ण सैनिक व्‍यवस्‍था 

वर्साय की संधि ने जर्मनी को सैनिक स्‍तर पर पूरा तोड़ दिया। उसकी जल सेना सीमित हो गई। जहाजी बेड़े मित्र राष्‍ट्रों को दे दिए गए। वायु सेना भंग हो गई। इससे जर्मनी को बहुत नुकसान हुआ अतः उसने इस व्‍यवस्‍था को ठुकरा दिया। 

2. अन्‍याय एंव अपमान पर आधारित प्रादेशिक व्‍यवस्‍था 

इस संधि से जर्मनी की राजनीतिक प्रतिष्‍ठा को बहुत आद्यात लगा, उसके लगभग 25,000 वर्ग मील क्षेत्र छीन लिए गए। इससे उसकी जनसंख्‍या में बहुत अंतर आया, लगभग 6 लाख 50 हजार की कमी हुई। उसे सभी उपनिवेशों से बेदखल कर 10 लाख वर्ग मील क्षेत्र की हानि पहुंचाई गई। इससे जर्मनवासी अपने ऊपर अन्‍याय तथा अपमान मान इस व्‍यवस्‍था को पलटने के लिए व्‍याकुल हो गए। 

3. अमानवीय कठोर निर्णय 

वर्साय की सन्धि की शर्ते अमानवीय तथा अत्‍यंत कठोर थीं। इसमें दोषपूर्ण प्रादेशिक निर्णय लेकर जर्मनी का अंग-भंग कर दिया गया था। जर्मनी को आर्थिक रूप से निचोड़कर अवशेष के रूप में फेंक दिया गया था। उसकी सैनिक शक्ति को कुंठित कर सैनिक सामग्री लूट ली गई थीं। उसके द्वारा उत्‍पादित सामग्री, कच्‍चे माल पर अधिकार कर अरबों रूपए युद्ध क्षति के रूप दिए गए थे। उसकी महत्‍वपूर्ण भूमि को जमानत के रूप में गिरवी रख लिया गया था। 

जर्मन चांसलर बेथमैन ने कहा, ‘’दुनिया के पराजित देशों को गुलाम बनाने का इससे भयंकर यंत्र कभी नहीं देखा गया।‘’ जर्मन प्रतिनिधियों ने हस्‍ताक्षर करते समय कहा, ‘’एक सम्‍पूर्ण राष्‍ट्र का अपने मृत्‍युपत्र के आदेश पर हस्‍ताक्षर करने के लिए कहा जा रहा है।‘’ 

घृणा के अपमानजनक वातावरण में संधि की शर्तो पर हस्‍ताक्षर करने के लिए जर्मन प्रतिनिधियों को विवश किया गया। जर्मन जाति एंव राष्ट्र को पद दलित पर अपमानित किया गया। इसी कारण कालान्‍तर में एडोल्‍फ हिटलर के समान तानाशाह का उदय हुआ जिसने विकराल रूप धारण कर समस्‍त विश्‍व में ज्‍वालामुखी के समान विस्‍फोट कर दिया था। 

4. विश्‍वासघात तथा बदले की भावना पर आधारित 

यह संधि विश्‍वासघात तथा बदले की भावना से परिपूर्ण थी। जर्मन इतिहासकारों ने बराबर चेतावनी दी थी कि यह संधि भावी घृणा के बीच और भावी युद्ध के लिए भू‍मिका है। मित्र राष्‍ट्रों ने जर्मनी के नम्रतापूर्ण निवेदन को ठोकर लगाकर जर्मनी में प्रतिशोध की भावना को जन्‍म दिया। परिणाम स्‍पष्‍ट था कि हिटलर ने कालान्‍तर में संधि की शर्तेा की धज्जियां उड़़कार समस्‍त व्‍यवस्‍था को कुचल दिया था। यह संधि द्वितीय महायुद्ध के विनाशकारी परिणामों के लिए उत्तरदायी थी। विल्‍सन के 14 सूत्रों में भी उन्‍ही पर ध्‍यान दिया गया जिनमें विजित राष्‍ट्रों के हित निहित थे। अतः स्‍पष्‍टतः यह जर्मनी के साथ विश्‍वासघात था। 

वर्साय की संधि पर मित्र राष्‍ट्रों का दृष्टिकोण

जब जर्मनी ने इस संधि का विरोध किया तो मित्र राष्‍ट्रों ने जवाब देते हुए कहा कि यह संधि न्‍यायोचित हैं। युद्ध के लिए जर्मनी दोषी हैं तथा सभी राष्‍ट्रों की क्षतिपूर्ति उसके द्वारा की जाना ही उचित है। जर्मनी ने ही युद्ध थोप कर समस्‍त विश्‍व को संकट में डाला है। आर्थिक, सैनिक तथा भूमि के बंटवारे के सम्‍बंध में मित्र राष्‍ट्रों का कथन था कि जर्मनी को सैनिक दृष्टि एंव अन्‍य दृष्टि से कमजोर बनाना अत्‍यावश्‍यक था, ताकि वह पुनः विश्‍व को खतरे में नहीं डाल सके। इस संधि में धार्मिक, जातीय तथा भाषा सम्‍बंधी आधार पर ही निर्णय लिए गए है। वस्‍तुतः मित्र राष्‍ट्र उन देशों के दबाव में भी काम कर रहे थे, जिनकी अत्‍यधिक हानि हुई थी। 

इस संधि में फ्रांस ने सन् 1870 ई. की हार का प्रतिशोध लिया था। यदि संधि में जर्मनी को आमांत्रित किया जाता तो वह फ्रांस के प्रति उसके दृष्टिकोण को समझकर फ्रांसीसी प्रतिशोध की भावना को प्रभावित कर राष्‍ट्रों को उद्वेलित होने से रोक सकता था। मित्र राष्‍ट्रों को कई कूटनीतिक दबावों के अंतर्गत निर्णय लेना पड़े थे। 

संधि का औचित्‍य 

क्रिया-प्रतिक्रिया तथा विश्‍लेषण से ही इतिहास की धाराएं मोड़ लेती हैं। इस संधि की प्रतिक्रिया के फलस्‍वरूप जर्मन जनता अपने अपमान एंव अन्‍याय का बदला लेने का अवसर ढूंढ़ रही थी। यही कारण है कि वर्साय की संधि की प्रतिक्रिया का विश्‍लेषण नाजीवाद और हिटलर की तानाशाही के रूप में प्रज्‍ज्‍वलित इतनी तीव्र थीं कि 20 वर्षो के अन्‍तराल के पश्‍चात् ही सम्‍पूर्ण विश्‍व द्वितीय महायुद्ध के दावानल में झुलसने लगा। दक्षिण अफ्रीका के राजनीतिज्ञ स्‍मट्स  के कथनानुसार, ‘‘जिन नवीन व्‍यवस्‍थाओं और महान आदर्शो की स्‍थापना के लिए लोगों ने अपरिमित रक्‍त और धन बहाया था, वे आशाएं इस संधि से पूरी नही कि जा सकी है।‘‘ वस्‍तुतः संधि ठोस आधारों पर स्थित नहीं थीं।

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