9/24/2021

पेरिस शांति सम्‍मेलन

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पेरिस का शांति सम्‍मेलन (1919)

paris shanti sammelan;प्रथम विश्‍वयुद्ध के पश्‍चात् मित्र राज्‍यों ने पराजित राष्‍ट्रों के साथ युद्ध का हर्जाना वसूलने के लिए तथा भविष्‍य में शांति व्‍यवस्‍था बनाए रखने के लिए पेरिस में एक सम्‍मेलन बुलाने का निर्णय किया। यह सम्‍मेलन पेरिस में इसलिए बुलाया गया था क्‍योंकि फ्रांस ने युद्ध में बहुत सक्रिय भूमिका निभाई थी। इस सम्‍मेलन की आवश्‍यकता को बताते हुऐं प्रो. सी. एस. जैन लिखते है कि ‘‘1918 ई. में प्रथम विश्‍वयुद्ध तो समाप्‍त हो गया परन्‍तु यह अनेक प्रकार की ऐसी भीषण और जटिल राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक समस्‍यांए छोड़ गया जैसी संसार के सामने पहले कभी उपस्थित नहीं हुई थी। महाद्वीप पर अनेक परंपरागत शासनों (जर्मनी, आस्ट्रिया, रूस और तुर्की के साम्राज्‍य) का अंत हो चुका था, व्‍यस्‍त विशाल प्रदेश नष्‍ट-भ्रष्‍ट हो चुके थे, यूरोप का आर्थिक जीवन अस्‍त-व्‍यस्‍त हो चुका था, असंख्‍य लोग वर्षो से अपर्याप्‍त भोजन के कारण बीमार या भूख से मर रहे थे और समस्‍त राष्‍ट्रों के लगभग 80 लाख नवयुवक रणचंडी की भेंट चढ़ चुके थे। शांति स्‍थापित करने का काम वैसे ही कठिन होता है, परन्‍तु उस समय इन सभी कारणों से वातावरण कटुता एंव घृणा से भरा हुआ था, ऐसी स्थिति में विजेता राष्‍ट्रों के प्रतिनिधि पेरिस में ऐसी व्‍यवस्‍था स्‍थ‍ापित करने के लिए एकत्र हुए जिसके द्वारा पराजित राष्‍ट्रों के साथ प्रतिशोधात्‍मक न्‍याय हो सके, राष्‍ट्रीयता के सिद्धांत के आधार पर राजनैतिक सीमाओं का संशोधन हो सके, विजेता राष्‍ट्रों की क्षतिपूर्ति हो सके, पराजित राष्‍ट्रों का निःशस्‍त्रीकरण हो सके और साथ ही शांति की स्‍थायी नींव डाली जा सके।‘‘

पेरिस के शांति सम्‍मेलन में भाग लेने के लिए 32 राज्‍यों को आमंत्रित किया गया था। इन 32 राज्‍यों में प्रतिनिधियों में चार बड़े राज्‍यों के प्रतिनिधियों को ही प्रमुख स्‍थान प्राप्‍त हुआ था। सम्‍मेलन के सारे निर्णय इन चार राज्‍यों ने ही किए थे। ये चार राज्‍य और उनके प्रतिनिधि इस प्रकार थे -

(अ) संयुक्‍त राष्‍ट्र अमेरिका के राष्‍ट्र प्रमुख राष्‍ट्रपति विल्‍सन। 

(ब) फ्रांस के प्रधानमंत्री क्‍लीमेंशु। 

(स) इंग्‍लैण्‍ड़ से लायड़ जार्ज। 

(द) इटली से ओरलैंड। 

पेरिस सम्‍मेलन पर कई दिनों पर विचार-विमर्श के बाद सन्धियों की शर्तो के मसौदा तैयार किया गया। पेरिस सम्‍मेलन के आधार पर निम्‍न लिखित सन्धियां सम्‍पन्‍न की गई थीं--

1. वर्साय की सन्धि 

यह सन्धि मित्र राष्‍ट्रों तथा जर्मनी के मध्‍य (28 जून, 1919) संपन्‍न हुई। 

2. न्‍यूकाइली की सन्धि 

यह सन्धि बल्‍गारिया के साथ (27 नवम्‍बर,1919) संपन्‍न हुई।

3. सेन्टर्मेन की संधि

यह सन्धि आस्ट्रिया तथा मित्र-राष्‍ट्रों में 10 सितम्‍बर, 1919 को की गई थी।

4. ट्रियानों की सन्धि

यह सन्धि हंगरी के साथ (4 जून, 1920) हुई। 

5. सेबे की सन्धि

यह टर्की के साथ (10 अगस्‍त, 1920) हुई। 

ये सभी सन्धियां सम्मिलित रूप से पेरिस की सन्धि कहलाती है। इनमें वर्साय की सन्धि सबसे अधिक महत्‍वपूर्ण थीं। 

वर्साय की संधि के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें-- वर्साय की संधि, एवं उसकी मुख्य धाराएं

न्‍यूली (न्यूकाइली) की सन्धि 

यह सन्धि 27 नवम्‍बर, 1919 को न्‍यूली नामक स्‍थान पर सम्‍पन्‍न हुई। इस सन्धि के अनुसार बल्‍गेरिया को युद्ध काल में जीते हुये प्रदेशों को मित्र राष्‍ट्रों को वापिस करना पड़ा। पश्चिमी थेंस यूनान को, बादूजा रूमानिया को तथा मैसीडोनिया का अधिकांश भाग यूगोस्‍लाविया को प्रदान किया गया। इससे बल्‍गेरिया का अधिकांश भू-भाग उसके क्षेत्र से निकल गया और सीमा काफी घट दी गई। युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में उसे काफी धनराशि भी देनी पड़ी। उसकी सेना भी घटा दी गई तथा नौसेना को समाप्‍त कर दिया गया। उसे मछली पकड़ने तथा पुलिस दृष्टिकोण से प्रयोग करने के लिये टारपीडों नौकाओं तथा छह मोटर नौकाओं की अनुमति दी गई। उसे पेंतालीस करोड़ रूपये क्षति पूर्ति के रूप में जुर्माना मित्र राष्‍ट्रों को देना था। 

सेन्‍टर्मेन की सन्धि

यह सन्धि आस्ट्रिया तथा मित्र-राष्‍ट्रों में 10 सितम्‍बर, 1919 को की गई थी। इसके अनुसार--

1. युद्ध के प्रारंभ होने के पूर्व इस साम्राज्‍य की अनेक जातियों में राष्‍ट्रीय भावना, परिपक्‍वावस्‍था में पहुंच गई थी। इन जातियों को स्‍वतंत्रता प्रदान करके चेकोस्‍लोवाकिया स्‍वतंत्र राज्‍य मान लिया गया था। 

2. साईलेशिया, बोहेमिया, मोराविया तथा आस्ट्रिया का निम्‍न प्रदेश चेकोस्‍लोवाकिया को दिया गया था। 

3. डायमेशिया के तटवर्ती द्वीप एंव कार्निवाल यूगोस्‍लाविया एंव पोलैण्‍ड़ को दिये गये। 

4. इटली को ट्रीस्‍ट, क्रेन्तिनों, दक्षिणी टाइरोल तथा डालमीशियन तटवर्ती दो द्वीप प्रदान किये गये। आस्ट्रिया का बहुत सा - भू -भाग उसके हाथ से निकल गया, अतः आस्ट्रिया अब एक छोटा-सा राज्‍य रह गया था। 

5. आस्ट्रिया एंव हंगरी का राज्‍य अनके भागों में विभक्‍त हो गया। 

6. आस्ट्रिया की जल सेना उससे छीन ली गई। डेन्‍यूब नदी को अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार के लिये खोल दिया। उसकी सेना की संख्‍या, 30,000 निश्चित कर दी गई। 

7. आस्ट्रिया को बलात् युद्ध के लिये उत्तरदायी बनाया गया, अतः क्षतिपूर्ति के रूप में उसको एक विशाल धनराशि राष्ट्रों को देना पड़ी। 

8. आस्ट्रिया की राष्‍ट्रीय कला की निधियां, 30 साल के लिये छीन ली गई। 

ट्रियानों की सन्धि

त्रियानों की सन्धि जर्मनी के मित्र हंगरी तथा मित्र राष्‍ट्रों के मध्‍य ग्रेण्‍ड़ त्रियानों राजमहल में 4 जून, 1920 ई. को हुई थी। 

इस सन्धि के अनुसार यूगोस्‍लाविया को बोसनिया, हर्जेगोविना, स्‍लोवानिया, क्रोशिया तथा चेकोस्‍लोवाकिया का प्रदेश मिला। ट्रांसलवेनिया तथा कुछ अन्‍य प्रदेश  रूमानिया को मिलें। आस्ट्रिया को हंगरी का पश्चिमी हिस्‍सा बोर्जनलैण्‍ड़ प्राप्‍त हुआ। हंगरी के समुद्री मार्ग फ्यूम के भाग्‍य का निर्णय इटली तथा यूगोस्‍लाविया के समझौते पर छोड़ दिया। हंगरी को भी अन्‍य राज्‍यों की भांति युद्ध के लिये उत्तरदायी ठहराया गया। उसे भी क्षतिपूर्ति के रूप में काफी धनराशि मित्र राष्‍ट्रों को देनी पड़ी। उसके कारे चैक पर हस्‍ताक्षर करने पड़े। उसकी जल सेना काफी कम कर दी गई। सन्धि के फलस्‍वरूप हंगरी एक अत्‍यन्त छोटा-सा राज्‍य रह गया। त्रियानों की सन्धि के अनुसार तीस लाख के लगभग हंगेरियन लोग अन्‍य राज्‍यों की प्रजा बनने के लिये विवश किये गये। 

सेव की सन्धि 

यह सन्धि 10 अगस्‍त, 1920 में तुर्की तथा मित्र राष्‍ट्रों के मध्‍य सम्‍पन्‍न हुई। इस सन्धि के अनुसार तुर्की ने अपने समस्‍त अधिकार मिस्त्र, सूडान, साइप्रस, ट्रिपोलिटेनिया, मोरक्‍कों व ट्यूनिशिया में त्‍याग दिये। इस्‍मनाथ्रेस तथा इंगियन सागर में स्थित द्वीप समूह यूनान को दिये गये। आर्मीनिया, मेसोपोटामिया, फिलीस्‍तीन इत्‍यादि प्रदेश तुर्की के हाथ से निकल गये थे। इटली को अडेलवा, रेहोडस तथा डेडकनीज के प्रदेश मिले। इस सन्धि से तुर्की साम्राज्‍य भी काफी छोटा हो गया। उस पर अनेक सैनिक प्रतिबन्‍ध लगाये गये। 

प्रथम विश्‍व युद्ध के पश्‍चात् विश्‍व शान्ति बनाये रखने के लियें देशों ने आपस में शान्ति सन्धियां तथा समझौते किये परन्‍तु वे समझौते कुछ समय तक ही रह पाये। इन समझौतों में जो कमियां रहीं, वह निम्‍नलिखित हैं-- 

1. समझौते में सबसे पहली कमी यह थी कि ऐसी कोई स्‍पष्‍ट व्‍यवस्‍था या शक्ति इसके पीछे नहीं थी जो कि समझौते का उल्‍लंघन करने वालों के विरूद्ध शक्तिशाली ढंग से कार्यवाही करके उसे दण्डित कर सकती। 

2. इन समझौते की दूसरी प्रमुख कमी की ओर दृष्टि सीधे रूप में जाती है। इस समझौते को स्‍वीकार करते समय ब्रिटेन जैसे राष्‍ट्रों तथा कुछ अन्‍य राज्‍यों ने अपने हितों को प्रमुखता देते हुये इसे सशर्त स्‍वीकार किया। इससे समझौतें की व्‍यापकता और प्रकृति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। 

3. इस समझौते का प्रस्‍तावक फ्रांस स्‍वंय अपनी सुरक्षा के प्रति तो हमेशा की ज्‍यादा चिन्तित रहा परन्‍तु अन्‍य राष्‍ट्रों के हितों को न समझ सका। 

4. समझौते की महत्‍वपूर्ण कमी की ओर ध्‍यान खींचते हुयें लैंगसम नामक विचारक ने बड़े ही साफ और स्‍पष्‍ट शब्‍दों में कहा कि "यह समझौता युद्ध को तो अवैध बनाता है, लेकिन दूसरी ओर आत्‍मरक्षा के नाम युद्ध की इजाजत भी देता है। विश्‍व का कोई भी राष्‍ट्र अपने आयको कभी भी आक्रमणकारी कहलाना पसन्‍द नहीं करेगा।"

यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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