9/20/2021

1905 की रूसी क्रांति के कारण, पृष्ठभूमि, घटनाएं

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1905 ई. की रूसी क्रांति 

विश्‍व इतिहास में जो महत्‍व फ्रांस की क्रांति का है वही महत्‍व रूप की क्रांति का भी है। फ्रांस की क्रांति यदि निरंकुशता, भ्रष्‍ट शासन और विशेषाधिकारों के खिलाफ, स्‍वतंत्रता, समानता और बन्‍धुत्‍व के आदर्शो से प्रेरित मानव अधिकारों और लोकतंत्र की स्‍थापना के लियें थी तो वोल्‍शेविक क्रांति भी निरंकुशता और भ्रष्‍टाचार के खिलाफ थी, किन्‍तु इसमें नवीन तत्‍व यह था कि यह पूंजीवाद के विरूद्ध साम्‍यवादी व्‍यवस्‍था को स्‍थापित करना चाहती थी जिसका आधार मार्क्‍स और संस्‍थापक लेनिन था। 

रूसी की क्रांति के कारण (1905 ki rusi kranti ki ke karan)

जार निकोलस के काल की सबसे महत्‍वपूर्ण घटना सन् 1905 ई. की रूसी क्रान्ति थी। जब सन् 1894 ई. में अपने पिता जार अलेक्‍जेण्‍डर तृतीय की मृत्‍यु के बाद निकोलस द्वितीय गद्दी पर बैठा। तब लोगों को यह आशा थी कि जार निकोलस अपने पिता की प्रतिक्रियावादी नीति को छोड़कर सुधारवादी दृष्टिकोण अपनाएगा किन्‍तु ऐसा नहीं हुआ। निकोलस द्वितीय ने शासनकाल के आरंभ से ही कठोर निरंकुश नीति को स्‍पष्‍ट कर दिया। इस कारण रूस की परिस्थितियां क्रांति की दिशा में बढ़ने लगी। 1905 ई. में रूस में जो क्रांति हुई, उसके लिए निम्‍नलिखित कारण उत्तरदायी थे--

1. औद्योगिक क्रांति 

इंग्‍लैण्‍ड़ तथा यूरोप में अन्‍यत्र औद्योगिक  प्रतियोगिता और विकास तीव्र गति से हो रहा था। पीटर और कैथरिन ने रूस में इससे प्रभावित होकर औद्योगिकीकरण की नींव डाल दी थी। परिणामस्‍वरूप रूस में अनेक कारखाने लग चुके थे। इसके कारण ग्रामीण, पिछड़ी और निर्धन जनता काम और रोटी की तलाश में बड़ी संख्‍या में कारखानों की ओर आकर्षित हुई। कारखाने के स्‍वामियों में भी सस्‍ते मजदूर और अधिक मुनाफा कमाने के लिये इन्‍हें आमंत्रित किया। इससे औद्योगिक शहर बने। इसी के साथ-साथ श्रमिक-पूंजीपति विवाद, श्रमिक-आवास, कार्य-दशा, पारिश्रमिक, जीवनस्‍तर  आदि की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक समस्‍यायें उत्‍पन्‍न हो गई। इससे साम्‍यवादियों को श्रमिक संगठन और साम्‍यवादी क्रांति करने का अवसर मिला। 

2. जारशाही की निरंकुशता 

जार अलेक्‍जेण्‍डर प्र‍थम के समय से ही रूस के जार स्‍वेच्‍छाचारी शासन एंव दैवी अधिकारों के सिद्धान्‍तों में विश्‍वास करते थे। जारशाही के कठोर, दमनकारी एंव निरंकुश शासन में जनता की भागीदारी एंव इच्‍छा का कोई स्‍थान न था। उन्‍नीसवीं शताब्‍दीं तक यूरोप के प्रमुख राज्‍यों में उत्‍तरदायित्‍व शासन की स्‍थापना हो चुकी थी। रूस में परिवर्तन के कोई आसार नही थे। जार अलेक्‍जेण्‍डर प्रथम, निकोलस प्रथम, अलेक्‍जेण्‍डर द्वितीय, अलेक्‍जेण्‍डर तृतीय से लेकर जार निकोलस द्वितीय तक सभी जार कठोर एंव प्रतिक्रियावादी नीति के समर्थक थे। जार अलेक्‍जेण्‍डर द्वितीय ने कुछ उदारता दिखाई। कुछ महत्‍वपूर्ण सुधार किए जिनमें कृषि दासों की मुक्ति एंव स्‍थानीय स्‍वशासन संबंधी सुधार थे, किन्‍तु जार अलेक्‍जेण्‍डर द्वितीय की हत्‍या कर दी गई। इस कारण आने वाले जारों ने सुधारों के प्रति कोई रूचि प्रदर्शित नही की। जारशाही में शासन का विरोध करने वालों को कठोर दंड़ दिए जाते थे। जैसे-जैसे जारशाही के अत्‍याचार बढ़ते गए, वैसे-वैसे उसके प्रति जनता में असंतोष एंव विरोध  भी बढ़ता गया। 

सन् 1902 ई. में निकोलस द्वितीय ने प्‍लेहे नामक व्‍यक्ति को गृहमंत्री नियुक्‍त किया। वह कठोर दमनकारी नीति द्वारा सभी प्रकार के विरोध को समाप्‍त करना चाहता था। उसके काल में जनता पर पुलिस के अत्‍याचार बढ़ गए। इसमें बिना कारण बताए कारगार में डाला जाना या निर्वासित करना शामिल था। विश्‍वविद्यालयों से सैकड़ों विद्यार्थियों को निर्वासित कर दिया गया। सन् 1904 ई. में क्रांतिकारी द्वारा प्‍लेहे की हत्‍या कर दी गई। 

3. जनता में चर्च के प्रति अन्‍धविश्‍वास 

रूस में अशिक्षा ज्‍यादा थी, रूस भी प्रचीन अन्‍धविश्‍वासों को मानता था तथा लकीर का फकीर बना हुआ था। पादरियों को राजतंत्र से व्‍यक्तिगत लाभ प्राप्‍त थे। वे जनता को राजतंत्र के पक्ष लाने का प्रयत्‍न करते थे, वे उनकों धर्म की दुहाई देते थे। पोप, राजा के देवी अधिकारों को मान्‍यता देता था। उसके अनुसार राजा पृथ्‍वी पर ईश्‍वर का प्रतिनिधि था। पोप की इस विचारधारा से जनता के मौलिक अधिकारों को नष्‍ट किया जा रहा था। 

4. बहुभाषाई समूहों का असन्‍तोष

1905 ई. की क्रान्ति का एक महत्‍वपूर्ण कारण गैर-रूसी लोगों का असंतोष था। रूस में राष्‍ट्रीयता के आधार पर पश्चिमी तथा पूर्वी सीमा पर स्थित पड़ोसी राज्‍यों की अपेक्षा अधिक कठोरता से दमन किया गया। वहां उन्‍नत विचारों के गैर-रूसी लोगों की राष्‍ट्रीयता भावनाओं की भी उपेक्षा की गई। 1905 ई. में गैर-रूसियों के राजनीतिक आंदोलन में तीव्रता आई। पोलैंड, यूकेन फिनलैण्‍ड, बाल्टिक प्रांतों, काकेशस और यहां तक कि मुसलमानों में भी विशेष महत्‍वपूर्ण हलचल दृष्टिगोचर हुई। 

5. समाजवादियों की नीतियां और कार्य 

रूस की क्रान्ति से पहले रूस में मार्क्‍सवादी विचारधारा पनपने लगी था और समाजवादियों ने रूस के किसानों और मजदूरों में अपना प्रभाव फैलाना प्रारम्‍भ कर दिया था। प्‍लेहवे ने जो कि प्रमुख समाजवादी नेता था उसने ‘जनतंत्रीय समाजवादी‘ दल का गठन किया। उसने मजदूरों तथा कृषकों में सरकार के विरूद्ध विद्रोह की भावनाओं को जन्‍म दिया। इस समाजवादी विचारधारा का प्रभाव केवल मजदूरों तथा कृषकों तक ही सीमित नही था। इसका प्रभाव विद्यार्थियों तथा विश्‍वविद्यालयों तक पहुंच गया था। विद्यार्थियों ने सरकार के विरूद्ध प्रदर्शन किए। 

6. विभिन्‍न विचारधाराओं एंव दलों का उदय 

रूस में औद्यो‍गीकरण के कारण पूंजीवादी व्‍यवस्‍था का प्रभाव बढ़ता  जा रहा था। मजदूरों व पूजींपतियों  के मध्‍य संघर्ष की स्थिति उत्‍पन्‍न हो गई। थी। कृषकों की दशा भी बिगड़  रही थी। इसी कारण रूस की परम्‍परागत सामाजिक-आर्थिक व्‍यवस्‍था में सुधार करने के विचार उत्‍पन्‍न होने लगे। 19 वीं शताब्‍दी के अंत तक रूस में दो प्रकार की विचारधारओं का प्रभाव रहा- क्रांतिकारी समाजवादी जिनमें मार्क्‍सवादी और पापुलिस्‍ट दोनों सम्मिलित थे, जो क्रांति द्वारा रूस में निरंकुश सत्ता का अंत करना चाहते थेय दूसरे उदारवाद के समर्थक जो संवैधानिक शासन एंव सुधारों की नीति अपनाना चाहते थे। क्रांतिकारी समाजवादी दल में भी दो दल बन गए सोशल डेमोक्रेटिक दल और क्रांतिकारी समाजवादी दल। सोशल डेमोक्रेटिक दल मूलतः एक मार्क्‍सवादी दल था। कुछ मार्क्‍सवादी नेता जिनमें लेनिन प्रमुख था, विदेशों में रहकर दल के कार्यक्रम को आगे बढ़ाने का प्रयत्‍न कर रहे थे। लेनिन प्‍लेहानोव और मार्तोव आदि ने मिलकर इस्‍करा नामक एक पत्रिका के माध्‍यम से अपने विचारों का प्रचार आरंभ किया। 

7. रूसी सेना की दुर्बलता

1905 ई. के रूस-जापान युद्ध में जापान जैसे छोटे-से राष्‍ट्र ने रूस को बुरी तरह शिकस्‍त दी। इस कारण रूस में भारी आक्रोश था। लोग सेना की दुर्बलता के लिए जारशाही के निकम्‍मेपन को जिम्‍मेदार मानते थे। 

1905 की रूसी क्रांति की पृष्‍ठभूमि 

सन् 1900 ई. से 1903 ई. के बीच रूस की जनता के विभिन्‍न वर्गो में विभिन्‍न कारणों से असंतोष और विरोध की भावना बहुत अधिक बढ़ती जा रही थी। इस असंतोष का पहला कारण तो शासन की प्रतिक्रियावादी एवं दमनकारी नीति था। कृषकों के विद्रोह हो रहे थे। कृषकों की बिगड़ती दशा से क्रांतिकारी समाजवादी दल को अपना प्रचार कार्य बढ़ाने में मदद मिलने लगी। आर्थिक मंदी के कारण मजदूरों की आर्थिक दशा अत्‍यन्‍त दयनीय हो गई थी। सुधारों की मांग तीव्र  होने लगी थी। जनता का विरोध बढ़ता जा रहा था। हड़तालें होने लगी थीं। शासन अपनी नीति में परिवर्तन करने के लिए तैयार नहीं था। 

1905 ई. की क्रान्ति की प्रमुख घटनाएं 

रूस जिस बारूद के ढेर पर बैठा था, उसमें सिर्फ एक चिन्‍गारी की आवश्‍यकता थी वह चिन्‍गारी जनवरी, 1905 ई. में सुलग उठी। 1905 ई. की यह क्रान्ति एक सामान्‍य सी मजदूर हड़ताल से प्रारंभ हुई। 1905 ई. के प्रारंभ में सेंट पीटर्सवर्ग में एक पुतीलाव नामक कारखाने के मजदूरों ने हड़ताल की। सेंट पीटर्सवर्ग के कारखाने में हुई इस हड़ताल का तात्‍कालिक कारण था कि कारखाने के संचालक ने दो मजदूरों को काम से निकाल दिया था। चूंकि ये दोनों मजदूर उस श्रमिक संघ के सदस्‍य थे जो कि फादर गेपन द्वारा स्‍थापित किया गया था। पुतीलाव के कारखाने की इस हड़ताल का समर्थन किया सोशल डेमोक्रेटिक दल के अपने श्रमिक संघ के मजदूरों के निकाले जाने पर फादर गेपन ने कारखाने के संचालक के समक्ष कुछ मांगे प्रस्‍तुत की। कारखाने के संचालक ने इन मांगों को अस्‍वीकार कर दिया। इस कारण सेंट पीटर्सवर्ग के अन्‍य कारखानों में भी मजदूरों ने काम करना बंद कर दिया। बीसवीं सदी के प्रारंभ से ही सारे देश में मजदूर हड़तालें हो रही थी। मजदूर हड़तालों के साथ-साथ किसानों के संघर्ष भी चल रहे थे। इस तरह के आंदोलनों को समाजवादियों का समर्थन प्राप्‍त था। इन हड़तालों तथा आंदोलन के अलावा देश में रूस जापान युद्ध के कारण भी जन आक्रोश व्‍याप्‍त था। इस सारी स्थि‍ति में उपर्युक्‍त हड़ताल ने आग में घी का काम किया। क्रान्ति का सूत्रपात हो गया। विद्रोह की आग सुलग उठी। 

अक्‍टूबर की घोषणा

अक्‍टूबर की घोषणा के द्वारा रूस में संवैधानिक शासन की दिशा में एक बड़ा महत्‍वपूर्ण कदम उठाया गया। प्रोफेसर कीप के अनुसार इस समय से रूस के इतिहास के नए युग का आरंभ हुआ। इस घोषणा की विभिन्‍न राजनैतिक दलों पर मित्र-मित्र प्रतिक्रिया हुई। मध्‍यममार्गी उदारवादियों का दल जो अक्‍टूबररिस्‍ट कहलाता था, इस घोषणा से सन्‍तुष्‍ट था, किन्‍तु उग्रपन्‍थी उदारवादी जो अब कांस्‍टीट्यूशन डिमोक्रेटिक दल संक्षिप्‍त रूस से कैडेट के नाम से जाने जाते थे, इस घोषणा से असन्‍तुष्‍ट थे, क्‍योकि उनकी संविधान समा आमंत्रित करने की मांग पूरी नहीं हुई थी। कृषक और मजदूर भी इस घोषणा से असन्‍तुष्‍ट रहें। कृषकों के दंगे अक्‍टूबर की घोषणा के बाद भी समाप्‍त नहीं हुए। क्रान्तिकारी समाजवादी और सोशल डिमोक्रेटिक दल भी जार की घोषणा से सन्‍तुष्‍ट नहीं हुए। ट्राटस्‍की जैसे कुछ बोलशेविक नेताओं ने मजदूरों को सलाह दी कि रूस में निरकुंश सत्ता के समाप्‍त होने तक उन्‍हें संघर्ष करते रहना चाहिए। अतः जार की घोषणा के बाद भी रूस में क्रान्ति की भावना एंव अशान्ति का वातावरण बना रहा। किन्‍तु विरोधी दलों में आपसी मतभेदों के कारण एकता स्‍थापित नहीं हो सकी। मजदूरों और अन्‍य व्‍यावसायिक वर्गो का सहयोग समाप्‍त हो गया। थासन ने विरोधियों की फूट लाभ उठाया और उनका पृथक रूप से दमन करने की नीति अपनायी। इसी काल में, प्रतिक्रियावादियों और निरंकुश सत्ता के समर्थकों ने भी अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए एक संघ बनाया, जिसे सच्‍चें रूसी का नाम दिया गया। इस संघ के सदस्‍यों ने कई स्‍थानों पर यहूदियों पर आक्रमण किए और उग्रवादियों, लेखकों एवं अध्‍यापकों को धमकियां दीं। 

इस तरह दिसम्‍बर के अन्‍त तक मजदूरों की हालत ठीक नहीं रही। अधिकांश हड़ताली वर्ग थक चुका था। यद्यपि अभी उनका लक्ष्‍य पुरा नहीं हुआ था। तथापि असफल हड़तालों ने क्रान्ति को कमजोर कर दिया और अन्‍ततः क्रान्ति समाप्‍त हो गई।

1905 ई. की क्रांति का प्रभाव

भले ही 1905 ई. की क्रांति असफल हो गई लेकिन उसका रूस के इतिहास में महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। इस क्रांति द्वारा उत्तरदायित्‍व पूर्ण शासन की स्‍थापना का पहला प्रयोग किया गया। इस क्रांति के द्वारा मजदूरों को संगठित होने का अच्‍छा अवसर मिला। इस क्रांति द्वारा कृषकों ने भी सक्रियता से जमींदारों के प्रभाव को समाप्‍त करने का प्रयास किया। इस क्रांति ने 1917 ई. की बोल्‍शेविक क्रांति की पृष्‍ठभूमि तैयार कर दी।

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