राष्ट्रसंघ के कार्य
राष्ट्रसंघ के कामों को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता हैं। जो की इस प्रकार है--
1. प्रशासनिक कार्य
वर्साय की संधि के तहत राष्ट्रसंघ के कुछ भागों को सुरक्षा प्रदान करने तथा प्रशासक नियुक्त करने के साथ-साथ जनमत संग्रह कराने का दायित्व दिया गया था।
सार की घाटी
सार के कुछ भागों तथा डानजिंग नगर के महत्वपूर्ण भागों का प्रशासन राष्ट्रसंघ को सौंपा गया था। जिसमें से सार वाले क्षेत्र पर फ्रांस की नजर थी किन्तु अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन के विरोध के फलस्वरूप फ्रांस सार पर अधिकार नहीं कर पाया। 15 वर्षो के बाद सार वाले क्षेत्र पर जनमत संग्रह कराया गया था। जिस में 90 प्रतिशत लोगो ने जर्मनी के पक्ष में मतदान किया था। और इस प्रकार सार घाटी जर्मनी का हिस्सा बन गई।
यह भी पढ़े; राष्ट्रसंघ का संगठन, उद्देश्य
यह भी पढ़े; राष्ट्र संघ की असफलता के कारण
डानजिंग शहर
डानजिंग का सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण स्थान था। यहां की अधिकांश लोग जर्मन निवासी थे। जिस पर अधिकार करने की प्रबल इच्छा पोलैण्ड़ की थीं। किन्तु डानजिंग की स्थिति को देखकर इसे एक स्वतंत्र शहर घोषित कर पोलैण्ड़ को सुविधाएं दी गई। पोलैण्ड़ तथा डानजिंग का विवाद कुछ समय के बाद में गहरा गया और द्वितीय महायुद्ध का कारण बन गया।
अल्बानिया के विवाद का हल
अल्बानिया एक छोटा-सा देश था जो कि यूनान और यूगोस्लाविया के पश्चिम में स्थित था। अल्बानिया को यूनान और यूगोस्लाविया दोनों ही इसे हड़प्पना चाहतें थे। और साथ ही साथ राष्ट्र संघ के द्वारा इसे स्वतंत्र घोषित किया जा चुका था, इसी दारम्यान में यूगोस्लाविया के द्वारा अल्बानिया में अपनी सेनाएं भेजीं। अल्बानिया की अपील पर राष्ट्रसंघ के हस्ताक्षेप से इस मामले पर समझौतें के द्वारा उस पर सफलता प्राप्त की गयी थीं।
रूमानिया और हंगरी से सम्बंन्धित विवाद
पेरिस में संधि के नियमानुसार रूमानिया को ट्रांसिलवानिया और वनात का प्रदेश दे दिया गया था लेकिन ट्रांसिलवानिया और वनात में जो हंगरी के लोग निवास करते थे वे चाहते थे कि वे अपने स्वदेश हंगरी चले जायें, परन्तु रूमानिया को दिये गये इन प्रदेशों में उनकी सम्पत्ति लगी हुई थीं। तो अब यह प्रश्न रूमानिया और हंगरी दोनों देशों में विवाद का बिन्दू बना गया। राष्ट्र संघ ने इस विवाद का शांति पूर्ण तरीके से निपटा दिया था।
मौसूल विवाद
पेरिस संधि के अनुसार तुर्की के साथ जो संधि हुई थीं। उसमें यह प्रावधान था कि तुर्की और ब्रिटिश के आधीन राज्य इराक के बीच यदि सीमा का समझौता न हो पायें तो इसका निर्णय राष्ट्र संघ की परिषद् के माध्यम से किया जाएगा। इस विवाद के निपटारन हेतु एक आयोग गठित किया गया। इस दारम्यान तुर्की की कूर्द जाति ने तुर्की के सुल्तान के विरोध में विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह को बड़ी ही क्रुरतापूर्वक दबा दिया गया और परिणामस्वरूप कूर्द, भागकर मौसूल आये और अस्थाई सीमा पर दो-दो हाथ हुए। राष्ट्र संघ ने इस मामले में दूसरा आयोग बिठाया जिसने अपनी रिपोर्ट में तुर्क कठोरता का विवरण दिया। राष्ट्र संघ ने निर्णय लिया कि मौसूल का विलायत का सारा प्रदेश शासनाधीन मान लिया जाय, तुर्की ने इसे नामंजूर कर दिया, किन्तु मामला अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय तक ले जाया गया। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय ने राष्ट्र संघ की परिषद् के निर्णय को अंतिम फैसला माना। तुर्की को विवश होकर इसे मानना पड़ा। इस प्रकार सीमान्त सम्बंधी विवात समाप्त हुआ।
2. संरक्षण संबंधी कार्य
प्रथम विश्व युद्ध शुरू होने से पहले जर्मनी के उपनिवेश पूर्वी अफ्रीका और प्रशान्त महासागर फैले हुये थे। और कुछ तुर्की साम्राज्य के अंतर्गत भी थे, वहां के मूल निवासी स्वशासन के लिए बहुत दिनों से प्रयासरत थे। पेरिस शांति सम्मेलन के पूर्व ही यह बात तय थी कि इन उपनिवेशों का मित्रराष्ट्रों के बीच बंटवारा किया जाएगा। विल्सन के चैदह सिद्धांतों के अनुसार इन उपनिवेशों के भाग्य का निर्णय वहां के निवासियों की सम्मति के अनुसार होना चाहिए था, परन्तु मित्रराष्ट्र कोई परोपकारी नहीं थे। उनकी आंखे इन प्रदेशों पर गड़ी हुई थीं। और वे इनको हड़प लेना चाहती थे। पर यह काम इतना आसान भी नहीं था। स्वशासन की आवाज सबके कानों में गूंज रही थीं। विल्सन के रहते इतनी जल्दी उसकी उपेक्षा करना कोई मामूली बात नहीं थी। फिर भी साम्राज्यवाद और स्वशासन के सिद्धांत में तालमेल स्थापित करना आवश्यक था। मित्रराष्ट्र एक ऐसे उपाय की खोज में थे जिससे सांप भी मरे और लाठी भी ने टूटे। स्वशासन का नाम भी रहे जाये और शत्रु के उपनिवेशो पर मित्रराष्ट्रों का साम्राज्य स्थापित हो जाये। इसके लिए एक रास्ता ढूंढ़ निकाला, जिसकों मैन्डेट प्रणाली या संरक्षण-प्रणाली कहते है। राष्ट्रसंघ की प्रसंविदा के अनुच्छेद 22 द्वारा मैन्डेड व्यवस्था को स्थापित किया गया था।
3. आर्थिक स्थिति मजबूत करने हेतु का कार्य
युद्ध के दौरान अगर सबसे ज्यादा प्रभाव किसी चीज पर पड़ता है, तो वह है आर्थिक क्षेत्र प्रथम विश्व युद्ध के बाद भी यही हुआ युद्ध से प्रभावित कई देशों की आर्थिक स्थिति काफी ज्यादा डावाडोल हो गयी थी। लेकिन राष्ट्रसंघ ने अपनी सूझबुझ से सभी देशो को इस स्थिति से बाहर निकाला था। आस्ट्रिया की आर्थिक स्थिति सबसे ज्यादा दयनीय थी। वहीं के सर्वेसर्वा इस स्थिति को सुधारने में सर्वथा असमर्थ रहे तब राष्ट्रसंघ ने उसकी सहायता करने का काम अपने हाथ में ले लिया। आस्ट्रिया को उधार अन्न देने की व्यवस्था की गयी। राष्ट्रसंघ के कोशिश से उसको अमेरिका, ब्रिटेन और इटली से कर्ज प्राप्त हुआ और अंतर्राष्ट्रीय कोष से भी उसे दस करोड़ डालर का कर्ज प्राप्त हुआ। राष्ट्रसंघ ने आस्ट्रिया पर अपना आर्थिक नियंत्रण कायम करके उसकी आर्थिक दशा को सुधार दिया।
इसी प्रकार ऑस्ट्रिया की तरह हंगरी की आर्थिक दशा भी बहुत दयनीय थी। राष्ट्रसंघ की परिषद् ने हंगरी के आर्थिक पुननिर्माण के लिए एक योजना स्वीकार करके उस पर अपना आर्थिक नियंत्रण कायम किया। और कुछ ही समय के बाद हंगरी की डगमगाती आर्थिक स्थिति स्थिर हो गयी। राष्ट्रसंघ ने तब हंगरी पर से आर्थिक नियंत्रण हटा दिया।
4. समाज तथा मानवता हेतु हितेषी कार्य
राष्ट्र संघ के समाज के उत्थान के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किये, और समाज में व्याप्त बुराईयां जैस- स्त्रियों के व्यापार, वेश्यावृत्ति, पोस्टरों के प्रकाशनों, आदि पर रोक लगाने के लिए नियम बनायें, तथा विवाह की उम्र सम्बंधी कानून बनाये, अबोध बच्चों की समस्या एंव बाल-कल्याण की ओर ध्यान केन्द्रित किया, मादक द्रव्यों का निषेध,दासता की समाप्ति, बेकारी की समस्या, आदि पर भी कार्य किया। इसी के साथ-साथ नेपाल वर्मा आदि को प्रोत्साहित किया कि वे दास प्रथा को समाप्त करें। करीब 5 लाख युद्ध बन्दियों को उनके घर पहुंचाया गया।
समाज के कल्याण के साथ-साथ राष्ट्र संघ ने हैजा, चेचक, मलेरिया, आदि रोगों के कारणों एंव रोकथाम में उपायों, यातायात के साधनों का विकास, रेलों की अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था, विद्युत एंव जल का वितरण, आदि सम्बंधी अनके कार्य किये।
5. बौद्धिक कार्य
बौद्धिक क्षेत्र में राष्ट्र संघ ने निम्नलिखित कार्य किये है--
1.इसने स्मारकों, कलाकृतियों को सुरक्षा प्रदान की।
2.प्रौढ़ एंव श्रमिकों की शिक्षा की व्यवस्था की।
3.थियेटरों, संगीत एंव कविता आदि के क्षेत्र में सहयोग में बढ़ावा दिया।
4.अन्तर्राष्ट्रीय सम्बंधों का वैज्ञानिक परीक्षण करना प्रारंभ किया।
इस प्रकार हम कहे सकते है, कि राष्ट्र संघ ने प्रशासनिक, आर्थिक, सामाजिक, मानवीय एंव बौद्धिक क्षेत्र में अति महत्वपूर्ण कार्य कियें। जिसमें राष्ट्र संघ को पर्याप्त सफलता मिली। सही मायने में राष्ट्र संघ की सफलता का प्रमुख कारण उसके द्वारा समय पर बुलाये गये सम्मेलन थे। राष्ट्र संघ की सफलता का मूल्यांकन करते हुए लैंगसम नामक विद्वान लिखते है कि, ‘‘शायद राष्ट्रसंघ या लीग की सबसे बड़ी देन अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के प्रसार का प्रभाव था। किसी भी संस्था के मुकाबले लीग ने मानव को विश्व की समस्याओं से अवगत किया एंव संकुचित जातीयता के विचारों से उसे मुक्त किया।‘‘
कोई टिप्पणी नहीं:
Write commentआपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।