pathya pustak arth paribhasha avashyakta mahatva;आधुनिक शिक्षा प्रणाली में पाठ्य पुस्तकों का महत्व सर्वविदित है। पाठ्यक्रम की वास्तविक रूपरेखा को पाठ्य पुस्तकों द्वारा ही विस्तार मिलता है जिससे वह शिक्षक तथा छात्र दोनों हेतु सुगम हो जाता है। सीखने के अनुभवों में पाठ्य पुस्तकों का महत्वपूर्ण स्थान है। पुस्तकों के माध्यम से अतीत के ज्ञान एवं अनुभवों को संचित किया जाता है जिससे आने वाली पीढ़ी उसका उपयोग करके लाभान्वित हो सके। पाठ्य-पुस्तक में किसी विषय-विशेष का संगठित ज्ञान एक स्थान पर रखा जाता है। इस तरह अच्छी पाठ्य पुस्तकें शिक्षण-प्रक्रिया में निर्देशन का कार्य करती है। अध्ययन-अध्यापन की दृष्टि से शिक्षक तथा शिक्षार्थी दोनों हेतु महत्वपूर्ण साधन है।
पाठ्य पुस्तक का अर्थ एवं परिभाषा
किसी विषय के ज्ञान को जब एक स्थान पर पुस्तक के रूप में संगठित ढंग से पेश किया जाता है तो उसे पाठ्य पुस्तक की संज्ञा प्रदान की जाती है। पाठ्य पुस्तक के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए कुछ विद्वानों के कथनों को यहाँ निम्न प्रकार प्रस्तुत किया गया है--
हैरोलिक के अनुसार," पाठ्य-पुस्तक ज्ञान, आदतों, भावनाओं, क्रियाओं तथा प्रवृत्तियों का संपूर्ण योग है।"
हाल-क्वेस्ट के अनुसार," पाठ्य पुस्तक शिक्षण अभिप्रायों के लिए व्यवस्थित प्रजातीय चिन्तन का एक अभिलेख है।"
डगलस के अनुसार," अध्यापकों के बहुमत ने अन्तिम विश्लेषण के आधार पर पाठ्य-पुस्तक को वे क्या और किस प्रकार पढ़ायेंगे, की आधारशिला माना है।"
लैंज के अनुसार," यह अध्ययन क्षेत्र किसी शाखा की एक प्रमाणित पुस्तक होती है।"
क्राॅनबेक के अनुसार," आजकल अमेरिका के शैक्षिक चित्र मे पाठ्य पुस्तक केन्द्र बिन्दु है। इसने अनुपम प्रकार के विद्यालय में प्रथम ग्रेड से लेकर काॅलेज-स्तर तक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है।"
बेकन के मतानुसार," पाठ्य-पुस्तक कक्षा प्रयोग के लिये विशेषज्ञों द्वारा सावधानी से तैयार की जाती है। यह शिक्षण युक्तियों से भी सुसज्जित होती है।"
बेकन के मतानुसार," पाठ्य-पुस्तक कक्षा-प्रयोग के लिए विशेषज्ञों द्वार सावधानी से तैयार की जाती है। यह शिक्षम युक्तियों से भी सुसज्जित होती है।"
पाठ्य पुस्तकों की आवश्यकता तथा महत्व
pathya pustak ki avashyakta;पाठ्य पुस्तक के महत्व को स्पष्ट करते हुए काॅनबैक ने कहा है कि " अमेरिका मे आज के शैक्षिक चित्र का केन्द्रबिन्दु पाठ्य पुस्तक है। इसका विद्यालय में महत्वपूर्ण स्थान है। इसका अतीत मे भी बहुत अधिक महत्व था एवं आज भी है। इसको जनसामान्य की भी लोकप्रियता प्राप्त होती है, क्योंकि पाठ्य पुस्तक विद्यालय अथवा कक्षा में छात्रों एवं शिक्षकों हेतु विशेष रूप से तैयार की जाती है जो किसी एक विषय अथवा संबंधित विषयों की पाठ्य वस्तु का प्रस्तुतीकरण करती है।"
पाठ्य पुस्तक की आवश्यकता एवं महत्व को निम्नांकित कारणों से स्वीकार किया जाता है--
1. पाठ्य पुस्तकें शिक्षकों तथा छात्रो के लिए मार्गदर्शक का कार्य करती है।
2. पाठ्य पुस्तकें छात्रों को विषय वस्तु को संकलित करने मे सहायता प्रदान करती है।
3. पाठ्य पुस्तकें मन्दबुद्धि तथा प्रतिभाशाली दोनों प्रकार के बालको के लिए उपयोगी होती है।
4. पाठ्य पुस्तक के आधार पर कक्षा-कार्य एवं मूल्यांकन संभव होता है।
5. ये परीक्षा के समय छात्रों की सहायक होती है।
6. योग्य शिक्षकों का ज्ञान भी अव्यवस्थित होता है। इसलिए उसे व्यवस्थित करने में पाठ्य पुस्तक मददगार होती है। इसी तरह छात्रों के अपूर्ण ज्ञान को परिवर्धित तथा पूर्णता प्रदान करने हेतु मददगार होती है।
7. छात्रो का मानसिक स्तर इतना ऊंचा नही होता है कि वे विद्यालय में पढ़ायी गई विषय-वस्तु को एक ही बार में आत्मसात कर सके। उन्हें विषय-वस्तु को कई बार पढ़ना एवं दुहराना पड़ता है। इसीलिए पाठ्य पुस्तक की जरूरत होती है।
8. इनके द्वारा छात्रों एवं शिक्षकों के समय की बचत होती है।
9. पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से स्वाध्याय द्वारा द्वारा ज्ञान प्राप्त करने में छात्रों को प्रेरणा प्राप्त होती है।
10. पाठ्य पुस्तक के आधार पर प्रत्येक राज्य में, प्रत्येक कक्षा में एक निश्चित पाठ्य वस्तु का अध्यापन संभव होता है तथा इससे छात्रों का मूल्यांकन सामूहिक रूप से किया जा सकता है।
11. पाठ्य पुस्तकों से अध्ययन मे एकरूपता आती है।
12. इनके माध्यम से छात्रों की स्मरण एवं तर्क-शक्ति का विकास होता है।
13. पाठ्य पुस्तकें मन्दबुद्धि तथा प्रतिभाशाली दोनों प्रकार के बालकों के लिए उपयोगी होती है।
14. पाठ्य पुस्तकें शिक्षक को कक्षा-स्तर के अनुसार शिक्षण कार्य करने का बोध कराती है।
15. विविध शिक्षा आयोगों द्वारा भी पाठ्य पुस्तकों की जरूरत तथा महत्व को स्वीकार किया गया है।
16. पाठ्य पुस्तक में विषय-वस्तु को तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है जिससे छात्रों के लिए विषय वस्तु सरल एवं सुगम हो जाती है।
17. पाठ्य पुस्तकों में विषय के पाठ्यक्रम की संपूर्ण रूप में व्याख्या की जाती है जिससे शिक्षक उपयुक्त अधिगम अनुभव प्रदान कर सकता है।
18. पाठ्य पुस्तकें शिक्षकों तथा छात्रों को विद्वानों के बहुमूल्य विचारों एवं उपयोगी अनुभवों को प्रदान करती है जिससे वे इन अनुभवों का लाभ उठाने में समर्थ हो सकते है।
यह भी पढ़े; पाठ्य पुस्तक की विशेषताएं, प्रकार
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