अच्छी पाठ्य पुस्तक की विशेषताएं (acchi pathya pustak ki visheshta)
एक अच्छी पाठ्य पुस्तक मे निम्न गुणों अथवा विशेषताओं का होना जरूरी है--
1. विषय-वस्तु का संगणन तार्किक तथा मनोवैज्ञानिक हो।
2. विषय वस्तु का प्रस्तुतीकरण बालकों के मानसिक स्तर के अनुरूप हो।
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3. व्याख्या स्पष्टीकरण, उदाहरणों की मदद से विषय का सरलीकरण हो।
4. भाषा-शैली में सरलता, स्पष्टता, मौलिकता तथा प्रवाहशीलता हो।
5. पाठ्य पुस्तक में विद्यार्थियों में स्वयं पढ़ने की रूचि विकसित करने की क्षमता हो।
6. अन्य लेखकों, विद्वानों के संदर्भ स्पष्ट, विश्वसनीय तथा वैध हों।
7. मुख-पृष्ठ सचित्र, आकर्षक तथा सोद्देश्य हो।
8. मुद्रण स्वच्छ, शुद्ध तथा स्पष्ट हो।
9. आकार सुविधाजनक हो।
10. अध्यायों के आकार बालकों के स्तर तथा क्षमताओं के अनुरूप हों।
11. विषय-वस्तु का प्रस्तुतीकरण शिक्षण उद्देश्यों तथा मूल्यों के अनुरूप हो।
12. विषय-वस्तु से संबंधित आधुनिकतम घटनाओं, तथ्यों तथा समस्याओं पर बल दिया गया हो।
13. विषय वस्तु के अनुकूल चित्रों, मानचित्रों, रेखाचित्रों, इत्यादि का प्रस्तुतीकरण हो।
14. चिन्तन तथा नवीन विचारों का प्रस्तुतीकरण हो।
15. विषय-सूची, शब्दावली, संदर्भ ग्रंथ सूची, निर्दश नियमावली आदि का समावेश हो।
16. अध्याय के अंत में विद्यार्थियों द्वारा स्वतः मूल्यांकन के लिए अभ्यास-प्रश्नों का समावेश।
17. विषय वस्तु से किसी की भी भावनाओं की आघात न पहुँचना अर्थात् निरपेक्षता की भावना पर ध्यान।
पाठ्य पुस्तकों के प्रकार (pathya pustak ke prakar)
पाठ्य-पुस्तकों के प्रकार निम्नलिखित है--
1. सामान्य पाठ्य-पुस्तकें
सामान्य पाठ्य पुस्तकें किसी विषय-विशेष पर सामान्य अध्ययन की दृष्टि से लिखी जाती है। इनमें किसी निर्धारित पाठ्यक्रम को आधार नही बनाया जाता है एवं प्रकरणों को विषय-सामग्री की उपलब्धता तथा उपयोगिता की दृष्टि से विस्तार दिया जाता है। ये पुस्तकें विशेष रूचि वाले विद्वानों द्वार लिखी जाती है। ये पुस्तकें शिक्षकों तथा छात्रों के लिए सहायक-पुस्तकों का कार्य करती है। इनका प्रयोग उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं अथवा उनसे ऊपर की कक्षाओं में किया जाता है।
2. पाठ्यक्रम पर आधारित पाठ्य-पुस्तके
इस तरह की पाठ्य पुस्तकें किसी निश्चित पाठ्यक्रम के आधार पर किसी निश्चित कक्षा-स्तर हेतु लिखी गई होती है। हालांकि इन पुस्तकों का विस्तार क्षेत्र सीमित होता है लेकिन विद्यार्थियों के लिए ये बहुत उपयोगी होती है, क्योंकि ये पाठ्यक्रम से सीधे जुड़ी होती है। इन पाठ्य पुस्तकों के निर्माण में शिक्षण उद्देश्यों को विशेष महत्व दिया जाता है। विद्यार्थियों में इन्ही पुस्तकों का सर्वाधिक प्रचलन होता है। इस तरह की पाठ्य पुस्तकें सभी कक्षाओं में प्रयुक्त की जाती हैं।
3. संदर्भ-पुस्तकें
ये विशिष्ट तरस की पुस्तके होती है। इनमें तथ्यों, प्रत्ययों, सूत्रों, घटनाओं आदि की व्याख्या गहनता से की जाती है। शिक्षक इनका प्रयोग संदर्भों के रूप में करता है, अतः इन्हें संदर्भ पुस्तकें कहा जाता है। उच्च कक्षाओं के शिक्षण मे इन पुस्तकों का अध्ययन तथा प्रयोग उपयुक्त होता है।
4. प्रचलित पाठ्य-पुस्तकें
इस प्रकार की पाठ्य पुस्तकों मे छात्रों की जिज्ञासा शांत करने की क्षमता होती है। इस तरह की पाठ्य-पुस्तकों मे पाठ्यवस्तु से संबंधित प्रकरण एक क्रम मे प्रस्तुत की जाती है। ये पुस्तके उदाहरणों तथा अन्य साधनों से परिपूर्ण होती है। इनके अंतर्गत संदर्भ पुस्तकों का वर्णन भी होता है। इन पुस्तकों का अध्ययन यदि छात्र करते है तो उसे अन्य किसी स्त्रोत से ज्ञान लेने की जरूरत नही पड़ती है।
5. ज्ञानात्मक पाठ्य-पुस्तकें
इस प्रकार की पाठ्य-पुस्तकें ज्ञान पर आधारित होती है। हाँलाकि इस मे कोई शक नही की सभी प्रकार की पुस्तके ही ज्ञान पर आधारित होती है।ज्ञानात्मक पाठ्य-पुस्तको मे सभी प्रकार की पुस्तकों का मिला-जुला स्वरूप होता है। इसमे लेखक के अनुभव छात्रो की रूचि, उपयोगिता, आवश्यकता, मनोरंजन एवं ज्ञान के तत्वों का समावेश किया जाता है। ऐसी पुस्तकें यह आवश्यक नही कि पाठ्यक्रम के ही अंतर्गत हो, ये पुस्तकें सहायक वाचन हेतु भी लाभप्रद होती है। इनका पाठन यात्रा के दौरान, खाली समय के सदुपयोग, कोई जानकारी प्राप्त करने हेतु किया जाता है।
6. अनुभव आधारित पाठ्य-पुस्तकें
इन पाठ्य-पुस्तको के प्रत्येक अध्याय मे शिक्षण बिन्दुओं को एक क्रम दिया जाता है जो मनोवैज्ञानिक होता है। इस प्रकार यह क्रम छात्रों को सीखने मे सहायता देता है। इस क्रम में आकृतियाँ, चित्र आदि भी दिए जाते है। ये पाठ्य-पुस्तके व्यक्तिगत तथा सामूहिक शोध कार्यों को विशेष महत्व देती है।
7. तात्कालिक आवश्यकता के अनुसार प्रचलित पुस्तकें
समय परिवर्तनशील है जिसके अनुसार काल, परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न निर्मित होती है। इसी प्रकार पाठ्य-पुस्तकों के स्वरूप में भी अंतर आ जाता है एवं सात्कालिक आवश्यकताएं ही इन पुस्तकों के उपयोग हेतु पाठकों को प्रेरेति करती है। उदाहरण के लिए, वर्तमान युग प्रतियोगी युग है। इस प्रतियोगी युग मे विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से छात्रों को विभिन्न व्यवसायिक अवसर भी प्राप्त होते है। ये पुस्तकें छात्रों का मार्ग दर्शन करती है तथा संबंधित ज्ञान को छात्रों हेतु उपलब्ध कराती है।
8. अनुदेश्नात्मक पाठ्य-पुस्तकें
इस प्रकार की पाठ्य-पुस्तके विद्यार्थियों का उचित मार्ग दर्शन करती है। ये पुस्तके छात्रो को इस प्रकार अनुदेशित करती है कि छात्र स्वयं अपना ध्यान केन्द्रित कर सकता है। जिससे पाठ्य-वस्तु छात्रों हेतु स्पष्ट भी हो जाती है। ऐसी पाठ्य-पुस्तकों मे छात्रों की रूचियों पर ध्यान नही दिया जाता है। जैसे-- कम्प्यूटर के अध्ययन हेतु एक अनुदेशनात्मक पुस्तक जो निश्चित नियमों पर आधारित होती है, ये पुस्तकें छात्रों का मनोरंजन करने मे अक्षम होती है। इन पुस्तकों की व्यवस्था तार्किक तथा सत्यता के आधार पर जाती है। यहाँ लेखक के विचारों को अधिक महत्व नही दिया जाता है।
9. अभिक्रमित अनुदेशित पाठ्य-पुस्तकें
इन पाठ्य-पुस्तकों का विश्लेषण प्रचलित तथा अनुभव पर आधारित है। बी. एफ. स्किनर ने शिक्षण प्रक्रिया में इन पाठ्य-पुस्तकों का उल्लेख किया है। आज की पाठ्य-पुस्तकें सीमाओं तथा दोषों से पूर्ण है। आज की पाठ्य-पुस्तकों में अनुदेशन का प्रयोग किया जाता है। अभिक्रमित अनुदेशित पाठ्य-पुस्तकों के पांच मनोवैज्ञानिक सिद्धांत बताए गए है--
(अ) छोटे-छोटे पदों का सिद्धांत,
(ब) तत्परता अनुक्रिया का सिद्धांत,
(स) तत्कालीन जाँच का सिद्धांत,
(द) स्वतः अध्ययन का सिद्धांत एवं
(ई) छात्र परीक्षण का सिद्धांत।
पाठ्य-पुस्तकों का चयन करते समय ध्यान देने योग्य बातें
पुस्तक पुस्तकों का चयन करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए--
1. पाठ्य पुस्तक का नाम
इसकी उपयुक्ता एवं ग्राह्राता।
2. लेखक
उसकी योग्यता, अनुभव एवं प्रसिद्ध। उसके विचारों स्पष्टवादिता, निष्पक्षता एवं मौलिकता। उसकी विषय विशेषता, मनोविज्ञान का ज्ञान, शिक्षण-विधियों का ज्ञान एवं प्रगतिशील विचारधारा आदि।
3. विषय-सूची
पाठ्यक्रम के अनुसार उसका महत्व एवं क्षेत्र तथा उसकी ग्राह्राता। ।
4. अन्तर्वस्तु का चयन एवं संगठन
पाठ्य पुस्तकों की अन्तर्वस्तु का चयन एवं संगठन निम्न प्रकार का होना चाहिए--
1. पाठ्यक्रम के उद्देश्यों के अनुरूप अन्तर्वस्तु का चयन।
2. छात्रों की रूचि, योग्यता, मानसिक-स्तर, संवेगात्मक-स्तर एवं प्रवृत्तियों से अन्तर्वस्तु की अनुकूलता।
3. अन्तर्वस्तु की उपयुक्तता-सामाजिक एवं आर्थिक विकास तथा नागरिकों में नव-जागरण कर सकने की क्षमता का विकास करना।
4. अन्तर्वस्तु के संगठन की मनोवैज्ञानिकता-अध्यायों का क्रम बालकों के मानसिक विकासक्रम के अनुसार।
5. अन्तर्वस्तु के संगठन की शिक्षण विधियों से अनुकूलता।
6. अन्तर्वस्तु के चयन में प्रजातांत्रिक आदर्शों एवं मूल्यों का ध्यान रखना।
5. प्रस्तुतीकरण
प्रस्तुतीकरण मे निम्न गुण होना चाहिए--
1. छात्रों में स्वतः अध्ययन करने की आदत विकसित कर सकने की क्षमता।
2. छात्रों में विषय के प्रति रूचि विकसित कर सकने की क्षमता।
3. अन्य विषयों से अच्छा सह-संबंध।
4. शिक्षण-विधियों का अनुकूल होना।
5. शिक्षण सूत्रों के अनुरूप।
6. सीखने के नियमों एवं सिद्धांतों का अनुसरण।
7. निर्देशित अध्ययन के अवसर प्रदान करने की संभावना।
8. छात्रों के मानसिक एवं संवेगात्मक स्तर के अनुकूल।
9. व्यक्तिगत-भिन्नता की आवश्यकताओं की पूर्ति की संभावना।
10. बालकों के मानसिक विकास में सहायक।
11. उपयुक्त एवं सरल भाषा-शैली।
12. उदाहरण एवं चित्र आदि शाब्दिक एवं प्रदर्शनात्मक उदाहरण।
13. तालिकाओं, ग्राफ, रेखाचित्र एवं मानचित्र आदि की स्पष्टता, आकर्षकता एवं शुद्धता।
14. आँकड़ों, उदाहरणों एवं संदर्भों की पर्याप्त संख्या, उनकी विश्वसनीयता एवं वैधता।
6. शैक्षिक सहायक साधन
अभ्यासार्थ प्रश्न, उपयुक्त निर्देश, प्रस्तावना, परिशिष्ट आदि की यथार्थता एवं उपयुक्तता, सहायक पुस्तकों की सूची आदि का समुचित समावेश।
7. पाठ्य पुस्तक की ब्राह्रा आकृति
पाठ्य पुस्तकों के चयन के समय पुस्तक के आकार, पृष्ठ संख्या, कागज, मुद्रण, जिल्दसाजी, आवरण पृष्ठ की आकर्षकता आदि तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए।
8. प्रकाशन
पुस्तक के प्रकाशक की विश्वसनीयता एवं प्रसिद्ध।
9. प्रकाशन की तिथि
पाठ्य पुस्तक कि वर्ष प्रकाशित हुई है।10. मूल्य
पुस्तक का मूल्य जन-सामान्य को ध्यान में रखकर निर्धारित किया जाना चाहियें तथा यथा-संभव न्यूनतम होना चाहिए।
Ismein confusion bhi Hona chahie tha
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