7/31/2021

पाठ्यक्रम और पाठ्यवस्तु में अंतर

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पाठ्यक्रम और पाठ्यवस्तु में अंतर

pathyakram or pathya vastu me antar;पाठ्यक्रम और पाठ्यवस्तु इन दोनों शब्दों का लोग एक ही अर्थ लगाते है लेकिन ऐसा नही है। इन दोनों शब्दों में पर्याप्त अंतर है। पाठ्यक्रम मे पाठ्यवस्तु समाहित होती है। पाठ्यवस्तु का अर्थ है शिक्षण विषय की रूपरेखा जो किसी स्वयं के लिये निर्धारित की जाती है। उदाहरण के लिए हिन्दी विषय में हाईस्कूल कक्षा मे किन-किन उपविषयों की कितनी पाठ्यवस्तु या कितने प्रकरण पढ़ाने के लिये निर्धारित किये जाते है जिन पर परीक्षा मे प्रश्न पूछे जायेंगे? फलतः शिक्षक विद्यार्थियों को उन्ही प्रकरणों पर ही पढ़ाकर परीक्षा के लिये तैयार करता है। उसी को हिन्दी की पाठ्यवस्तु कहते है।

पाठ्यक्रम बालक के सम्पूर्ण विकास (ज्ञानात्मक, भावनात्मक, क्रियात्मक, शारीरिक, सामाजिक) से संबंध रखता है। विद्यालयों में शिक्षण की क्रियाओं का संबंध अधिकतर ज्ञानात्मक पक्ष से होता है। विद्यालय मे खेल-कूद और शारीरिक प्रशिक्षण का संबंध शारीरिक विकास से होता है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सांस्कृतिक और सामाजिक विकास होता है। एन. सी. सी. एवं स्काउट-गाइड के कार्यक्रमों से बालकों में नेतृत्व करने की शक्ति का विकास होता है। अतः हम कह सकते है कि पाठ्यक्रम का स्वरूप बहुत अधिक व्यापक होता है।  

पाठ्यवस्तु सिलेबस केवल मुद्रित संदर्शिका है जो यह बतलाती है कि छात्र को क्या सीखना है? पाठ्यवस्तु की तैयारी पाठ्यक्रम विकास के कार्य का तर्क-सम्मत सोपान है।" 

पाठ्यक्रम और पाठ्यवस्तु मे निम्नलिखित अंतर है-- 

1. पाठ्यक्रम उन सभी अनुभवों (शैक्षिक और सह शैक्षिक) का कोष है जिनको बालक-बालिकायें विद्यालय मे प्राप्त करते है। जबकि पाठ्यवस्तु किसी स्तर के लिये निर्धारित शिक्षण-विषय की रूप-रेखा होती है।

2. पाठ्यक्रम का संबंध बालक के संपूर्ण विकास से होता है। पाठ्यवस्तु का संबंध बालक के ज्ञानात्मक पक्ष के विकास से होता है। 

3. पाठ्यक्रम यह प्रदर्शित करता है कि शिक्षक किस प्रकार की शैक्षिक क्रियाओं के द्वारा पाठ्यवस्तु की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। पाठ्य-वस्तु संपूर्ण शैक्षिक सत्रे मे विभिन्न विषयों मे शिक्षक द्वारा छात्रों को दिये जाने वाले ज्ञान की मात्रा के विषय मे निश्चित जानकारी प्रस्तुत करती है।

4. पाठ्यक्रम विभिन्न विषयों के विद्यालय की समय अवधि का आबंटन प्रत्येक विषय को पढ़ाने के लिये उद्देश्य एवं क्रियात्मक कौशलों को प्राप्त करने की गति का निर्धारण करती है। पाठ्य-वस्तु निर्धारित पाठ्य-विषयों के शिक्षण के लिये अन्तुर्वस्तु, उसके ज्ञान की सीमा, छात्रों द्वारा प्राप्त किये जाने वाले कौशलों को निश्चित करती है और शैक्षिक सत्र में पढ़ाये जाने वाले व्यक्तिगत पक्षों तथा निष्कर्षों की व्यापक जानकारी प्रदान करती है। 

5. पाठ्यक्रम का स्वरूप अत्यन्त व्यापक होता है। इसके अंतर्गत समावेश किया जाना है। पाठ्यवस्तु का स्वरूप सुनिश्चित होता है। इसके अंतर्गत केवल शिक्षण-विषयों के ही प्रकरणों को शामिल किया जाता है। 

6. पाठ्यक्रम शिक्षा-दर्शन पर आधारित होता है। जबकि पाठ्य-वस्तु का कोई दार्शनिक आधार नही होता है।

7. पाठ्यक्रम छात्रों मे राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक मूल्यों का विकास करता है। पाठ्य वस्तु छात्रों में राष्ट्रीय मूल्यों के विकास मे सहायक नही होती। 

8. पाठ्यक्रम में बालक को महत्व दिया जाता है। पाठ्य-वस्तु मे शिक्षक और अन्तर्वस्तु को प्राथमिकता दी जाती है।

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