पाठ्यवस्तु का अर्थ एवं परिभाषा
पाठ्यक्रम के लिए सिलेबस शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। जब तक पाठ्यक्रम शब्द पाठ्य-विषयो के सीमित अर्थ मे प्रयोग किया जाता है तब तक इन दोनों अर्थों मे समानता होती है लेकिन पाठ्यक्रम शब्द की संकल्पना मे व्यापकता आ जाने के कारण इन शब्दो के प्रयोग मे पृथकता आ गई है।
पाठ्यक्रम मे निर्धारित पाठ्य-विषयों से संबंधित क्रियाओं का ही समावेश होता है। इस तरह पाठ्यवस्तु के अंतर्गत किसी विषय-वस्तु का विवरण शिक्षण हेतु तैयार किया जाता है जिसे शिक्षक छात्रों को पढ़ाता है। एक विद्वान के अनुसार पाठ्यवस्तु पूरे शैक्षिक सत्र विभिन्न विषयों मे शिक्षक द्वारा छात्रों को दिये जाने वाले ज्ञान की मात्रा के विषय मे निश्चित जानकारी पेश करता है।
हेनरी हरेप के अनुसार," पाठ्यवस्तु सिर्फ मुद्रित संदर्शिका है जो यह बताती है कि छात्र को क्या सीखना है? पाठ्यवस्तु की तैयारी पाठ्यक्रम विकास के कार्य का एक तर्कसम्मत सोपान है।"
श्रीमती आर.के. शर्मा के अनुसार," पाठ्यवस्तु किसी विद्यालयी या शैक्षिक विषय की उस विस्तृत रूपरेखा से है जिसमें विद्यालय शिक्षक, शिक्षार्थी एवं समुदाय के उत्तरदायित्वों के निर्वहन के साथ-साथ छात्र के सर्वागीण विकास के अध्ययन तत्व समाहित होते हैं।"
यूनेस्को (Unesco) के प्रकाशन Preparing Texbook Manuscripts में पाठ्यक्रम तथा पाठ्यवस्तु के अंतर को इस तरह स्पष्ट किया है-- ", पाठ्यक्रम अध्ययन हेतु विषयों, उनकी व्यवस्था तथा क्रम का निर्धारण एवं इस तरह एक सीमा तक मानविकी तथा विज्ञान में सन्तुलन तथा अध्ययन विषयों मे एकरूपता सुनिश्चित करता है, जिससे विषयों के मध्य अन्तर्सम्बन्ध स्थापित करने मे सुविधा होती है। इसके साथ ही पाठ्यक्रम, विविध विषयों हेतु विद्यालय की समय-अवधि का आबंटन, प्रत्येक विषय को पढ़ाने के उद्देश्य, क्रियात्मक कौशलों को प्राप्त करने गति तथा ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के विद्यालयों को शिक्षण मे विभेदीकरण का निर्धारण करता है। विकासशील देशों मे विद्यालय पाठ्यक्रम वहाँ की विकास की आवश्यकताओं से सीधे जुड़ा हुआ होता है। पाठ्यवस्तु निर्धारित पाठ्य-विषयों के शिक्षण के लिए अन्तर्वस्तु, उसके ज्ञान की सीमा, छात्रों द्वारा प्राप्त किये जाने वाले कौशलों को निश्चित करता है एवं शैक्षिक सत्र मे पढ़ाये जाने वाले व्यक्तिगत पहलुओं तथा निष्कर्षों की विस्तृत जानकरी प्रदान करता है। पाठ्य वस्तु किसी पाठ्य विषय हेतु अधिगम के एक स्तर विशेष पर पाठ्यक्रम का एक परिष्कृत तथा विस्तृत रूप होता है।
इसलिए पाठ्यवस्तु का संबंध ज्ञानात्मक पक्ष के विकास से होता है। विद्यालय के भीतर शिक्षण क्रियाओं का संबंध ज्ञानात्मक पक्ष से होता है। पाठ्य-वस्तु का स्वरूप सुनिश्चित होता है एवं इसके अंतर्गत सिर्फ शिक्षण विषयों के प्रकरणों को भी शामिल किया जाता है।
पाठ्यवस्तु एवं पाठ्य-पुस्तक मे अन्तःसंबंध
पाठ्य-पुस्तके एवं पाठ्य-वस्तु घनिष्ठ रूप से अन्तर्सम्बिन्धत है। पाठ्यवस्तु तथा पाठ्य-पुस्तक एक-दूसरे के बगैर अधूरे हैं। पाठ्यवस्तु के बिना पाठ्य-पुस्तक का निर्माण नही हो सकता है। पाठ्य पुस्तके हमेशा पाठ्यवस्तु के शैक्षिक उद्देश्यो को ध्यान मे रखकर बनायी जाती है। पाठ्य-पुस्तके पाठ्यवस्तु के विषय मे छात्रो और शिक्षको दोनो का ही मार्गदर्शन करती है तथा छात्रो एवं शिक्षको को जानकारी प्राप्त होती है कि विषयवस्तु का अध्यापन किस प्रकार करना चाहिए।
पाठ्यवस्तु संपूर्ण शैक्षिक सत्र मे विभिन्न विषयों मे शिक्षक द्वारा छात्रों को दिये जाने वाले ज्ञान की मात्रा के विषय मे निश्चित जानकरी पेश करती है। यह एक प्रकार की संरचना बताती है कि किस स्तर पर (प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च, उच्चतर, व्यावसायिक) छात्रों को किसी विषय का कितना ज्ञान देना है, जबकि पाठ्य-पुस्तकें उस संरचना पर कार्य करके उस संरचना को वास्तविकता मे परिणित करती है।
पाठ्य-वस्तु भले ही प्रत्यक्ष हो, पाठ्य-पुस्तको के बिना शिक्षण कार्य अबाध रूप से नही चल सकता, इसका कारण यह है कि पाठ्यवस्तु को लम्बे समय तक याद नही रखा जा सकता है। पाठ्य-पुस्तकें ही विषय-वस्तु को संकलित करने मे तथा भूल जाने पर स्मृति स्तर तक पुनः लाने मे सहायता करती है। पाठ्य-पुस्तक के आधार पर ही कक्षा कार्य तथा मूल्यांकन संभव हो पाता है। पाठ्य- वस्तु को अंशो मे तथा इकाइयों मे विभक्त करके पाठ्य-पुस्तके निर्मित की जाती है जिसकी सहायता से शिक्षक वस्तु-वस्तु का शिक्षण देता है तथा साथ ही उसको बार-बार दोहराकर छात्र के पाठ को पक्का कराता है। इसके पश्चात वह छात्र का टेस्ट लेकर बीच-बीच में पाठ्यवस्तु का मूल्यांकन भी करता जाता है जिससे छात्र अधिगम की गई सामग्री को याद रख सके। ये पाठ्य-पुस्तके परीक्षा के समय छात्रों की सहायता करती है और इनकी सहायता से छात्र स्वयं भी अपने द्वारा स्मरण की गई अधिगम सामग्री का मूल्यांकन कर लेते है। पाठ्य-पुस्तकों मे पाठ्यवस्तु को तार्किक ढंग से पेश किया जाता है, पाठ्यवस्तु को आकार दिया जाता है और शिक्षकों को कक्षा-स्तर के अनुसार शिक्षण कार्य करने का बोध कराया जाता है। पाठ्य-पुस्तकें कक्षा शिक्षण की अनेक कमियों को भी दूर करती है क्योंकि कक्षा-शिक्षण के समय शिक्षक सभी छात्रों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान नही दे सकता है जबकि पाठ्य-पुस्तकों की सहायता से छात्र व्यक्तिगत रूचि और गति के साथ अध्ययन कर सकता है।
अतः हम कह सकते है कि पाठ्यवस्तु तथा पाठ्य-पुस्तको मे बहुत घनिष्ठ अन्तर्सम्बन्ध है। पाठ्यवस्तु ज्ञान का एक खाका होता है। योग्य शिक्षको का ज्ञान भी अव्यवस्थित होता है। पाठ्य पुस्तको के अभाव मे योग्य शिक्षक भी न तो ठीक से पढ़ा सकते है और न ही छात्र उस ज्ञान को संकलित रख सकते है। छात्रो के लिए समस्या होने पर पाठ्य-पुस्तके प्रत्येक समय उनकी सहायता करती है। दूर-दराज के क्षेत्रो मे रहने वाले तथा पत्राचार के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों को पाठ्यवस्तु पुस्तकों के रूप मे ही प्राप्त होती है। वर्ष भर शिक्षक द्वारा दिया गया ज्ञान भी परीक्षा के समय अधूरा ही लगता है। इस कमी को पुस्तके ही पूर्ण करती है।
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