ग्रामीण समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र
gramin samajshastra ka kshetra;ग्रामीण समाजशास्त्र ग्रामीण समाज की समस्त घटनाओं एवं समस्त सामाजिक संबंधों का अध्ययन है। ग्रामीण समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र के संबंध में अलग-अलग मत हैं कुछ विद्वानों ने इसको ग्राम विकास तक ही सीमित रखा है। श्री ए. आर. देसाई के मतानुसार क्या ग्रामीण समाजशास्त्र को केवल ग्रामीण समाज का अध्ययन और उसके विकास को निर्धारित करने वाले कानूनों का वैज्ञानिक अध्ययन करना चाहिए अथवा इसे एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करना चाहिए और आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में ऐसे समाज में सुधार तथा उन्नति की व्यवहारिक योजनाओं की संस्तति करनी चाहिए।
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सामान्यतः सभी लेखक इस बात से सहमत हैं कि ग्रामीण समाजशास्त्र ग्रामीणों के जीवन का विश्लेषण है। श्री स्मिथ इस विचार की पुष्टि में लिखते हैं," कि वे सब एकमत से यह बात कहते हैं कि ग्रामीण समाजशास्त्र का मुख्य उद्देश्य ग्रामीणों के सामाजिक संगठन उनके ढांचे और उनकी उन्नति की आकांक्षाओं एवं योजनाओं का विज्ञानिक क्रमबद्ध और विस्तृत अध्ययन होना चाहिए।
ग्रामीण समाजशास्त्र ग्रामीणों के संबंधों और उनकी अंत:क्रियाओं का अध्ययन करता है। अतः इसका विशेष-क्षेत्र बहुत विस्तृत है। इस विज्ञान से यह भी आशा की जाती है कि यह ग्रामीणों की अभौतिक संस्कृति का अध्ययन और नागरीय समाज की भौतिक संस्कृति के ग्रामीणों पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन करेगा।
ग्रामीण समाजशास्त्र में निम्नलिखित का भी समावेश किया जाता है--
1. ग्रामीण जीवन का सामाजिक मनोविज्ञान।
2. ग्रामीण सामाजिक संगठन।
3. सामाजिक मान्यताएं, जो किसी भी समाज की उन्नति के लिए उपयोगी है।
ग्रामीण समाजशास्त्र के तत्व
1. ग्रामीण ढाँचा
ग्रामीण जीवन, सामाजिक व्यवस्था का स्वरूप निर्धारित करना है इसके लिए विभिन्न स्थानों की व्यवस्था के स्वरूप का अध्ययन आवश्यक है। ग्रामीण समाज की प्रथाएं, रूढ़ियां एवं नियम सभी इसके अंतर्गत आते हैं। ग्रामीण समाज का ढांचा अपनी मौलिकता पर आधारित है इसलिए इस मौलिकता के अध्ययन का विशेष महत्व है।
2. ग्रामीण सामाजिक संगठन
इसमें कुटुंबिक जीवन का अध्यय,न वैवाहिक प्रथा तथा सामाजिक असंतोष का अध्ययन सम्मिलित है।
2. ग्रामीण जीवन की विशेषताएं
नगरीय जीवन की तुलना में ग्रामीण जीवन की विशेषताओं का अध्ययन करना।
4. ग्रामीण समस्याओं का अध्ययन
आरंभ में ग्रामीण समाजशास्त्र का विकास ग्रामीण समस्याओं के अध्ययन से हुआ है। गांव को एक सामाजिक, आर्थिक इकाई मांनते हुए हम विस्तार से इसके अंतर्गत ग्रामीण समस्याओं का अध्ययन करते हैं तथा अपने अध्ययन के आधार पर इन समस्याओं के समाधान का प्रयास करते हैं।
5. ग्रामीण शिक्षा
आरंभ से ही यह आशा की गई थी कि ग्रामों के सिद्धांतों और नियमों पर आधारित ग्रामीण समाजशास्त्र ग्राम में शिक्षा के स्वरूप को निखारने में कार्य करेगा।
6. ग्रामीण सामाजिक जीवन
इसमें सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, भौतिक और अभौतिक ग्राम जीवन का अध्ययन किया जाता है।
7. ग्राम सुधार
ग्राम जीवन के विभिन्न अवयवों विशेषताओं और समस्याओं के अध्ययन के बाद ग्रामीण समाजशास्त्र उन सभी तत्वों का अध्ययन करता है जो ग्राम सुधार की योजना में सहायक होंगे।
यूटीसिओरियनिस्ट के मतानुसार ग्रामीण समाजशास्त्र ग्रामीण सुधार के अध्ययन इससे यह पता चलता है कि ग्रामीण समाजशास्त्र विस्तृत है। जितना कि संपूर्ण ग्राम जीवन का प्रस्तुतीकरण इसका महत्व ऐसे देशों में और भी बढ़ जाता है जहां का मुख्य व्यवसाय कृषि है।
ग्रामीण समाजशास्त्र के अध्ययन का महत्व
gramin samajshastra ka mahatva;विश्व का कोई भी देश चाहे वह कितना ही आधुनिक हो गया हो। वह अपनी ग्रामीण संस्कृति व सभ्यता की पहचान को मिटा नहीं सकता। यह कहना भी उतना ही सत्य है कि किसी देश की आत्मा गांवों में बसती है नगरों में नहीं। नगर तो विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों के पुंजी मात्र होते हैं। इस दृष्टि से ग्रामीण संस्कृति की अपनी अक्षुण्ण विशेषताएं हैं। जिसने परिचित हुए बगैर आप किसी भी देश को समझ नहीं सकते। भारतीय ग्रामीण समाज की अपनी विशेषता है। भारतीय ग्रामीण समाज को समझने के लिए हमें उसके संपूर्ण ढांचे का विभिन्न तरह से अध्ययन और विश्लेषण करना होगा, तथ्यों का वैज्ञानिक अध्ययन करना होगा। जहां के आर्थिक, सामाजिक ढांचे, संस्कृति लोग के विश्वास से जुड़ी हुई, असंख्य मान्यताओं व मूल्यों, अनेक प्रकार के संगठनों और संस्थाएं आदि का अध्ययन किए बगैर हम भारत के व्यक्तियों की जीवन पद्धति को भली-भांति समझ नहीं सकेंगे। अतः ग्रामीण समाजशास्त्र ग्रामीण समाज को सर्वागीण रूप में समझाने में सहायक है।
भारत मे ग्रामीण समाजशास्त्र का महत्व
भारत गांवों के देश के नाम से विख्यात है। ग्रामीण समाजशास्त्र का महत्व इसलिए भी अन्य शास्त्रों से कहीं अधिक है क्योंकि यह गांव के विभिन्न अंगों का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करता है। इसे निम्नलिखित तथ्यों से जाना जा सकता है---
1. भारतीय संस्कृति का मूल स्त्रोत
किसी भी देश की संस्कृति नगरों में नहीं गांवों में जन्म लेती है। वही उसका मूल स्थान व स्रोत होता है। गांव पहले बने हैं और नगर बाद में। इसलिए आज हमारे देश की जो भी भाषा, वेश-भूषा, परंपराएं, प्रथाएं, नीतियां, लोक विश्वास, धर्म और आदर्श कहीं ना कहीं और किसी ना किसी रूप में गांव से जुड़े है। इसलिए गांव से परिचित हुए बगैर भारतीय संस्कृति को ना तो समझा जा सकता है और ना ही जाना जा सकता है।
2. भारतीय समाज की ग्रामीण प्रकृति
भारतवर्ष की संपूर्ण जनसंख्या का 70% से भी ज्यादा व्यक्ति आज भी गांव में निवास करता है। कहीं ना कहीं खेती, बाग से जुड़ा है। भूमि से उसका अटूट संबंध है। किसी भी देश की इतनी बड़ी जनसंख्या जब गांव में रहती है तो उस देश की मूल प्रकृति में गांव की असंख्य विशेषताएं समाहित होती है।
3. निर्धनता एवं दरिद्रता का दृश्य
सोने की चिड़िया व प्राकृतिक साधनों से संपन्न देश में निर्धनता व दरिद्रता इतनी अधिक है कि गांव के असंख्य व्यक्तियों को दो समय का भोजन भी प्राप्त नहीं हो पाता। डॉ. ए. आर. देसाई ने उचित ही कहां है कि," भारतीय ग्रामीण जीवन वास्तविक विपत्ति, सामाजिक पिछड़ेपन और इन सबसे अधिक सबसे ऊपर छाए हुए संकट का एक दृश्य उपस्थित करता है।"
उसकी निर्धनता दरिद्रता दीन हीनता दशा रहने का निम्नतम स्तर संपूर्ण भारत की गरीबी को कलंकित करता है।
4. कृषि मुख्य व्यवसाय के रूप मे
संपूर्ण ग्रामीण जनता किसी न किसी रूप में कृषि पर आश्रित है। उसकी जीविका का मुख्य साधन कृषि है। कृषि यहां वरदान के रूप में नहीं अभिशाप से रूप मे उत्पन्न हुई। प्राकृतिक अभिशाप उसके साथ साथ चलती है कभी सूखा, कभी पाला, यह सभी गांव को प्रकृति से प्राप्त है। इसलिए भारतीय गांव की विशेषताएं अन्य देशों के गांवों से पूरी तरह अलग है। संपूर्ण ग्रामीण संस्कृति में उसके क्रियाकलाप और व्यक्तियों के व्यवहार और लोक विश्वासी अनुष्ठान मे कहीं गहरे कृषि संस्कृति समाहित है फिर ग्रामीण समाजशास्त्र की अपेक्षा कैसे की जा सकती है?
5. लोकतंत्रीय विकेन्द्रीकरण
गांधी जी कहा करते थे कि दिल्ली का शासन भारत के लाखों गांवों में नहीं पहुंच सकता इसलिए सत्ता का विकेंद्रीकरण आवश्यक है। लोक शासन आवश्यक है स्वतंत्रता के बाद गांधी जी का सपना थोड़ा बहुत अवश्य पूर्ण हुआ। ग्रामीण पंचायतों को शक्ति साधन दिए गए गांव की प्रगति के लिए ग्राम पंचायत, सहकारिता व सामुदायिक विकास योजनाओं को प्रोत्साहन दिया गया। जिससे कि गांव के आर्थि,क सामाजिक ढांचे में क्रांतिकारी परिवर्तन आ सके। अत: शासन के नए कार्यक्रम किस रूप में गांव में लागू किए जा रहे हैं और उनका क्या परिणाम है उन्हें जानने के लिए ग्रामीण समाजशास्त्र के अध्ययन की तीव्रता को अनुभव किया जा सकता है।
6. भारतीय गाँवों की कुछ अद्भुत विशेषताएं
संसार के सभी देशों में गांव किसी ना किसी रूप में अवश्य पाए जाते हैं। उनकी अपनी विशेषताएं है पर भारत के गांव उन सभी से अलग हैं। इन गांवों में जाति व्यवस्था का संस्तरण है। हरिजन व पिछड़ी हुई जातियों की एक लंबी सूची है। अस्पृश्यता अभी भी जिंदा है। महाजन की संस्कृति अभी भी चल रही है बेमेल विवाह भी अभी भी किए जाते हैं। ऊंची-नीची जातियों में अभी भी तनाव है। इस प्रकार की असंख्य गांव की विशेषताएं जो ग्रामीण समाजशास्त्र की समस्याओं को समझाने में सहायक है।
7. ग्रामीण समाज नगरीय समाज से पृथक समाज
ग्रामीण समाज में नगरीय समाज परस्पर सम्मान ना होकर दो विभिन्न समाज है। ग्रामीण समाज की अपनी विशेषता व समस्या है और इसी तरह नगरीय समाज की अपनी। दो भिन्न समाजों के अध्ययन के लिए ज्ञान की दो प्रत्यक्ष शाखाओं की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए आवश्यकता है ग्रामीण समाज का अलग ढंग से अध्ययन किया जाए।
8. ग्रामीण पुनर्निर्माण
ग्रामीण अंचलों में असंख्य समस्याओं को समझाने व उनके निराकरण के लिए सरकार ने अनेक महत्वपूर्ण योजनाओं को क्रियान्वित किया है। इन विभिन्न योजनाओं का मुख्य उद्देश्य है गांव का पुनर्निर्माण करना। वहां की दरिद्रता व निर्धनता की समस्या का समाधान करना। रहन-सहन के स्तर में सुधार लाना शिक्षा प्रचार व प्रसार करना जीविकापार्जन के साधनों में वृद्धि करना। सभी जातियों के व्यक्तियों में समानता की भावना उत्पन्न करना और उन्हें नौकरी के लिए समान अवसर देना इत्यादि। यह सभी कार्य ग्रामीण पुनर्निर्माण के उद्देश्यों को पूर्ण करते हैं। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सत्ता का विकेंद्रीकरण, पंचायत राज्य, सहकारिता, समुदायिक विकास योजना आदि को सरकार प्रोत्साहित कर रही है। इस दृष्टि से भारत में ग्रामीण समाजशास्त्र का अध्ययन बहुत पहले ही आरंभ हो जाना चाहिए था। जो बाद में आरंभ हुआ डॉ. ए. आर. देसाई ने लिखा है भारत में ग्रामीण समाजशास्त्र के उत्थान की आवश्यकता कालातीत व अनिवार्य है।
9. अध्ययन के नवीन क्षेत्र
ग्रामीण समाजशास्त्र के विकास के साथ ही समाजशास्त्र के अध्ययन के नए क्षेत्रों का विकास भी हुआ है। क्योंकि ग्रामीण समाज की समस्याएं वहां का आर्थिक सामाजिक व सांस्कृतिक संगठन नगर से बिल्कुल ही भिन्न है। नेतृत्व का प्रतिमान भी कुछ अलग-थलग ढंग का है। संयुक्त परिवार, जाति व्यवस्था, अस्पृश्यता बेमेल विवाह, निर्धनता, बेकारी जैसी अनेक समस्याएं हैं जिन्हें अलग ढंग से अध्ययन करने की आवश्यकता पड़ती है।
10. भारत के लिए ग्रामीण समाजशास्त्र
70% से ज्यादा व्यक्तियों का जो शास्त्र अध्ययन करता है उसके महत्व को हम कैसे नकार सकते हैं? वास्तविकता तो यह है कि समाजशास्त्र में सबसे अधिक महत्व यदि किसी भी शाखा को दिया जाना चाहिए तो वह ग्रामीण समाजशास्त्र है।
11. ग्रामीण समाज के अध्ययन के लिए अध्ययन पद्धतियाँ
ग्रामीण समाज के समुदाय विभिन्न संगठन व संस्थाएं सांस्कृतिक प्रतिमान लोग विश्वास व मूल्य कार्यपद्धती व प्राचीन परंपरागत तकनीकी ज्ञान आदि। ऐसे नवीन क्षेत्र हैं जिनके अध्ययन के लिए नवीन अध्ययन पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है। इस तरह यदि किसी को ग्रामीण क्षेत्रों की मूलभूत चीजों का भी यदि ज्ञान नहीं हुआ तो वह ग्रामीण समाज का अध्ययन करने में सक्षम ना हो सकेगा ग्रामीण समाजशास्त्र का अध्ययन अति आवश्यक है।
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