अस्पृश्यता का अर्थ (asprishyata kya hai)
साधारण शब्दों मे अस्पृश्यता का अर्थ ऐसी वस्तुओं से लिया जाता है जिनको स्पर्श करना वर्जित हो। भारत मे इस शब्द का अर्थ विशेषकर उन जातियों से दूर रहने के लिये किया जाता रहा है जो निम्न जाति की है और जिनका मुख्य कार्य कूड़ा, मैला उठाना या सफाई करना है। कुछ समय पूर्व इस श्रेणी की जाति के लोगों को भंगी, चमार, मेतर, बसौड़ आदि नमों से सम्बोधित किया जाता था और इनको समाज मे हेय की दृष्टि से देखा जाता था। किन्तु आज स्वतंत्रत भारत मे अनेक समाज सुधारकों और सरकार के अथक प्रयासों से इनका सामाजिक सम्मान बढ़ा है एवं इनकी स्थिति मे परिवर्तन हो रहा है। वर्तमान मे अस्पृश्य जातियों को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है जैसे-- दलित वर्ग, बाहरी जाति, हरिजन आदि। सन् 1935 के अधिनियम मे इन अस्पृश्य जातियों को कुछ विशेष सुविधायें देने की दृष्टि से एक अनुसूची तैयार की गयी। इसलिए इन जातियों को अनुसूचित जातियों के नाम से पुकारा जाता है।
अस्पृश्यता की परिभाषा (asprishyata ki paribhasha)
डाॅ. घुरिये के अनुसार," अनुसूचित जातियों की परिभाषा मैं उस रूप मे कर सकता हूँ, जो कुछ समय के लिये अनुसूचित जातियों के अंतर्गत रखे गये है।
डाॅ. मजूमदार के अनुसार," अस्पृश्य जातियाँ वे है जो कि विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक निर्योग्यताओं से पीड़ित है, जिनमे से बहुत सी निर्योग्यताएँ उच्चतर जातियों के द्वारा परम्परागत रूप से निश्चित व सामाजिक रूप से लागू की गई है।
अस्पृश्यता की कसौटायाँ या आधार
किन जातियों को अस्पृश्य कहा जावे इसके लिये कुछ आधार अथवा कसौटायाँ निश्चित की गई है। ये आधार निम्न है--
1. उस जाति का पुराहित्य ब्राह्मण करते है अथवा नही।
2. सवर्ण हिन्दुओं की सेवा करने वाले व्यक्ति, जैसे-- नाई, धोबी, दर्जी, कुम्हार आदि उस जाति की सेवा करते है या नही।
3. उस जाति के व्यक्ति एक सवर्ण हिन्दू को स्पर्श से अपवित्र करते है या नही।
4. हिन्दू मन्दिरों में प्रवेश करने से उस जाति के व्यक्ति वर्जित है अथवा नही।
5. क्या सवर्ण हिन्दू उस व्यक्ति के हाथ का पानी पीते है या नही।
6. क्या उस जाति के सदस्य सार्वजनिक सुविधाओं जैसे-- सड़कों, कुओं, विद्यालयों इत्यादि का प्रयोग कर सकते है अथवा नही।
7. साधारण सामाजिक व्यवहार मे उस जाति का शिक्षिन सदस्य उसी योग्यता वाले सवर्ण हिन्दू के द्वारा समता का व्यवहार पाता है या नही।
8. क्या उस जाति को दलित इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे आज्ञानी है, अशिक्षित है या गरीब है या उन्हें दलित कहने का अन्य कारण है?
9. क्या जाति केवल व्यवसाय के कारण निम्न समझी जाती है या उसका कोई ध्यान नही रखा जाता?
उपरोक्त लक्षणों मे से एक या अधिक अवस्थायें होने पर उस जाति को अस्पृश्य मे मान लिया जाता है।
अस्पृश्यता के अंतर्गत निर्योग्यताएँ
भारत मे अस्पृश्य जातियाँ वे जातियाँ है जिनके लिये उच्च वर्ण या जाति के लोगों ने कुछ निषेधात्मक बातें निर्धारित की है। ग्रामीण समुदायों में अन्धविश्वास तथा अशिक्षा के कारण निम्न वर्ण की जातियों की निर्योग्यताओं ने घर कर लिया है। इन्होंने ग्रामीण समुदाय को निम्न प्रकार से प्रभावित किया है--
1. निम्न श्रेणी की जातियों के साथ खानपान तथा रिश्तेदारी के संबंध स्थापित करना वर्जित माना गया है।
2. निम्न जातियों के लोगों को उच्च जातियों के सामने खाट या उच्च स्थान पर बैठना वर्जित है, उनका स्थान भूमि ही माना जाता है।
3. निम्न वर्ण या जाति के लोग उच्च जाति के लोगों से स्पर्श करके नही निकल सकते है।
4. यदि उच्च जाति के लोगों का स्पर्श किसी निम्न जाति के लोगों से हो जाता है तो उसे अधर्म मानकर उच्च जाति के लोग स्नान करते है। कहीं-कहीं पर तो निम्न जाति के लोगों का दर्शन भी अधर्म माना जाता है।
5. ग्रामीण समुदाय मे निम्न जाति के लोगों को सार्वजनिक स्थान, जैसे-- मन्दिरों आदि मे जाना भी वर्जित है।
6. निम्न जाति के लोगों के हाथों से छुई हुई किसी भी चीज को ग्रहण करना भी वर्जित है।
7. निम्न जाति के लोगों को उच्च जाति के लोग जो भी वस्तु प्रदान करते है उसे भी कुछ दूरी से ही देते है।
8. यदि घरों मे जमादारनी या जमादार सफाई करने आते है तो उनके जाने के बाद उन स्थानों को धोया जाता है, जहां-जहाँ पर उनके चरण पड़े है।
9. त्यौहारों व विवाहों के अवसरों पर इनको एकान्त मे बैठकर दान-दक्षिणा या भोजन दूरी से ही दिया जाता है।
10. इस श्रेणी के लोगों के बच्चों के साथ शिक्षण संस्थाओं मे भी भेदभाव बरता जाता है। उन्हें सवर्ण लोगों के बच्चों के साथ बैठकर शिक्षा प्राप्त करने का भी अधिकार नही है।
11. निम्न जाति के लोगों को सवर्णों के साथ चौपालों, मेलों एवं अन्य मनोरंजक स्थलों पर जाकर मनोरंजन करने पर प्रतिबंध रहता है।
12. इस वर्ग को उच्च जातियों के समान खेती करना व्यापार करने पर रोक रहती है।
13. निम्न जाति के लोगों को अच्छे वस्त्र एवं गहने पहनने पर भी प्रतिबंध रहता है।
14. सवर्णों के उपयोग मे आने वाले कुओं से पानी भरने पर भी प्रतिबंध रहता है।
15. अस्पृश्यों को धन संचय करने का अधिकार नही रहता है।
एक सभ्य समाज के लिए (मानव मानव मे भेद करना) अस्पृश्यता एक बहुत बड़ा कलंक है। हालांकि शिक्षा के प्रसार और सरकार के अथक प्रयासों से वर्तमान मे पहले जैसे अस्पृश्यता के प्रभाव बहुत ही कम देखे जाते है। अब इनकी स्थिति मे बहुत कुछ परिवर्तन हो चुका है, अब शायद ही किसी की अस्पृश्य जातियों को सार्वजनिक कुओं, मन्दिरों मे जाने से रोकने की हिम्मत होती होगी। 1955 ई. मे सरकार ने अस्पृश्यता निरोध कानून पारित कर अस्पृश्यता को दण्डनीय अपराध घोषित किया है और अस्पृश्य जातियों के लिए सार्वजनिक स्थलों पर पहुँचने की स्वतंत्रता भी घोषित की है।
अस्पृश्यता निर्योग्यताओं के परिणाम
अस्पृश्यों की निर्योग्यताओं से केवल वे लोग ही प्रभावित नहीं होते थे, परन्तु सम्पूर्ण समाज पर इनका प्रभाव पड़ता था। निर्योग्यताओं के प्रमुख परिणाम निम्नलिखित रहे हैं--
1. धार्मिक परिणाम
अस्पृश्यों की नियोंग्यताओं से हिन्दू समाज पर बुरा प्रभाव पड़ा है, क्योंकि अनेक अस्पृश्य जातियों के व्यक्तियों ने अपना धर्म परिवर्तन करना प्रारम्भ कर दिया। ईसाई धर्म के प्रचार से बहुत से अस्पृश्य ईसाई बन गए तथा काफी लोग मुसलमान भी बन गए क्योंकि ईसाई धर्म की भाँति मुसलमानों में भी अस्पृश्यता नहीं थी।
2. सामाजिक एकता में बाधा
यह सत्य है कि भारत आपसी भेदभाव के कारण पराधीन हुआ। इससे देश की सामाजिक एकता में निरन्तर बाधा पड़ती रही और इसका लाभ विदेशी उठाते रहे। एक ओर उच्च जातियों के हिन्दू अस्पृश्यों को सदैव अपने से नीचा समझते रहे हैं और दूसरी ओर अस्पृश्य सदैव इन लोगों से अपने को अलग समझते रहे हैं। इसी कारण समाज में कभी भी एकता नहीं रही है।
3. राजनीतिक फूट
अस्पृश्यों की निर्योग्यताओं से इनकी राजनीति पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। अछूतों ने अपने को अलग मानकर अपने पृथक् मताधिकारों की माँग की। 1931 ई. में डॉ ० अम्बेडकर ने ब्रिटिश सरकार से गोलमेज कॉन्फ्रेन्स के समय अछूतों के लिए पृथक् मताधिकार की माँग की तथा इसमें उन्हें सफलता भी मिली, परन्तु गांधी जी के प्रयासों से उन्हें हिन्दुओं का ही एक अंग समझा जाता रहा है।
4. आर्थिक असमानताएँ
श्रम विभाजन जाति के आधार पर होने के कारण अस्पृश्य जातियों के लोग केवल निम्न व्यवसाय ही कर सकते थे। इन लोगों को उच्च व्यवसायों को करने की अनुमति नहीं थी, खेती करने का अधिकार नहीं था और इन्हें अच्छी नौकरियाँ भी नहीं मिल सकती थीं। इसलिए इनकी आय बहुत कम होती थी। ये लोग भर पेट भोजन भी नहीं खा सकते थे। इसके फलस्वरूप समाज में आर्थिक असमानताएँ पैदा हुई और आज भी अनुसूचित जातियाँ आर्थिक दृष्टि से पिछड़ी हुई हैं।
5. स्वास्थ्य का नीचा स्तर
घृणित पेशे करने के कारण इनके जीवन स्तर पर काफी प्रभाव पड़ता था। ये लोग शहरों तथा ग्रामों के मध्य सवर्ण हिन्दुओं के बीच अपने मकान नहीं बना सकते थे। गन्दी बस्तियों में रहने के फलस्वरूप इनके जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता रहा है।
6. अशिक्षा
अस्पृश्य जातियों के व्यक्ति उच्च जाति के लोगों के साथ नहीं बैठ सकते थे जिसके कारण अस्पृश्यों के बच्चों को स्कूलों में प्रवेश नहीं दिया जाता था। ब्राह्मण लोग अस्पृश्यों को शिक्षा देना धर्म के विरुद्ध समझते थे। इस हेतु ये लोग प्रायः शत-प्रतिशत अशिक्षित होते थे तथा आज भी अनुसूचित जातियों में शिक्षा का स्तर उच्च जातियों की अपेक्षा काफी भिन्न है। स्वतन्त्र भारत में संवैधानिक रूप से अस्पृश्यों को विभिन्न प्रकार के संरक्षण प्रदान किए गए हैं, किन्तु इससे पूर्व उन्हें किसी भी प्रकार के राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे।
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