अस्पृश्यता को दूर करने के उपाय
भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त अस्पृश्यता को समाज के लिये एक कलंक माना गया है। भारत मे इस कलंक को दूर करने के लिये निम्न उपाय किये गये--
(अ) सरकारी उपाय
1. संविधान में सामाजिक विषमता को दूर करने के लिये सभी को भारत का नागरिक घोषित करके समान मौलिक अधिकार प्रदान किये है।
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2. संविधान के अनुच्छेद 16 में सरकारी नौकरियों तथा पदों पर नियुक्ति के संबंध मे सभी नागरिकों को समानता के अवसर प्रदान किये गये।
3. सभी राज्यों को निर्देशित किया गया है कि वे अनुसूचित जातियों को विकास के समान अवसर प्रदान करें।
4. संविधान मे लोकसभा, राज्यसभा तथा सरकारी नौकरियों मे अस्पृश्य लोगों के लिये स्थान आरक्षित किये गये है।
5. 1955 ई. में सरकार ने अस्पृश्यता निरोध कानून पारित करके अस्पृश्यता को दण्डनीय अपराध घोषित किया है और अस्पृश्य जातियों के लिये सार्वजनिक स्थलों पर पहुँचने की स्वतंत्रता भी घोषित कर दी है।
6. हरिजनों को मकान बनाने तथा उद्योग-धन्धों को स्थापित करने के लिये बैंकों से लोन देने की व्यवस्था भी की है।
7. हरिजनों के बच्चों की शिक्षा के लिये छात्रवृत्तियों तथा धन की व्यवस्था के साथ-साथ प्रत्येक जिले मे हरिजन कल्याण केन्द्र की भी व्यवस्था की है और हरिजनों के बच्चों को सभी स्कूलों मे प्रवेश लेने की अनुमति दी है।
8. राज्यों मे ऐसे कानून बनाने गये है कि जिन खेतों पर हरिजन खेती करते है उन पर हरिजनों का अधिकार रहेंगा।
9. हरिजनों के लिये भूमि प्रदान करने का भी अभियान चलाया गया है। बंजर भूमि को हरिजनों मे वितरित किया गया है और उसे उपजाऊ बनाने में सरकार की ओर से अनेक सुविधाएं हरिजनों को दी गईं है।
(ब) भारत मे हरिजनों के सुधार के लिए गैर-सरकारी उपाय
1. महात्मा गाँधी ने हरिजन सेवा संघ की स्थापना की थी। इस संघ की देखरेख मे स्कूलों व मन्दिरों की स्थापना की गई है।
2. ब्रह्रा समाज, आर्य समाज आदि धार्मिक आन्दोलनों ने भी अछूतों के उद्धार के लिए अनेक कार्य किये है और कर रहे है।
3. हरिजनों को भू-दान आन्दोलन मे भूमि का कब्जा दिया गया है।
(स) अस्पृश्यता को समाप्त करने के कुछ अन्य सुझाव
1. जाति को बिल्कुल समाप्त कर दिया जाये, ताकि जाति के नाम पर कोई भी संगठन न बनाया जा सके।
2. हरिजनों मे शिक्षा प्रसार कार्य तेज किया जाये, ताकि शिक्षित हरिजन वर्ग अपना हित स्वयं ही कर सकें।
3. हरिजनों का सवर्ण हिन्दुओं के साथ संपर्क बढ़ाया जाये, याकि हरिजनों मे हीनता की भावना का अंत हो जाये।
4. अस्पृश्य लोगों का भी यह कर्तव्य है कि वे अपने आपको स्वच्छ रखें और मांस मदिरा तथा अश्लील शब्दों का प्रयोग छोड़कर शुद्ध एवं पवित्र जीवन व्यतीत करें।
5. अस्पृश्य जातियों को उद्योग-धन्धों का विकास करने के लिये अतिरिक्त धन प्रदान किया जाये।
ग्रामीण समुदाय मे अस्पृश्यता की वर्तमान स्थिति
यद्यपि सरकारी और गैर सरकारी उपायों से अस्पृश्यता को समाप्त करने के भारी प्रयास किये गये है किन्तु ग्रामीण समुदायों मे अस्पृश्य लोगों की स्थिति मे आशातीत सुधार नही हो पाया है। यातायात के साधनों की वृद्धि के कारण छूआछूत की अब काफी कम हो गई है। किन्तु अन्य क्षेत्रों मे ग्रामीण समुदायों मे अस्पृश्यता की समस्या मे विशेष सुधार नही आया। राजनीतिक हरिजन नेताओं का सम्मान आज भी ग्रामीण समाज के चौधरियों से नीचा ही माना जाता है। वास्तव मे हरिजन दासता के युग का लम्बा समय पार कर चुके है। उनमें हीनता की भावना इतनी गहराई तक पहुंच चुकी है कि वे उससे ऊपर उठने का स्वयं भी साहस नही करते है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण समुदाय मे निवास करने वाले हरिजन सदैव से ही कृषकों तथा उच्च जातियों के आश्रित रहे है। अतएव भारत मे अस्पृश्यता की समस्या का सम्पूर्ण हल समय लेगा।
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