2/22/2024

ग्रामीण धर्म की विशेषताएं

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gramin dharm ki visheshta;धर्म की वयुत्पति लैटिन के Religica शब्द से हुई है, जिसका अर्थ पवित्रता,   साधुता या धर्मनिष्ठता से है। धर्म अलौकिक शक्ति मे विश्वास का नाम है। धर्म के अंतर्गत व्यक्ति किसी अलौकिक या पारलौकिक शक्ति मे विश्वास करता है और यह शक्ति मानव शक्ति से आवश्यक रूप से श्रेष्ठ होती है, और यह धारणा मानकर चलता है कि इस विश्व का सम्पूर्ण संचालन किसी शक्ति या सत्ता के द्वारा होता है।

ग्रामीण धर्म की विशेषताएं 

भारतीय ग्रामीण धर्म की निम्न विशेषताएं है--- 

1. प्रकृति पूजा 

गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है तथा कृषि, अधिकांश रूप से प्रकृति पर निर्भर होती है। प्रकृति पर प्रमुख रूप से आश्रित होने के कारण विशेष रूप से ग्रामवासी प्राकृतिक शक्तियों की पूजा करते है। उन्हें हमेशा इस बात की चिन्ता रहती है कि ये प्राकृतिक शक्तियाँ कही उनसे रूष्ट न हो जायें, अतः वे उन्हे प्रसन्न करने के लिए अनेक प्रकार की उपासनाएँ अथवा कर्मकांड किया करते है। नगरों के निवासियों की अपेक्षा ग्रामीण जन प्रकृति के ज्यादा निकट सम्पर्क मे रहते है, वे उसके शान्त तथा रौद्र दोनों रूपों से अवगत होते है, अतः प्रकृति की आराधना ग्रामीण जनों के धर्म का एक महत्वपूर्ण अंग है। 

2. अन्धविश्वास 

इसमे संदेह नही कि ग्रामीण धर्म मे अलौकिक शक्ति का महत्वपूर्ण स्थान है। लेकिन अलौकिक शक्ति के प्रति आध्यात्मिक प्रेरणा एवं श्रद्धा रखने के स्थान पर ग्रामीण समाज इस शक्ति को भय के कारण सर्वोपरि स्थान देता है। ग्रामीण धर्म अन्धविश्वास का पुंज है। भय के आधार पर ग्रामीण लोग शीघ्र ही काल्पनिक देवी-देवताओं की पूजा करने लगते है। अन्धविश्वास के कारण ग्रामीण धार्मिक क्षेत्र मे अनेक रीति-रिवाज, त्यौहार, उत्सव व अनर्थक विश्वासों ने घर कर लिया है। ग्रामीण लोग प्रकृति के प्रकोप को अथवा अन्य किसी असाधारण घटना को, अनेक मिथ्या विचारों को, ईश्वरीय शक्ति मानव अपने जीवन को अन्धकार एवं अन्धविश्वास तथा विपदाओं के कारागार मे डाल देते है। ग्रामीण क्षेत्रों मे ऐसे अनेक अन्धविश्वास पाये जाते है, जिनकी हम कल्पना भी नही कर सकते है। इन अन्धविश्वासों के आधार पर अनेक रोगों की चिकित्सा दागने, जादू-टोने के आधार पर कर दी जाती है। 

3. मन्दिरों का महत्व 

ग्रामीण जनता के जीवन मे ग्रामीण मन्दिर का विशेष महत्व है। मन्दिर ग्रामीण जीवन की समस्त सामााजिक क्रियाओं का केन्द्र बिन्दु होता है। मन्दिर गाँव मे परोपकारी तथा समाज कल्याण के कार्य भी करते है।

4. बलिदान 

अपने इष्टदेव को प्रसन्न रखने के लिए ग्रामीण समुदाय के लोग बलिदान भी करते है, जैसे भेरौ बाला या किसी देवी को बकरे की बलि, प्राचीनकाल मे नर बलि तक की प्रथा थी।

5. विशेष धार्मिक कृत्य 

धार्मिक कृत्य धर्म का अभिन्न अंग है। प्रत्येक धर्म के अपने-अपने धार्मिक कृत्य होते है। धर्म तो धर्म रहा, प्रत्येक जाति, वर्ग व समुदाय के भी अपने-अपने धार्मिक कृत्य होते है। धार्मिक कृत्य धर्म के साधन है जिनके द्वारा व्यक्ति और सामाजिक जीवन की शुद्धता बनी रहती है। भोजन करने से पहले रोटी के टुकड़ों के चारों ओर जल छोड़ना, सूर्य को जल प्रदान करना, स्त्रियों द्वारा देवियों की पूजा करना तथा घर आने पर स्वस्तिक बनाना आदि को धार्मिक कृत्यों मे गिना जाता है। प्रत्येक कार्य शुभ मुहूर्त निकालकर या किसी पण्डित से पूछ कर किया जाता है। इस तरह के सभी कृत्य धार्मिक कृत्य माने जाते है। 

6. पौधों, वृक्षों व पशुओं की पूजा करना 

गाँवों मे देवी-देवताओं के अलावा पौधों, वृक्षों और कुछ पशुओं की भी पूजा की जाती है। तुलसी का पौधा बहुत पवित्र माना जाता है। वृक्षों मे पीपल और बरगद की पूजा की जाती है और पशुओं मे गाय, बैल व सर्प आदि की पूजा की जाती है।

7. भूत, प्रेत और चुड़ैल मे विश्वास 

ग्रामों मे देवी-देवताओं मे विश्वास करने के अलावा भूत-प्रेतों मे भी विश्वास किया जाता है। इनको प्रसन्न करने या इनसे बचने के लिए विभिन्न कर्मकांड किये जाते है। जब किसी व्यक्ति की मृत्यु असामयिक अथवा अस्वाभाविक परिस्थितियों में हो जाती है, तो यह माना जाता है कि उनकी आत्मा गाँव मे भटक रही है और रह-रहकर वह लोगों को परेशान करती है। मृत पुरुष की आत्मा को भूत तथा मृत स्त्री की आत्मा को चुड़ैल माना जाता है। गांव मे जब कोई व्यक्ति असामान्य व्यवहार करने लगता है, तो यह माना जाता है कि उस के अंदर कोई भूत-प्रेत अथवा चुड़ैल घुस गई है। इन्हें उसके अंदर से निकालने के लिए किसी बाबा या तांत्रिक को बुलाया जाता है जो अपने तंत्र-मंत्र का प्रयोग करके भू-प्रेतों व चुड़ैल को उसके शरीर से बाहर निकालता है। 

8. श्रेष्ठ आत्मओं मे विश्वास 

गाँव के लोग दुष्ट आत्माओं मे ही नही बल्कि श्रेष्ठ आत्मओं मे भी विश्वास करते है। जब कोई साधु-संत या कोई महापुरुष की मृत्यु हो जाती है और यदि यह मान लिया जाता है कि उसकी आत्मा अभी भी उस गाँव मे निवास करती है तो उसे श्रेष्ठ आत्मा समझा जाता है। उस श्रेष्ठ आत्मा के निवास पर गाँव वाले तरह-तरह की भेंटे चढ़ाते है। उनका विश्वास है कि ये आत्माएँ गाँव की दुष्ट आत्माओं तथा विपत्तियों से रक्षा करती है।

9. शकुन और अपशकुन का विचार

गाँव वाले किसी कार्य को करने से पहले शुभ अथवा अशुभ घड़ी का ही विचार नही करते अपितु उसके कुशल ढंग से सम्पन्न होने की दृष्टि से शकुन और अपशकुन मे भी विश्वास रखते है, जैसे यदि कहीं जाते समय छींक दे, अथवा बिल्ली या सियार रास्ता काट दे तो इसे अपशकुन माना जाता है अर्थात ऐसा समझ लिया जाता है कि यात्रा बेकार है और जिस काम के लिये वे जा रहे है, वह कार्य पूरा नही होगा। इसी प्रकार खाली घड़ी देखना भी अपशकुन माना जाता है और भरा घड़ा देखना शकुन समझा जाता है। धोबी या मृत शरीर को देखना किसी कार्य को पूर्ण करने की दृष्टि से शुभ समझा जाता है। 

10. निषेधाज्ञाएँ 

ग्रामीण धर्म मे अलौकिक शक्ति का भय सदैव बना रहता है। ग्रामीणों की धारणा रहती है कि निषेधाज्ञाओं का उल्लंघन करने पर अलौकिक शक्ति का प्रकोप उन पर होगा। प्रत्येक ग्रामीण इन निषेधाज्ञाओं का पालन करता है। 

11. विशेष धार्मिक त्यौहार 

ग्रामीण समुदाय मे होली, दीपावली, गोवर्धन पूजा, विजयादशमी, भाईदूज, देवी अष्टमी, बड़ अमावस आदि त्यौहार धार्मिक पौराणिक गाथाओं के आधार पर ही मनाये जाते है। रामनवमी, जन्माष्टमी के त्यौहार श्री राम जन्मोत्सव तथा श्री कृष्ण के जन्मोत्सव नाम पर मनाये जाते है।

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