Vivah ke prakar;विवाह एक सामाजिक सांस्कृतिक संस्था है, इस कारण हर समाज मे विवाह का उस समाज की सांस्कृतिक विशेषताओं से प्रभावित होता है। यही कारण है कि सभी समाजो मे विवाह के स्वरूपों मे भिन्नता देखने को मिलती है। विवाह का वर्गीकरण कई आधारो पर किया जा सकता है।
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विवाह के प्रकार या स्वरूप (vivah ke prakar)
विवाह के प्रकार या स्वरूप इस प्रकार है--
(A)पति-पत्नियों की संख्या के आधार पर विवाह के प्रकार
(1) एक विवाह
इस विवाह से यह तात्पर्य है कि एक पुरूष का विवाह एक ही स्त्री से हो सकता है। इनमे से कोई व्यक्ति दूसरा विवाह तब तक नही कर सकता जब तक कि वह दूसरे को तलाक न दे दे अथवा दोनो मे से एक की मृत्यु न हो जाये। एक विवाह को भी कई भागो विभाजित किया है। इस विवाह के तीन प्रकार है जो इस प्रकार है--
(अ) जोड़ा विवाह
यह वह विवाह है, जिसमे एक पुरूष तथा एक स्त्री विवाह करते है और दोनो की स्थिति समान रहती है। यह स्थायी विवाह होता है जिसे साधारण सी बातो पर समाप्त नही किया जा सकता। वर्तमान मे इस विवाह को सर्वोत्तम माना जाता है।
(ब) मनोजिनी
यह वह विवाह है जिसमे विवाह तो एक प्रथा के अनुसार एक ही स्त्री से होता है जो कानूनी पत्नी होती है, लेकिन पुरूष अन्य स्त्रियों से भी शारीरिक संबंध खुले रूप से रख सकता है पर उन्हे पन्ति का स्थान नही दे सकता। साधारणतया इन्हें समाज मे दासी या रखैल के नाम से जाना जाता है।
(स) अस्थायी एक विवाह
यह वह विवाह है, जिसमे एक पुरूष को कुछ समय के लिए एक स्त्री से यौन संबंध स्थापित करने की अनुमति प्रदान की जाती है लेकिन स्त्री पर समूह के समस्त पुरूषो का अधिकार रहता है। जितने समय के लिए वह स्त्री एक विशिष्ट पुरूष को सौंप दी जाती है, दूसरे पुरुष उससे शारीरिक संबंध स्थापित नही कर सकते। यह प्रथा कैलीफोर्निया के इंडियंस तथा ब्राजील के असभ्य निवासियों मे पायी जाती है।
2. बहु विवाह
एक पुरूष की एक साथ एक से ज्यादा पत्नियां हो या एक पत्नी के एक साथ एक से अधिक पति हो तो उसे बहु विवाह के नाम से पुकारा जाता है। बहु विवाह को साधारणतः निम्न स्वरूपों मे विभाजित किया जा सकता है--
(अ) बहुपत्नी विवाह
यह वह विवाह है जिसमे एक पुरूष एक ही समय मे दो से ज्यादा स्त्रियों से विवाह करता है। दूसरे शब्दों मे एक से ज्यादा पत्नियां रखने की प्रथा ही बहुपत्नी विवाह है। आदिम समाजो मे तथा सभ्य समाजो मे बहुपत्नी विवाह काफी प्रचलित रहा है एवं वर्तमान काल मे भी इसका प्रचलन मौजूद है। इस्लामी धर्म ग्रंथों के अनुसार एक मुसलमान एक समय मे चार पत्नियां रख सकता है। प्राचीन काल मे शक्तिशाली एवं अमीर सामंतो मे बहुपत्नी विवाह का चलन था। हिन्दुओं मे इस प्रथा का चलन कम रहा है, लेकिन प्रचानी राजा महाराजाओं की एक से अधिक स्त्रियाँ होती थी।
(ब) द्वि-पत्नी विवाह
यह वह है, जिसमे एक पुरूष एक ही समय मे दो स्त्रियों से विवाह करता है। "हो" तथा "मदारू" जो मैसूर मे रहते है, एक व्यक्ति को दो बहिनो के साथ विवाह करने की अनुमति प्रदान करते है।
(स) बहुपति विवाह
बहुपति विवाह विवाह का वह प्रकार है जिसमे एक पत्नी के एक ही समय मे एक से ज्यादा पति हो। हिन्दु समाज मे शुरू से ही विवाह के आदर्शों के अनुसार बहुपति प्रथा का कोई स्थान नही है। यह प्रायः उन आदिम जातियों तथा समाजो मे पाया जाता है, जहां पर स्त्रियों की संख्या पुरूषों से कम होती है एवं प्राकृतिक साधनों का अभाव तथा गरीबी होती है।
यह प्रथा मध्यप्रदेश के ओरांव नीलगिरी के टोडा, मालाबार के नायरों मे प्रचलित है। इसके अलावा तिब्बत, सिक्किम, लद्दाख, पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों, कुल्लू तथा मंडली के पर्वतीय क्षेत्रों में भी मौजूद है। उत्तर प्रदेश के देहरादून जिले मे "खासा" जनजाति मे एक स्त्री के कई पति होने का प्रचलन है। बहुपति विवाह के निम्न स्वरूप है--
(a) भ्राता (भाई) संबंधी बहुपति विवाह
यह वह विवाह होता है, जिसमे स्त्री के सब पति सहोदर भ्राता होते है। जब बड़ा भाई विवाह कर लेता है तो उसकी पत्नी प्रथा से ही दूसरे अनुज भ्राताओं की पत्नी बन जाती है। छोटे भाइयो को उससे शादी करने की जरूरत नही होती है।
(b) अभ्राता संबंधी बहुपति विवाह
यह विवाह का वह स्वरूप है जिसमे एक स्त्री के कई पति आपस मे सहोदय भ्राता न होकर कई गोत्रों के व्यक्ति होते है जो एक दूसरे से अपरिचित होते है।
(द) समूह विवाह
यह वह विवाह है जिसके अनुसार पुरूषों का एक समूह स्त्रियों के एक समूह से विवाह करता है लेकिन समूह का हर पुरुष की प्रत्येक स्त्री के साथ यौन संबंध रख सकता है। प्रायः एक समूह के भाई दूसरे समूह की बहिनो से विवाह करते है, जिनमें सब स्त्रियाँ सब पुरूषों की सामूहिक रूप से पत्नी होती है। यह प्रथा बहुत ही कम प्रचलित है।
(B) यौन संबंधी सीमाओं के आधार पर विवाह के प्रकार
विवाह की कुछ यौनिक सीमाएं होती है। उनसे व्यक्ति बंधा होते है। यौन संबंधि सीमाओं के आधार पर विवाह तीन प्रकार के होते है--
1. अंतर्विवाह
जब किसी व्यक्ति को अपना विवाह अपने समूह के भीतर ही करना पड़ता है तो उसे अंतर्विवाह कहते है तथा विवाह के इन नियमो को अंतर्विवाह के नियम कहते है। इन नियमो के द्वारा व्यक्ति के लिए अपनी जाति मे विवाह करना अनिवार्य हो जाता है। पर निकट के रक्त संबंधियों से विवाह करना मना होता है। अंतर्विवाह के नियम विभिन्न समाजों मे भिन्न-भिन्न होते है। अंतर्विवाह के भी निम्न रूप है--
(अ) वर्ग अंतर्विवाह
जिसमे एक विशेष वर्ग अथवा सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति के लोगो के बीच ही विवाह होता है।
(ब) जाति अंतर्विवाह
जब पति-पत्नी एक ही जाति के होते है तो उस विवाह को जाति अंतर्विवाह कहते है। जैसे ब्राह्मण जाति के लोग ब्राह्मणों के परिवार मे ही शादी करते है।
(स) उपजाति अंतर्विवाह
जिसमे किसी जाति के उप-विभाग के अंतर्गत ही विवाह होते है।
(द) प्रजाति अंतर्विवाह
जब विविह एक ही नस्ल अथवा प्रजाति के लोगो के बीच होता हो जैसे आर्य प्रजाति के लोग इसके बाहर विवाह नही करते।
(ई) विभागिय जनजाति अंतर्विवाह
इस तरह के विवाह जनजाति के भीतर होते है। कोई भी अपनी जनजाति के बाहर विवाह नही कर सकता। भारत की जनजातियो मे साधारणतया इसी तरह के विवाह होते है।
(फ) राष्ट्र अंतर्विवाह
इसमे राष्ट्र के बाहर किसी व्यक्ति से विवाह करने पर पर रोक लगी रहती है।
2. बहिर्विवाह
बहिर्विवाह वह व्यवस्था है जिसमे अनुसार एक व्यक्ति को विवाह किसी निश्चित समूह अथवा वर्ग के बाहर करना पड़ता है। हिन्दुओं मे जिस तरह जाति के अंदर विवाह करने के नियम है। उसी तरह अपने गोत्र, अपने प्रवर एवं अपने सपिंड मे विवाह करने का निषेध है।
3. अंतर्जातीत विवाह
जब एक व्यक्ति अपनी ही जाति मे से अपने जीवन साथी का चुनाव करता है तो उसे अंतर्विवाह कहते है। लेकिन इसके विपरीत अगर कोई अपनी जाति से बाहर या फिर अन्य जातियों मे से अपने जीवन साथी का चुनाव करता है तो वह अंतर्जातीय विवाह के नाम से पुकारा जाता है। ये विवाह भी दो तरह के होते है--
(अ) अनुलोम विवाह
अनुलोम विवाह वह प्रथा है जिसमे पति ऊंचे समूह का हो तथा पत्नी नीचे समूह की हो।
(ब) प्रतिलोम विवाह
प्रतिलोम विवाह वह व्यवस्था है जिसमे पत्नी उच्च वर्ग की एवं पति निम्न वर्ग का होता है।
(C) जीवन साथी चुनने के ढंग के आधार पर विवाह के प्रकार
विश्व के विभिन्न भागों मे विवाह के लिए जीवन साथी चुनने के ढंग अलग-अलग है तथा उनके आधार पर विवाह भी कई तरह के होते है। ये विवाह इस तरह है--
1. गांधर्व विवाह
2. सेवा विवाह
3. परीक्षा विवाह कम
4. क्रय विवाह
5. अनादर या हठ विवाह
6. परिवीक्षण विवाह
7. अपहरण विवाह
8. विनियम विवाह
9. पलायन विवाह।
(D) प्रचीन भारतीय धर्मग्रंथों के आधार पर विवाह के प्रकार
प्राचीन भारतीय हिन्दू धर्म ग्रंथों मे आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख किया गया है।
हिन्दू विवाह के प्रमुख स्वरूपों के सम्बन्ध मे विद्वानों के अलग-अलग विचार है। मनुस्मृति मे 8 प्रकार के विवाहों का उल्लेख है। इनमे से चार प्रकार के विवाहों को प्रशस्त विवाह कहा है, जबकि बाकी चार प्रकार के विवाहों को अप्रशस्त की संज्ञा दी गई है। प्रशस्त विवाह वह है, जो अच्छे माने जाते है तथा धर्म के अनुकूल होते है। अप्रशस्त विवाहों को अच्छा नही माना जाता है। हिन्दु विवाह के प्रकार निम्न है--
1. ब्राह्रा विवाह
इस विवाह के लिए पिता योग्य वर की खोज करता है, उसे घर पर आमंत्रित करता है और अपनी कन्या को धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार दानस्वरूप अर्पित करता है। इसमे चार बाते मुख्य है--
(अ) माता-पिता की सहर्ष और विवेकपूर्ण स्वीकृति।
(ब) धार्मिक संस्कारों द्वारा विवाह।
(स) योग्य वर।
(द) दान-कन्या का सुयोग्य वर को दान (कन्यादान)
2. दैव विवाह
इसके अंतर्गत कन्या का दान यज्ञकर्ता को किया जाता है। प्राचीनकाल के बड़े-बड़े यज्ञों मे हजारों व्यक्ति सम्मिलित होते थे और नगर कोई यज्ञकर्ता पसंद आ जाये और विवाह करना चाहे तो कन्या का विवाह कर देते थे।
3. आर्ष विवाह
इस प्रकार के विवाह मे वह अपने ससुर को एक गाय तथा एक बैल अथवा इनके दो जोड़े देता था। वह ससुर को धार्मिक कार्यों को पूरा करनें करने के लिए दिया जाता था। इसे कन्या मूल्य कहा जा सकता है।
4. प्रजापत्य विवाह
यह भी ब्राह्रा विवाह के समान होता है। इसमे वर स्वयं कन्या से विवाह की याचना करता है तब कन्या इस शर्त पर विवाह करती है कि उसके जीते वह दूसरा विवाह नही करेगा।
5. असुर विवाह
इसके अंतर्गत वर वधू के पिता या सम्बंधियों को धन देता है। यह कन्या मूल्य जैसा ही है। जितनी सुन्दर कन्या हो उतना ही अधिक उसका मूल्य होना चाहिए। यह कन्या मूल्य नकद या वस्तु के रूप मे हो सकता है।
6. राक्षस विवाह
इसे क्षात्र-विवाह भी कहा जाता है। स्त्री को युद्ध का पुरस्कार माना जाता था। यह वह विवाह है जिसमे वधु को शक्ति के द्वारा ले जाया जाता था। इसमे युद्ध आवश्यक है। अर्जुन-सुभद्रा, पृथ्वीराज-संयोगिता इसके उदाहरण है।
7. गन्धर्व विवाह
आधुनिक युग मे इसे प्रेम विवाह के नाम से जाना जाता है। इस विवाह का आधार युवक और युवती का प्रेम होता है।
8. पैशाच विवाह
यह अति निम्न कोटि का माना गया है। इस विवाह मे स्त्री को किसी न किसी प्रकार अत्यधिक मद्यपान के नशे मे, जादू या तिलस्मात करके या जबर्दस्ती शक्ति के द्वारा धोखा देकर यौन सम्बन्ध के लिये विवश किया जाता है।
(E) अधिमान्यताओं के आधार पर विवाह के प्रकार
जब समाज किसी तरह के विवाह को विशेष मान्यता प्रदान करता है तो इस तरह के विवाह को अधिमान्य विवाह कहते है। ये निम्न तरह के होते है--
1. साली विवाह
यह वह विवाह होता है जिसके अनुसार पुरूष पत्नी की बहिन के साथ विवाह करता है। यह दो तरह के होते है--
(अ) सीमित साली विवाह
इसमे पत्नी की मृत्यु के बाद उसकी दूसरे छोटी बहिन विवाह कर लिया जाता है। यह प्रायः सभी समाजो मे प्रचलित है।
(ब) समकालिक साली विवाह
इसके अनुसार पुरूष के एक स्त्री से विवाह करने के बाद उस स्त्री की अन्य बहने भी गुप्त रूप से उस पुरुष की पत्नियां बन जाती है।
2. देवर अथवा भाभी विवाह
जब स्त्री अपने देवर से विवाह कर लेती है तब उसे देवर विवाह कहते है। यह प्रायः सभी समाजों मे मौजूद है। इस विवाह के तीन प्रकार है--
(अ) कनिष्ठ देवर विवाह
इसमे लघु भ्राता ही अपने भाई का उत्तराधिकारी होता है बड़े भाई की मृत्यु के बाद प्रायः छोटे भाई का बड़े भाई की पत्नी के साथ विवाह हो जाता है।
(ब) ज्येष्ठ देवर विवाह
इस विवाह के अनुसार अग्रज भ्राता ही उत्तराधिकारी होता हैं। टोड़ा जनजाति मे एक भाई के विवाह के बाद अंततोगत्वा सभी भाई उसकी पत्नी के पति हो जाते है। इस तरह भ्राता संबंधी बहु विवाह भी एक तरह से देवर विवाह ही है।
(द) पूर्णतः देवर विवाह
इस विचार को ध्यान मे रखते हुए लघु भ्राता एक दिन अवश्य अपने ज्येष्ठ भ्राता की पत्नी का पति बनेगा किन्ही समाजो मे यह प्रथा भी प्रचलित है कि ज्येष्ठ भ्राता के विवाह होने के बाद लघु भ्राता को उसकी पत्नी का पति मान लिया जाता है। इस अवस्था मे एक भाई, दूसरे भाई की जीवितावस्था मे ही देवर विवाह के उपभोग का अधिकार हो जाता है।
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