दहेज का अर्थ (dahej kise kahte hai)
dahej arth paribhasha karan;सामान्यतः दहेज का अर्थ उस राशि, वस्तुओं या संपत्ति से लगाया जाता है, जिसे कन्या पक्ष की ओर से विवाह के अवसर पर वर पक्ष को दिया जाता है।
अपनी पुत्री के विवाह के अवसर पर अपनी स्वेच्छा से खुशी-खुशी दामाद को कोई उपहार देना दहेज नही है। लेकिन वर पक्ष के दबाव या अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को ऊचा करने के लिए अपनी हैसियत से जाता वर पक्ष को उपहार देना दहेज है। "दहेज़ एक प्रथा नही है भीख लेने का एक सामाजिक तरीका है, फर्क सिर्फ इतना है कि देने वाले की गर्दन झुकी होती है और लेने वाले की अकड़ बढ़ जाती है।"
आमतौर पर विवाह के अवसर पर वर एवं वधु की ओर से एक दूसरे को उपहार देने तथा लेने की प्रथा सामान्यतया सभी समाजों मे प्रचलित रही है और आज भी है।
सामान्यतया विवाह के अवसर पर दोनो पक्षो के लोग विवाह स्थल पर एकित्रित होते है, एक दूसरे से मिलते है और वर वधु को बधाई व उपहार देते है। विवाह के अवसर पर वर या वधू अथवा दोनो को स्वेच्छा से दिये गये उपहार समाज मे कभी समस्या मूलक नही रहे किन्तु समय बीतने के साथ समाज मे कुछ स्वार्थी किस्म के लोग उपहार की पूर्ति पर अपने लड़के या लड़की का विवाह तय करने लगे। परिणामस्वरूप कई अवसरो पर विवाह सम्पन्न होने या बारात की विदाई के पूर्व उपहारों की सूची मिलाई जाने लगी। यदि उपहार, चाहे वह तयशुदा राशि या सामग्री हो, मे कही कोई कमी रह गई तो इसको लेकर दोनों पक्षों मे विवाद और कभी-कभी झगड़ा फसाद होने लगा तथा विवाह मण्डप पर से बिना विवाह किये दूल्हा दुल्हन लौटने लगे या बिना वधू को साथ लिये बारात लौटने लगी। मोटेतौर पर विवाह की पूर्व शर्त के रूप मे तयशुदा उपहार यदि वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष को दिया जाता है तो उसे वधू मूल्य अथवा कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को दिया जाता है तो उसे दहेज या वर मूल्य समझा जाता रहा है, किन्तु वर्तमान मे विवाह के अवसर पर दिये गये सभी उपहारों की सूचि बनाई जाती है और विवाद की स्थिति मे उसे प्रस्तुत किया जाता है। संक्षेप मे, विवाह के उपलक्ष्य मे कन्या पक्ष की ओर से वर या दामाद तथा उसके माता-पिता व परिजनों को जो कुछ नकद राशि अथवा सामग्री के रूप मे दिया जाता है, उसे दहेज कहते है।
दहेज की परिभाषा (dahej ki paribhasha)
नवीन वेबस्टर शब्दकोष के अनुसार " दहेज वह धन, वस्तुएं अथवा संपत्ति है जो एक स्त्री के विवाह के समय उसके पति के लिये दी जाती है।
दहेज़ निरोधक अधिनियम 1961 के अनुसार " दहेज का अर्थ कोई ऐसी संपत्ति या मूल्यवान निधि है जिसे " विवाह करने वाले दोनो पक्षों मे से एक पक्ष ने दूसरे पक्ष को अथवा विवाह मे भाग लेने वाले दोनो पक्षो मे से किसी एक पक्ष के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति ने किसी दूसरे पक्ष अथवा उसके किसी व्यक्ति को विवाह के समय, विवाह के पहले या विवाह के बाद विवाह की आवश्यक शर्त के रूप मे दी हो या देना स्वीकार किया हो।
दहेज प्रथा के कारण या दहेज को बढ़ावा देने वाले कारक
प्राचीनकाल मे दहेज का प्रचलन नही था, हालांकि धर्मग्रंथों मे कन्या के पिता को यह निर्देश अवश्य दिया गया था कि " वह वर का सम्मान करके विवाह के समय अपनी कन्या को वस्त्र और अलंकारों की भेंट के साथ विदा करे। इसका दुरुपयोग लड़के वालों ने किया। वे धीरे-धीरे लड़की वालो से मांग करके विभिन्न वस्तुएं तथा फिर धन राशि लेने लगे।
दहेज प्रथा को बढ़ावा देने वाले कारण इस प्रकार है-
1. अनुलोम विवाह
अनुलोम विवाह के कलन से उच्च कुल के लड़को की मांग बढ़ती गयी। परिणामस्वरूप वर-पक्ष की ओर से विवाह मे बड़ी-बड़ी धनराशियों की मांग उठने लगी, जिससे एक कुप्रथा जन्मी।
2. अन्तर्विवाह
अपनी ही जाति के अंदर विवाह करने के नियम ने भी दहेज प्रथा को बढ़ावा दिया है, इसके कारण विवाह का क्षेत्र अत्यंत सीमित हो गया। वर की सीमित संख्या की वजह से वर मूल्य बढ़ता गया।
3. संयुक्त परिवारो मे स्त्रियों का शोषण
स्मृति काल तक स्त्रियों की दशा अत्यंत शोचनीय हो गयी थी। संयुक्त परिवारो मे नव वधुओ को प्रताड़ित किया जाता था। ऐसी स्थिति मे कन्या पक्ष पक्ष को ज्यादा धन देने लगे, जिससे परिवार मे उसकी कन्या को ज्यादा सम्मान मिल सके।
4. विवाह की अनिवार्यता
विवाह एक अनिवार्य संस्कार है। इसी के चलते शारीरिक रूप से कमजोर, असुन्दर व विकलांग कन्याओं के पिताओ को मोटी रकम तय करके वर की तलाश करनी पड़ती है। कालान्तर मे वर पक्ष की ओर से कीमत निर्धारित की जाने लगी, जिससे दहेज प्रथा पनपी।
5. धन को मंडित करना
आधुनिकता और भौतिकवादी उपभोक्ता मानसिकता के चलते धन का महत्व समाज मे बढ़ता गया, जिससे दहेज प्रथा भी फली-फूली। धन सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार बनने पर लोग अपने योग्य लड़के मुंहमांगी कीमत पर ही विवाह के लिये राजी होने लगे।
6. महंगी शिक्षा प्रणाली
महंगी उच्च शिक्षा, चिकित्सा व तकनीकी शिक्षा, प्रौद्योगिकी और प्रशासनिक शिक्षा के लिये माता-पिता को बहुत धन खर्च करना पड़ता है। स्वार्थी माता-पिता इस क्षतिपूर्ति को विवाह के दौरान ब्याज सहित वसूलने लगे।
7. एक पापपूर्ण चक्र
दहेज एक ऐसा पापपूर्ण चक्र है जो स्वचालित है। इसीलिए इसे रोकना आसान नही है। लड़के वाले इसलिए भी दहेज की मांग करने लगे, क्योंकि उन्हें भी अपनी कन्या के विवाह मे ज्यादा दहेज देना होता है। इसलिए यह कुप्रथा दोनों दिन बढ़ती गयी।
8. प्रतिष्ठा का विषय
लोग दहेज को अपनी प्रतिष्ठा का विषय समझते है, कुछ लोग की इसे धारणा के की ज्यादा दहेज है उनकी प्रतिष्ठा मे विर्द्धि होगी। लोग अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए बढ़-चढ़ कर दहेज लेने व देने मे अपना रूतबा बढ़ाने या अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने का साधन समझने लगे।
अंत मे दहेज प्रथा को लेकर इतना कहा जा सकता है कि दहेज प्रथा का प्रारंभिक स्वरूप बहुत ही पवित्र और संस्कारित हुआ करता था, लेकिन यह बाद मे चलकर धीरे-धीरे विकृत होता गया। विवाह के अवसर पर दिये जाने वाले उपहारों के स्थान पर विवाह के समय बोली लगाकर वर की कीमत वसूली जाने लगी, जिसकी परिणित यह हुयी कि एक शानदार व्यवस्था लोगो की कथित महत्वाकांक्षाओं के चलते कुरीति मे परिवर्तित हो गयी। इस प्रकार से यह सामाजिक प्रथा बाद मे सामाजिक अभिशाप बन गयी।
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