दहेज प्रथा के दुष्परिणाम (dahej ke dushparinam)
dahej ke dushparinam;दहेज एक प्रथा नही है बल्कि यह भीख लेने का एक सामाजिक तरीका है, फ़र्क सिर्फ इतना है कि देने वाले की गर्दन झुकी होती है, और लेने वाले की अकड़ बढ़ जाती है।
पढ़ना न भूलें; दहेज का अर्थ, परिभाषा, कारण
पढ़ना न भूलें; दहेज प्रथा को रोकने के उपाय या सुझाव
भारतीय समाज मे दहेज एक बहुत बड़ी सामाजिक बुराई है। यह मानव व्यक्तित्व को गरिमा का खुला उपहास है और वह भी महिला की गरिमा का। दहेज के चलते विवाह मे कन्या के व्यक्तित्व, उसके गुणों और उसकी उपलब्धियों का कोई मूल्य है। मूल्य तो केवल इस बात का है कि उसके विवाह मे उसके माता-पिता ने कितना दहेज चुकाया। यह महिला का घोर अपमान है जिसे कोई भी सभ्य समाज सहन नही कर सकता। कोई समाज यदि महिला का अनादर करता है, उसके गुणों व उसकी उपलब्धियों की अवहेलना करता है तो वह कभी भी प्रगति नही कर सकता। दहेज प्रथा का बना रहना भारतीय समाज पर एक कलंक है, एक बदनुमा धब्बा है। जब तक हम इससे और इस तरह की अन्य कमजोरियों से निजात नही पाते तब तक हम एक प्रगतिशील और विकसित समाज बनाने की आशा नही कर सकते।
दहेज प्रथा के दुष्परिणाम या कुप्रभाव इस प्रकार है--
1. परिवार का विघटन
अपेक्षित दहेज न मिलने पर ससुराल वाले बहु को कई प्रकार की बाते सुनाते है, उसे अपमानित करते है, इससे परिवार का विघटन होता है।
2. आत्महत्याएं
आए दिन समाचार मिलते है कि ससुराल वाले कम दहेज की बात को लेकर बहु को विभिन्न प्रकार की यातनाएं देते थे, जिनसे तंग आकर उसने आत्महत्या कर ली। वस्तुतः स्त्रियों द्वारा की जाने वाली आधी से अधिक हत्याओं के पीछे दहेज का कारण ही होता है। अनेक कुमारियां भी माता पिता को दहेज की चिंता से मुक्ति दिलाने हेतु स्वयं ही आत्महत्या कर लेती है।
3. देर से विवाह
बहुत से माता-पिता चाहकर भी जल्दी दहेज नही जुटा पाते है। इससे सर्वगुणसंपन्न होने पर भी उनकी लड़कियों के विवाह बड़ी देर से हो पाते है। कभी-कभी तो वे आजन्म कुंवारी ही रह जाती है।
4. बेमेल विवाह
दहेज के बल पर धनवानों की कुरूप व दोषयुक्त कन्याएं भी अच्छा पति पा जाती है और गरीब परिवार की सुंदर और योग्य कन्याएं बूढ़े, कुरूप तथा अनपढ़ व्यक्तियों से ब्याह दी जाती है।
5. बाल-विधवाओं की समस्या
युवा कन्याओं को बूढ़ो से ब्याह देने से समाज मे बाल-विधवाओं की समस्या पैदा होती है। वैधव्य जीवन नारी के लिए बड़ा कष्टमय होता है।
6. बाल विवाह को प्रोत्साहन
दहेज प्रथा से बाल विवाह को भी प्रोत्साहन मिला है। माता-पिता अपनी कन्याओं का छोटी आयु मे विवाह इसलिए कर देते है कि छोटी आयु मे लड़का योग्य नही होता है, अतः दहेज की मांग बहुत कम की जाती है क्योंकि लड़का योग्य नही होता। दूसरे, लड़कियां जितनी बड़ी होती जाएंगी वे उतनी ही योग्य होती जाएंगी। योग्य कन्याओं के लिए योग्य वरो को ढूंढ़ना पड़ेगा, जो और ज्यादा दहेज मांगेंगे।
7. अनैतिकता और व्यभिचार मे वृद्धि
दहेज के चलन के कारण अनैतिकता तथा व्यभिचार मे वृद्धि होती है। यह पूर्णतया सच है। दहेज के कारण लड़कियों का बड़ी आयु तक विवाह नही हो पाता। वे मजबूरी मे यौन आवश्यकता से बेचैन होकर व्यभिचार मे फंस जाती है। उनकी अतृप्त वासना संयम का बांध तोड़कर उच्छृंखल हो जाती है।
8. ॠणग्रस्तता को प्रोत्साहन
दहेज देने हेतु अनेक माता-पिता कर्जा लेते है तथा उसे चुकाने के कारण उनका जीवन स्तर गिर जाता है। फलतः परिवार को कई कष्ट सहने पड़ते है।
9. भ्रष्टाचार को बढ़ावा
अनेक पिता अपनी कन्याओं के विवाह के लिए दहेज जुटाने हेतु जालसाजी करते है, रिश्वत लेते है, गलत धंधे करते है तथा चोरी तक करते है।
10. मानसिक रोगों मे वृद्धि
भारत की ज्यादातर स्त्रियों मे आज मानसिक असंतुलन उनके जीवन का अनिवार्य अंग बना हुआ है। वे अपने को पिता की आर्थिक कठिनाई का कारण समझती है। उन्हे लगता है कि माता-पिता पर वे बोझ बनी हुई है। यदि किसी तरह विवाह हो जाता है, तब उन्हे पति के निर्देश पर अपने पिता के समाने न चाहते हुए भी पुनः आर्थिक मांगे रखनी पड़ती है। इसके बाद भी उन्हें ससुराल मे तिरस्कार का जीवन जीना पड़ता है। ऐसी स्थिति मे उनका मानसिक संतुलन कैसे बना रह सकता है?
11. अनेक समस्याओं का जन्म
दहेज प्रथा ने अनेक प्रकार की सामाजिक समस्याओं को जन्म दिया है, जिसमे स्त्री शिक्षा मे रूकावट, स्त्रियों की मानसिक स्थिति मे असंतुलन, अपराध, हत्या या आत्महत्या, चोरी, डकैती, ॠणग्रस्तता आदि शामिल है।
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kusum vishwakarma
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