पिट्स इंडिया एक्ट पारित होने के कारण (pits india act 1784 karan)
pits india act 1784 in hindi;रेग्यूलेटिंग एक्ट मे अनेक दोष थे। जब उसे क्रियान्वयनत किया गया, तो वे स्पष्ट रूप से उभकर सामने आये और शासने अनेक गड़बड़ियां उत्पन्न हुयी। जिसके कारण भारत मे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी मे लगभग अराजकता का वातावरण बन बन गया था। निस्संदेह, रेग्यूलेटिंग एक्ट बनाने की मंशा ठीक थी किन्तु उसके क्रियान्वय मे हुई अधीरता एवं लगातार भूलों ने ब्रिटिश सरकार को चिंता मे डाल दिया था। यह कारण था कि सन् 1773 मे पारित रेग्यूलेटिंग एक्ट की विभिन्न त्रुटियों को दूर करने के लिए इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विलियम पिट ने सन् 1784 मे एक नवीन अधिनियम पारित किया। जिसे पिट्स इंडिया एक्ट के नाम से जाना जाता है।
पिट्स इंडिया एक्ट की धाराएं (pits india act 1784 ki dharaye)
1. पिट्स इंडिया एक्ट के द्वारा नियंत्रण मंडल की व्यवस्था की गई। इस नियंत्रण मंडल मे 6 सदस्य होते थे। इंग्लैंड की इक्सकेचर का चांसलर और भारत सचिव भी इस मंडल के सदस्य होते थे।
2. अधिनियम द्वारा नियंत्रण मंडल को भारतीय प्रशासन पर नियंत्रण के व्यापक अधिकार प्रदान किये गये थे। नियंत्रण मंडल भारतीय प्रशासन को पुरानी पत्रावलियां भी निरीक्षण हेतु मंगवा सकता था।
3. पिट्स इंडिया एक्ट मे गोपनीय समिति की भी व्यवस्था थी। इस समिति मे तीन संचालक होते थे। यह संचालक महत्वपूर्ण पदों पर व्यक्तियों को नियुक्त कर सकते थे और भारतीय प्रशासन के विषयों तथा निर्णयों का पुनरावलोकन भी कर सकते थे।
4. अधिनियम द्वारा बंगाल के गवर्नर जनरल को अन्य प्रेसीडेंसीज पर नियंत्रण करने के अधिकार दिये गये थे।
5. पिट्स इंडिया अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल की परिषद के सदस्यों की संख्या तीन कर दी गई थी। सेनाध्यक्ष भी परिषद का सदस्य होता था।
6. अंग्रेजों द्वारा भारत मे कारित अपराधों से निपटने हेतु संसद के सदस्यों की समिति स्थापित की गई थी।
7. इस अधिनियम की व्यवस्थाओं के अनुसार गवर्नर जनरल को भारतीय रियासतों (राज्यों) मे हस्तक्षेप करने का अधिकार भी दिया गया था।
8. पिट्स इंडिया एक्ट अधिनियम के अनुसार भारत का गवर्नर जनरल कोर्ट ऑफ डायरेक्टर की अनुमति के बिना युद्ध अथवा शांति की घोषणा नही कर सकता था। बम्बई और मद्रास की प्रेसीडेन्सीज कलकत्ते के गवर्नर जनरल की अनुमति के बिना युद्ध या शांति की घोषणा नही कर सकती थी।
9. पिट्स इंडिया एक्ट अधिनियम के अनुसार गवर्नर-जनरल और उसकी परिषद् ही संधियों का निष्पादन कर सकते थे।
10. कलकत्ते के गवर्नर जनरल बम्बई और मद्रास की सरकारों को अवज्ञा के आधार पर निलंबित कर सकता था।
11. कलकत्ते के गवर्नर जनरल की नियुक्ति समाज के अनोदन पर संचालकों द्वारा किये जाने की व्यवस्था की गई।
12. इंग्लैंड का सम्राट गवर्नर जनरल (गवर्नरों) को इंग्लैंड वापस बुला सकता था।
पिट्स इंडिया एक्ट का महत्व (pits india act 1784 mahatva)
पिट्स इंडिया एक्ट अधिनियम ने भारत मे कंपनी के प्रशासन पर अंकुश लगाने की व्यवस्था की थी। इस अधिनियम द्वारा भारतीय प्रशासन पर दोहरे नियंत्रण स्थापित किये गये थे। कंपनी के समस्त कार्यकलापों को दो भागों मे बाँट दिया गया। राजनितिक तथा प्रशासनिक मामलों का प्रबंध बोर्ड ऑफ कंट्रोल (नियंत्रण परिषद्) को सौंप दिया गया और व्यापारिक मामले पूर्णतः निदेशकों के नियंत्रण मे रहने दिये गये।
भारत मे गवर्नर जनरल तथा गवर्नर की नियुक्ति की प्रक्रिया को भी परिवर्तित कर दिया गया। इंग्लैंड का सम्राट कलकत्ते के गवर्नर जनरल को इंग्लैंड वावप बुला सकता था। अधिनियम द्वारा युद्ध और शांति की घोषणा पर भी सीमाएं अंकित की गई थी।
पिट्स इंडिया एक्ट अधिनियम द्वारा नियंत्रण मंडल को कंपनी के राजनीतिक के राजनीतिक विषयों पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया गया। भारतीय प्रशासनिक पत्रों का सर्वेक्षण भी कोर्ट ऑफ डायरेक्टर के द्वारा संभव था। लेकिन नियंत्रण मंडल को भारतीय रियासतों पर अंकुश लगाने का अधिकार नही था।
पिट्स इंडिया एक्ट अधिनियम ने काफी हद तक रेग्यूलेटिंग एक्ट के दोषो को दूर किया। गवर्नर जनरल अब अपनी परिषद के सदस्यों से अधिक शक्तिशाली हो गया। अन्य गवर्नरों पर भी उसका सीधा नियंत्रण स्थापित हो गया था। इससे शासन मे दृढ़ता, एकरूपता तथा मजबूती आई। ब्रिटिश कैबिनेट के दो सदस्यों के बोर्ड ऑफ कंट्रोल मे शामिल होने से भारत सरकार पर गृह सरकार का नियंत्रण भी बढ़ गया तथा कंपनी के डायरेक्टरों व प्रोप्राइटरों के अधिकार सीमित हो गये।
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