प्रश्न. पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की हार के कारण।
अथवा
पानीपत के तीसरे युद्ध के कारण, परिणाम एवं इस युद्ध मे मराठों की पराजय (असफलता) के कारणों का वर्णन किजिए।
अथवा
पानीपत के तृतीय युद्ध के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये।
अथवा
'पानीपत के युद्ध ने दो शक्तियों का अवसान किया और शक्ति के उत्थान को संभव बनाया।' विवेचन किजिये।
अथवा
पानीपत के तृतीय युद्ध के बारे मे आप क्या जानते है?
अथवा
पानीपत के तृतीय युद्ध के कारणों की समीक्षा कीजिए।
अथवा
पानीपत के तृतीय युद्ध मे मराठों की पराजय के क्या कारण थे?
अथवा
पानीपत के तृतीय युद्ध के लिए उत्तरदायी परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
पानीपत के तृतीय युद्ध के राजनीतिक परिणामों की समग्र व्याख्या कीजिए।
अथवा
पानीपत के तृतीय युद्ध के कारणों एवं परिणामों का उल्लेख कीजिए।
पानीपत के तृतीय युद्ध के कारण (panipat ke tritiya yudh ke karan)
1. धर्मान्ध मुस्लिम राज्य द्वारा अत्याचार
भारत मे कट्टर इस्लामी औरंगजेब के शासन मे धर्मान्ध अत्याचार केवल हिन्दू पर ही नही शिया मुसलमानों पर भी हुए। यह अत्याचार उत्तर भारत मे सर्वाधिक हुए। इससे भारतीयों की संघर्ष क्षमता घट गई और उन्होंने युद्ध काल मे दिल्ली सरकार का साथ नही दिया।
2. मराठों की विस्तार नीति
दिल्ली का मुगल सम्राट निर्बल था। फिर भी उसने अपने सूबेदारों को मराठों के खिलाफ भड़काया। परिणाम स्वरूप मराठों ने दिल्ली सम्राट पर आक्रमण करके उसे और अधिक कमजोर बनाया तथा उस पर नियंत्रण स्थापित किया। मुगल सम्राट इस स्थिति को स्वीकार नही कर पाया अतः उसे अहमदशाह का आक्रमण स्वर्ण अवसर लगा।
3. नादिरशाह और अहदशाह के अत्याचार
नादिरशाह ने मुगल सम्राट पर 1739 मे आक्रमण किया था। उसने सम्राट की सैनिक, आर्थिक और राजनैतिक शक्ति को और जनता को रोंदकर रख दिया था। विचित्र बात तो यह थी कि कहीं-कहीं मुगल सूबेदार सम्राट से अधिक शक्तिशाली थे। इसी कारण मराठों ने भी सम्राट को अपने आधीन करने का प्रयत्न किया। नादिरशाह के बाद अफगानिस्तान का शासक अहमदशाह अब्दाली ने आक्रमण करके मुगल शक्ति को छिन्न-भिन्न कर दिया और उसने पंजाब पर अपना दावा प्रस्तुत किया।
4. मराठा राजपूत शत्रुता
मराठों ने जब दिल्ली को पराजित किया तो उसके बाद उन्होंने राजपूतों की आंतरिक समस्याओं मे हस्तक्षेप आरंभ किए। उनसे चौथ और सरदेशमुख कर वसूल किए। इनके संघर्षों से भारत मे एकता समाप्त हो गई।
5. पंजाब की समस्या
मराठों ने 1759-60 मे पंजाब को जीत लिया था और अहमदशाह ने पंजाब पर सर्वप्रथम आक्रमण किया। अतः मराठों और अहमदशाह मे संघर्ष आवश्यक हो गया।
6. मुगल वजीर और रूहेली मे संघर्ष
मुगल सम्राट की 1748 मे मृत्यु के बाद उसके बजीर और रूहेली मे संघर्ष छिड़ गया। वजीर ने मराठों की मदद से रूहेलों को पराजित कर दिया। अब रूहेलों ने अहमदशाह अब्दाली से मदद मांगी। उसी समय पंजाब के कुछ राजपूतों ने भी अहमदशाह को मराठों से लड़ने के लिए बुलाया। निजाम भी उनका साथ दे रहा था इस तरह मराठों को राजपूतों, रूहेलों और दक्षिण मे हैदराबाद से भय था उस पर अहमदशाह का आक्रमण हुआ।
7. सूरजमल जाट की चुनौती
अहमदशाह ने भरतपुर के राजा सूरजमल जाट से भेंट मांगी तो सूरजमल ने कहा कि उत्तर भारत से मराठों को भगाकर अपनी वीरता और स्वयं को शासक सिद्ध करें तो भेंट देने को तैयार है। अतः इस चुनौती ने आक्रमण के लिए अहमदशाह को ललकारा।
8. दत्ताजी सिन्धिया की हत्या
पंजाब मे दत्ता जी सिन्धिया की मृत्यु 1760 के युद्ध मे हो गई। मराठों ने विशाल सेना अब्दाली पर आक्रमण करने और बदला लेने के लिए भेजी। यह यहि पानीपत के तृतीय युद्ध का कारण बना।
पानीपत का तृतीय युद्ध की घटनाएं (जनवरी 1761 ई.)
उपरोक्त परिस्थितियों मे मराठे तथा अब्दुलशाह अब्दाली के बीच युद्ध अवश्यंभावी हो गया और दोनों की सेनायें 1 नम्बर, 1760 को पानीपत के मैदान मे एक-दूसरे के सामने पहुंच गयी। नजीबुद्दीला के नेतृत्व मे रूहेलों की एक शक्तिशाली टुकड़ी दुर्रानी की सहायता के लिए पहुंची। अवध का नवाब शुजाउद्दौला दुर्रानी के पक्ष मे था। जाट और राजपूत इस युद्ध मे तटस्थ रहे। लगभग दो माह तक दोनों सेनाएँ एक-दूसरे के सामने डटी रही और उनके बीच युद्ध का प्रारंभ 14 जनवरी, 1761 ई. को प्रातः काल मराठो के आक्रमण से हुआ और छह-सात घण्टे तक चलने के बाद समाप्त हो गया। युद्ध के बीच मे मल्हारराव होल्कर युद्ध छोड़कर भाग गया। पेशवा का 17 वर्षीय पुत्र विश्वासराव युद्ध स्थल मे मारा गया। इब्राहीम खाँ गार्दी के तोपखाने ने अब्दाली की सेना को यद्यपि बहुत हानि पहुँचायी किन्तु शाम तक सदाशिवराव, जसवंतराव पवार, तुकोजी सिन्धिया आदि युद्ध मे मारे गये तथा इब्राहीम गार्दी और जनकोजी सिन्धिया कत्ल कर दिये गये। महादजी सिन्धिया घायल होकर भाग गया और बचे हुए मराठे भी भाग निकले और विजयश्री दुर्रानी के हाथ लगी। मराठों की सेना के हताहतों की संख्या 50 हजार से 75 हजार तक थी। जदुनाथ सरकार ने लिखा है कि "शायद ही ऐसा कोई मराठा परिवार बचा हो जिसका कोई सदस्य न मरा हो।"
पानीपत के तृतीय युद्ध के परिणाम (panipat ke tritiya yudh ki parinaam)
1. मराठों का राजनीतिक महत्व घट गया
तृतीय पानीपत के युद्ध मे मराठों की पराजय से विस्तृत मराठा साम्राज्य के भय, प्रभाव, शक्ति और प्रतिष्ठा को समाप्त कर दिया। इसमे मराठों की इतनी क्षति हुई कि मराठों के प्रत्येक घर से कोई न कोई व्यक्ति अवश्य ही मृत्यु को प्राप्त हो गया था। मराठों का देश के विभिन्न भागों पर से नियंत्रण समाप्त हो गया तथा उन पर अंग्रेजों का प्रभाव बढ़ाने लगा।
2. मराठा सहयोग-मंडल समाप्त
पानीपत के बाद मराठा सरदरा सिन्धिया, होल्कर, गायकवाड़, भोंसले अपनी-अपनी स्वतंत्रत सत्ता स्थापित करने मे लग गये। इससे मण्डल तो समाप्त हो ही गया, मराठा संगठन भी टूट गया।
3. मुगल साम्राज्य का पतन
पानीपत के पश्चात दिल्ली का वास्तविक स्वामी नजीबुद्दीला बन गया था तथा शाहआलम द्वितीय जो मुगल सम्राट था, अहमदशाह की और नजीब की कृपा पर निर्भर था। इसके कारण शाहआलम मराठों और मुगलों के बीच मे घिर गया। मुगल सम्राट की ऐसी दुर्दशा कभी नही हुई जैसे इस समय।
4. अहमदशाह अब्दाली की शक्ति घट गई
मराठों की पराजय अवश्य हुई थी परन्तु अहमदशाह की स्वयं की शक्ति भी इतनी घट गई कि उसके विरुद्ध अफगानों ने विद्रोह कर दिया परन्तु वह उन्हें दबा नही सका। इससे उसकी दशा और गिर गई।
5. सिक्खों, निजाम हैदर अली का उत्थान
यह तीनों ही मुगलों से परेशान थे। मुगल और मराठे दोनों ही कमजोर हो चुके थे। अतः सिक्खों का पंजाब मे उत्कर्ष हुआ और उन्होंने अब्दाली द्वारा स्थापित सत्ता का विरोध किया। मराठों के शत्रु निजाम ने अपनी शक्ति और संगठन आरंभ कर दिया। उधर हैदरअली ने निजाम-मराठों के संघर्ष का लाभ उठाकर उनके मराठा प्रदेशों पर और निजाम के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। इससे तीनों मे संघर्ष भी बढ़ गये।
7. ब्रिटिश सत्ता का उदय
व्यापार की याचना से आये अंग्रेजों ने मुगल सम्राट के नवाबों की कमजोरियों का और विघटन का लाभ उठाकर नवाबों को बनाना और हटाना आरंभ कर दिया था। सन् 1761 के पश्चात मराठों मे फूट डालकर उन्हें भी सहायक प्रथा मानने के लिये विवश कर दिया। अब उन्हें भारत मे चुनौती देने वाला कोई नही रहा। इस प्रकार ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना भारत मे हो गई।
पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की पराजय (हार) के कारण
पानीपत के युद्ध मे मराठों की पराजय का प्रमुख कारण सदाशिवराव भाऊ की कूटनीतिक असफलता तो थी ही साथ ही दुर्रानी की अपेक्षा वह कमजोर सेनापति भी था। दुर्रानी ने सैन्य योजना बड़ी कुशलता से बनायी थी। सदाशिवराव भाऊ सेनानायक अवश्य था किन्तु वास्तव मे यह पर पेशवा के पुत्र विश्वनाथराव को दिया गया था। भाऊ को उत्तर भारत के युद्धों का अनुभव भी नही था तथा मराठा सरदार युद्ध के संबंध मे एक मत भी नही थी, उनमे कुटनीतिज्ञता का भी अभाव था, जिसका प्रतिकूल असर हुआ। मराठों के साथ स्त्रियों और नौकरों की संख्या बहुत थी जिनकी रक्षा तो करनी ही पड़ती थी साथ ही भोजन का प्रबंध भी करना पड़ता था। मराठे गुरिल्ला युद्ध मे निपुण थे किन्तु उस पद्धति से युद्ध न कर उन्होंने इब्राहीम गार्दी के तोपखाने पर अधिक भरोसा किया तथा सुरक्षात्मक पद्धति अपनाई जिनमे दुर्रानी अधिक योग्य था। सदाशिवराव की अपेक्षा अब्दाली की सेना अधिक आधुनिक शस्त्रों से सम्पन्न थी। सदाशिवराव भाऊ ने यदि राजपूतों की सहानुभूति अथवा सूरजमल जाट की सहायता ली होती तो हो सकता था कि दुर्रानी के सामने मराठे टिक सकते तथा असफलता हाथ न लगती।
उक्त परिस्थितियों के कारण मराठे हार (पराजित) हुए और यह युद्ध न होकर हत्याकांड बन गया। विनाश के इस आघात को बालाजी बर्दाश्त न कर सका। 23 जून, 1761 ई. को पेशवा बालाजीराव की मृत्यु हो गयी। यद्यपि मराठों की शक्ति को उसने चरम स्थिति पर पहुँचा दिया था किन्तु वह न तो शक्ति का सदुपयोग कर सका और न ही स्थायित्व के लिए उचित शासन-व्यवस्था कर सका। अतः महान् सफलताओं के साथ असफलताओं का सामना भी करना पड़ा।
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