परिवार के प्रकार (parivar ke prakar)
परिवार एक महत्वपूर्ण संस्था है। देश, काल परिस्थिति के अनुसार समय-समय पर इसके स्वरूप मे परिवर्तन होता रहा है। सामाजिक विचारको ने परिवार का वर्गीकरण विभन्न आधारो पर किया है। परिवार के प्रकार या स्वरूप इस प्रकार है--
(A) सदस्यों की संख्या के आधार पर परिवार
सदस्यों की संख्या के आधार पर परिवार दो प्रकार के होते है--
1. प्राथमिक परिवार
जिस परिवार मे सिर्फ माता तथा उनके अविवाहित बच्चे होते है, उस परिवार को प्रथामिक परिवार कहते है।
पढ़ना न भूलें; परिवार का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं
2. विस्तृत परीवार या संयुक्त परिवार
जिस परिवार मे एक वंश के समस्त भाई, उनकी पत्नियां, लड़के-बच्चे, उनकी बहने तथा माता-पिता आदि रहते है और जिस घर का एक बुजुर्ग व्यक्ति मालिक या मुखिया होता है। उस परिवार को विस्तृत परीवार कहते है।
(B) विवाह के आधार पर परिवार के प्रकार
विवाह के आधार पर परिवार को निम्म दो श्रेणियों मे विभाजित किया जा सकता है--
1. एक विवाही परिवार
एक विवाही परिवार वह परिवार है जिसमे एक समय मे एक पुरूष तथा स्त्री वैवाहिक जीवन व्यतीत करते है।
2. बहुविवाही परिवार
वह परिवार जिसमे एक पुरूष या स्त्री कई पुरूषो या स्त्रियों के साथ वैवाहिक जीवन व्यतीत करते है। इस प्रकार इन्हे दो भागो मे बांटा जा सकता है--
(अ) बहु-पत्नी विवाही परिवार
(ब) बहुपति विवाही परिवार
(C) संबंध के आधार पर परिवार के प्रकार
संबंधों के आधार पर भी परिवार दो तरह के होते है--
1. रक्त संबंधी परिवार
चार्ल्स विनिक के शब्दों मे, " रक्त संबंधी परिवार रक्त संबंधियों का एक केन्द्र है, जो पति पत्नी के जाल से घिरा होता है।"
इस परिवार मे वे सभी आते है जो कि जन्म द्वारा एक दूसरे से संबंधित होते है तथा इसलिए इनमे चुनाव अथवा व्यक्तिगत इच्छा का कोई प्रश्न ही नही उठता।
2. विवाह संबंधी परिवार
चार्ल्स विनिक के अनुसार," विवाह संबंधी परिवार पति-पत्नी का केंद्र है, जो कि संबंधियों के जाल से घिरा होता है।" इस तरह विवाह संबंधी परिवार मे पति-पन्ति तथा उनके बच्चे तो प्राथमिक रूप से होते ही है। साथ ही साथ विवाह के कारण दोनो परिवार के संबंधी भी सहयोगी के रूप मे ऐसे परिवार मे आते है।
(D) सत्ता के आधार पर परिवार के प्रकार
सत्ता के आधार पर भी दो तरह के परिवार होते है--
1. पितृसत्तात्मक परिवार
पितृसत्तात्मक परिवार उन परिवारों को कहते है जहाँ पर पिता को प्रधान माना जाता है।
2. मातृसत्तात्मक परिवार
मातृसत्तात्मक परिवार वे परिवार है जहाँ पर पिता के स्थान पर माता को प्रधानता दी जाती है। इस तरह के परिवारों का प्रचलन मालाबार के नायरों मे है।
(E) वंश के आधार पर परिवार के प्रकार
वंश के आधार पर भी परिवार दो तरह के होते है--
1. पितृवंशीय परिवार
जिन परिवारों मे वंश परंपरा पिता के नाम से चलती है एवं जिनमे किसी एक पुरूष को पूर्वज माना जाता है उसे पितृवंशीय परिवार कहते है।
2. मातृवंशीय परिवार
ये परिवार वे परिवार है जिनमे वंश परंपरा माता के नाम से चलती है तथा किसी स्त्री को मूल पूर्वज माना जाता है। मालाबार के नायरों मे मातृसत्तात्मक परिवार मातृवंशीय परिवार ही होते है।
(F) निवास स्थान के आधार पर परिवार के प्रकार
निवास स्थान के आधार पर भी परिवार दो तरह के होते हैं--
1. पितृस्थानी परिवार
पितृस्थानी परिवार उन परिवारों को कहते है जिनमे विवाहोपरांत स्त्री पुरुष के घर जाकर रहती है।
2. मातृस्थानी परिवार
ये परिवार है जिनमे विवाहोपरांत पुरूष स्त्री के घर जाकर निवास करता है, जैसे मालाबार के मातृसत्तात्मक परिवार।
(G) नाम के आधार पर परिवार के प्रकार
यह भी दो तर के होते है--
1. पितृनामी परिवार
पितृनामी परिवार वे परिवार है जिनमे परिवार का नाम पिता के नाम पर चलता है। साधारणतया पितृसत्तात्मक, पितृवंशीय तथा पितृस्थानी परिवार पितृनामी परिवार ही होते है।
2. मातृनामी परिवार
मातृनामी परिवार वे परिवार होते है जिनमे परिवार का नाम पिता के बजाय माता के नाम पर चलता है। यह परिवार भी साधारणतया मातृसत्तात्मक, मातृवंशीय तथा मातृस्थानी परिवार मातृनामी परिवार कहे जाते है।
(H) पक्ष के आधार पर परिवार के प्रकार
पक्ष के आधार पर भी परिवार दो तरह के होते हैं--
1. एक पक्षीय परिवार
वे परिवार है जिनमे वंश परंपरा या तो पुरुष की तरफ से चलती है या स्त्री की ओर से।
2. उभयपक्षी परिवार
उभयपक्षी परिवार मे वंश परंपरा स्त्री तथा पुरूष दोनों की तरफ से चलती है।
परिवार के कार्य या महत्व (parivar ke karya)
ऑगबर्न ने परिवार के निम्म कार्य बताए है--
1. स्नेह तथा प्रेम सम्बन्धी कार्य
2. आर्थिक कार्य
3. मनोरंजन सम्बन्धी कार्य
4. पालन पोषण अथवा रक्षा सम्बन्धी कार्य
5. धार्मिक कार्य
6. शिक्षा सम्बन्धी कार्य
मैकाईवर तथा पेज के अनुसार परिवार के कार्य इस प्रकार है--
(अ) अनिवार्य कार्य
1. यौन आवश्यकता की स्थायी संतुष्टि
2. संतानोत्पत्ति एवं उनका पालन-पोषण
3. स्नेहात्मक कार्य
(ब) अ-अनिर्वाय कार्य
1. आर्थिक कार्य
2. धार्मिक कार्य
3. शैक्षणिक कार्य
4. मनोरंजनात्मक कार्य
5. सरकारी कार्य
6. स्थिति प्रदान करने के कार्य।
लुण्डबर्ग ने परिवार के इस प्रकार कार्य बताए है--
1. यौन व्यवहारों एवं सन्तानोत्पत्ति का नियमन
2. शिशु पालन एवं प्रशिक्षण
3. श्रम विभाजन से उत्पन्न कार्य प्रारूप
4. प्राथमिक समूह सम्बन्धों की तुष्टि।
परिवार का महत्व किसी से भी छिपा नही है। इसका व्यक्ति तथा समाज दोनों ही दृष्टियों से बड़ा महत्व है। परिवार व्यक्ति और समाज के विकास मे महत्वपूर्ण योगदान देता है। परिवार के कार्यों का वर्गीकरण हम दो भागों मे कर सकते है--
(A) परिवार के मौलिक कार्य
1. यौन इच्छाओं की पूर्ति
परिवार यौन संबंधी इच्छाओं की पूर्ति का महत्वपूर्ण साधन है। परिवार व्यवस्थित रूप से प्रत्येक व्यक्ति को विवाह के द्वारा यौन संबंधो को स्थापित करने की स्वीकृति प्रदान करता है और इनका उल्लंघन करने पर दंड भी देता है। इस कार्य के नही होने पर समाज मे अव्यवस्था एवं अनैतिकता फैल सकती है।
2. संतानोत्पत्ति
संतानोत्पत्ति परिवार का दूसरा प्रमुख प्राणीशास्त्रीय कार्य है। यद्यपि यह कार्य परिवार के बाहर भी संभव है लेकिन वे संताने अवैध होती है ऐसी संतानो का समाज तिरस्कार करता है। परिवार द्वारा किये जाने वाले संतानोत्पत्ति के कार्य से ही समाज का अस्तित्व एवं निरंतरता बनी रहती है। परिवार संतानो को वैधता प्रदान करता है।
3. सदस्यों की शारीरिक रक्षा
परिवार अपने सदस्यों की शारीरिक रक्षा का कार्य भी संपन्न करता है। पालन-पोषण से लेकर बच्चे को सामाजिक प्राणी बनने तक संपूर्ण दायित्व परिवार द्वारा वहन किये जाते है। शारीरिक चोट एवं बीमारी की अवस्था मे सेवा सुश्रुषा की व्यवस्था, असहाय, कमजोर, वृद्ध तथा अपहिजों की देखरेख का कार्य परिवार ही करता है। सदस्यों को आवश्यकतानुसार सुरक्षा एवं सुविधाएं देना, मानसिक सुरक्षा प्रदान करना परिवार का महत्वपूर्ण कार्य है।
4. मनोवैज्ञानिक कार्य
व्यक्ति को शारीरिक सुरक्षा ही पर्याप्त नही होती बल्कि मानसिक सुरक्षा का भी होना आवश्यक है तभी व्यक्ति समाज मे अच्छी तरह रह सकता है। परिवार अपने सदस्यों को मानसिक संतुष्टि, शांति व सुरक्षा प्रदान करता है।
(B) परिवार के परंपरागत कार्य
1. सामाजिक कार्य
परिवार व्यक्ति का समाजीकरण करता है। उसके व्यवहारों पर नियंत्रण रखता है, उसके व्यवहार को सामाजिक नियमो तथा रीति-रिवाजो के अनुसार ढालता है। परिवार से ही व्यक्ति की सामाजिक स्थिति निर्धारित होती है।
2. सांस्कृतिक कार्य
समाज के प्रत्येक सदस्य को उसकी संस्कृति अर्थात् उसकी परंपराओं तथा रीति रिवाजों के अनुकूल ढालना पड़ता है। परिवार इस कार्य को पूरा करने के लिए प्रत्येक सदस्य के लिए सांस्कृतिक पर्यावरण प्रस्तुत करता है।
3. धार्मिक कार्य
बालक अपने माता पिता द्वारा नाना प्रकार की धार्मिक बाते सुनकर धर्म के प्रति प्रेम करना सीख जाते है। किस तरह धार्मिक उत्सव मनाना चाहिए, ईश्वर की पूजा करनी चाहिए, किस तरह साधु सन्यासी की सेवा करनी चाहिए आदि धार्मिक कार्य बालक परिवार मे ही सीखता है।
4. शिक्षणात्मक कार्य
परिवार का बच्चे के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। बच्चा जन्म से ही अपने माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों से अनेक बाते सीखता है। इस प्रारंभिक शिक्षा का बच्चे के चरित्र व व्यक्तित्व के निर्माण पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। प्लटो और अरस्तु ने परिवार को " जीवन की प्रारंभिक पाठशाला " के नाम से पुकारा है।
5. सामाजिक नियंत्रण का कार्य
परिवार नियंत्रण सामाज का सर्वोन्मुख साधन है क्योंकि सबसे पहले परिवार मे ही व्यक्ति सामाजिक जीवन के अनुकूल चलना सीखता है।
6. राजनीतिक कार्य
राजनीतिक कार्य भी परिवार के द्वारा किये जाते है। एक प्रशासनिक इकाई के रूप मे परिवार का महत्व सर्वव्यापी है। आदिम समाजो मे परिवार का यह कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। वहाँ मुखिया परिवार का शासक होता है। मुखिया द्वारा व्यक्ति के व्यवहारों को नियंत्रित करना, दंडित करना, अनुशासन, समानता, स्वतंत्रता तथा मातृत्व की भावना का विकास कर देश को सफल नागरिक बनाना परिवार का वास्तविक शासक होता है, परिवारिक झगड़ों का निपटाना उसी का कार्य है।
परिवार की बच्चे के विकास में क्या भूमिका होती हैं
जवाब देंहटाएंPariwarv ka karya tipni
हटाएंParivar ke logon aur kaun se karya karte Hain
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