1857 मे अत्यंत गोपनीय तरीके से ब्रिटिश राज्य से जिस संघर्ष और सफलता की योजना बनी थी वह समाप्त हो गई तथा अंग्रेजों के बाहर जाने की बजाय उनका राज्य और अधिक सुदृढ हो गया। 1857 के विद्रोह की भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम माना जाता है। क्रांति का संगठन करने के लिए छावनियों मे रोटी व कमल के प्रतीकों का व्यापक प्रचार किया गया, यह एक मौलिक सूझ थी। रोटी के प्रचार का यह संकेत था कि भारतीय पेट के इतने गुलाम बने है कि आजादी की रोटी को कमाने की बात भूल बैठे। कमल के प्रचार का यही अर्थ था कि उन्हें अपने देश मे खुशहाली लाना है।
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यद्यपि क्रांतिकारियों ने अदम्य उत्साह व वीरता से अंग्रेजों का सामना किया, किन्तु क्रांति असफल सिद्ध हुई।
सन् 1857 की क्रांति के असफलता के कारण (1857 ki kranti ke asafalta ke karan)
1857 की क्रांति की असफलता के प्रमुख कारण निम्म थे--
1. संगठन और एकता का अभाव
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के असफल रहने के पीछे संगठन और एकता का अभाव प्रमुख रूप से उत्तरदायी रहा। इस क्रांति की न तो कोई सुनियोजित योजना ही तैयार की गई न ही कोई ठोस कार्यक्रम था। इसी कारण यह सीमित और असंगठित बन कर रह गया।
2. नेतृत्व का अभाव
क्रांतिकारियों के पास यद्यपि नाना साहब, तात्याटोपे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जैसे आदि योग्य नेता थे, किन्तु फिर भी इस आंदोलन का किसी एक व्यक्ति ने नेतृत्व नही किया जिस कारण से यह आंदोलन अपने उद्देश्य मे पूर्णतः सफल नही हो सका।
3. परम्परावादी हथियार
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे भारतीय सैनिकों के पास आधुनिक हथियार नही थे जबकि अंग्रेज सैनिक पूर्णतः आधुनिक हथियार व गोला-बारूद का उपयोग कर रहे थे। भारतीय सैनिक अपने परम्परावादी हथियार तलवार, तीर-कमान, भाले-बरछे आदि के सहारे ही युद्ध के मैदान मे कूद पड़े थे जो उनकी पराजय का कारण बना।
4. सामन्तवादी स्वरूप
1857 के संग्राम मे एक ओर अवध, रूहेलखण्ड आदि उत्तरी भारत के सामन्तों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया तो दूसरी ओर पटियाला, जींद, ग्वालियर हैदराबाद के शासकों ने विद्रोह के उन्मूलन मे अंग्रेजी हुकूमत को सहयोग किया। इस तरह यह स्वतंत्रता संग्राम अपने उद्देश्य मे सफल नही हो सका।
5. बहादुरशाह द्वितीय की अनभिज्ञता
क्रांतिकारियों द्वारा बहादुरशाह द्वितीय को अपना नेता घोषित करने के बावजूद भी बहादुरशाह के लिए यह क्रांति उतनी ही आकस्मिक थी जितनी कि अंग्रेजों के लिए थी। यही कारण था कि अंततः बहादुरशाह को लेफ्टीनेण्ट हडसन ने बंदी बना कर रंगून भेज दिया।
6. समय से पूर्व और सूचना प्रसार मे असफल क्रांति
1857 की क्रान्ति का असफलता का एक बड़ा कारण यह भी था कि यह क्रांति समय से पूर्व ही प्रारंभ हो गयी। यदि यह क्रांति एक निर्धारित कार्यक्रम के तहत लड़ी जाती तो इसकी सफलता के अवसर ज्यादा होते। इसी तरह आंदोलन के प्रसार-प्रचार मे भी क्रांतिकारी नेतृत्व असफल रहा। इसका असर 1857 के स्वतंत्रता संग्राम पर गहराई से पड़ा।
7. स्थानीयता
1857 की क्रान्ति मे स्थानीय उद्देश्य होने से आम भारतीयों का व्यापक जुड़ाव इसमे नही हो सका। इस समय केवल उन्हीं शासकों ने क्रांति मे हिस्सा लिया जिनके हित सामने आ रहे थे। 1857 की क्रान्ति की असफलता का यह भी एक कारण था।
8. सम्पर्क भाषा का अभाव
1857 की क्रान्ति की असफलता का एक महत्वपूर्ण कारण क्रान्तिकारियों मे सम्पर्क भाषा का अभाव भी था। तत्कालीन समय मे अंग्रेजों की एक भाषा थी जिसका उद्देश्य वे सूचना संदेश पहुँचाने मे करते थे किन्तु एक राष्ट्र भाषा के अभाव मे भारतीय क्रान्तिकारियों के बीच आपसी सूचनाएँ समय पर पहुंचने के बाद भी संदेशों से वे परिचित नही हो पाते थे। 1857 की असफलता का यह महत्त्वपूर्ण कारण था।
9. सीमित क्षेत्र
कुछ विद्वानों का मत है कि क्रांति का सीमित क्षेत्र था। नर्मदा के दक्षिण मे, सिन्ध, राजपूताना और पूर्वी बंगाल मे उसका कोई प्रभाव नही था। यह प्रदेश ऐसे प्रदेश थे जो दूर थे इनमे केवल पंजाब ही ऐसा था जो सहयोग प्रदान कर सकता था परन्तु सिक्खों ने इस समय अंग्रेजों का साथ दिया और अधिकांश को शस्त्रहीन करवा दिया था। परन्तु विद्वान इस असफलता के कारण पर एकमत नही है। उनकी दृष्टि मे अनुशासन और संगठन आवश्यक था।
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे यद्यपि पराजय का सामना करना पड़ा किन्तु इस क्रांति के बड़े गहरे व दूरगामी परिणाम सामने आये जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास मे भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने। क्रांति ने अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ों को हिला दिया था।
1857 ई. का संग्राम ब्रिटिश राज के लिए एक बड़ी चुनौती था। इसे अन्ततः तत्कालीन गवर्नर जनरल लाॅर्ड कैनिंग के द्वारा कुचल दिया गया, परन्तु इस संग्राम से अंग्रेजों को गहरा झटका लगा। इस संग्राम ने अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ों को हिला कर रख दिया था अतः ब्रिटिश सरकार ने भारत मे अनेक प्रशासनिक परिवर्तन किये।
सन् 1857 की क्रांति के परिणाम या महत्व (1857 ki kranti ke parinaam)
1857 की क्रांति के निम्न परिणाम एवं प्रभाव हुये--
1. कंपनी के शासन का अंत
विद्रोह का ईस्ट इंडिया कंपनी पर गम्भीर प्रभाव पड़ा। इंग्लैंड मे कंपनी का पहले से ही विरोध होता आया था और ब्रिटिश सरकार ने उसकी शक्तियाँ बहुत कुछ छीन लीं थी। अतः 1858 ई. मे ब्रिटेन की संसद ने एक अधिनियम पारित करके कंपनी के शासन का अंत कर दिया और भारत के शासन की बागडोर इंग्लैंड की सरकार को सौंप दी। कंपनी ने इस परिवर्तन का कड़ा विरोध किया, किन्तु उसकी ओर कोई ध्यान नही दिया गया। अधिनियम मे कहा गया है कि "भारत के शासन का संचालन प्रभु (राजा) के नाम से राज्य के कुछ प्रमुख सचिव के द्वारा किया जायेगा और उस सचिव की सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक परिषद् होगी।
2. 1861 ई. का अधिनियम पारित
1857 की क्रान्ति के परिणामस्वरूप 1861 का अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम के द्वारा अंग्रेजों ने भारतीयों के असंतोष को दूर करने का प्रयास किया। भारतीयों को पहली बार प्रशासन तथा कानून-निर्माण मे भागीदार बनाया गया। अब प्रशासन तथा कानून-निर्माण मे भारतीय अपनी राय व्यक्त कर सकते थे।
3. आर्थिक शोषण
कंपनी के अधीन पहले ही भारत के धन को लूटा जा रहा था, परन्तु सम्राटों के अधीन आने से यह आर्थिक शोषण और भी बढ़ गया। अब भारत एक व्यापारिक संस्था का नही बल्कि संपूर्ण ब्रिटिश लोगों के आर्थिक शोषण का केन्द्र बन गया।
4. सैनिक पूनर्गठन और नीति परिवर्तन
क्रान्ति के फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने अपनी सैनिक नीति मे परिवर्तन किया। तोपखाने मे अंग्रेजों को रखा गया। सेना का पुनर्गठन किया गया। भारतीयों की संख्या कम की गई। भारतीयों को जाति तथा धार्मिक आधार पर रखा गया ताकि उनमे राष्ट्रीय भावना न आ सके।
5. राष्ट्रीयता की भावनाओं का विकास
1857 की क्रान्ति ने भारतीयों के राष्ट्रीय भावनाओं का तीव्र विकास किया। अब भारतीय समझने लगे कि भारतीयों का कल्याण तभी हो सकता है जब अंग्रेजों की दासता से छूटकारा मिल जाये। 1857 की क्रान्ति मे सभी वर्ग, धर्म तथा सम्प्रदाय के लोगो ने संगठित रूप से भाग लिया था। इससे संगठन भावना जाग्रत हुई। विभिन्न वर्ग के लोग एक दूसरे के नजदीक आये। इससे राष्ट्रीय आंदोलन को बढ़ावा मिला।
6. घृणा, वैमनस्य और अविश्वास मे वृद्धि
क्रांति के कारण अंग्रेजों और भारतीयों मे, हिन्दुओं और मुसलमानों मे पारस्परिक घृणा, कटुता, वैमनस्य और अविश्वास खूब बढ़ गय।
7. भारतीय राज्यों के प्रति नीति
अब विस्तारवादी नीति को समाप्त कर भारतीय राजाओं को संतुष्ट किया गया। सरकार ने कहा कि उन्हें दत्तक पुत्र लेने का आधिकार होगा।
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