लार्ड डलहौजी
लार्ड डलहौजी का भारते गवर्नर जनरल के रूपे आगमन 1848 मे हुआ। लार्ड विलियम बैंटिक की भांति ही लार्ड डलहौजी भी एक सुधारवादी गवर्नर जनरल था। यह सही है कि उसके अधिकांश सुधार ब्रिटिश साम्राज्य के संवर्धन एवं उसकी सुरक्षा के स्वार्थी प्रयासों से प्रेरित थे। फिर भी उनका स्थायी लाभ भारतीयों को प्राप्त हुआ। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि हलहौजी के सुधार कार्यों ने आधुनिक भारत की नींव रखी और इसलिए हलहौजी को आधुनिक भारत का जनक माना जाता है।
लार्ड डलहौजी के प्रशासनिक सुधार (lord dalhousie ke prashasnik sudhar)
हलहौजी के समय मे जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण शासन सम्बन्धी परिवर्तन हुआ, जिसके कारण गवर्नर जनरल को चारों ओर सुधार करने का समय मिल सका वह था बंगाल के शासन के लिए सन् 1853 मे एक उप गवर्नर नियुक्त करना। इसके अलावा डलहौजी ने नव प्राप्त प्रदेशों को नान रेग्यूलेशन प्रान्तों से संगठित करके उन्हें ऐसे कमिश्नरों के अधीन कर दिया जो स्वयं उसके प्रति उत्तरदायी थे। इसमे डलहौजी ने केन्द्रीयकरण के सिद्धांत को अपनाया क्योंकि वह बंगाल, बम्बई और मद्रास प्रेसीडेन्सियों की अकुशल स्वायत्तता को बढ़ावा देना नही चाहता था। नये प्रान्तों व भागों मे शासन का आधार देशी रीति रिवाजों को बनाया गया तथा ऊपर से ब्रिटिश आदेशों का नियंत्रण रखा गया। इसके द्वारा अनावश्यक कर्मचारियों से मुक्ति मिली। जिला अधिकारियों को सहायक दिये गये तथा उनके हाथों मे न्याय, कार्यपालिका की शक्तियों, माल एवं पुलिस विभाग सभी को केन्द्रीय कर दिया गया। इन तथा भारतीय रेल, डाक, तार, व्यवस्थाओं से डलहौजी ने पुराने तथा नये प्रदेशों को अक्षरश: लोहे के पट्टों से बाँध दिया, परन्तु इस त्वरित केन्द्रीयकरण की नीति से लोगों मे भय तथा असुरक्षा की भावना का संचार हुआ।
डलहौजी भारतीय रेल, तार एवं डाक व्यवस्था का जन्मदाता था। भारत ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा करने तथा ब्रिटिश व्यापार को बढ़ाने के लिए इन्हें मूलरूप से बढ़ाया गया किन्तु इन सेवाओं ने भारत को अधिक आधुनिक बनाने तथा एकता उत्पन्न करने मे उतना ही योग दिया जितना एक कल्याणकारी प्रशासन व्यवस्था तथा शिक्षा के प्रसार ने। इन देशव्यापी सेवाओं ने शीघ्र ही राष्ट्रीय-सामाजिक तथा भौतिक महत्व प्राप्त कर लिया। प्रथम रेलवे लाइन थाना तथा बम्बई के बीच सन् 1853 मे डाली गयी और 1856 तक पूरे देश मे हजारों मील लम्बी रेलवे लाइनें या तो डाली जा चुकी थी या उनकी नाप-जोख हो रही थी। सन् 1892 तक देश मे 17,768 मील लम्बी रेल लाइनें डल चुकी थी, परन्तु इसके लिए डलहौजी ने ब्रिटिश व्यक्तिगत कम्पनियों को राज्य की रक्षा गारण्टी के साथ अनुबन्धित किया। सन् 1879 तक इन्होंने भारत के लिए 9,80,00,000 पौंड की अंग्रेजी पूंजी का निवेश कर लिया। रेलों के विकास से भारत के व्यापार के साथ साथ सामाजिक व्यवस्था व राष्ट्रीय चेतता भी प्रभावित हुई।
कार्यों के अनुसार विभागों का वितरण
केन्द्र सरकार के भिन्न-भिन्न कार्यों के वर्गीकरण किये गये तथा उनके लिये विभिन्न विभाग बनाये गये तथा प्रत्येक की व्यवस्था के लिये डिप्टी कमिश्नर नियुक्त किये गये। इन्हें अपने विभाग के लिये सम्पूर्ण अधिकार दिये गये।
सैनिक व्यवस्था मे सुधार
लार्ड डलहौजी की हड़प तथा विस्तारवादी नीति के परिणामस्वरूप कंपनी का साम्राज्य पश्चिमी मे अफगानिस्तान से पूर्व मे आसाम तक विस्तृत हो गया था। उसमे निम्म सुधार किये--
1. तोपखाने का केन्द्र बंगाल से मेरठ बदला।
2. फौजी कार्यालय शिमला भेजा।
3. छँटनी, विकेन्द्रीकरण और वर्गीकरण की नीति आरंभ की।
4. गोरखो को सेना मे लेने के लिये प्रोत्साहित किया।
5. पंजाब मे नवीन अनियमित सेना का संगठन किया।
6. फौजों तथा सैनिकों की संख्या मे वृद्धि की।
7. सेना मे भारतवासियों की संख्या बढ़ने से रोकी गई तथा उन्हे पूरे भारत मे इस प्रकार फैला दिया गया कि वे एकजुट होकर अंग्रेजों को नुकसान न पहुंचा सकें।
इस तरह डलहौजी ने सेना की विन्यास समझदारीपूर्ण तरीके से किया। यदि ऐसा नही किया जाता तो 1857 मे हुआ सैनिक विद्रोह घातक प्रमाणित होता।
सामाजिक सुधार
डलहौजी के समय सामाजिक क्षेत्र मे दो प्रमुख कार्य किए गए। ईश्वरचंद विद्यासागर नामक महान भारतीय समाज सुधारक के प्रयासों से भारत मे विधवाओं के प्रति सहानुभूति का माहौल बनने लगा था। विद्यासागर ने विधवाओं के पुनर्विवाह की पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी। लार्ड डलहौजी ने इसे कानूनी रूप देते हुए विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित करवाया। उल्लेखनीय है कि इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप भारत मे पहला कानूनी विधवा पुनर्विवाह दिसंबर 1856 मे सम्पन्न हुआ।
डलहौजी का दूसरा सामाजिक कार्य ईसाई धर्म को प्रसारित करने की भावना से प्रेरित था। इसके तहत उसने इसाई धर्म स्वीकार कर लेने वाले हिन्दुओं को उनकी पैतृक संपत्ति से वंचित नहीं किए जाने का पूरजोर समर्थन किया।
यातायात का विकास
लार्ड डलहौजी की जिस देन के लिए भारत उसका ॠणी है वह है भारत मे रेल की व्यवस्था करना लार्ड डलहौजी ने भारत मे अंग्रेजों के व्यापारिक एवं राजनैतिक हितों को सुरक्षित रखने के लिए के लिए भारत मे रेल की पटरियां बिछवाना प्रारंभ किया। भारत मे पहली बार रेलगाड़ी बंबई से थाने तक 16 अप्रैल 1853 ई. को डलहौजी के समय ही चली थी। डलहौजी ने भारत मे अनेक सड़कों का पुनर्निर्माण कर वाया जिसमे शेरशाह सूरी (1540-45) के समय निर्मित हुई सड़क-ए-आजम अर्थात् ग्रांड ट्रंक रोड मुख्य थी।
संचार के साधनों का विकास
उस समय संचार के दो मुख्य साधन थे-डाक एवं तार। भारत की डाक व्यवस्था महंगी एवं असुविधाजनक थी। डाक खर्च प्रेषित किए जाने वाले पत्र की दूरी के अनुसार मनमाने ढंग से वसूल किए जाते थे। डलहौजी ने 1852 मे ब्रिटेन की तरह भारत मे डाक टिकिटों की शुरुआत की। अब दो पैसे का टिकट लगाकर किसी भी हिस्से मे पत्र भेजा जा सकता था। 1854 मे डलहौजी ने भारत मे तार प्रणाली लागू की जिससे एक स्थान से दूसरे स्थान पर तीव्र गति से संदेश भेजना संभव हो सका।
लोक निर्माण विभाग की स्थापना
डलहौजी ने अपने कार्यकाल मे लोक निर्माण विभाग की स्थापना करवाई, जिसका मुख्य कार्य सार्वजनिक उद्देश्य के लिए भवनों, सड़कों आदि का निमार्ण करवाना था। यह विभाग वर्तमान मे भी जारी है और इसने देश मे अनेक उपयोगी निर्माण कार्य संपन्न किए।
शिक्षा नीति
चार्ल्सवुड का पुत्र 1854 मे भारत आया। उसने अनुसार डलहौजी ने पूरे भारत की शिक्षा व्यवस्था के लिये एक निर्देशक नियुक्त किया था। इसकी देखरेस मे प्रेसीडेन्सियों मे लन्दन विश्वविद्यालय के आदर्श पर विश्वविद्यालय स्थापित किये गये जो केवल परीक्षा लेने के कार्य करते थे। यह महाविद्यालयों को सम्बद्धता प्रदान करते थे। डिग्री, इन्टर, हाईस्कूल तथा वर्नाक्यूलर विद्यालय एवं काॅलेज खुलवाना इनका कार्य था। 1847 मे बम्बई, कलकत्ता, मद्रास मे विश्वविद्यालय स्थापित हुये। प्रेसीडेन्सी मे एक शिक्षा विभाग और शिक्षक-प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किया गया। प्रान्तों मे भी निर्देशक नियुक्त किये गये थे।
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