10/06/2020

रैयतवाड़ी व्यवस्था के गुण एवं दोष

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रैयतवाड़ी व्यवस्था 

सन्  1820 मे टामस मुनरों मद्रास का गवर्नर बना। उसने प्रचलित स्थानीय राजस्व प्रणाली कर अध्ययन का मालाबार, कन्नड, कोयम्बटूर, मदुरै तथा डिण्डीगल मे जो राजस्व प्रणाली अपनायी उसे रेयतवाड़ी प्रथा का नाम दिया गया। इसमे कृषक ही भूमि का स्वामी होता था तथा बिना किसी जमींदार या बिचौलिये के सरकार को सीधे कर देता था। वह अपनी जमीन का पंजीबध्द स्वामी होता था। 1792 से 1820 तक सरकार खेत की अनुमानित आय का लगभग आधा भाग कर के रूप मे देती थी। 1820 मे सर्वेक्षण कराने के बाद मुनरो ने कुल उपज के तीसरे भाग को लगान मानकर रेयतवाड़ी प्रथा प्रचलित की, परन्तु यह लगान भी बहुत अधिक था तथा धन के रूप मे वसूला जाने के कारण वास्तविक अथवा मंडी के प्रचलित भावों का इस पर कोई प्रभाव नही था अतः किसान बड़ी मुसीबत मे पड़ जाते थे।

मद्रास की रेयतवाड़ी प्रथा लगभग 30 वर्षों तक चली तथा इससे कृषकों को अनेक कठिनाइयाँ व आर्थिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, वे कर समय पर चुकाने के लिए सूदखोर साहूकार-चिट्ठियों के पंजो मे फँस गये तथा अंग्रेजों के कड़े कर संग्रहण नियमों एवं उनके द्वारा दी जाने वाली यातनाओं का उन्हें शिकार होना पड़ा। ये शारीरिक दण्ड इतने अमानवीय थे कि ब्रिटिश संसद मे इन पर आवाज उठी। 1855, 61 मे इस पर सर्वेक्षण हुए किन्तु मद्रास प्रांत के कृषकों की वास्तविक स्थिति तो 1877-78 के भीषण अकाल मे ही सामने आयी। 

रैयतवाड़ी प्रणाली के लाभ या गुण 

इस प्रणाली की सर्वप्रमुख विशेषता सीधे कृषकों से कर वसूल किया जाना था। इस प्रकार कृषकों की भूमि का स्वामी मान लिया गया। जब कृषक कर देता था वह भूमि का स्वामी था। अतः कृषक अच्छी उपज करने लिये अधिक श्रम करने के लिये बाध्य हुआ। लम्बी अवधि के लिये कर निर्धारित कर दिये जाने से भी कृषक लाभान्वित हुए।

रैयतवाड़ी भू राजस्व व्यवस्था या प्रणाली के दोष या हानि

कुल उपज का 33 प्रतिशत कर भी कृषकों के लिए बहुत बड़ा भार बन गया। अतः उनकी आर्थिक अवस्था मे कोई सुधार नही हुआ। व्यवस्था मे गांव के प्रमुख लोग हस्तक्षेप कर मध्यस्थता का कार्य करने लगे। यह वर्ग भी जमींदारों की तरह गरीब कृषकों का शोषण करने लगा। भारत मे कृषकों के अशिक्षित होने के कारण गांव के बड़े लोगों ने इस व्यवस्था से लाभ उठाना शुरू कर दिया। अतः यह प्रणाली असफल हो गई। इस प्रणाली से सरकार तथा रैयत अर्थात् हल जोतने वालों के मध्य गलतफहमी एवं संघर्ष व्याप्त हो गया।

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