ब्रह्माण्ड की संरचना (brahmand ki sanrachna)
निहारिकाएँ ब्रह्माण्ड की निर्माणी घटक है। सन् 1920 मे एडविन हबल (edvin hubble) नामक खगोल विज्ञानी ने माउंट विल्सन प्रेक्षणशाला कैलीफोर्निया (संयुक्त राज्य अमेरिका) से निहारिकाओं का प्रेक्षण करते समय पाया कि ये स्थिर नही है।सभी निहारिकाएँ अत्यधिक वेग से एक दूसरे से दूर भाग रही है। नीहारिकाओं की एक-दूसरे से दूर भागने की चाल उनके बीच की दूरी के अनुक्रमानुपाती होती है। अर्थात् किन्ही दो नीहारिकाओं के मध्य दूरी अधिक होने पर वे अधिक चाल से एक-दूसरे से परे जाती है। सर्वाधिक दूरी पर स्थित निहारिकाएँ 1.5 लाख किमी प्रति सेकंड से भी अधिक (अर्थात् प्रकाश) की चाल के आधे से अधिक) चाल से दूर जा रही है। इसका अर्थ हुआ कि हमारा ब्रह्माण्ड विस्तारित हो रहा है। अब प्रश्न उठता है कि ब्राह्मण्ड का निर्माण करने वाली ये निहारिकाएँ कहाँ से आई?
ब्रह्माण्ड की संरचना (उत्पत्ति) का सिद्धांत (brahmand ki utpatti)
ब्रह्माण्ड की संरचना (उत्पत्ति) के संबंध मे दो मत हैं
1. महा विस्फोट
यह सिद्धांत नीहारिकाओं, तारों, ग्रहों आदि आकाशीय पिंडों के उद्भव की व्याख्या करता है। इस सिद्धांत के अनुसार ब्रह्माण्ड का सम्पूर्ण पदार्थ प्राचीनकाल मे एक ही बिंदु पर केन्द्रित था। इस केन्द्रित पदार्थ को प्रारंभिक परमाणु कहते हैं। करीब 15×10/9 वर्ष पूर्व इस अत्यधिक घनत्व वाले और अत्यन्त ऊच्च ताप वाले पदार्थ अर्थात् प्रारम्भिक परमाणु मे महा विस्फोट हुआ। इस विस्फोट के फलस्वरूप पदार्थ सभी सम्भव दिशाओं मे अन्तरिक्ष मे उड़ने लगा। आगे चलकर इस पदार्थ से ही तारों एवं अन्य आकाशीय पिंडों वाली नीहारिकाओं का निर्माण हुआ।
2. स्थाई अवस्था का सिद्धांत
ब्रह्माण्ड के उद्भव के इस सिद्धांत के अनुसार ब्रह्माण्ड अपरिवर्तन शील है। यह सभी बिन्दुओं पर हर काल मे यथात ही दिखता रहा है। ब्रह्माण्ड का न तो आरम्भ है और न ही अंत।
महाविस्फोट सिद्धांत के पक्ष मे कई प्रयोगिक प्रमाण जुटाये गये है। ज्ञातव्य हो वर्ष 2006 का भौतिक का नोबल पुरस्कार माथेर व स्मूट को इस संबंध में "कोबे" उपग्रह पर किये गये उनके महत्वपूर्ण शोध कार्य के आधार पर ही प्रदान किया गया।
इस तरह उपर्युक्त दोनों विरोधाभासी सिद्धांत मे से महा विस्फोट सिद्धांत अपनी प्रायोगिक पुष्टियों की वजह से अधिक स्वीकार्य हैं।
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